− | धर्म शब्द का उपयोग केवल धार्मिक भाषाओं में ही होता है। धार्मिक भाषाओं में सामान्यत: उपर्युक्त अर्थों से ही धर्म शब्द का प्रयोग होता है। इन में से किसी भी अर्थ के साथ निरपेक्ष शब्द जोडने से अनर्थ ही होता है। क्या किसी बेटे ने अपने पुत्रधर्म से निरपेक्ष व्यवहार करना ठीक है? क्या कोई पदार्थ अपने गुणधर्मों से निरपेक्ष हो सकता है? क्या कोई इकाई अपना अस्तित्व टिकाने, बलवान बनने, निरोग रहने, लचीला बनने, दमदार बनने की अधिकारी नही है? क्या इन बातों से निरपेक्ष रहने या बनने से उस का अर्थात् मनुष्य का, व्यापारी का, पडोसी का, सैनिक का, राजा का व्यवहार ठीक माना जाएगा? ऐसा करने से अनर्थ निर्माण नही होगा? फिर भी हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता जैसा अर्थहीन शब्द संविधान में डाला गया है। यह पाश्चात्य शब्द सेक्युलॅरिझम् का भौंडा अनुवाद मात्र है। जिन्हें ना तो यूरोप का इतिहास ठीक से पता है और ना ही जिन्हे भारत का इतिहास ठीक से पता है ऐसे अज्ञानी और गुलामी की मानसिकता रखनेवाले नेताओं की यह करनी जितनी शीघ्र निरस्त हो सके उतना ही देश के लिये अच्छा है। पूरे देश की जनता इस का विरोध करने की जगह मौन है। यह भी अभी जनता के मन पर गुलामी का कितना प्रभाव शेष है इसी बात का लक्षण है। | + | धर्म शब्द का उपयोग केवल धार्मिक भाषाओं में ही होता है। धार्मिक भाषाओं में सामान्यत: उपर्युक्त अर्थों से ही धर्म शब्द का प्रयोग होता है। इन में से किसी भी अर्थ के साथ निरपेक्ष शब्द जोडने से अनर्थ ही होता है। क्या किसी बेटे ने अपने पुत्रधर्म से निरपेक्ष व्यवहार करना ठीक है? क्या कोई पदार्थ अपने गुणधर्मों से निरपेक्ष हो सकता है? क्या कोई इकाई अपना अस्तित्व टिकाने, बलवान बनने, निरोग रहने, लचीला बनने, दमदार बनने की अधिकारी नही है? क्या इन बातों से निरपेक्ष रहने या बनने से उस का अर्थात् मनुष्य का, व्यापारी का, पडोसी का, सैनिक का, राजा का व्यवहार ठीक माना जाएगा? ऐसा करने से अनर्थ निर्माण नही होगा? तथापि हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता जैसा अर्थहीन शब्द संविधान में डाला गया है। यह पाश्चात्य शब्द सेक्युलॅरिझम् का भौंडा अनुवाद मात्र है। जिन्हें ना तो यूरोप का इतिहास ठीक से पता है और ना ही जिन्हे भारत का इतिहास ठीक से पता है ऐसे अज्ञानी और गुलामी की मानसिकता रखनेवाले नेताओं की यह करनी जितनी शीघ्र निरस्त हो सके उतना ही देश के लिये अच्छा है। पूरे देश की जनता इस का विरोध करने की जगह मौन है। यह भी अभी जनता के मन पर गुलामी का कितना प्रभाव शेष है इसी बात का लक्षण है। |
− | यूरोप के इतिहास में सेक्युलरीझम शब्द का प्रयोग चर्च के मजहबी प्रभाव से मुक्ति के लिए किया गया था। ईसाईयत से पहले यूरोप के राजा सर्वसत्ताधीश थे। और अतः अन्याय, अत्याचार यह सार्वत्रिक बातें थीं। ईसाईयत के उदय के बाद सभी राजा अब चर्च के निर्देश में राज चलाने लग गए। फिर भी वे सर्वसत्ताधीश ही रहे। अतः अब अत्याचार में चर्च का भी समर्थन मिलने से और अधिक अत्याचारी और अन्यायी हो गए। अंग्रेजी कहावत है – पॉवर करप्ट्स एण्ड अब्सोल्यूट पॉवर करप्ट्स अब्सोल्यूटली। अर्थ है सता मनुष्य को बिगाड़ती है और अमर्याद सत्ताधीश के बिगड़ने की कोई सीमा नहीं होती। | + | यूरोप के इतिहास में सेक्युलरीझम शब्द का प्रयोग चर्च के मजहबी प्रभाव से मुक्ति के लिए किया गया था। ईसाईयत से पहले यूरोप के राजा सर्वसत्ताधीश थे। और अतः अन्याय, अत्याचार यह सार्वत्रिक बातें थीं। ईसाईयत के उदय के बाद सभी राजा अब चर्च के निर्देश में राज चलाने लग गए। तथापि वे सर्वसत्ताधीश ही रहे। अतः अब अत्याचार में चर्च का भी समर्थन मिलने से और अधिक अत्याचारी और अन्यायी हो गए। अंग्रेजी कहावत है – पॉवर करप्ट्स एण्ड अब्सोल्यूट पॉवर करप्ट्स अब्सोल्यूटली। अर्थ है सता मनुष्य को बिगाड़ती है और अमर्याद सत्ताधीश के बिगड़ने की कोई सीमा नहीं होती। |
| यही हो रहा था यूरोप में। जब फ्रांस में जनता का शासन आया तब उसने चर्च की तानाशाही और नियंत्रण से मुक्ति का याने सेक्युलरिझम का नारा लगाया। वह योग्य ही था। यह है सेक्युलरिझम शब्द की यूरोपीय पार्श्वभूमि। भारत में तो चर्च की तानाशाही नहीं थी। अतः यहाँ इस शब्द का प्रयोग जनता को बेवकूफ बनाने के लिए ही था। हमारे यहाँ धर्म सर्वोपरि रहा है। सम्प्रदाय नहीं। सम्राट अशोक यह ऐसा राजा था जिसने बौद्ध मत को राजाश्रय दिया। अन्यथा दूसरा कोई उदाहरण हमें धार्मिक इतिहास में नहीं मिलता। भारत में तो सभी राजा धर्म द्वारा नियमित होते थे, चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय को मानते हों। भारत का पतन भी जब से राजाओं के सर से धर्म का अंकुश कमजोर हुआ या दूर हो गया, तब से हुआ है। | | यही हो रहा था यूरोप में। जब फ्रांस में जनता का शासन आया तब उसने चर्च की तानाशाही और नियंत्रण से मुक्ति का याने सेक्युलरिझम का नारा लगाया। वह योग्य ही था। यह है सेक्युलरिझम शब्द की यूरोपीय पार्श्वभूमि। भारत में तो चर्च की तानाशाही नहीं थी। अतः यहाँ इस शब्द का प्रयोग जनता को बेवकूफ बनाने के लिए ही था। हमारे यहाँ धर्म सर्वोपरि रहा है। सम्प्रदाय नहीं। सम्राट अशोक यह ऐसा राजा था जिसने बौद्ध मत को राजाश्रय दिया। अन्यथा दूसरा कोई उदाहरण हमें धार्मिक इतिहास में नहीं मिलता। भारत में तो सभी राजा धर्म द्वारा नियमित होते थे, चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय को मानते हों। भारत का पतन भी जब से राजाओं के सर से धर्म का अंकुश कमजोर हुआ या दूर हो गया, तब से हुआ है। |