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इतिहास में दर्ज है कि लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव का प्रारम्भ लोकमानस में राष्ट्रीयता जागृत करने के उद्देश्य से किया और वे उसमें यशस्वी भी हुए । लोगों के हृदयों को जोड़ने वाले, उन्हें उद्वेलित करने वाले और दिशा देने वाले ऐसे कई उत्सव देशभर में मनाये जाते हैं। कहीं छठपूजा, कही दुर्गापूजा, कहीं कृष्ण जन्माष्टमी, कहीं ओणम आदि अनेक निमित्त और अनेक स्वरूपों में लोकजागरण का कार्य होता रहता है । आज के समय में योग शिक्षा और गर्भसंस्कार का भी प्रचलन होने लगा है ।
इतिहास में दर्ज है कि लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव का प्रारम्भ लोकमानस में राष्ट्रीयता जागृत करने के उद्देश्य से किया और वे उसमें यशस्वी भी हुए । लोगों के हृदयों को जोड़ने वाले, उन्हें उद्वेलित करने वाले और दिशा देने वाले ऐसे कई उत्सव देशभर में मनाये जाते हैं। कहीं छठपूजा, कही दुर्गापूजा, कहीं कृष्ण जन्माष्टमी, कहीं ओणम आदि अनेक निमित्त और अनेक स्वरूपों में लोकजागरण का कार्य होता रहता है । आज के समय में योग शिक्षा और गर्भसंस्कार का भी प्रचलन होने लगा है ।
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लोकशिक्षा में मेलों का स्थान अनन्य साधारण है । स्थानिक से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक इन मेलों की व्याप्ति है । मेलों में केन्द्रवर्ती स्थान मन्दिर का है । दर्शन, नदीस्नान, कथाश्रवण, धर्मसभा, सत्संग, मेलों के मुख्य अंग हैं। बारह वर्ष पर लगने वाला कुम्भ का मेला लोकशिक्षा का अत्यन्त प्रभावी केन्द्र है । लोकव्यवहार को दिशा देनेवाले, मोडनेवाले, सारे निर्णय कुम्भ मेले की धर्मसभा में होते हैं। कुम्भ का धार्मिक वातावरण सम्प्रदायनिष्ठ कम और समाजनिष्ठ अधिक है । लोकव्यवहार की परिष्कृति ही इसका परिणाम है ।
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लोकशिक्षा में मेलों का स्थान अनन्य साधारण है । स्थानिक से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक इन मेलों की व्याप्ति है । मेलों में केन्द्रवर्ती स्थान मन्दिर का है । दर्शन, नदीस्नान, कथाश्रवण, धर्मसभा, सत्संग, मेलों के मुख्य अंग हैं। बारह वर्ष पर लगने वाला [[Kumbh Mela (कुम्भ मेला)|कुम्भ का मेला]] लोकशिक्षा का अत्यन्त प्रभावी केन्द्र है । लोकव्यवहार को दिशा देनेवाले, मोडनेवाले, सारे निर्णय कुम्भ मेले की धर्मसभा में होते हैं। कुम्भ का धार्मिक वातावरण सम्प्रदायनिष्ठ कम और समाजनिष्ठ अधिक है । लोकव्यवहार की परिष्कृति ही इसका परिणाम है ।
इस प्रकार अनेकविध और असंख्य तीर्थयात्रायें लोकमानस को परिष्कृत करने का कार्य प्राचीन काल से करती रही है । राष्ट्रीय एकात्मता को बनाये रखने का ये बहुत बडा माध्यम सिद्ध हुई है। राज्य भले कितने ही अधिक हों, राज्य भले ही किसी का भी हो हिमालय से सिन्धुसागर तक यह राष्ट्र एक है, की श्रद्दा अटूट रखने में इन यात्राओं का बहुमूल्य योगदान रहा है ।
इस प्रकार अनेकविध और असंख्य तीर्थयात्रायें लोकमानस को परिष्कृत करने का कार्य प्राचीन काल से करती रही है । राष्ट्रीय एकात्मता को बनाये रखने का ये बहुत बडा माध्यम सिद्ध हुई है। राज्य भले कितने ही अधिक हों, राज्य भले ही किसी का भी हो हिमालय से सिन्धुसागर तक यह राष्ट्र एक है, की श्रद्दा अटूट रखने में इन यात्राओं का बहुमूल्य योगदान रहा है ।