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| १०. महानदी | | १०. महानदी |
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− | इन पवित्र नदियों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - पवित्र नदियाँ|विस्तृत लेख]] देखें । | + | '''इन पवित्र नदियों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - पवित्र नदियाँ|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
| = पञ्च सरोवर = | | = पञ्च सरोवर = |
| जिस प्रकार भारत के चार कोनों पर चार धाम (उत्तरी सीमा पर बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरीतथा पश्चिम में द्वारिका स्थापित कर देश की एकता को सुदृढ़ किया गया।) उसी प्रकार मनीषियों ने पंच सरोवरों की मान्यता देकर समस्त भारतवासियों को प्रान्त व जातिभेद से ऊपर उठकर भारत को एक राष्ट्र के रूप में सुदूढ़ करने की प्रेरणा दी। सभी हिन्दू इनके प्रतिश्रद्धाभाव रखते हैं। ये पांच सरोवर निम्नलिखित हैं | | जिस प्रकार भारत के चार कोनों पर चार धाम (उत्तरी सीमा पर बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरीतथा पश्चिम में द्वारिका स्थापित कर देश की एकता को सुदृढ़ किया गया।) उसी प्रकार मनीषियों ने पंच सरोवरों की मान्यता देकर समस्त भारतवासियों को प्रान्त व जातिभेद से ऊपर उठकर भारत को एक राष्ट्र के रूप में सुदूढ़ करने की प्रेरणा दी। सभी हिन्दू इनके प्रतिश्रद्धाभाव रखते हैं। ये पांच सरोवर निम्नलिखित हैं |
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| ५. मान सरोवर | | ५. मान सरोवर |
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− | इन सरोवरों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - पञ्च सरोवर|विस्तृत लेख]] देखें । | + | '''इन सरोवरों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - पञ्च सरोवर|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
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| = सप्त पर्वत = | | = सप्त पर्वत = |
| जिस प्रकार पीयूष-प्रवाहिनी नदियाँ राष्ट्र की एकात्मता को सुदृढ़ कड़ियाँ हैं वैसे ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पर्वत और शिखर सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। एकात्मता-स्तोत्र में वर्णित पर्वतों के नाम हैं-हिमालय, महेन्द्र, मलयगिरी, सहयाद्रि, रैवतक, विंध्याचल तथा अरावली। इनके अतिरिक्त अमरकण्टक, सरगमाथा, अर्बुदांचल, कैलास आदि शिखरऔर बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि पर्वतीय स्थल भी वन्दनीय हैं। | | जिस प्रकार पीयूष-प्रवाहिनी नदियाँ राष्ट्र की एकात्मता को सुदृढ़ कड़ियाँ हैं वैसे ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पर्वत और शिखर सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। एकात्मता-स्तोत्र में वर्णित पर्वतों के नाम हैं-हिमालय, महेन्द्र, मलयगिरी, सहयाद्रि, रैवतक, विंध्याचल तथा अरावली। इनके अतिरिक्त अमरकण्टक, सरगमाथा, अर्बुदांचल, कैलास आदि शिखरऔर बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि पर्वतीय स्थल भी वन्दनीय हैं। |
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− | इन पर्वतों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - सप्त पर्वत|विस्तृत लेख]] देखें । | + | '''इन पर्वतों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - सप्त पर्वत|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
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| = चार धाम = | | = चार धाम = |
| भारत वर्ष अनादि काल से एक इकाई के रूप में विद्यमान रहा है। भारत की एकात्मता चारों दिशाओं में स्थित चार धामों के द्वारा और अधिक पुष्ट हुई है। जातिबन्धन से मुक्त होकर पूजा-अर्चना के लिए इनकी यात्रा का विधान है । देश के सभी प्रान्तों के निवासी इनकी यात्रा कर स्वयं को धन्य मानते है । | | भारत वर्ष अनादि काल से एक इकाई के रूप में विद्यमान रहा है। भारत की एकात्मता चारों दिशाओं में स्थित चार धामों के द्वारा और अधिक पुष्ट हुई है। जातिबन्धन से मुक्त होकर पूजा-अर्चना के लिए इनकी यात्रा का विधान है । देश के सभी प्रान्तों के निवासी इनकी यात्रा कर स्वयं को धन्य मानते है । |
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− | इन धामों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - चार धाम|विस्तृत लेख]] देखें । | + | '''इन धामों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - चार धाम|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
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| = मोक्षदायिनी सप्त पुरी = | | = मोक्षदायिनी सप्त पुरी = |
| <blockquote>'''अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका।''' </blockquote><blockquote>'''पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिक:।''' </blockquote>अयोध्या, मथुरा हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम् अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारिका, ये सात मोक्षदायिनी पुरियाँ है। ये पुरियाँ सम्पूर्ण देश में अलग-अलग क्षेत्र व दिशा में स्थित होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता की सुदूढ़ कड़ियाँ हैं। प्रत्येक भारतीय, भले ही वह किसी भी जाति, पंथ या प्रान्त का हो, श्रद्धा के साथ इन (सप्तपुरियों) की यात्रा के लिए लालायित रहता है। | | <blockquote>'''अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका।''' </blockquote><blockquote>'''पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिक:।''' </blockquote>अयोध्या, मथुरा हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम् अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारिका, ये सात मोक्षदायिनी पुरियाँ है। ये पुरियाँ सम्पूर्ण देश में अलग-अलग क्षेत्र व दिशा में स्थित होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता की सुदूढ़ कड़ियाँ हैं। प्रत्येक भारतीय, भले ही वह किसी भी जाति, पंथ या प्रान्त का हो, श्रद्धा के साथ इन (सप्तपुरियों) की यात्रा के लिए लालायित रहता है। |
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− | इन पुरियों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - सप्त पुरी|विस्तृत लेख]] देखें । | + | '''इन मोक्ष्दयानी सप्त पुरियों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - सप्त पुरी|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
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| = द्वादश ज्योतिर्लिंग = | | = द्वादश ज्योतिर्लिंग = |
| अनादि काल से भारत एक इकाई के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ विकसित सभी मत-सम्प्रदायों के तीर्थ-स्थान सम्पूर्ण देश में फैले हैं। शैव मत के अनुयायियों के लिए पूज्य १२ शिव-मन्दिरों के शिवलिंगों को द्वादश ज्योतिर्लिंग नाम से अभिहित किया गया है। ये सम्पूर्ण देश में फैले होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता के भी प्रतीक हैं। | | अनादि काल से भारत एक इकाई के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ विकसित सभी मत-सम्प्रदायों के तीर्थ-स्थान सम्पूर्ण देश में फैले हैं। शैव मत के अनुयायियों के लिए पूज्य १२ शिव-मन्दिरों के शिवलिंगों को द्वादश ज्योतिर्लिंग नाम से अभिहित किया गया है। ये सम्पूर्ण देश में फैले होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता के भी प्रतीक हैं। |
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− | इन द्वादश ज्योतिर्लिंग पर यह [[पुण्यभूमि भारत - द्वादश ज्योतिर्लिंग|विस्तृत लेख]] देखें । | + | '''इन द्वादश ज्योतिर्लिंग पर यह [[पुण्यभूमि भारत - द्वादश ज्योतिर्लिंग|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
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| = शक्तिपीठ = | | = शक्तिपीठ = |
| भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है । समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है । विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है । सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है । शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ सभी दिशाओं में फैले है । शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है । इनकी संख्या ५१ है । तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है । प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है । शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है । | | भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है । समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है । विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है । सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है । शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ सभी दिशाओं में फैले है । शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है । इनकी संख्या ५१ है । तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है । प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है । शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है । |
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− | इन शक्तिपीठों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - शक्तिपीठ|विस्तृत लेख]] देखें । | + | '''इन शक्तिपीठों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - शक्तिपीठ|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
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| = उत्तर- पश्चिम एवं उत्तर भारत = | | = उत्तर- पश्चिम एवं उत्तर भारत = |