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| | == '''हमारे मार्गदर्शक ग्रन्थ''' == | | == '''हमारे मार्गदर्शक ग्रन्थ''' == |
| | [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-020.jpg|center|thumb]] | | [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-020.jpg|center|thumb]] |
| − | <blockquote>'''जैनागमास्त्रिपिटका गुरुग्रन्थः सतां गिरः । एष ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा ॥ ९॥'''</blockquote> | + | <blockquote>'''जैनागमास्त्रिपिटका गुरुग्रन्थः सतां गिरः । एष ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा ॥ ९॥'''</blockquote>१. जैनागम ( जैन ग्रन्थ ) २.त्रिपिटक ( बौद्ध ग्रन्थ ) ३. गुरुग्रंथ ( सिख ग्रन्थ ) |
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| − | ==== <big>जैनागम</big> ====
| + | '''इन ग्रंथो की विस्तृत [[बाल संस्कार - हमारे मार्गदर्शक ग्रन्थ|जानकारी के]] लिए यहाँ देखे |''' |
| − | शैव, वैष्णव आदि अन्य सम्प्रदायों की भाँति जैन सम्प्रदाय ने भी अपने ग्रंथों को आगम, पुराण आदि में विभक्त किया है। तीर्थकरों के उपदेशों पर आधारित प्राचीनतम जैन धर्मग्रंथों में चतुर्दश पूर्व और एकादश अंग गिने जाते हैं, किन्तु पूर्व ग्रंथ अब लुप्त हो गये हैं। एकादश अंगों के पश्चात्उपांग, प्रकीर्ण सूत्र आदि की रचना की गयी है। ये अंग आगम कहलाते हैं। इनकी रचना अर्धामागधी प्राकृत भाषा में हुई है।
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| − | ==== <big>त्रिपिटक</big> ====
| + | == विदूषी महिलाएं == |
| − | बौद्ध मत के तीन मूल ग्रंथ-समूह-विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्मपिटक, जिनमें भगवान बुद्ध के वचन और उपदेश संकलित हैं। प्रत्येक पिटक में अनेक ग्रंथ हैं, अतः इनका पिटक अर्थात् पेटी नाम पड़ा। इनमें अन्तर्निहित ग्रंथों में ब्रह्मजाल सुत, समज्जफल सुत, पोट्ठपाद सुत्त, महानिदान सुत, मज्झिम निकाय, दीघ निकाय, संयुक्त निकाय उल्लेखनीय हैं। ये सभी पालि भाषा में हैं। विशेषत: हीनयान सम्प्रदाय के ये ही प्रधान ग्रंथ हैं। विनय पिटक में संघ के नियमों का, सुत्त पिटक में बुद्ध के वार्तालापों और उपदेशों का तथा अभिधम्म पिटक में दार्शनिक विचारों का वर्णन है।
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| − | ==== <big>गुरुग्रंथ</big> ====
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| − | सिख पंथ के 9 गुरुओं की वाणी का संकलन'गुरु ग्रंथ साहिब' में हुआ है। सिख गुरुओं के अतिरिक्त 24 अन्य भारतीय संतो की वाणी भी इस ग्रंथ में संग्रहीत है। सर्वप्रथम संवत् 1661 (सन् 1604) में सिख पंथ के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहब का संकलन किया था। बाद में गुरु तेगबहादुर तक अन्य गुरुओं की वाणी भी इसमें जोड़ी गयी। दशम गुरु गोविन्द सिंह की रचनाएँ एक अलग ग्रंथ में संग्रहीत हैं,जो दशम ग्रंथ कहलाता है। दशमेश गुरुगोविन्दसिंह ने ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी पर आसीन कराया। स्वयं अपने साक्ष्य के अनुसार ही 'गुरु ग्रंथ साहिब' वेद, शास्त्र और स्मृतियों का निचोड़ है। उपर्युक्त ग्रंथो और साधु-सन्त-सज्जनों के उदगार – ये सब हमारी श्रेष्ठ ज्ञाननिधि हैं और हार्दिक श्रद्धा के योग्य हैं ।
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| − | === विदूषी महिलाएं ===
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| | [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-021.jpg|center|thumb]] | | [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-021.jpg|center|thumb]] |
| | <blockquote>'''अरुन्धत्यनसूया च सावित्री जानकी सती। द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥'''</blockquote> | | <blockquote>'''अरुन्धत्यनसूया च सावित्री जानकी सती। द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥'''</blockquote> |