महाराज दिलीप बहुत समयतक नि:सन्तान ही रहे तो चिन्तित मनसे अपने कुलगुरु वसिष्ठजीके पास गये। प्रणामाभिवादनके पश्चात् वसिष्ठजीने अपनी दिव्य दृष्टिसे देखकर बताया-तुम एक बार स्वर्गसे लौट रहे थे तो मार्गमें कामधेनुके मिलनेपर तुमने उसे प्रणाम नहीं किया। कामधेनुने इस कारण तुम्हें निःसन्तान होनेका शाप दे दिया कि तुमको मेरी सन्तानकी आराधना-सेवाके बिना निःसन्तान ही रहना पड़ेगा। अतः कामधेनुकी पुत्री नन्दिनी जो मेरे आश्रममें है। तुम उसकी सेवा करो तो तुम्हें यशस्वी पुत्रकी प्राप्ति होगी। राजाने निष्ठासे गोसेवाकी साथ ही रानी सुदक्षिणाने भी प्रातः-सायं गौका पूजन-वन्दन किया और सेवा की, जिसके प्रभावसे उन्हें पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। प्रणाम, अभिवादन तथा सेवाके अभावमें गुरु और पितृजनोंके अभिशापसे सन्तान, सौभाग्य और ऐश्वर्यका अभाव हो जाता है। इस अभावकी पूर्ति भी उन्हें प्रसन्न करनेसे ही होती है। | महाराज दिलीप बहुत समयतक नि:सन्तान ही रहे तो चिन्तित मनसे अपने कुलगुरु वसिष्ठजीके पास गये। प्रणामाभिवादनके पश्चात् वसिष्ठजीने अपनी दिव्य दृष्टिसे देखकर बताया-तुम एक बार स्वर्गसे लौट रहे थे तो मार्गमें कामधेनुके मिलनेपर तुमने उसे प्रणाम नहीं किया। कामधेनुने इस कारण तुम्हें निःसन्तान होनेका शाप दे दिया कि तुमको मेरी सन्तानकी आराधना-सेवाके बिना निःसन्तान ही रहना पड़ेगा। अतः कामधेनुकी पुत्री नन्दिनी जो मेरे आश्रममें है। तुम उसकी सेवा करो तो तुम्हें यशस्वी पुत्रकी प्राप्ति होगी। राजाने निष्ठासे गोसेवाकी साथ ही रानी सुदक्षिणाने भी प्रातः-सायं गौका पूजन-वन्दन किया और सेवा की, जिसके प्रभावसे उन्हें पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। प्रणाम, अभिवादन तथा सेवाके अभावमें गुरु और पितृजनोंके अभिशापसे सन्तान, सौभाग्य और ऐश्वर्यका अभाव हो जाता है। इस अभावकी पूर्ति भी उन्हें प्रसन्न करनेसे ही होती है। |