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# छात्र आमतौर पर यदि शुद्ध भाषा के वातावरण में रहेगे तो उनपर विशेष ध्यान देकर एक अक्षर से आरम्भ करके उच्चारण शुद्ध एवं स्पष्ट करते रहना चाहिए। इसके लिए शिक्षक को एक एक अक्षर जोर जोर से बोलकर छात्रों से सामूहिक एवं व्यक्तिगत तौर पर बुलवाना चाहिए। बोलते समय उन्हें उच्चारण में जो जो कठिनाई पड़ती है उस पर ध्यान देकर उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। यह सब प्रयास अन्य किसी तरह से नहीं, केवल सुनकर ही हो सकता है। संपूर्ण भाषण की मूल ईकाई अक्षर है। अक्षर से ही शब्द बनता है। शब्द से वाक्य एवं वाक्य से सम्पूर्ण भाषण। अतः सर्वप्रथम अक्षर के उच्चारण पर सबसे अधिक ध्या देना चाहिए। अक्षरों के उच्चारण का प्रतिदिन अभ्यास होना चाहिए।  
 
# छात्र आमतौर पर यदि शुद्ध भाषा के वातावरण में रहेगे तो उनपर विशेष ध्यान देकर एक अक्षर से आरम्भ करके उच्चारण शुद्ध एवं स्पष्ट करते रहना चाहिए। इसके लिए शिक्षक को एक एक अक्षर जोर जोर से बोलकर छात्रों से सामूहिक एवं व्यक्तिगत तौर पर बुलवाना चाहिए। बोलते समय उन्हें उच्चारण में जो जो कठिनाई पड़ती है उस पर ध्यान देकर उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। यह सब प्रयास अन्य किसी तरह से नहीं, केवल सुनकर ही हो सकता है। संपूर्ण भाषण की मूल ईकाई अक्षर है। अक्षर से ही शब्द बनता है। शब्द से वाक्य एवं वाक्य से सम्पूर्ण भाषण। अतः सर्वप्रथम अक्षर के उच्चारण पर सबसे अधिक ध्या देना चाहिए। अक्षरों के उच्चारण का प्रतिदिन अभ्यास होना चाहिए।  
 
# वर्गों के मुख्य दो प्रकार हैं; एक स्वर एवं दूसरा व्यंजन। प्रथम व्यंजन एवं उसके बाद स्वर का उच्चार सीखाना चाहिए।
 
# वर्गों के मुख्य दो प्रकार हैं; एक स्वर एवं दूसरा व्यंजन। प्रथम व्यंजन एवं उसके बाद स्वर का उच्चार सीखाना चाहिए।
# कुछ व्यंजन कठिन होते हैं। उदाहरण के तौर पर ङ, ञ, ण, ज्ञ (इनमें 'ज्ञ' संयुक्ताक्षर है फिर भी इसे वर्णमाला में स्वतंत्र स्थान मिला है।) इन सभी व्यंजनों का उच्चारण 'अंग, इयं, अंण, ग्य' किया जाता है परंतु यह उच्चारण सही नहीं हैं। अतः इन अक्षरों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
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# कुछ व्यंजन कठिन होते हैं। उदाहरण के तौर पर ङ, ञ, ण, ज्ञ (इनमें 'ज्ञ' संयुक्ताक्षर है तथापि इसे वर्णमाला में स्वतंत्र स्थान मिला है।) इन सभी व्यंजनों का उच्चारण 'अंग, इयं, अंण, ग्य' किया जाता है परंतु यह उच्चारण सही नहीं हैं। अतः इन अक्षरों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
 
# 'ज' एवं 'झ' में एवं 'स', 'श', 'ष' उच्चारण में भी अंतर है यह भी जल्दी ध्यान में नहीं आता है। कभी कभी तो 'ग' एवं 'घ' का अंतर भी ध्यान में नहीं आता है। अतः इन अक्षरों पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। इसी तरह 'फ' का उच्चारण अंग्रेजी के 'F' के समान किया जाता है। उसे भी सुधारना चाहिए। स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व एवं दीर्घ का भेद नहीं करना ही मुख्य दोष है। यह दोष इतना व्यापक है कि अब तो कुछ लोग भाषा से इस भेद को ही दूर कर देने की हिमयात करने लगे हैं। परंतु हमारी लापरवाही की वजह से भाषा में बदल लाने के बजाए हमें ही शुद्ध बोलने की शुरुआत करनी चाहिए। विसर्ग का उच्चारण भी विशेष रूप से सिखाना चाहिए।
 
# 'ज' एवं 'झ' में एवं 'स', 'श', 'ष' उच्चारण में भी अंतर है यह भी जल्दी ध्यान में नहीं आता है। कभी कभी तो 'ग' एवं 'घ' का अंतर भी ध्यान में नहीं आता है। अतः इन अक्षरों पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। इसी तरह 'फ' का उच्चारण अंग्रेजी के 'F' के समान किया जाता है। उसे भी सुधारना चाहिए। स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व एवं दीर्घ का भेद नहीं करना ही मुख्य दोष है। यह दोष इतना व्यापक है कि अब तो कुछ लोग भाषा से इस भेद को ही दूर कर देने की हिमयात करने लगे हैं। परंतु हमारी लापरवाही की वजह से भाषा में बदल लाने के बजाए हमें ही शुद्ध बोलने की शुरुआत करनी चाहिए। विसर्ग का उच्चारण भी विशेष रूप से सिखाना चाहिए।
 
# अक्षरों के उच्चारण के बाद शब्द बोलना सिखाना चाहिए। दो अक्षर के शब्द से आरम्भ करके क्रमशः तीन, चार, पाँच अक्षर के शब्द बोलना सिखाना चाहिए। शब्द बोलते समय एक से अधिक अक्षर एक के बाद एक के क्रम में बोलना होता है। इसमें उच्चारणतंत्र (जिह्वा एवं दांत) को बहुत व्यायाम मिलता है।
 
# अक्षरों के उच्चारण के बाद शब्द बोलना सिखाना चाहिए। दो अक्षर के शब्द से आरम्भ करके क्रमशः तीन, चार, पाँच अक्षर के शब्द बोलना सिखाना चाहिए। शब्द बोलते समय एक से अधिक अक्षर एक के बाद एक के क्रम में बोलना होता है। इसमें उच्चारणतंत्र (जिह्वा एवं दांत) को बहुत व्यायाम मिलता है।

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