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समाज धारणा दृष्टि  
 
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प्रास्ताविक  
 
प्रास्ताविक  
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१२) तन्त्रज्ञान  विकास नीति और सार्वत्रिकीकरण
 
१२) तन्त्रज्ञान  विकास नीति और सार्वत्रिकीकरण
 
यदि जीवन के पूरे प्रतिमान का ठीक से विचार किया जाए तो तन्त्रज्ञान  के विकास का और सार्वत्रिकीकरण का विषय प्रतिमान की सोच और व्यवहार में आ जाता है। अलग विषय नहीं बनता। लेकिन तन्त्रज्ञान  और उसके कारण जीवन को जो गति प्राप्त हुई है उस के कारण सामान्य मनुष्य तो क्या अच्छे अच्छे विद्वान भी हतप्रभ हो गये दिखाई देते हैं। इसलिये तन्त्रज्ञान के विषय में अधिक गहराई से अलग से विचार करने की आवश्यकता है। इस का विचार हम इस खंड के अध्याय ३६ में करेंगे|
 
यदि जीवन के पूरे प्रतिमान का ठीक से विचार किया जाए तो तन्त्रज्ञान  के विकास का और सार्वत्रिकीकरण का विषय प्रतिमान की सोच और व्यवहार में आ जाता है। अलग विषय नहीं बनता। लेकिन तन्त्रज्ञान  और उसके कारण जीवन को जो गति प्राप्त हुई है उस के कारण सामान्य मनुष्य तो क्या अच्छे अच्छे विद्वान भी हतप्रभ हो गये दिखाई देते हैं। इसलिये तन्त्रज्ञान के विषय में अधिक गहराई से अलग से विचार करने की आवश्यकता है। इस का विचार हम इस खंड के अध्याय ३६ में करेंगे|
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
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