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स०-यतो धर्मादनपेतं-धर्म्यं, ब्रह्मचर्यं तदनुमोदामहे| तथा यशस्यादिहेतुः| तथा लोकद्वये-इहलोके परलोके च, रसायनमिव रसायनं, सदोपकारत्वात्| तथा एकान्तेनसर्वथा, निर्मलम्| यतो ब्रह्मचर्यम्| न तु ब्रह्मचर्यवत् स्वदारादि(रे)षु पुत्राद्यर्थमेव निर्मलम्| अतो हेतोस्तदनुमोदामहे| किन्त्वाभ्युदयिकं मार्गमाश्रित्य वाजीकरणोपदेशः| द्विविधो हि मार्गः,-नैःश्रेयसिक आभ्युदयिकश्च| तत्र नैःश्रेयसिकं मार्गं समनुसृत्य ब्रह्मचर्योपदेशश्च कोशकारदृष्टन्तश्च क्लेशनाशकृच्च| आभ्युदयिकं च मार्गमाश्रित्यायमुपदेश इत्यत्राह|
 
स०-यतो धर्मादनपेतं-धर्म्यं, ब्रह्मचर्यं तदनुमोदामहे| तथा यशस्यादिहेतुः| तथा लोकद्वये-इहलोके परलोके च, रसायनमिव रसायनं, सदोपकारत्वात्| तथा एकान्तेनसर्वथा, निर्मलम्| यतो ब्रह्मचर्यम्| न तु ब्रह्मचर्यवत् स्वदारादि(रे)षु पुत्राद्यर्थमेव निर्मलम्| अतो हेतोस्तदनुमोदामहे| किन्त्वाभ्युदयिकं मार्गमाश्रित्य वाजीकरणोपदेशः| द्विविधो हि मार्गः,-नैःश्रेयसिक आभ्युदयिकश्च| तत्र नैःश्रेयसिकं मार्गं समनुसृत्य ब्रह्मचर्योपदेशश्च कोशकारदृष्टन्तश्च क्लेशनाशकृच्च| आभ्युदयिकं च मार्गमाश्रित्यायमुपदेश इत्यत्राह|
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