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− | {{One source|date=May 2020 }}<blockquote>यो योगिराजः किल कर्मयोगमार्गस्य नेतृत्वमलंचकार<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref>।</blockquote><blockquote>सद्धर्मसरक्षणदत्तचित्तः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>जिस योगिराज श्री कृष्ण ने कर्मयोग के मार्ग का नेतृत्व किया, जिसने सद्धर्म रक्षा में चित्त को लगाया, ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से वन्दनीय नहीं?<blockquote>ज्ञानी सुवीरः शुभगायको यो गुणाकरः शाश्वतधर्मगोप्ता।</blockquote><blockquote>तथाप्यहंकारलवेन हीनः कुष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>जो ज्ञानी, वीर, गायक, गुण-भण्डार और नित्य धर्म-रक्षक थे, फिर भी अहंकार-शून्य थे, ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से पूजनीय नहीं?<blockquote>परोपकारर्पितजीवतो यः क'सादिदुष्टारिगणस्य हन्ता।</blockquote><blockquote>गीतामृतं पाययिता प्रशस्तं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>जिस ने परोपकार में जीवन लगाया, कादि दुष्ट शत्रुओं का हनन किया, प्रसिद्ध गीतामृत का लोगोंं को पान कराया, ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से वन्दनीय नहीं ?<blockquote>सन्ध्याग्निहोत्रादिककृत्यजातं सन्निष्ठया यो विदधेऽ प्रमत्तः<ref>कृतोदकानुजप्यः स हुताग्निः समलंकृतः।। उद्योगपर्व 83.6</ref>।</blockquote><blockquote>देवेशभक्त्याधिगतप्रसादः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>जो सन्ध्या अग्निहोत्रादि नित्य कमो को बिना प्रमाद के करते थे, प्रभुभक्ति से जिन्हें अद्भुत शक्ति रूप प्रसाद प्राप्त हुआ था ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से पूजनीय नहीं?<blockquote>आत्मा ऽविनाशी ह्यजरोऽमरो ऽयं मृत्युस्तु वासः परिवर्त एव<ref>वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। | + | {{One source|date=May 2020 }} |
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| तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। | | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। |
| (भगवद गीता 2.22)</ref>।</blockquote><blockquote>इत्यादितत्त्वं प्रदिशन् यर्थार्थं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>यह आत्मा अजर अमर है, मृत्यु तो चोला बदलना है। इस प्रकार के यथार्थ तत्त्व को बतलाने वाले श्री कृष्ण महात्मा किस से पूजनीय नहीं?<blockquote>भूत्वेह लोके गुणसागरोऽपि यः पादपूजां विदधे द्विजानाम्<ref>चरणक्षालने कृष्णो ब्राह्मणानां स्वयं ह्यभूत् सभापर्व।। 35.101</ref>।</blockquote><blockquote>आसीद् सुहृद् यो धनवर्जितानां कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>जिन्होंने गुणो का समुद्र होते हुए भी राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के पैर धोने का काम लिया, जो निर्धनों के मित्र थे, ऐसे महात्मा कुष्ण किससे पूजनीय नहीं?<blockquote>विप्रे सुशीले विनयोपपन्ने तथा श्वपाके शुनि गोगजेषु।</blockquote><blockquote>समानदृष्टिं य इहादिदेश कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः<ref>विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। | | (भगवद गीता 2.22)</ref>।</blockquote><blockquote>इत्यादितत्त्वं प्रदिशन् यर्थार्थं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>यह आत्मा अजर अमर है, मृत्यु तो चोला बदलना है। इस प्रकार के यथार्थ तत्त्व को बतलाने वाले श्री कृष्ण महात्मा किस से पूजनीय नहीं?<blockquote>भूत्वेह लोके गुणसागरोऽपि यः पादपूजां विदधे द्विजानाम्<ref>चरणक्षालने कृष्णो ब्राह्मणानां स्वयं ह्यभूत् सभापर्व।। 35.101</ref>।</blockquote><blockquote>आसीद् सुहृद् यो धनवर्जितानां कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?</blockquote>जिन्होंने गुणो का समुद्र होते हुए भी राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के पैर धोने का काम लिया, जो निर्धनों के मित्र थे, ऐसे महात्मा कुष्ण किससे पूजनीय नहीं?<blockquote>विप्रे सुशीले विनयोपपन्ने तथा श्वपाके शुनि गोगजेषु।</blockquote><blockquote>समानदृष्टिं य इहादिदेश कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः<ref>विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। |