समूलाग्र हरित (जड़से अन्त तक हरे) तथा गोकर्णमात्र परिमाणके कुश श्राद्धमें उत्तम कहे गये हैं। <blockquote>अग्रैस्तु तर्पयेद् देवान् मनुष्यान् कुशमध्यतः।पितृस्तु कुशमूलाग्रैर्विधिः कौशो यथाक्रमम् ॥<ref>नित्योपासना एवं देवपूजा पद्धति, (पृ० १००)।</ref></blockquote>देवताओं को कुश के अग्र भाग से एक-एक, कुश मध्य से मनष्यों को दो-दो और कुश मूल से पितरों को तीन-तीन अञ्जलि जल देना चाहिये। | समूलाग्र हरित (जड़से अन्त तक हरे) तथा गोकर्णमात्र परिमाणके कुश श्राद्धमें उत्तम कहे गये हैं। <blockquote>अग्रैस्तु तर्पयेद् देवान् मनुष्यान् कुशमध्यतः।पितृस्तु कुशमूलाग्रैर्विधिः कौशो यथाक्रमम् ॥<ref>नित्योपासना एवं देवपूजा पद्धति, (पृ० १००)।</ref></blockquote>देवताओं को कुश के अग्र भाग से एक-एक, कुश मध्य से मनष्यों को दो-दो और कुश मूल से पितरों को तीन-तीन अञ्जलि जल देना चाहिये। |