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भाषा दृष्टि  
 
भाषा दृष्टि  
 
प्रस्तावना
 
प्रस्तावना
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वर्तमान में मानव पगढीला हो गया है| आवागमन के साधन, स्वभाव से भिन्न प्रकार का काम करना, अतिरिक्त धन की उपलब्धता, पर्यटन के लिए विज्ञापनबाजी और आजीविका के लिए नौकरी ये बातें मनुष्य को एक स्थानपर टिकने नहीं देते| यह पगढ़ीलापन वर्तमान के अभारतीय जीवन के प्रतिमान की ही देन है| प्रतिमान को भारतीय बनाना ही उसका उत्तर है|  
 
वर्तमान में मानव पगढीला हो गया है| आवागमन के साधन, स्वभाव से भिन्न प्रकार का काम करना, अतिरिक्त धन की उपलब्धता, पर्यटन के लिए विज्ञापनबाजी और आजीविका के लिए नौकरी ये बातें मनुष्य को एक स्थानपर टिकने नहीं देते| यह पगढ़ीलापन वर्तमान के अभारतीय जीवन के प्रतिमान की ही देन है| प्रतिमान को भारतीय बनाना ही उसका उत्तर है|  
 
उपसंहार : भारतीय भाषाएं अपनी होने से उन के प्रति लगाव होना अत्यंत स्वाभाविक है। यदि वह श्रेष्ठ नहीं हैं तो, केवल वे अपनी हैं इस के कारण उन्हें बचाने का कोई कारण नहीं है। भारतीय भाषाएं विश्व में सर्वश्रेष्ठ होने से उन का वैश्विक स्तरपर स्वीकार और उपयोग होने में विश्व का हित होने से उन्हें केवल बचाना ही नहीं तो उन्हें उन की योग्यता के अनुरूप योग्य वैश्विक स्थान दिलाना, एक भारतीय होने के नाते हम सब का पवित्र कर्तव्य है ।
 
उपसंहार : भारतीय भाषाएं अपनी होने से उन के प्रति लगाव होना अत्यंत स्वाभाविक है। यदि वह श्रेष्ठ नहीं हैं तो, केवल वे अपनी हैं इस के कारण उन्हें बचाने का कोई कारण नहीं है। भारतीय भाषाएं विश्व में सर्वश्रेष्ठ होने से उन का वैश्विक स्तरपर स्वीकार और उपयोग होने में विश्व का हित होने से उन्हें केवल बचाना ही नहीं तो उन्हें उन की योग्यता के अनुरूप योग्य वैश्विक स्थान दिलाना, एक भारतीय होने के नाते हम सब का पवित्र कर्तव्य है ।
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
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