Line 102: |
Line 102: |
| == विदूषी महिलाएं == | | == विदूषी महिलाएं == |
| [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-021.jpg|center|thumb]] | | [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-021.jpg|center|thumb]] |
− | <blockquote>'''अरुन्धत्यनसूया च सावित्री जानकी सती। द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥'''</blockquote><blockquote>१. अरुन्धती २. अनुसूया ३. सावित्री ४. जानकी (सीता माता ) ५. सती ६.द्रोपदी ७. कण्णगी ८.गार्गी ९.मीरा १०.दुर्गावती </blockquote>'''इन सभी के बारे में [[प्रेरणात्मक महिलाएं|विस्तृत जानकारी]] के लिए यहाँ देखे |''' | + | <blockquote>'''अरुन्धत्यनसूया च सावित्री जानकी सती। द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥'''</blockquote><blockquote>१. अरुन्धती २. अनुसूया ३. सावित्री ४. जानकी (सीता माता ) ५. सती ६.द्रोपदी ७. कण्णगी ८.गार्गी ९.मीरा १०.दुर्गावती </blockquote>'''इन सभी के बारे में [[प्रेरणात्मक महिलाएं|विस्तृत जानकारी]] के लिए यहाँ देखे |''' |
| | | |
| + | == महिला वीरांगनाये == |
| [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-022.jpg|center|thumb]] | | [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-022.jpg|center|thumb]] |
− | <blockquote>'''लक्ष्मीरहल्या चेन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा । निवेदिता सारदा च प्रणम्या मातृदेवता: ॥ ११ ॥'''</blockquote> | + | <blockquote>'''लक्ष्मीरहल्या चेन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा । निवेदिता सारदा च प्रणम्या मातृदेवता: ॥ ११ ॥'''</blockquote>१.रानी लक्ष्मीबाई २. अहल्याबाई होलकर ३. चन्नम्मा ४.रुद्रमाम्बा ५. निवेदिता ६. सारदा |
| + | |
| + | इन सभी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ देखे | |
| | | |
| ==== <big>रानी लक्ष्मीबाई</big> ==== | | ==== <big>रानी लक्ष्मीबाई</big> ==== |
Line 114: |
Line 117: |
| | | |
| ==== <big>चन्नम्मा</big> ==== | | ==== <big>चन्नम्मा</big> ==== |
− | इतिहास में चन्नम्मा नाम की दो वीरांगनाएँ प्रसिद्ध हैं। इनमें से एक केलदी की रानी थी और दूसरी कित्तूर की रानी। औरंगजेब ने शिवाजी के प्रथम पुत्र सम्भाजी की हत्या करने के बाद उनके दूसरे पुत्र राजाराम का पीछा किया। इस संकट के समय केलदी की रानी चन्नम्मा ने राजाराम को अपने किले में आश्रय देकर नवोदित शिवराज्य का परोक्षत: संरक्षण किया तथा अपने सैन्य बल से मुगलों का प्रतिकार किया। | + | इतिहास में चन्नम्मा नाम की दो वीरांगनाएँ प्रसिद्ध हैं। इनमें से एक केलदी की रानी थी और दूसरी कित्तूर की रानी। औरंगजेब ने शिवाजी के प्रथम पुत्र सम्भाजी की हत्या करने के बाद उनके दूसरे पुत्र राजाराम का पीछा किया। इस संचन्कनम्टमा के समय केलदी की रानी चन्नम्मा ने राजाराम को अपने किले में आश्रय देकर नवोदित शिवराज्य का परोक्षत: संरक्षण किया तथा अपने सैन्य बल से मुगलों का प्रतिकार किया। |
| | | |
| कित्तूर (कर्नाटक में एक जागीर) की रानी चन्नम्मा ने अपने पति की अकाल-मृत्यु के बाद अंग्रेजों की कित्तूर को हड़पने की योजना को विफल करने के लिए अंग्रेजों से डटकर टक्कर ली थी। अंग्रेज चन्नम्मा से संधि करने को विवश हुए। बाद में अंग्रेजों ने छल करके चन्नम्मा को बंदी बनाकर बेलहोंगल के किले में रखा। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान इन दोनों रानियों ने स्वातंत्र्य-हेतु जीवन उत्सर्ग किया। | | कित्तूर (कर्नाटक में एक जागीर) की रानी चन्नम्मा ने अपने पति की अकाल-मृत्यु के बाद अंग्रेजों की कित्तूर को हड़पने की योजना को विफल करने के लिए अंग्रेजों से डटकर टक्कर ली थी। अंग्रेज चन्नम्मा से संधि करने को विवश हुए। बाद में अंग्रेजों ने छल करके चन्नम्मा को बंदी बनाकर बेलहोंगल के किले में रखा। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान इन दोनों रानियों ने स्वातंत्र्य-हेतु जीवन उत्सर्ग किया। |