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बिहार राज्य में फल्गु नदी के तटपर बसा प्राचीन नगरहै। जिसका उल्लेख पुराणों, महाभारत तथा बौद्ध साहित्य में हुआ है। पुराणों के अनुसार गाय नामक महापुण्यवान् विष्णुभक्त असुर के नाम पर इस तीर्थ नगर का नामकरण हुआ। मान्यता है कि गया में जिसका श्राद्ध हो वह पाप मुक्त होकरब्रह्मलोक में वास करता है।भगवान रामचन्द्र और धर्मराज ने गया में पितृश्राद्ध किया था। पितृश्राद्ध का यह विख्यात तीर्थ है। विष्णुपद मन्दिर यहाँ का प्रमुख दर्शनीय स्थान है। गौतम बुद्ध को यहाँ से कुछ दूरी पर बोध प्राप्त हुआ था। वह स्थान बोध गया अथवा बुद्ध गया। कहलाता है। वहाँ प्रसिद्ध बोधिवृक्ष तथा भगवान बुद्ध का विशाल मन्दिर विद्यमान है। महाभारत के वन पर्व में तथा वायु पुराण में गया का विस्तार के साथ वर्णन' किया गया है। सम्पूर्ण मगध क्षेत्र में गया पुणक्षेत्र माना गया है।" विष्णुपद, गदाधर प्रमुख मन्दिर तथा सीताकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, रामशिला, मतंगवापी, धर्मारण्य आदि पवित्र सरोवर व तीर्थ स्थल गया में विद्यमान हैं।
 
बिहार राज्य में फल्गु नदी के तटपर बसा प्राचीन नगरहै। जिसका उल्लेख पुराणों, महाभारत तथा बौद्ध साहित्य में हुआ है। पुराणों के अनुसार गाय नामक महापुण्यवान् विष्णुभक्त असुर के नाम पर इस तीर्थ नगर का नामकरण हुआ। मान्यता है कि गया में जिसका श्राद्ध हो वह पाप मुक्त होकरब्रह्मलोक में वास करता है।भगवान रामचन्द्र और धर्मराज ने गया में पितृश्राद्ध किया था। पितृश्राद्ध का यह विख्यात तीर्थ है। विष्णुपद मन्दिर यहाँ का प्रमुख दर्शनीय स्थान है। गौतम बुद्ध को यहाँ से कुछ दूरी पर बोध प्राप्त हुआ था। वह स्थान बोध गया अथवा बुद्ध गया। कहलाता है। वहाँ प्रसिद्ध बोधिवृक्ष तथा भगवान बुद्ध का विशाल मन्दिर विद्यमान है। महाभारत के वन पर्व में तथा वायु पुराण में गया का विस्तार के साथ वर्णन' किया गया है। सम्पूर्ण मगध क्षेत्र में गया पुणक्षेत्र माना गया है।" विष्णुपद, गदाधर प्रमुख मन्दिर तथा सीताकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, रामशिला, मतंगवापी, धर्मारण्य आदि पवित्र सरोवर व तीर्थ स्थल गया में विद्यमान हैं।
 
===प्रयाग===
 
===प्रयाग===
उत्तरप्रदेश में गांगा-यमुना के संगम पर स्थित प्रयाग प्रसिद्धतीर्थ है। अपने असाधारण महात्म्य के कारण इसे त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। प्रयाग में प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ, प्रति छठे वर्षअर्द्ध कुम्भ और प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है।इन मेलों में करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत पर्व स्नान करने आते हैं। प्रयाग क्षेत्र में प्रजापति ने यज्ञ किया था जिससे इसे प्रयाग नाम प्राप्त हुआ। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध गुरुकुल प्रयाग में ही था। वन जाते हुए श्रीराम, सीता और लक्ष्मण उसआश्रम में ठहरेथे। तुलसीकृत रामचरित-मानस के अनुसार वहीं परमुनि याज्ञवल्क्य नेभारद्वाज मुनि को रामकथा सुनायी थी। समुद्रगुप्त के शासन के वर्णन का एक उत्कृष्ट शिलास्तम्भ प्रयाग में पाया गया है। यहीं वह वटवृक्ष (अक्षयवट) है जिसके बारे में मान्यता है कि वह प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता।" इसी विश्वास और श्रद्धा को तोड़ने के लिए आक्रांता मुसलमानों- विशेषत: जहांगीर- ने उसे नष्ट करने के बहुत प्रयत्न किये, किन्तु वह वटवृक्ष आज भी वहाँ खड़ा है। प्रयाग में माघ मास में स्नान का विशेष महात्म्य हैं।" प्रयाग के गांगापार का भाग प्रतिष्ठानपुर (यूसी) कहलाता है।
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उत्तरप्रदेश में गांगा-यमुना के संगम पर स्थित प्रयाग प्रसिद्धतीर्थ है। अपने असाधारण महात्म्य के कारण इसे त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। प्रयाग में प्रति बारहवें वर्ष [[Kumbh Mela (कुम्भ मेला)|कुम्भ]], प्रति छठे वर्षअर्द्ध कुम्भ और प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है।इन मेलों में करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत पर्व स्नान करने आते हैं। प्रयाग क्षेत्र में प्रजापति ने यज्ञ किया था जिससे इसे प्रयाग नाम प्राप्त हुआ। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध गुरुकुल प्रयाग में ही था। वन जाते हुए श्रीराम, सीता और लक्ष्मण उसआश्रम में ठहरेथे। तुलसीकृत रामचरित-मानस के अनुसार वहीं परमुनि याज्ञवल्क्य नेभारद्वाज मुनि को रामकथा सुनायी थी। समुद्रगुप्त के शासन के वर्णन का एक उत्कृष्ट शिलास्तम्भ प्रयाग में पाया गया है। यहीं वह वटवृक्ष (अक्षयवट) है जिसके बारे में मान्यता है कि वह प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता।" इसी विश्वास और श्रद्धा को तोड़ने के लिए आक्रांता मुसलमानों- विशेषत: जहांगीर- ने उसे नष्ट करने के बहुत प्रयत्न किये, किन्तु वह वटवृक्ष आज भी वहाँ खड़ा है। प्रयाग में माघ मास में स्नान का विशेष महात्म्य हैं।" प्रयाग के गांगापार का भाग प्रतिष्ठानपुर (यूसी) कहलाता है।
    
'''गयायाँ नहि तत् स्थानं यत्र तीर्थ न विद्यते। सान्निध्यं सव्र तीथॉनां गया तीर्थ ततो वरम्।'''<blockquote>'''मगधे च गया। पुण्या नदी पुण्या पुन: पुनः।'''</blockquote><blockquote>'''आदि वट समाख्यातः कल्पान्तेऽय च दृश्यते। शोते विष्णुर्यस्प यत्रे अतोऽयमव्यय, स्मृतः।'''</blockquote><blockquote>'''प्रयागो तु नरो यस्तु माघस्नानं करोति च।'''</blockquote><blockquote>'''न तस्य फलसंख्यास्ति श्रृंष्णु देवर्षिसत्तम। (पदम् पुराण)'''</blockquote>
 
'''गयायाँ नहि तत् स्थानं यत्र तीर्थ न विद्यते। सान्निध्यं सव्र तीथॉनां गया तीर्थ ततो वरम्।'''<blockquote>'''मगधे च गया। पुण्या नदी पुण्या पुन: पुनः।'''</blockquote><blockquote>'''आदि वट समाख्यातः कल्पान्तेऽय च दृश्यते। शोते विष्णुर्यस्प यत्रे अतोऽयमव्यय, स्मृतः।'''</blockquote><blockquote>'''प्रयागो तु नरो यस्तु माघस्नानं करोति च।'''</blockquote><blockquote>'''न तस्य फलसंख्यास्ति श्रृंष्णु देवर्षिसत्तम। (पदम् पुराण)'''</blockquote>
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