Line 237: |
Line 237: |
| Responsibilities of the Raja | | Responsibilities of the Raja |
| | | |
− | कोशस्योपार्जनरतिर्यमवैश्रवणोपमः। वेत्ता च दशवर्गस्य स्थानवृद्धिक्षयात्मनः।। 18 | + | कोशस्योपार्जनरतिर्यमवैश्रवणोपमः। वेत्ता च दशवर्गस्य स्थानवृद्धिक्षयात्मनः।। 12.56.18 (57.18) |
| | | |
− | अभृतानां भवेद्भर्ता भृतानामन्ववेक्षकः। 19 | + | अभृतानां भवेद्भर्ता भृतानामन्ववेक्षकः। 19<ref name=":1" /> |
| + | |
| + | राजा ह्येवाखिलं लोकं समुदीर्णं समुत्सुकम्। प्रसादयति धर्मेण प्रसाद्य च विराजते।। 12.67.9 (68.9)<ref name=":2">Mahabharata, Shanti Parva, [https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-12-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-067 Adhyaya 67]</ref> |
| | | |
| Behaviour of the Raja | | Behaviour of the Raja |
| | | |
− | नृपतिः सुभुखश्च स्यात्स्मितपूर्वाभिभाषिता।। 19 | + | नृपतिः सुभुखश्च स्यात्स्मितपूर्वाभिभाषिता।। 12.56.19 (57.19) |
| | | |
| स्वयं प्रहर्ता दाता च वश्यात्मा वश्यसाधनः। काले दाता च भोक्ता च शुद्धाचारस्तथैव च।। 22 | | स्वयं प्रहर्ता दाता च वश्यात्मा वश्यसाधनः। काले दाता च भोक्ता च शुद्धाचारस्तथैव च।। 22 |
Line 322: |
Line 324: |
| | | |
| धर्मोच्छ्रिता सत्यजला शीलयष्टिर्दमध्वजा। त्यागवाताध्वगा शीघ्रा नौस्तया सन्तरिष्यति।। 12.65.37 (66.37)<ref>Mahabharata, Shanti Parva, [https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-12-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-065 Adhyaya 65]</ref> | | धर्मोच्छ्रिता सत्यजला शीलयष्टिर्दमध्वजा। त्यागवाताध्वगा शीघ्रा नौस्तया सन्तरिष्यति।। 12.65.37 (66.37)<ref>Mahabharata, Shanti Parva, [https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-12-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-065 Adhyaya 65]</ref> |
| + | |
| + | Need for a Raja |
| + | |
| + | राजा चेन्न भवेल्लोके पृथिव्या दण्डधारकः। जले मत्स्यानिवाभक्ष्यन्दुर्बलं बलवत्तराः।। 12.66.16 (67.16)<ref name=":3">Mahabharata, Shanti Parva, [https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-12-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-066 Adhyaya 66]</ref> |
| + | |
| + | हरेयुर्बलवन्तोऽपि दुर्बलानां परिग्रहान्। हन्युर्व्यायच्छमानांश्च यदि राजा न पालयेत्।। 12.67.14 (68.14) |
| + | |
| + | यानं वस्त्रमलङ्कारान्रत्नानि विविधानि च। हरेयुः सहसा पापा यदि राजा न पालयेत्।। 16 |
| + | |
| + | मातरं पितरं वृद्धमाचार्यमतिथिं गुरुम्। क्लिश्नीयुरपि हिंस्युर्वा यदि राजा न पालयेत्।। 18 |
| + | |
| + | हस्ताद्धस्तं परिमुषेद्भिद्येरन्सर्वसेतवः। भयार्तं विद्रवेत्सर्वं यदि राजा न पालयेत्।। 28 |
| + | |
| + | Fearlessness - विवृत्य हि यथाकामं गृहद्वाराणि शेरते। मनुष्या रक्षिता राज्ञा समन्तादकुतोभयाः।। 30 |
| + | |
| + | स्त्रियश्चापुरुषा मार्गं सर्वालङ्कारभूषिताः। निर्भयाः प्रतिपद्यन्ते यदि रक्षति भूमिपः।। 32 |
| + | |
| + | धर्ममेव प्रपद्यन्ते न हिंसन्ति परस्परम्। अनुगृह्णन्ति चान्योन्यं यदा रक्षति भूमिपः।। 33<ref name=":2" /> |
| + | |
| + | Facets of the Raja |
| + | |
| + | कुरुते पञ्चरूपाणि कालयुक्तानि यः सदा। भवत्यग्निस्तथाऽऽदित्यो मृत्युर्वैश्रवणो यमः।। 12.66.41 (67.41) |
| + | |
| + | यदा ह्यासीदतः पापान्दहत्युग्रेण तेजसा। मिथ्योपचरितो राजा तदा भवति पावकः।। 42 |
| + | |
| + | यदा पश्यति चारेण सर्वभूतानि भूमिपः। क्षेमं च कृत्वा व्रजति तदा भवति भास्करः।। 43 |
| + | |
| + | अशुचींश्च यदा क्रुद्धः क्षिणोति शतशो नरान्। सपुत्रपौत्रान्सामात्यांस्तदा भवति सोन्तकः।। 44 |
| + | |
| + | यदा त्वधार्मिकान्सर्वांस्तीक्ष्णैर्दण्डैर्नियच्छति। धार्मिकांश्चानुगृह्णाति भवत्यथ यमस्तदा।। 45 |
| + | |
| + | यदा तु धनधाराभिस्तर्पयत्युपकारिणः। आच्छिनत्ति च रत्नानि विविधान्यपकारिणां।। 46 |
| + | |
| + | श्रियं ददाति कस्मैचित्कस्माच्चिदपकर्षति। तदा वैश्रवणो राजा लोके भवति भूमिपः।। 47<ref name=":3" /> |
| | | |
| == References == | | == References == |
| <references /> | | <references /> |