− | अनादि काल सेभारत एक इकाई के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ विकसित सभी मत-सम्प्रदायों के तीर्थ-स्थान सम्पूर्ण देश में फैले हैं।शैव मत केअनुयायियों के लिए पूज्य १२ शिव-मन्दिरों के शिवलिंगों कोद्वादश ज्योतिर्लिग नाम से अभिहित किया गया है। ये सम्पूर्ण देश में फैले होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता के भी प्रतीक हैं। शिव पुराण में वर्णन आया है कि आशुतोष भगवान् शांकरप्राणियों के कल्याण के लिए तीर्थों में वास करते हैं। जिस-जिस पुण्य क्षेत्र में भक्तजनों ने उनकी अर्चना की, उसी क्षेत्र में वे आविभूत हुए तथा ज्योतिर्लिग के रूप में स्थित हो गये। उनमें से सर्वप्रमुख 12 की गणना द्वादश ज्योतिर्लिगों के रूप में की जाती है, जो निम्नलिखित हैं : <blockquote>'''सौराष्ट्र सोमनाथ च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।''' </blockquote><blockquote>'''उज्जयेिन्यां महाकालामोडकारं परमेश्वरम् ।''' </blockquote><blockquote>'''केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्याँ भीमशंकरम्।''' </blockquote><blockquote>'''वाराणस्याँच विश्वेश त्रयम्बक गोतमी तटे।''' </blockquote><blockquote>'''वैद्यनाथ चिताभूमो नागेश दारुका बने।''' </blockquote><blockquote>'''सेतुबन्धे च रामेश घुश्मेशां च शिवालये।''' </blockquote><blockquote>'''द्वादशैतानि नामांनि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।''' </blockquote><blockquote>'''सप्तजन्म कृर्त पाप स्मरणेन विनश्यति।''' </blockquote> | + | अनादि काल से भारत एक इकाई के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ विकसित सभी मत-सम्प्रदायों के तीर्थ-स्थान सम्पूर्ण देश में फैले हैं। शैव मत के अनुयायियों के लिए पूज्य १२ शिव-मन्दिरों के शिवलिंगों को द्वादश ज्योतिर्लिंग नाम से अभिहित किया गया है। ये सम्पूर्ण देश में फैले होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता के भी प्रतीक हैं। |
| + | शिव पुराण में वर्णन आया है कि आशुतोष भगवान् शांकरप्राणियों के कल्याण के लिए तीर्थों में वास करते हैं। जिस-जिस पुण्य क्षेत्र में भक्तजनों ने उनकी अर्चना की, उसी क्षेत्र में वे आविभूत हुए तथा ज्योतिर्लिग के रूप में स्थित हो गये। उनमें से सर्वप्रमुख 12 की गणना द्वादश ज्योतिर्लिगों के रूप में की जाती है, जो निम्नलिखित हैं : <blockquote>'''सौराष्ट्र सोमनाथ च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।''' </blockquote><blockquote>'''उज्जयेिन्यां महाकालामोडकारं परमेश्वरम् ।''' </blockquote><blockquote>'''केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्याँ भीमशंकरम्।''' </blockquote><blockquote>'''वाराणस्याँच विश्वेश त्रयम्बक गोतमी तटे।''' </blockquote><blockquote>'''वैद्यनाथ चिताभूमो नागेश दारुका बने।''' </blockquote><blockquote>'''सेतुबन्धे च रामेश घुश्मेशां च शिवालये।''' </blockquote><blockquote>'''द्वादशैतानि नामांनि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।''' </blockquote><blockquote>'''सप्तजन्म कृर्त पाप स्मरणेन विनश्यति।''' </blockquote> |