भजन,ध्यान,पाठ,पूजा आदि सात्विक कार्यों के लिये शान्त और सात्विक मन की परम आवश्यकता होती है।प्राणायाम द्वारा प्राणकी समगति(दो स्वरों से बराबर चलना) होने पर मन शान्त और सात्विक हो जाता है।यह प्राणायाम का आध्यत्मिक प्रयोजन है।प्राणायम से शारीरिक लाभ भी है।
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भजन,ध्यान,पाठ,पूजा आदि सात्विक कार्यों के लिये शान्त और सात्विक मन की परम आवश्यकता होती है।प्राणायाम द्वारा प्राणकी समगति(दो स्वरों से बराबर चलना) होने पर मन शान्त और सात्विक हो जाता है। यह प्राणायाम का आध्यत्मिक प्रयोजन है।प्राणायम से शारीरिक लाभ भी है।
* प्राणायाम क्या हैॽ़
* प्राणायाम क्या हैॽ़
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प्राणायाम इस पद में दो शब्द मिले हुये हैं-प्राण+आयाम। प्राण अर्थात् श्वास(सांस लेना) और प्रश्वास(सांस छोडना)।इसी क्रिया के द्वारा शरीर में प्राण शक्ति स्थिर रहती है। इसलिये इन दोनों क्रियाओं को मिलाकर प्राण संज्ञा दी गई है। और आयाम कहते हैं वश में करने को अथवा फैलाने को।संयुक्त प्राणायाम शब्द का अर्थ हुआ-प्राण को वश में करना अथवा उसको फैलाना।अर्थात् श्वास-प्रश्वास को अपने इच्छानुसार वश में करके,अव्यवस्थित गति का अवरोध करके,उसको फैलाना(उसकी अवधि को बढाना)।अर्थात् चाहे जितने काल तक हम प्राण को अपने अन्दर या बाहर रख सकें। इस क्रिया से प्राणशक्ति अपने वश में हो जाती है। इसीलिये योगाभ्यास में प्राणायाम का विशेष महत्व है।
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प्राणायाम इस पद में दो शब्द मिले हुये हैं-प्राण और आयाम। प्राण अर्थात् श्वास(सांस लेना) और प्रश्वास(सांस छोडना)।इसी क्रिया के द्वारा शरीर में प्राण शक्ति स्थिर रहती है। इसलिये इन दोनों क्रियाओं को मिलाकर प्राण संज्ञा दी गई है। और आयाम कहते हैं वश में करने को अथवा फैलाने को। संयुक्त प्राणायाम शब्द का अर्थ हुआ-प्राण को वश में करना अथवा उसको फैलाना।अर्थात् श्वास-प्रश्वास को अपने इच्छानुसार वश में करके,अव्यवस्थित गति का अवरोध करके, उसको फैलाना (उसकी अवधि को बढाना)।अर्थात् चाहे जितने काल तक हम प्राण को अपने अन्दर या बाहर रख सकें। इस क्रिया से प्राणशक्ति अपने वश में हो जाती है। इसीलिये योगाभ्यास में प्राणायाम का विशेष महत्व है।