पञ्चमहायज्ञ का वर्णन प्रायः सभी ऋषि मुनियों ने अपने-अपने धर्मग्रन्थों में किया है। आपस्तम्बधर्मसूत्र एवं अन्य ग्रन्थों में पांचों यज्ञों का क्रम है -भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ एवं ब्रह्मयज्ञ(स्वाध्याय) किन्तु उनके सम्पादन के कालों के अनुसार उनका क्रम होना चाहिए ब्रह्मयज्ञ (जप आदि), देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ एवं मनुष्ययज्ञ। हम इसी क्रम से पांचों का विवेचन करेंगे। पञ्चमहायज्ञों का विवेचन इस प्रकार है-
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पञ्चमहायज्ञ का वर्णन प्रायः सभी ऋषि मुनियों ने अपने-अपने धर्मग्रन्थों में किया है। महाभारत में युधिष्ठिर जी भगवान् श्री कृष्ण से पूछते हैं-<blockquote>पञ्च यज्ञाः कथं देव क्रियन्तेऽत्र द्विजातिभिः। तेषां नाम च देवेश वक्तुमर्हस्यशेषतः।।<ref>महाभारतम्-आश्वमेधिकपर्व 14 - अध्याय 104 - श्लो०सं०८।</ref></blockquote>हे भगवन् ! द्विजातियोंको पञ्चमहायज्ञोंका अनुष्ठान किस प्रकार करना चाहिये एवं उन यज्ञोंके नाम भी बतानेकी कृपा कीजिये।भगवान् श्री कृष्ण जी कहते हैं-<blockquote>शृणु पञ्च महायज्ञान्कीर्त्यमानान्युधिष्ठिर। यैरेव ब्रह्मसालोक्यं लभ्यते गृहमेधिना।।</blockquote>हे युधिष्ठिर ! जिनके अनुष्ठानसे गृहस्थ पुरुषोंको ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है उन पञ्चमहायज्ञोंका वर्णन करता हूँ। सुनो-
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ऋभुयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ, और पितृयज्ञ-ये पञ्चमहायज्ञ कहलाते हैं। इनमें ऋभुयज्ञ तर्पणको कहते हैं, ब्रह्मयज्ञ स्वाध्यायका नाम है, समस्त प्राणियोंके लिये अन्नको बलि देना भूतयज्ञ है। अतिथियोंकी पूजाको मनुष्ययज्ञ कहते हैं और पितरोंके उद्देश्यसे जो श्राद्ध आदि कर्म किये जाते हैं उनकी पितृयज्ञ संज्ञा है। हुत, अहुत, प्रहुत, पाशित और बलिदान-ये पाकयज्ञ कहलाते हैं। वैश्वदेव आदि कर्मों में जो देवताओंके निमित्त हवन किया जाता है उसे विद्वान् पुरुष हुत कहते हैं। दान दी हुई वस्तुको अहुत कहते हैं। ब्राह्मणोंको भोजन करानेका नाम प्रहुत है। प्राणाग्निहोत्रको विधिसे जो प्राणोंको पांच ग्रास अर्पण किये जाते हैं उनकी प्राशित संज्ञा है तथा गौ आदि प्राणियोंको तृप्तिके लिये जो अन्नकी बलि दी जाती है उसीका नाम बलिदान है। इन पांच कर्मोंको पाकयज्ञ कहते हैं। कितनेही विद्वान् इन पाकयज्ञोंको ही पञ्चमहायज्ञ कहते हैं किंतु दूसरे लोग जो महायज्ञके स्वरूपको जाननेवाले हैं ब्रह्मयज्ञ आदिको ही पञ्चमहायज्ञ मानते हैं। ये सभी सब प्रकारसे महायज्ञ बतलाये गये हैं। घरपर आये हुए भूखे ब्राह्मणोंको यथाशक्ति निराश नहीं लौटाना चाहिये। जो मनुष्य प्रतिदिन इन पांच यज्ञोंका अनुष्ठान किये बिना ही भोजन कर लेते हैं, वे केवल मल भोजन करते हैं। इसलिये विद्वान् द्विजको चाहिये कि वह प्रतिदिन स्नान करके इन यज्ञोंका अनुष्ठान करे। इन्हें किये बिना भोजन करनेवाला द्विज प्रायश्चित्तका भागी होता है।
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आपस्तम्बधर्मसूत्र एवं अन्य ग्रन्थों में पांचों यज्ञों का क्रम है -भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ एवं ब्रह्मयज्ञ(स्वाध्याय) किन्तु उनके सम्पादन के कालों के अनुसार उनका क्रम होना चाहिए ब्रह्मयज्ञ (जप आदि), देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ एवं मनुष्ययज्ञ। हम इसी क्रम से पांचों का विवेचन करेंगे। पञ्चमहायज्ञों का विवेचन इस प्रकार है-