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ब्राह्ममुहूर्त में  जागरण से ही सनातन धर्मानुयायियों की दिनचर्या प्रारंभ होती है। ब्राह्ममुहूर्तका उपयोग लेना हमारा एक आवश्यक कर्तव्य हो जाता है।यह आठों पहरों का राजा है।दैनिक जीवन चर्या के अन्तर्गत इस अमृत वेला में उठकर शय्याका त्याग करके परमपिता परमात्मा का दिव्यस्मरण या गुणगान करना शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिये परम हितकारी है। इसके उपयोगसे हमें ऐहलौकिक-अभ्युदय एवं पारलौकिक-निःश्रेयस प्राप्त होकर सर्वाङ्गीण धर्मलाभ सम्भव हो जाता है।
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ब्राह्ममुहूर्त में  जागरण से ही सनातन धर्मानुयायियों की दिनचर्या प्रारंभ होती है। ब्राह्ममुहूर्तका उपयोग लेना हमारा एक आवश्यक कर्तव्य हो जाता है।यह आठों प्रहरों का राजा है।दैनिक जीवन चर्या के अन्तर्गत इस अमृत वेला में उठकर शय्याका त्याग करके परमपिता परमात्मा का दिव्यस्मरण या गुणगान करना शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिये परम हितकारी है। इसके उपयोगसे हमें ऐहलौकिक-अभ्युदय एवं पारलौकिक-निःश्रेयस प्राप्त होकर सर्वाङ्गीण धर्मलाभ सम्भव हो जाता है।
    
प्रात: जागरण से दिन भर शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है और साथ ही व्यावहारिक दृष्टि से इस समय जाग जाने से हम अपने दैनिक कृत्य से, नित्य नियम से शीघ्र ही निवृत्त हो जाते हैं। हमारा पूजन पाठ भी ठीक तरह से सम्पन्न हो जाता है और इस प्रकार हम कर्म क्षेत्र में उतरने के लिए एक वीर सिपाही की तरह तैयार हो जाते हैं अतः यह सब प्रात: जागरण के लाभ संक्षेप में वर्णन किये गये हैं।वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण के अनुसार रावण की लंका में अशोक वाटिका में हनुमान जी ब्रह्म मुहूर्त में ही पहुंचे थे और उन्होंने सीता माता द्वारा किए जा रहे मंत्रों की आवाज सुनीं और वे सीता जी से मिले थे। ब्राह्म मुहूर्त में पहुंचने से उनका काम आसान हो गया था।<ref>पं० दीनानाथशर्माशास्त्री सारस्वत, सनातन धर्मालोक, द्वितीयपुष्प (पृ०१५६)।</ref>
 
प्रात: जागरण से दिन भर शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है और साथ ही व्यावहारिक दृष्टि से इस समय जाग जाने से हम अपने दैनिक कृत्य से, नित्य नियम से शीघ्र ही निवृत्त हो जाते हैं। हमारा पूजन पाठ भी ठीक तरह से सम्पन्न हो जाता है और इस प्रकार हम कर्म क्षेत्र में उतरने के लिए एक वीर सिपाही की तरह तैयार हो जाते हैं अतः यह सब प्रात: जागरण के लाभ संक्षेप में वर्णन किये गये हैं।वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण के अनुसार रावण की लंका में अशोक वाटिका में हनुमान जी ब्रह्म मुहूर्त में ही पहुंचे थे और उन्होंने सीता माता द्वारा किए जा रहे मंत्रों की आवाज सुनीं और वे सीता जी से मिले थे। ब्राह्म मुहूर्त में पहुंचने से उनका काम आसान हो गया था।<ref>पं० दीनानाथशर्माशास्त्री सारस्वत, सनातन धर्मालोक, द्वितीयपुष्प (पृ०१५६)।</ref>
    
== परिचय ==
 
== परिचय ==
ब्राह्म मुहूर्त सबसे उत्तम समय है।सनातनीय आर्ष ग्रन्थोंके द्रष्टा-प्रणेता, ऋषि-महर्षियोंने दीर्घकालीन अन्वेषणके उपरान्त यह सिद्ध किया है कि आरोग्य, दीर्घजीवन, सौन्दर्य, प्रार्थना, अध्ययन, आराधना, शुभ कार्य, भगवच्चिन्तन, ध्यान तथा अन्य दिव्य विभूतियोंके रहस्यकी प्राप्ति एवं रक्षाके नियमोंका सबसे सुन्दर समय ब्राह्ममुहूर्त है। महर्षियोंने ब्राह्ममुहूर्तको अनेक नामोंसे अभिहित किया है जैसे-अमृतवेला, ब्रह्मवेला, देववेला, ब्राह्मीवेला, मधुमय समय आदि नामों से जाना जाता है।
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ब्राह्म मुहूर्त सबसे उत्तम समय है।सनातनीय आर्ष ग्रन्थोंके द्रष्टा-प्रणेता, ऋषि-महर्षियोंने दीर्घकालीन अन्वेषणके उपरान्त यह सिद्ध किया है कि आरोग्य, दीर्घजीवन, सौन्दर्य, प्रार्थना, अध्ययन, आराधना, शुभ कार्य, भगवच्चिन्तन तथा ध्यान आदि एवं रक्षाके नियमोंका सबसे सुन्दर समय ब्राह्ममुहूर्त है। महर्षियोंने ब्राह्ममुहूर्तको अनेक नामोंसे अभिहित किया है जैसे-अमृतवेला, ब्रह्मवेला, देववेला, ब्राह्मीवेला, मधुमय समय आदि नामों से जाना जाता है।
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यह  प्रातःकाल का अतिरमणीय, आह्लादजनक और कार्योपयोगी समय है। प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करने से ज्ञात होत है कि संसार के समस्त महापुरुषों,विद्वानों और विद्यार्थियों के जीवन की यही विशेषता रही है कि वे ब्राह्म मुहूर्त में शयन नहीं करते थे । ब्राह्ममुहूर्त में जागरण से उन्होंने बहुत लाभ प्राप्त किये हैं अतः सभी व्यक्तियों को ब्राह्ममुहूर्त में उठकर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना चाहिये।
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यह  प्रातःकाल का अतिरमणीय, आह्लादजनक और कार्योपयोगी समय है। प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि संसार के समस्त महापुरुषों,विद्वानों और विद्यार्थियों के जीवन की यही विशेषता रही है कि वे ब्राह्म मुहूर्त में शयन नहीं करते थे । ब्राह्ममुहूर्त में जागरण से उन्होंने बहुत लाभ प्राप्त किये हैं अतः सभी व्यक्तियों को ब्राह्ममुहूर्त में उठकर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना चाहिये। ब्रह्मचारी यदि सूर्योदय के उपरान्त उठे तो उसके लिये गौतम ऋषि के अनुसार प्रायश्चित्त के रूप में बिना खाये-पीये दिन भर खडे रहकर गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिये ।
    
==ब्राह्ममुहूर्त का काल निर्णय==
 
==ब्राह्ममुहूर्त का काल निर्णय==
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अव्याधितं चेत् स्वपन्तं.....विहितकर्मश्रान्ते तु न॥<ref>श्री उपाह्वत्र्यम्बक माटे १९०९,आचारेन्दु,आनन्दाश्रम संस्कृत ग्रन्थावली (पृ० १५)।</ref>
 
अव्याधितं चेत् स्वपन्तं.....विहितकर्मश्रान्ते तु न॥<ref>श्री उपाह्वत्र्यम्बक माटे १९०९,आचारेन्दु,आनन्दाश्रम संस्कृत ग्रन्थावली (पृ० १५)।</ref>
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रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्योक कारण इस समय यदि नींद आ जाय तो उसके लिये प्रायश्चितकी आवश्यकता नहीं होती।
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रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्योक कारण इस समय यदि नींद आ जाये तो उसके लिये प्रायश्चितकी आवश्यकता नहीं होती है।
    
==जागरण का फल==
 
==जागरण का फल==
सनातनधर्ममें ब्राह्ममुहूर्तमें उठनेकी आज्ञा है-<blockquote>ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थों चानुचिन्तयेत् । कायक्लेशांश्च तन्मूलान् वेदतत्त्वार्थमेव च ।। (मनु० ४।९२)<ref>शिवराज, कौण्डिन्न्यायन। (२०१८) ''मनुस्मृति।'' वाराणसी-चौखम्बा विद्याभवन,(पृ० ३१४)।</ref></blockquote>स्नातक गृहस्थ ब्राह्मण ब्राह्म मुहूर्त में (रात के उपान्त्य मुहूर्त में) जगे, धर्म का और अर्थ का विचार करे, धर्म की और अर्थ की प्राप्ति में होने वाले शरीर के क्लेशों का भी विचार करें और वेद के तत्त्वार्थ का  चिन्तन भी करे।जैसे -कल्पका प्रारम्भ ब्रह्माके दिनका प्रारम्भ होता है उसीसमय ब्रह्माका दीर्घनिद्रामें विश्रान्त हुई सृष्टि के निर्माण एवं उत्थानका काल होता है। ज्ञानरूप वेदका प्राकट्यकाल भी वही होता है, उत्तम ज्ञानवाली एवं शुद्ध-मेधावती ऋषि-सृष्टि भी तभी होती है, सत्त्वयुग वा सत्ययुग भी तभी होता है धार्मिक प्रजा भी उसी प्रारम्भिक कालमें होती है, यह काल भी वैसा ही होता है।उसी ब्राह्मदिनका संक्षिप्त संस्करण यह ब्राह्ममुहूर्त होता है। यह भी सत्सृष्टि-निर्माणका प्रतिनिधि होनेसे सृष्टिका सचमुच निर्माण ही करता है। अपने निर्माण कार्यमें इस ब्राह्ममुहूर्तका उपयोग लेना हमारा एक आवश्यक कर्तव्य हो जाता है। इसके उपयोगसे हमें ऐहलौकिक-अभ्युदय एवं पारलौकिक-निःश्रेयस प्राप्त होकर सर्वाङ्गीण धर्मलाभ सम्भव हो जाता है।
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सनातनधर्ममें ब्राह्ममुहूर्तमें उठनेकी आज्ञा है-<blockquote>ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थों चानुचिन्तयेत् । कायक्लेशांश्च तन्मूलान् वेदतत्त्वार्थमेव च ।। (मनु० ४।९२)<ref>शिवराज, कौण्डिन्न्यायन। (२०१८) ''मनुस्मृति।'' वाराणसी-चौखम्बा विद्याभवन,(पृ० ३१४)।</ref></blockquote>स्नातक गृहस्थ ब्राह्मण ब्राह्म मुहूर्त में (रात के उपान्त्य मुहूर्त में) जगें, धर्म का और अर्थ का विचार करे, धर्म की और अर्थ की प्राप्ति में होने वाले शरीर के क्लेशों का भी विचार करें और वेद के तत्त्वार्थ का  चिन्तन भी करें। जैसे -कल्पका प्रारम्भ ब्रह्माके दिनका प्रारम्भ होता है उसीसमय ब्रह्माका दीर्घनिद्रामें विश्रान्त हुई सृष्टि के निर्माण एवं उत्थानका काल होता है। ज्ञानरूप वेदका प्राकट्यकाल भी वही होता है, उत्तम ज्ञानवाली एवं शुद्ध-मेधावती ऋषि-सृष्टि भी तभी होती है, सत्त्वयुग वा सत्ययुग भी तभी होता है धार्मिक प्रजा भी उसी प्रारम्भिक कालमें होती है, यह काल भी वैसा ही होता है।उसी ब्राह्मदिनका संक्षिप्त संस्करण यह ब्राह्ममुहूर्त होता है। यह भी सत्सृष्टि-निर्माणका प्रतिनिधि होनेसे सृष्टिका सचमुच निर्माण ही करता है। अपने निर्माण कार्यमें इस ब्राह्ममुहूर्तका उपयोग लेना हमारा एक आवश्यक कर्तव्य हो जाता है। इसके उपयोगसे हमें ऐहलौकिक-अभ्युदय एवं पारलौकिक-निःश्रेयस प्राप्त होकर सर्वाङ्गीण धर्मलाभ सम्भव हो जाता है।
    
== वैज्ञानिक अंश ==
 
== वैज्ञानिक अंश ==
इस समयका वातावरण सात्त्विक, शान्त, जीवनप्रद और स्वास्थ्यप्रदायक होता है। इसी समय वृक्ष अशुद्ध वायुको आत्मसात् कर लेते हैं और शुद्ध वायु (आक्सिजन गैस) हमें देते हैं। कमल आदि इसी समय खिलते हैं। नदी आदिका जल सम्पूर्ण रात्रिके, तारामण्डलके, एवं चन्द्रमाके प्रभावको आत्मसात् करके इसी समय उसे व्यक्त करता है। इसके संसर्गसे ही सुरभित, और उदय होनेवाले दिनकरके निर्मल किरणों के प्रभावसे पवित्र हुई वायु हमारा आत्मिक एवं मानसिक कल्याण करती है। सूर्य ही समस्त क्रियाओं तथा विद्युत्शक्ति, प्राणशक्ति आदि समस्त शक्तियों का आकर होता है। सभी धातुएँ, सभी जीव, सब मनुष्य इसीकी शक्तिका अवलम्बन लेते हैं, और बहुत सबल रह ते है। उसके प्रभावसे हमारे मन और बुद्धि आलोकित हो उठते हैं। रात्रिमूलक-तमोगुण और तमोमूलक-जड़ता हट जाती है। यदि इस सुन्दर समयमें भी हम निद्रादेवी में आसक्त रहे, तब हम अपनी आयुको स्वयं घटानेवाले सिद्ध हो सकते हैं। क्योंकि निद्रामें तन्मूलक दौर्बल्यवश वह वायु हमें लाभके बदले हानि भी पहुँचा सकती है-<blockquote>देवो दुर्बल-घातकः।</blockquote>वैसा करने पर हमारा आलस्य बढ़ जाता है, स्फूर्ति नष्ट हो जाती है। उस समय उठ बैठनेसे निद्रामूलक दुर्बलता नष्ट होकर हममें बल उत्पन्न होता है। तब वही वायु हमें लाभदायक सिद्ध होता है-सभी सहायक सबलके।
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इस समयका वातावरण सात्त्विक, शान्त, जीवनप्रद और स्वास्थ्यप्रदायक होता है। इसी समय वृक्ष अशुद्ध वायुको आत्मसात् कर लेते हैं और शुद्ध वायु (आक्सिजन गैस) हमें देते हैं। कमल आदि इसी समय खिलते हैं। नदी आदिका जल सम्पूर्ण रात्रिके तारामण्डलके एवं चन्द्रमाके प्रभावको आत्मसात् करके इसी समय उसे व्यक्त करता है। इसके संसर्गसे ही सुरभित, और उदय होनेवाले दिनकरके निर्मल किरणों के प्रभावसे पवित्र हुई वायु हमारा आत्मिक एवं मानसिक कल्याण करती है। सूर्य ही समस्त क्रियाओं तथा विद्युत्शक्ति, प्राणशक्ति आदि समस्त शक्तियों का आकर होता है। सभी धातुएँ सभी जीव सब मनुष्य इसीकी शक्तिका अवलम्बन लेते हैं और बहुत सबल रहते हैं। उसके प्रभावसे हमारे मन और बुद्धि आलोकित हो उठते हैं। रात्रिमूलक-तमोगुण और तमोमूलक-जड़ता हट जाती है। यदि इस सुन्दर समयमें भी हम निद्रादेवी में आसक्त रहे, तब हम अपनी आयुको स्वयं घटानेवाले सिद्ध हो सकते हैं। क्योंकि निद्रामें तन्मूलक दौर्बल्यवश वह वायु हमें लाभके बदले हानि भी पहुँचा सकती है-<blockquote>देवो दुर्बल-घातकः।</blockquote>वैसा करने पर हमारा आलस्य बढ़ जाता है, स्फूर्ति नष्ट हो जाती है। उस समय उठ बैठनेसे निद्रामूलक दुर्बलता नष्ट होकर हममें बल उत्पन्न होता है। तब वही वायु हमें लाभदायक सिद्ध होता है-       <blockquote>सभी सहायक सबलके।</blockquote>इस समय सम्पूर्ण दिनकी थकावट और चिन्ता आदि रात्रिके सोनेसे दूर होकर हमारा मस्तिष्क शुद्ध तथा शान्त एवं नवशक्तियुक्त हो जाता है, और मुखकी कान्ति एवं रक्तिमा चमक जाती है। मन प्रफुल्लित हो उठता है, शरीर निरोग रहता है। यही समय शुद्ध मेधाका होता है। इसी समय मनः-प्रसत्ति होनेसे प्रतिभाका उदय होता है। उत्तम ग्रन्थकार इसी समय ग्रन्थ लिख रहे होते हैं।  
 
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इस समय सम्पूर्ण दिनकी थकावट और चिन्ता आदि रात्रिके सोनेसे दूर होकर हमारा मस्तिष्क शुद्ध तथा शान्त एवं नवशक्तियुक्त हो जाता है, और मुखको कान्ति एवं रक्तिमा चमक जाती है। मन प्रफुल्ल हो उठता है, शरीर नीरोग रहता है। यही समय शुद्ध मेधाका होता है। इसी समय मनः-प्रसत्ति होनेसे प्रतिभाका उदय होता है। उत्तम ग्रन्थकार इसी समय ग्रन्थ लिख रहे होते हैं।  
   
===आयुर्वेदीय लाभ===
 
===आयुर्वेदीय लाभ===
 
ब्राह्ममुहूर्त में जागरण के अनन्तर जल पीने के आयुर्वेदीय लाभ- अंजलि (लगभग १ गिलास) रात्रि में ताम्र पात्र में रखा पानी पीता है और ऐसा नियमपूर्वक करता है वह जरा-वृद्धत्व को सहज प्राप्त नहीं होकर, आरोग्य लाभ प्राप्त करते शतायु होने का गुण लाभ प्राप्त करता है।
 
ब्राह्ममुहूर्त में जागरण के अनन्तर जल पीने के आयुर्वेदीय लाभ- अंजलि (लगभग १ गिलास) रात्रि में ताम्र पात्र में रखा पानी पीता है और ऐसा नियमपूर्वक करता है वह जरा-वृद्धत्व को सहज प्राप्त नहीं होकर, आरोग्य लाभ प्राप्त करते शतायु होने का गुण लाभ प्राप्त करता है।
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ब्राह्ममुहूर्तमें उठानेकी प्रकृतिकी 'टाइमपीस-घड़ी' मुर्गाहुआ करता है।
 
ब्राह्ममुहूर्तमें उठानेकी प्रकृतिकी 'टाइमपीस-घड़ी' मुर्गाहुआ करता है।
 
===निश्कर्श===
 
===निश्कर्श===
*वातावरण सात्त्विकता  एवं  शुद्ध वायु (आक्सिजन गैस)
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*वातावरण की सात्त्विकता  एवं  शुद्ध वायु (आक्सिजन गैस)
 
*सूर्य शक्ति का अवलम्बन
 
*सूर्य शक्ति का अवलम्बन
*मस्तिष्क शुद्ध तथा शान्त एवं नवशक्तियुक्त हो(मानसिक लाभ)
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*मस्तिष्क का शुद्ध तथा शान्त एवं नवशक्तियुक्त होना(मानसिक लाभ)
 
*आयुर्वेदीय लाभ (जल पान आदि से शारीरिक लाभ)
 
*आयुर्वेदीय लाभ (जल पान आदि से शारीरिक लाभ)
    
== उल्लेख ==
 
== उल्लेख ==
 
<references />
 
<references />
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