समरसता और सामूहिकता के लिये ही अनेक उत्सवों की परस्परा बनी है । उदाहरण के लिये गुजरात में जो नवरात्रि का उत्सव है उसमें किसी भी वर्ग के, किसी भी वर्ण के, किसी भी जाति के, किसी भी आयु के, व्यक्ति को सहभागी होने का समान अधिकार है । वह सभी अर्थों में सार्वजनिक है, शक्तिपूजा का और उपवास का आलम्बन लिये है और गीतनृत्य के रूप में मूर्त होता है । आज इसका रूप अत्यन्त बीभत्स और सामाजिकता के लिये हानिकारक बन गया है । विद्यालय अपने विद्यार्थियों के माध्यम से ही इसे परिष्कृत कर सकते हैं । होली, मकरसंक्रान्ति, दीपावली भी इसी के उदाहरण हैं । | समरसता और सामूहिकता के लिये ही अनेक उत्सवों की परस्परा बनी है । उदाहरण के लिये गुजरात में जो नवरात्रि का उत्सव है उसमें किसी भी वर्ग के, किसी भी वर्ण के, किसी भी जाति के, किसी भी आयु के, व्यक्ति को सहभागी होने का समान अधिकार है । वह सभी अर्थों में सार्वजनिक है, शक्तिपूजा का और उपवास का आलम्बन लिये है और गीतनृत्य के रूप में मूर्त होता है । आज इसका रूप अत्यन्त बीभत्स और सामाजिकता के लिये हानिकारक बन गया है । विद्यालय अपने विद्यार्थियों के माध्यम से ही इसे परिष्कृत कर सकते हैं । होली, मकरसंक्रान्ति, दीपावली भी इसी के उदाहरण हैं । |