− | शैलपुत्री :- माँ जगदंबा के नौ स्वरूपों में सबसे प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री है । माँ शैलपुत्री भगवान शिव की शक्ति है जो भिन्न भिन्न रूपों में पुरे श्रृष्टि को संचालित कराती है । माँ शैलपुत्री को उमा ,शिवदूती , दक्षकुमारी, महेश्वरी, शैलजा, सती और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है । माँ शैलपुत्री की शातियाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आशीर्वाद से समाहित है । एक बार राज दक्ष द्वारा सभी देवताओं को निमंत्रण देना और भगवान शिव जी को आमंत्रित नहीं करना और अपने पति के तिरस्कार को सहन ना कर सकी । अपने पिता द्वारा किये गए महायज्ञ के अग्निकुण्ड में कूदकर अपना प्राण त्याग दिया । उसके उपरांत वह पार्वती के रूप में हिमालय और मैना की पुत्री के रूप में जन्म लिया और तपस्या और साधना द्वारा भगवान शिव का वरण किया । <blockquote>वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्</blockquote>माँ शैलपुत्री की पूजा अर्चना इस मंत्रो द्वारा की जाती है | | + | शैलपुत्री :- माँ जगदंबा के नौ स्वरूपों में सबसे प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री है । माँ शैलपुत्री भगवान शिव की शक्ति है जो भिन्न भिन्न रूपों में पुरे श्रृष्टि को संचालित कराती है । माँ शैलपुत्री को उमा ,शिवदूती , दक्षकुमारी, महेश्वरी, शैलजा, सती और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है । माँ शैलपुत्री की शातियाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आशीर्वाद से समाहित है । एक बार राज दक्ष द्वारा सभी देवताओं को निमंत्रण देना और भगवान शिव जी को आमंत्रित नहीं करना और अपने पति के तिरस्कार को सहन ना कर सकी । अपने पिता द्वारा किये गए महायज्ञ के अग्निकुण्ड में कूदकर अपना प्राण त्याग दिया । उसके उपरांत वह पार्वती के रूप में हिमालय और मैना की पुत्री के रूप में जन्म लिया और तपस्या और साधना द्वारा भगवान शिव का वरण किया । <blockquote>वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्</blockquote>माँ शैलपुत्री की पूजा अर्चना इस मंत्रो द्वारा की जाती है । |
− | मां भगवती का चौथा या चतुर्थ स्वरूप कृष्माण्डा का है। चैत्र नवरात्र में संयम से व्रत रखने वाले को मां कूष्माण्डा की कृपा से किसी वस्तु की कमी नहीं रहा करती तथा वह हर प्रकार की विपत्तियों को सरलता से प्राप्त कर लेता है | | + | मां भगवती का चौथा या चतुर्थ स्वरूप कृष्माण्डा का है। चैत्र नवरात्र में संयम से व्रत रखने वाले को मां कूष्माण्डा की कृपा से किसी वस्तु की कमी नहीं रहा करती तथा वह हर प्रकार की विपत्तियों को सरलता से प्राप्त कर लेता है । |
− | यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीय को मनाया जाता है | इसी दिन सुहागन स्त्रियाँ व्रत रखती है | कहा जाता है कि भगवान | + | यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीय को मनाया जाता है । इसी दिन सुहागन स्त्रियाँ व्रत रखती है । कहा जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती तथा सभी स्त्रियों को सौभाग्य का वर दिया था । पूजन के समय रेणुका की गौरी बनाकर उसपर चूड़ी , माहवार , सिंदूर चढ़ाने का नियम है । चन्दन , अक्षत ,धुप , दीप , नैवेद्य से पूजन करना , सुहागन के सिंगार का सामान चढ़ाना और भोग लगाने का नियम है । यह व्रत रखने वाली स्त्रियों को गौर पर चढ़े सिंदूर को अपनी मांग में लगाना चाहिए । |