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भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है । समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है । विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है । सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है । शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ सभी दिशाओं में फैले है । शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है । इनकी संख्या ५१ है । तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है । प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है । शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है ।  
 
भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है । समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है । विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है । सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है । शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ सभी दिशाओं में फैले है । शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है । इनकी संख्या ५१ है । तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है । प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है । शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है ।  
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इन शक्तिपीठों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - शक्तिपीठ|विस्तृत लेख]] देखें ।  
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इन शक्तिपीठों पर यह [[पुण्यभूमि भारत - शक्तिपीठ|विस्तृत लेख]] देखें ।
 
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एक  प्रसिद्द पौराणिक कथा के अनुसार आद्या शक्ति ने प्रजापति दक्ष के घर जन्म लिया । प्रजापति दक्ष ने अपनी इस पुत्री का नाम सती रखा । बड़ी होने पर सती ने पति रूप में शिव की प्राप्ति के लिए तप किया । प्रसन्न होकर भगवान शिव ने सती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया और कैलास पर जा विराजे । कुछ समय पश्चात् प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया । इस आयोजन में दक्ष ने भगवान शिव को छोड़कर सभी देवो और देवियों को आमंत्रित किया । पिता के यहाँ यज्ञ होने का समाचार पाकर भगवती सती बिना आमंत्रण के ही पिता के घर जा पहुँची । यज्ञ में शिवजी की उपेक्षा को सती सहन न कर सकी और योगबल से प्रदीप्त अग्नि में प्राण त्याग दिये । समाचार मिलाने पर शिव क्षोभ से भर गये । दक्ष - यज्ञ को नष्ट कर सती के शव को कंधे पर रखकर शिवजी उन्मत हो घुमते रहे । सर्वदेवमय  परमेश्वर विष्णु ने शिव - मोह - शमन तथा साधको की सिद्धि एवं कल्याण के लिए सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शव के विभिन्न अंगो को भिन्न - भिन्न स्थलों पर गिरा दिया । जहाँ - जहाँ वे अंग पतित हुए (पड़े), वहीँ - वहीँ शक्तिपीठ स्थापित हुए । इनका वर्णन निम्नानुसार है :-
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१ . '''हिंगुला :''' बलोचिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान के अन्तर्गत)प्रान्त में कराची से पश्चिमोत्तर दिशा में लगभग १४५ किलोमीटर दूर हिंगोस नदी के तट पर देवी भैरवी ज्योति के रूप में गुफा के अन्दर      प्रतिष्ठित हैं।
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२ . '''किरीट :''' हावड़ा-बरहरवा मार्ग पर खगराघाट रोड स्टेशन से १२  कि.मी. दूर वटनगर नामक स्थान पर गंगा के पवित्र तट पर देवी विमला रूप में विराजमान है।
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३. '''वृन्दावन :''' मथुरा में मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर स्थित भूतेश्वर महादेव मन्दिर में देवी उमाशक्ति रूप में भूतेश भैरव के साथ पूजित है।
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४. '''करवीर :''' कोल्हापुर (महाराष्ट्र) का महालक्ष्मी मन्दिर जिसे अम्बाजी का मन्दिर भी कहा जाता है, यहीं पर देवी जाग्रत रूप में महिषमर्दिनी नाम से प्रतिष्ठित है।
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५. '''सुगन्धा :''' पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांगला देश)में उग्रतारा शक्तिपीठ के नाम से विख्यात शिकारपुर नामक ग्राम में देवी सुनन्दा नदी के तट पर स्थित है। आज यहाँ प्राचीन मन्दिर खण्डहर रूप 
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में अवशिष्ट है।             
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६. '''अपणाँ ( करतोया तट) :''' बांगलादेशान्तर्गत बौगड़ा सयान - स्थानक (रेलवे स्टेशन) से लगभग 32 कि.मी. दूर नैऋत्यकोण (दक्षिण-पश्चिम) में भवानीपुर ग्राम में करतोया नदी के तट पर देवी 
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अपणाँ नाम से स्थित है। यह स्थान भी आज उपेक्षित पड़ा हैं ।
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७. '''श्रीपर्वत :''' लद्दाख (लेह) मेंश्रीपर्वत शिखर पर देवी श्रीसुन्दरी रूप में विराजमान है। सिलहट (असम) के पास जैतपुर नामक स्थान पर भी इस पीठ के स्थित होने की बात कही जाती है, परन्तु 
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पीठ - स्थान की ठीक ठीक जानकारी नहीं मिलाती ।
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८. '''वाराणसी :''' काशी में गांगा-तट पर स्थित मणिकर्णिका घाट के पास स्थित मन्दिर में देवी विशालाक्षी रूप में कालभैरव के साथ प्रतिष्ठित है। 
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९. '''गोदावरी तट :''' आन्ध प्रदेश की राजमहेन्द्री नगरी के समीप गोदावरी नामक संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) है। यहीं पर गोदावरी नदी के तटपर कुब्बूर नामक स्थान के कोटितीर्थ में देवी 
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विश्वमातृका रूप में विराजमान व पूजित है।
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१० '''.गण्ड़की :''' नेपाल में गण्डकी के उद्गम स्थल पर मुक्तिनाथ मन्दिर में सिद्धपीठ है। यहीं पर आद्याशति देवी गण्डकी के रूप में स्थित है।
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११. '''शुचि (शुवीन्द्रम्) :''' कन्याकुमारी से १२ किलोमीटर दूर शुचीन्द्रम में स्थाणु शिवमन्दिर में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी नारायणी रूप में संहार भैरव के साथ विराजमान है।
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१२. '''पंच सागर :''' सती की अधोदन्त-पत्ति (निचले जबड़े के दांत) सागर के मध्य पतित हुई।अत: सागर में देवी अम्बिका रूप में महारुद्र भैरव के साथ प्रतिष्ठित है। कुछ विद्वान मीनाक्षी मन्दिर
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मदुराई में इसकी स्थिति मानते हैं।
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१३. '''ज्वालामुखी :''' पठानकोट से वैद्यनाथ जाने वाले संयान मार्ग (रेलवे लाइन) पर ज्वालामुखी स्थानक से २५ कि.मी. दूर यह शक्तिपीठ हैं। यहाँ पर देवी ज्वाला रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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१४. '''भौरव पर्वत :''' उज्जैन (अवन्तिका) में क्षिप्रा तट पर स्थित भैरव पर्वत पर देवी अवन्ती नाम से प्रतिष्ठित हैं। गिरनार में भी भैरव पर्वत है, अत: वहाँ भी शक्तिपीठ माना जाता है।
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१५. '''अट्टहास :''' पं. बंगाल में अहमदपुर-कटवा संयान-मार्ग पर लाभपुर नामक स्थान है। वहीं पर देवी फूल्लरा नाम से विद्यमान हैं ।
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१६. '''जनस्थान :''' नासिक पंचवटी मेंभद्रकाली मन्दिरभी शक्तिपीठ है। यहाँ भगवती देवी भ्रामरी भद्रकाली रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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१७. '''अमरनाथ :''' अमरनाथ (गुफ) में देवी महामाया रूप में स्थित है। यहाँ पर सती का कंठ गिरा था ।
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१८. '''नन्दीपुर :'''पश्चिम बंगाल प्रान्त में सैथिया संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) के पास एक वट वृक्ष के नीचेशक्तिपीठअवस्थित है।इस स्थान का नाम नंदपुर है। यहाँ कोई मन्दिर नहीं है। वट वृक्ष के 
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नीचे ही देवी नांदनी रूप में प्रतिष्ठित मानी जाती हैं। 
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१९. '''श्रीशैल :'''आन्ध्रप्रदेश में श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वहीं पर भ्रमराम्बा मन्दिर शक्तिपीठ है। इस मन्दिर में देवी महालक्ष्मी रूप में 
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विराजमान है।
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२०. '''नलहाटी :''' हावड़ा-क्यूल संयान मार्ग पर नलहाटी स्थानक से तीन किमी. नैऋत्य कोण (दक्षिण-पशिचम) में एक टीले पर यह शक्तिपीठ है। टोले पर उदरनली (ऑत) जैसी आक्रांति बनी है।
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उसी की पूजा की जातीहै। यहाँ देवी कालिका रूप में प्रतिष्ठित मानी जाती हैं।
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२१. '''मिथिला :''' नेपाल में जनकपुर (मिथिला) की परिधि में अनेक देवी-मन्दिर हैं जिनमें वनदुग-मन्दिर, जयमंगला मन्दिर व उग्रतारा मन्दिर की शक्तिपीठ माना जाता हैं। यहाँ देवी महोदर रूप में 
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विराजित हैं।
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२२. '''रत्नावली :''' इस पीठ की स्थिति दो स्थानों पर मानी गयी है एक मद्रास (चेन्नई) के पास तथा दूसरा स्थान कन्याकुमारी है। यहाँ देवी कुमारी रूप में प्रतिष्ठित है।
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२३. '''प्रभास :''' यह शक्तिपीठ प्रभास क्षेत्र में हैं। यहाँ पर गिरनार पर्वत परअम्बाजी का मन्दिर है जिसमें देवी चंद्रभागा वक्रतुण्ड भैरव के साथ विराजमान है। एक मान्यता के अनुसार महाकाली 
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शिखर पर स्थित काली मन्दिर शक्तिपीठ हैं।
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२४. '''जालन्धर :''' पंजाब के जालन्धर नगर में विश्वमुखी देवी का मन्दिरशक्तिपीठ के रूप में पूजितहै। यहाँआद्यशक्ति त्रिपुरमालिनी के रूप में प्रतिष्ठित है।
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२५. '''रामगिरि :''' प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल चित्रकूट के रामगिरि पर शारदा मन्दिर है। यहीं शक्तिपीठ है। यहाँ देवी शिवानी रुप में विराजमान हैं।
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26. '''वैद्यनाथ :''' प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ के मन्दिर के सामनेशक्ति-मन्दिर स्थित है। यहाँ देवी जयदुर्गा नाम से विराजित है। यहाँ सती-देह का हुदय गिरा था, अत: देवी को हुदयेश्वरी जयदुगर्ग 
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के नाम से पुकारा जाता है। 
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२७. '''वक्रकेश्वर :''' पं. बंगाल के वीरभूम जिले में ऑडाल सैथिया संयान मार्ग (रेलवे लाइन) स्थित दुबराजपुर के पास वक्रेश्वर नामक स्थान परशमशान-भूमि में यहशक्तिपीठ है। देवी यहाँ
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महिर्षमर्दिनी रूप में विराजमान हैं।
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२८. '''कन्यकाश्रम :''' कन्याकुमारी में भद्रकाली मन्दिर शक्तिपीठ है। यहाँ देवी शर्वाणी रूप में विराजित है। यहाँ सती का पृष्ठभाग गेिरा था।
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२९. '''बहुला :''' अहमद पुर कटवा संयान मार्ग के कटवा स्थानक के पास केतु-ब्रह्मा नामक गाँव में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी चण्डिका (बहुल) रूप में प्रतिष्ठित है।
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३०. '''चट्टल :''' पू. बंगाल (बांगला देश) के प्रसिद्ध नगरचटग्राम के पास सीता-कुण्ड नामक स्थान पर चन्द्रशेखर पर्वत पर भवानी मन्दिर हैं, उसी में देवी भवानी रूप में विराजमान हैं।
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३१. '''उज्जयिनी :''' उज्जैन में रुद्रसागर के पास हरसिद्धि देवी का मन्दिर है। इस मन्दिर में देवी की प्रतिमा नहीं है। यहाँ पर सती की कूर्पर(कोहनी) गिरी थी, अत: कोहनी की ही पूजा की जाती हैं ।
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३२. '''मणिवेदिक :''' प्रसिद्ध तीर्थ पुष्कर के समीप गायत्री पर्वत पर यह शक्तिपीठ है। यहाँ सती के दोनों मणिबन्ध (कलाई) गिरेथे। यहाँ देवी गायत्री रूप में पूजित है।
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३३. '''मानस :''' यह स्थान मानसरोवर के पास स्थित है। यहाँ देवी दाक्षायणी नाम से प्रतिष्ठित है। इस शक्तिपीठ को मानस-पीठ नाम से भी जाना जाता है।
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३४. '''यशोर :''' बांगला देश के खुलना जिले में एक ईश्वरपुर नामक ग्राम है।इसी का पुराना नाम यशोर(यशोदर) है। यहीं पर देवी यशोरेश्वरी नाम से विराजमान हैं।
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३५. '''प्रयाग :''' अक्षयवट के पास ललितादेवी मन्दिर शक्तिपीठ हैं, यद्यपि प्रयाग नगर में एक और ललितादेवी मंदिर भी है ।
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३६. '''उत्कल - विराजा क्षेत्र :''' पवित्र धाम जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ मंदिर परिसर में विमला देवी मंदिर है, यह शक्तिपीठ है । कुछ विद्वान याजपुर के विरजा देवी के मंदिर को शक्तिपीठ मानते है । 
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३७. '''कांची :''' सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में कांची के शिवकांची का काली मन्दिर शक्तिपीठ हैं। यहाँ देवी देवगभी रूप में विद्यमान है।
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३८. '''शोण :''' प्रसिद्ध तीर्थ अमरकण्टक में शोणभद्र (सोन नदी) के उद्गम स्थल के समीप देवी शोणाक्षी रूप में विराजमान हैं।
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३९. '''कामगिरि :'''असम में गुवाहाटी के समीप कामगिरि पर कामाख्या मन्दिर प्रसिद्ध शक्तिपीठहै। यहाँ देवी कामाख्या रूपमें पूजित है।
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४०. '''गुहयेश्वरी (नेपाल) :''' नेपाल में पशुपतिनाथ (काठमाण्डु) के पास बागमती नदी के तट पर गुहुयेश्वरी देवी का मन्दिर भी  शक्तिपीठ हैं। यहाँ देवी महामाया के रूप में विराजित है।
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४१. '''जयन्ती :''' मेघालय में शिलांग से ५० किमी. दूर जयन्तिया पहाड़ियों में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी जयन्ती रूप में प्रतिष्ठित हैं ।
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४२. '''पाटलिपुत्र (मगध) :''' पटना (पाटलिपुत्र) नगर में पटनेश्वरी मन्दिर शक्तिपीठ है। यहाँ देवी सर्वानन्दकारी रूप में विराजित है।
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४३. '''त्रिसवोता :''' पं. बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में शालवाड़ी नामक ग्राम तिस्ता (त्रिस्रोत) नदी के तट पर बसा है। यहीं शक्तिपीठ में देवी भ्रामरी  रूप में प्रतिष्ठित हैं। 
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४४. '''त्रिपुरा :''' त्रिपुरा प्रान्त के राधा-किशोरपुर ग्राम के पास आग्नेयकोण (दक्षिण-पूर्व) में पहाड़ी पर त्रिपुरसुन्दरी का प्रसिद्ध मन्दिर ही शक्तिपीठ है। 
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४५. '''विभाष :''' पं. बंगाल के मिदनापुर जिले में तमलुक का काली मन्दिर शक्तिपीठ है। यहाँ देवी कपालिनी रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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४६. '''कुरुक्षेत्र :''' कुरुक्षेत्र में हैपायन सरोवर के पास यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी सावित्री रूप में स्थाणु भैरव के साथ प्रतिष्ठित है।
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४७. '''लंका  :''' यह शक्तिपीठ लंका में है, यहाँ (अशोक वाटिका में) देवी मन्दिर में प्रतिष्ठित है। सती का नूपुर यहाँ गिरा था। यहाँ देवी इन्द्राक्षी रूप में राक्षसेश्वर भैरव के साथ प्रतिष्ठित मानी जाती
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है ।
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४८. '''युगाद्या :''' वर्द्धवान् संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) से 35 कि.मी. उत्तर में क्षीर ग्राम में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी भूतधात्री रूप में अधिष्ठित है।
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४९. '''विराट :''' राजस्थान प्रान्त में जयपुर से 70 किमी. उत्तर विराट नामक ग्राम में देवी अम्बिका रूप में विराजमान हैं। यहाँ सती के दायें पैर की अंगुलियाँ गिरने से शक्तिपीठ बना।
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५०.  '''कालीपीठ :''' कलकत्ते का प्रसिद्ध काली मनिन्दर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। कुछ विद्वानों के अनुसार टाली-गंज का आदिकाली मन्दिर शक्तिपीठ है। यहाँ देवी महाकाली के रूप में 
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पूजित है।
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५१.  '''कणांट :''' जहाँ सती के दोनों कान गिरे, वह स्थान कणॉट कहलाया। यह कहीं कनॉटक में विद्यमान है। ठीक स्थिति की जानकारी नहीं है।इस शक्तिपीठमें देवीजयदुर्गा रूपमें प्रतिष्ठित मानी 
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जाती हैं।
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उपर्युक्त शक्तिपीठों के अतिरिक्त कांगड़ा की महामाया, विश्वेश्वरी (विजेश्वरी), नगरकोट की देवी, चिंतपूर्णी माता, चर्चिका देवी(उड़ीसा) और चण्डीतला (सियालदह के पास) को भी कुछ विद्वान शक्तिपीठ मानते हैं। शक्तिपीठों के अतिरिक्त आद्या शक्ति भगवती के प्रमुख मन्दिर वैष्णवी देवी (जम्मू), विन्ध्यवासिनी (मिर्जापुर), शाकम्भरी (सहारनुपर), नैनादेवी (अम्बाला), कालीमठ (बदरी-केदारनाथ क्षेत्र), कालिका (हिमाचल) आदि प्रसिद्ध हैं।
      
= उत्तर- पश्चिम एवं उत्तर भारत =
 
= उत्तर- पश्चिम एवं उत्तर भारत =

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