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वह, जिस ब्रह्म का वर्णन किसी दूसरे के बिना किया गया है, वह अनन्त, निरपेक्ष और सनातन है, उसे निर्गुण ब्रह्म कहा जाता है। निर्गुण ब्रह्म, गुणों के बिना, नाम और रूप के परे है, जिसे किसी भी उपमा या सांसारिक वर्णन से नहीं समझा जा सकता है।
 
वह, जिस ब्रह्म का वर्णन किसी दूसरे के बिना किया गया है, वह अनन्त, निरपेक्ष और सनातन है, उसे निर्गुण ब्रह्म कहा जाता है। निर्गुण ब्रह्म, गुणों के बिना, नाम और रूप के परे है, जिसे किसी भी उपमा या सांसारिक वर्णन से नहीं समझा जा सकता है।
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छांदोग्य उपनिषद् महावाक्यों के माध्यम से निर्गुण ब्रह्मतत्व का विस्तार करता है।<blockquote>एकमेवाद्वितीयम्।  (छांदोग्य उपन. 6.2.1) (एक एवं अद्वितीय)<ref name=":6">Chandogya Upanishad ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC Adhyaya 6])</ref></blockquote><blockquote>सर्वं खल्विदं ब्रह्म । (छांदोग्य उपन.  3.14.1) (यह सब वास्तव में ब्रह्म है)<ref>Chandogya Upanishad ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A9 Adhyaya 3])</ref></blockquote>श्वेताश्वतार उपनिषद  कहता है:<blockquote>यदाऽतमस्तन्न दिवा न रात्रिर्न सन्नचासच्छिव एव केवलः ...(श्वेता. उपन.  4 .18)<ref>Shvetashvatara Upanishad ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D/%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%83_%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 Adhyaya 4])</ref> जब न तो दिन था और न ही रात, न ही ब्रह्मांड (जिसका कोई रूप है) और न ही कोई रूप था, केवल उस शुद्ध पवित्र सिद्धांत का अस्तित्व था जो '''एक''' को दर्शाता है।<ref>N. S. Ananta Rangacharya (2003) ''Principal Upanishads (Isa, Kena, Katha, Prasna, Mundaka, Mandookya, Taittiriya, Mahanarayana, Svetasvatara) Volume 1.''Bangalore : Sri Rama Printers</ref></blockquote>ये सामान्य और सुप्रसिद्ध उदाहरण निर्गुण या निराकार ब्रह्म की धारणा को स्पष्ट करते हैं।
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छांदोग्य उपनिषद् महावाक्यों के माध्यम से निर्गुण ब्रह्मतत्व का विस्तार करता है।<blockquote>एकमेवाद्वितीयम्।  (छांदोग्य उपन. 6.2.1) (एक एवं अद्वितीय)<ref name=":6">Chandogya Upanishad ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC Adhyaya 6])</ref></blockquote><blockquote>सर्वं खल्विदं ब्रह्म । (छांदोग्य उपन.  3.14.1) (यह सब वास्तव में ब्रह्म है)<ref>Chandogya Upanishad ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A9 Adhyaya 3])</ref></blockquote>श्वेताश्वतार उपनिषद  कहता है:<blockquote>यदाऽतमस्तन्न दिवा न रात्रिर्न सन्नचासच्छिव एव केवलः ...(श्वेता. उपन.  4 .18)<ref name=":8">Shvetashvatara Upanishad ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D/%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%83_%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 Adhyaya 4])</ref> जब न तो दिन था और न ही रात, न ही ब्रह्मांड (जिसका कोई रूप है) और न ही कोई रूप था, केवल उस शुद्ध पवित्र सिद्धांत का अस्तित्व था जो '''एक''' को दर्शाता है।<ref>N. S. Ananta Rangacharya (2003) ''Principal Upanishads (Isa, Kena, Katha, Prasna, Mundaka, Mandookya, Taittiriya, Mahanarayana, Svetasvatara) Volume 1.''Bangalore : Sri Rama Printers</ref></blockquote>ये सामान्य और सुप्रसिद्ध उदाहरण निर्गुण या निराकार ब्रह्म की धारणा को स्पष्ट करते हैं।
    
'''प्रणव (ओंकार) द्वारा प्रतिपादित ब्राह्मण'''
 
'''प्रणव (ओंकार) द्वारा प्रतिपादित ब्राह्मण'''
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श्वेताश्वतार उपनिषद् कहता है -<blockquote>क्षरं प्रधानममृताक्षरं हरः क्षरात्मानावीशते देव एकः । तस्याभिध्यानाद्योजनात्तत्त्वभावाद्भूयश्चान्ते विश्वमायानिवृत्तिः ॥ १० ॥ (श्वेता. उपन. 1. 10)<ref name=":7" /></blockquote>जड़तत्त्व (प्रधान) क्षार या नष्ट होने वाला है। जीवत्मान अमर होने के कारण अक्षर या अविनाशी है। वह, एकमात्र परम तत्व, जड़तत्त्व और आत्मा दोनों पर शासन करता है। उसका ध्यान करने से (अभिध्यानात्), उसके साथ योग में होने से (योजनात्), उसके साथ तादात्म्य के ज्ञान से (तत्त्वभावाद्), अंत में, संसार की माया से मुक्ति प्राप्त होती है।<ref name=":7" /><ref>Sarma, D. S. (1961) ''The Upanishads, An Anthology.'' Bombay : Bharatiya Vidya Bhavan</ref><ref>Swami Tyagisananda (1949) ''Svetasvataropanisad.'' Madras : Sri Ramakrishna Math</ref>
 
श्वेताश्वतार उपनिषद् कहता है -<blockquote>क्षरं प्रधानममृताक्षरं हरः क्षरात्मानावीशते देव एकः । तस्याभिध्यानाद्योजनात्तत्त्वभावाद्भूयश्चान्ते विश्वमायानिवृत्तिः ॥ १० ॥ (श्वेता. उपन. 1. 10)<ref name=":7" /></blockquote>जड़तत्त्व (प्रधान) क्षार या नष्ट होने वाला है। जीवत्मान अमर होने के कारण अक्षर या अविनाशी है। वह, एकमात्र परम तत्व, जड़तत्त्व और आत्मा दोनों पर शासन करता है। उसका ध्यान करने से (अभिध्यानात्), उसके साथ योग में होने से (योजनात्), उसके साथ तादात्म्य के ज्ञान से (तत्त्वभावाद्), अंत में, संसार की माया से मुक्ति प्राप्त होती है।<ref name=":7" /><ref>Sarma, D. S. (1961) ''The Upanishads, An Anthology.'' Bombay : Bharatiya Vidya Bhavan</ref><ref>Swami Tyagisananda (1949) ''Svetasvataropanisad.'' Madras : Sri Ramakrishna Math</ref>
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श्वेताश्वतार उपनिषद् आगे कहता है -
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श्वेताश्वतार उपनिषद् आगे कहता है -<blockquote>छन्दांसि यज्ञाः क्रतवो व्रतानि भूतं भव्यं यच्च वेदा वदन्ति । अस्मान्मायी सृजते विश्वमेतत्तस्मिंश्चान्यो मायया सन्निरुद्धः ॥ ९ ॥(श्वेता. उपन. 4.9)</blockquote>श्रुति (छंदासि), यज्ञ और क्रत, व्रत, अतीत, भविष्य और जो कुछ वेदों में घोषित है, वह सब अविनाशी ब्रह्म से उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्म अपने माया की शक्ति से ब्रह्मांड को चित्रित करता है। उस ब्रह्मांड में जीवात्मा माया के भ्रम के कारण फंस जाता है।<ref name=":7" /><blockquote>मायां तु प्रकृतिं विद्यान्मायिनं च महेश्वरम् । तस्यावयवभूतैस्तु व्याप्तं सर्वमिदं जगत् ॥ १० ॥ (श्वेता. उपन. 4.10)<ref name=":8" /></blockquote>जान लें कि प्रकृति माया है और वह सर्वोच्च तत्व (महेश्वर) माया का निर्माता है। पूरा ब्रह्मांड जीवात्माओं से भरा हुआ है जो उसके अस्तित्व के अंग हैं।<ref name=":7" />
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छन्दांसि यज्ञाः क्रतवो व्रतानि भूतं भव्यं यच्च वेदा वदन्ति । अस्मान्मायी सृजते विश्वमेतत्तस्मिंश्चान्यो मायया सन्निरुद्धः ॥ ९ ॥(श्वेता. उपन. 4.9)
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बृहदारण्यक उपनिषद कहता है -
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श्रुति (चन्दनसी), यज्ञ और क्रत, व्रत, अतीत, भविष्य और जो कुछ वेदों में घोषित है, वह सब अविनाशी ब्रह्म से उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्म अपने माया की शक्ति से ब्रह्मांड को चित्रित करता है। उस ब्रह्मांड में जीवात्मा माया के भ्रम के कारण फंस जाता है।<ref name=":7" />
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इदं वै तन्मधु दध्यङ्ङाथर्वणोऽश्विभ्यामुवाच । तदेतदृषिः पश्यन्नवोचत् ।रूपरूपं प्रतिरूपो बभूव तदस्य रूपं प्रतिचक्षणाय ।
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"" "" "" " बृहदारण्यक उपनिषद कहता है - "" "" "" " सरगा "" "" "" " उपनिषदों में सृष्टि सिद्धांत (ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांत) प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो दर्शन शास्त्रों के आने पर प्रस्फुटित और पल्लवित हुए हैं। सृष्टि सिद्धांत प्रस्ताव करता है कि ईश्वर सभी प्राणियों को अपने अन्दर से विकसित करता है। "" "" "" " वैश्य "" "" "" " यद्यपि सभी उपनिषदों में घोषणा की गई है कि संसार के प्रवाह में उलझे मानव जीवन का लक्ष्य ज्ञान प्राप्त करना है जो मोक्ष की ओर ले जाता है, परम पुरुषार्थ, प्रत्येक उपनिषद् में उनके सिद्धांतो के बारे में अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं। "" "" "" " ऐतरेय उपनिषद् ब्रह्म की विशेषताओं को स्थापित करता है। बृहदारण्यक उच्चतर लोकों को पथ प्रदान करता है। कथा एक जीव की मृत्यु के बाद के मार्ग के बारे में शंकाओं की चर्चा करती है। श्वेताश्वतार कहती हैं कि जगत और परमात्मा माया हैं। मुंडकोपनिषद् ने इस तथ्य पर जोर दिया कि पूरा ब्रह्मांड परब्रह्म के अलावा कुछ भी नहीं है इशावास्य परिभाषित करता है कि ज्ञान वह है जो आत्मा को देखता है और परमात्मा दुनिया में व्याप्त है। तैत्तिरीयोपनिषद् यह घोषणा करता है कि ब्रह्मज्ञान मोक्ष की ओर ले जाता है। छांदोग्योपनिषद् इस बात की रूपरेखा देता है कि जन्म कैसे होता है और ब्रह्म तक पहुंचने के रास्ते कैसे होते हैं। #Prasnopanishad आत्मा की प्रकृति से संबंधित प्रश्नों का तार्किक उत्तर देता है। मांडुक्य उपनिषद् में आत्मा को ब्राह्मण घोषित किया गया है "" "" "" " उदाहरण के लिए, छांदोग्य उपनिषद् में अहिंसा (अहिंसा) को एक नैतिक सिद्धांत के रूप में घोषित किया गया है. अन्य नैतिक अवधारणाओं की चर्चा जैसे दमाह (संयम, आत्म-संयम), सत्य (सच्चाई), दान (दान), आर्जव (अपाखंड), दया (करुणा) और अन्य सबसे पुराने उपनिषदों और बाद के उपनिषदों में पाए जाते हैं. इसी तरह, कर्म सिद्धांत बृहदारण्यक उपनिषदों में प्रस्तुत किया गया है, जो सबसे पुराना उपनिषद् है। "" "" "" " महावक्य उपनिषदों में ब्राह्मण की सबसे अनूठी अवधारणा पर कई महाव्रत-क्या या महान कथन हैं जो भारतवर्ष से संबंधित ज्ञान खजाने में से एक है। "" "" "" " प्रसन्ना त्रयी उपनिषदों में भगवद् गीता और ब्रह्म सूत्र के साथ वेदांत की सभी शाखाओं के लिए तीन मुख्य स्रोतों में से एक का निर्माण किया गया है. वेदांत आत्मा और ब्रह्म के बीच संबंध और ब्रह्म और विश्व के बीच संबंध के बारे में प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करता है। वेदांत की प्रमुख शाखाओं में अद्वैत, विशिष्ठद्वैत, द्वैत और निम्बार्क के द्वैतद्वैत, वल्लभ के सुद्धाद्वैत और चैतन्य के अचिन्त्य भेदाभेद आदि शामिल हैं। "" "" "" " "" "" "" "
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इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते युक्ता ह्यस्य हरयः शता दशेतिय् अयं वै हरयो ऽयं वै दश च सहस्रणि बहूनि चानन्तानि च ।
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तदेतद्ब्रह्मापूर्वमनपरमनन्तरमबाह्यम् अयमात्मा ब्रह्म सर्वानुभूरित्यनुशासनम् ॥ १९ ॥ (बृहद. उप. 2.5.19)<ref>Brhdaranyaka Upanishad ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95_%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D_2p Adhyaya 2])</ref>
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दर्शन, (विशेष रूप से श्री आदि शंकराचार्य का वेदांत दर्शन) इस माया को संसार के बंधन के कारण के रूप में उजागर करते हैं और यह कहते हैं कि ब्रह्म ही वास्तविक है और बाकी सब असत्य है
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==== सर्ग ====
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सरगा "" "" "" " उपनिषदों में सृष्टि सिद्धांत (ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांत) प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो दर्शन शास्त्रों के आने पर प्रस्फुटित और पल्लवित हुए हैं। सृष्टि सिद्धांत प्रस्ताव करता है कि ईश्वर सभी प्राणियों को अपने अन्दर से विकसित करता है। "" "" "" " वैश्य "" "" "" " यद्यपि सभी उपनिषदों में घोषणा की गई है कि संसार के प्रवाह में उलझे मानव जीवन का लक्ष्य ज्ञान प्राप्त करना है जो मोक्ष की ओर ले जाता है, परम पुरुषार्थ, प्रत्येक उपनिषद् में उनके सिद्धांतो के बारे में अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं। "" "" "" " ऐतरेय उपनिषद् ब्रह्म की विशेषताओं को स्थापित करता है। बृहदारण्यक उच्चतर लोकों को पथ प्रदान करता है। कथा एक जीव की मृत्यु के बाद के मार्ग के बारे में शंकाओं की चर्चा करती है। श्वेताश्वतार कहती हैं कि जगत और परमात्मा माया हैं। मुंडकोपनिषद् ने इस तथ्य पर जोर दिया कि पूरा ब्रह्मांड परब्रह्म के अलावा कुछ भी नहीं है इशावास्य परिभाषित करता है कि ज्ञान वह है जो आत्मा को देखता है और परमात्मा दुनिया में व्याप्त है। तैत्तिरीयोपनिषद् यह घोषणा करता है कि ब्रह्मज्ञान मोक्ष की ओर ले जाता है। छांदोग्योपनिषद् इस बात की रूपरेखा देता है कि जन्म कैसे होता है और ब्रह्म तक पहुंचने के रास्ते कैसे होते हैं। #Prasnopanishad आत्मा की प्रकृति से संबंधित प्रश्नों का तार्किक उत्तर देता है। मांडुक्य उपनिषद् में आत्मा को ब्राह्मण घोषित किया गया है "" "" "" " उदाहरण के लिए, छांदोग्य उपनिषद् में अहिंसा (अहिंसा) को एक नैतिक सिद्धांत के रूप में घोषित किया गया है. अन्य नैतिक अवधारणाओं की चर्चा जैसे दमाह (संयम, आत्म-संयम), सत्य (सच्चाई), दान (दान), आर्जव (अपाखंड), दया (करुणा) और अन्य सबसे पुराने उपनिषदों और बाद के उपनिषदों में पाए जाते हैं. इसी तरह, कर्म सिद्धांत बृहदारण्यक उपनिषदों में प्रस्तुत किया गया है, जो सबसे पुराना उपनिषद् है। "" "" "" " महावक्य उपनिषदों में ब्राह्मण की सबसे अनूठी अवधारणा पर कई महाव्रत-क्या या महान कथन हैं जो भारतवर्ष से संबंधित ज्ञान खजाने में से एक है। "" "" "" " प्रसन्ना त्रयी उपनिषदों में भगवद् गीता और ब्रह्म सूत्र के साथ वेदांत की सभी शाखाओं के लिए तीन मुख्य स्रोतों में से एक का निर्माण किया गया है. वेदांत आत्मा और ब्रह्म के बीच संबंध और ब्रह्म और विश्व के बीच संबंध के बारे में प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करता है। वेदांत की प्रमुख शाखाओं में अद्वैत, विशिष्ठद्वैत, द्वैत और निम्बार्क के द्वैतद्वैत, वल्लभ के सुद्धाद्वैत और चैतन्य के अचिन्त्य भेदाभेद आदि शामिल हैं। "" "" "" " "" "" "" "
    
==References==
 
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