Line 97: |
Line 97: |
| [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-016.jpg|center|thumb]] | | [[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-016.jpg|center|thumb]] |
| <blockquote>'''<big>गड्.गा सरस्वती सिन्धुर्ब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी । कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी ॥ ५ ॥</big>''' </blockquote>इन नदियों के बारें में विस्तृत जानकारी [[पुण्यभूमि भारत - पवित्र नदियाँ|इस लेख]] में पढ़ें। | | <blockquote>'''<big>गड्.गा सरस्वती सिन्धुर्ब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी । कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी ॥ ५ ॥</big>''' </blockquote>इन नदियों के बारें में विस्तृत जानकारी [[पुण्यभूमि भारत - पवित्र नदियाँ|इस लेख]] में पढ़ें। |
− |
| |
− | ==== <big>गंगा</big> ====
| |
− | गंगा को अनेक नामों से पुकारा जाता है। हिमालय में गंगोत्री में गंगोत्री हिमानी के गोमुख विवर से निकलकर गंगा गिरि-शिखरों से क्रीड़ा करती हुई, हरिद्वार में समतल प्रदेश में प्रवेश करती है। आगे यह नदी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल को अपने पवित्र प्रवाह से पावन करती हुई गंगासागर में जा मिलती है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के अनुसार वह भारत की नदियों में सर्वप्रथम है। गंगा के तट पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी जैसे अनेक सुप्रसिद्ध तीर्थ हैं। इसके तटों पर अनादि काल से ऋषि, मुनि और तपस्वीगण साधना करते आये हैं। गंगाजल पवित्रता और निर्मलता का उपमान है। वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि इसकी स्वयं शुद्ध हो जाने की क्षमता विश्वभर क जलों में सर्वोपरि है। हिन्दू इस पावन नदी को माता या मैया कहकर पुकारते हैं। पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई, ब्रह्मा के कमंडल में समायी, शिव जी ने इसे अपनी जटा में धारण किया और सगरवंशीय राजा भगीरथ अपने पूर्व-पुरुषों का उद्धार करने हेतु इसे धरती पर लाये। भागवतपुराण में तत्सम्बन्धी कथा विस्तार से दी गयी है। आदित्यपुराण के अनुसार पृथ्वी पर गंगावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तथा हिमालय से उसका निर्गम ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशहरा ) को हुआ।
| |
− |
| |
− | ==== <big>सरस्वती</big> ====
| |
− | वेदों में उल्लिखित पवित्र नदी, जो हिमालय से निकलकर वर्तमान हरियाणा, राजस्थान, गुजरात के क्षेत्रों से प्रवाहित होती हुई सिन्धुसागर में मिलती थी। कालांतर में यह नदी विलुप्त हो गयी। इसके तट ऋषियों की तपोभूमि रहे हैं। इसके आसपास का प्रदेश सारस्वत प्रदेश कहलाता था जो अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध था। पुराणों में कहीं-कहीं सरस्वती को ब्रह्मा की पत्नी तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में वाणी की देवी कहा गया है। सम्भव है कि इस नदी के तटवर्ती प्रदेश की विद्या-वैभव-सम्पन्नता के कारण इसे सरस्वती नाम मिला हो।
| |
− |
| |
− | ==== <big>सिन्धु</big> ====
| |
− | पवित्र नदी, जिसका वैदिक साहित्य में भी उल्लेख आया है। हिमालय में कैलाश पर्वत से कुछ दूर मानसरोवर के निकट से उद्भूत होकर सिन्धु नदी कश्मीर, पंजाब और सिन्ध प्रदेश में से प्रवाहित होती हुई पश्चिमी सिन्धु सागर में जा मिलती है। सिन्धु नदी वेदों में उल्लिखित पवित्र नदी है जिसके तटों पर वैदिक सभ्यता फली-फूली। ऐसी मान्यता है कि 'हिन्दू' शब्द सिन्धु से ही बना है। सिन्धु और उसकी सहायक नदियों सहित सात नदियों वाला प्रदेश सप्तसैंधव कहलाता था। वैदिक सभ्यता और संस्कृति यहाँ फली-फूली थी। किन्तु आज वही नदी और प्रदेश दोनों ही दुर्भाग्यवश पाकिस्तान में हैं।
| |
− |
| |
− | ==== <big>ब्रह्मपुत्र</big> ====
| |
− | इसका उदगम-स्थल हिमालय में पवित्र मानसरोवर के समीप स्थित एक विशाल हिमानी है। यह महानद पूर्व की ओर बहता हुआ असम और बंगाल में से होते हुए गंगासागर में मिलता है। भारत वर्ष की नदियों में ब्रह्मपुत्र की लम्बाई सर्वाधिक है। बड़ी दूर तक तिब्बत में सांपो नाम से बहने के पश्चात् अरुणाचल प्रदेश की उत्तरी सीमा पर यह भारत में प्रवेश करती है। गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के किनारे एक पहाड़ के शिखर पर कामाख्या देवी का पवित्र शक्तिपीठ अवस्थित है। अपुनर्भव, भस्मक्तूट, मणिकर्णश्वर आदि अनेक तीर्थ इसके तटों पर स्थित हैं।
| |
− |
| |
− | ==== <big>गण्डकी</big> ====
| |
− | नेपाल में मुक्तिनाथ के समीप दामोदर कुण्ड से उद्भूत गण्डकी बिहार प्रदेश से होती हुई गंगा में मिल जाती है। यह पवित्र शालिग्राम शिलाओं के लिए प्रसिद्ध है जिनकी पूजा भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में की जाती है। इसीलिए इसका एक नाम नारायणी भी है।
| |
− |
| |
− | ==== <big>कावेरी</big> ====
| |
− | कावेरी मुख्यत: कर्नाटक और तमिलनाडु में बहने वाली पवित्र नदी है, जो कूर्ग में सह्याद्रि के दक्षिणी छोर से निकलकर पूर्वी समुद्र-तट पर गंगासागर में विलीन हो जाती है। इसके प्रवाह के मध्य में तीन स्थानों पर क्रमश: आदिरंगम्, शिवसमुद्रम् तथा अन्तरंगम् नाम के तीन पवित्र द्वीप हैं जिन पर विष्णु-मन्दिर बने हैं। जो स्थान उत्तर भारत में गंगा- यमुना नदियों को प्राप्त है, वही स्थान दक्षिण भारत में कावेरी और ताम्रपणी को प्राप्त है। कावेरी से निकली नहरों ने तमिलनाडु प्रदेश को कृषि की समृद्धि प्रदान की है।
| |
− |
| |
− | ==== <big>यमुना</big> ====
| |
− | यमुना उत्तर भारत की पवित्र नदी, जो हिमालय में यमुनोत्री के शिखर से निकलकर प्रयाग क्षेत्र में गंगा में मिल जाती है। गंगा-यमुना का यह संगम-स्थल आस्तिकों के लिए तीर्थराज है। इस नदी के तटपर इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली), मथुरा और वृंदावन जैसे ऐतिहासिक, धार्मिक नगर बसे हैं। नीलवर्णा यमुना के साथ श्रीकृष्ण का गहरा संबंध है। कृष्ण-भक्ति-साहित्य में कृष्ण के संबंध के कारण यमुना का महात्म्य भी गाया गया है। पुराणों में यमुना को सूर्यकन्या माना गया है। वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में भी इसका उल्लेख अनेक बार हुआ है।
| |
− |
| |
− | ==== <big>रेवा</big> ====
| |
− | पुराणोक्ता रेवा नदी नर्मदा नाम से प्रसिद्ध है। इसका उदगम विन्ध्य पर्वत के अमरकण्टक शिखर में है। यह गुजरात में भड़ौंच के पास सिन्धु सागर में समाहित होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार रेवा नदी शिव के शरीर से उत्पन्न हुई है। रेवा के तट पर अनेक तीर्थ हैं। इनमें भेड़ाघाट, ओकारेश्वर, मांधाता, शुक्लतीर्थ, कपिलधारा आदि दर्शनीय हैं। स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड में रेवा-तट के तीर्थों का विस्तृत वर्णन है। रानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा बनवाये गये अनेक मन्दिर व घाट नर्मदा के तट पर विद्यमान हैं। कृष्णा आंध्रप्रदेश की प्रसिद्ध पुण्य सलिला नदी,जो सह्मद्रि पर्वत में महाबलेश्वर के उत्तर में स्थित कराड़ नामक स्थान के समीप से निकलकर गंगासागर में जा मिलती है। यह दक्षिण भारत की बड़ी नदियों में से है जिसे महाभारत में रोग नाशकारिणी बताया गया है। राजनिघण्टु के अनुसार इसका जल स्वच्छ, रुचिकर, दीपक और पाचक होता है। भीमा और तुंगभद्रा कुष्णा की दो प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
| |
− |
| |
− | ==== <big>गोदावरी</big> ====
| |
− | गोदावरी ब्रह्मपुराण के अनुसार गौतम ऋषि शिव की जटा से गंगा को ब्रह्मगिरि (सह्याद्रि) में अपने आश्रम के समीप ले गये। इसीलिए वहाँ प्रकट हुई गोदावरी को गौतमी और दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। इसका उद्गम सह्याद्रि में त्रयम्बकेश्वर (ब्रह्मगिरि) से है और यह महाराष्ट्र से आन्ध्र प्रदेश में बहती हुई गंगासागर में विलीन हो जाती है। भगवान रामचन्द्र जी ने गोदावरी के किनारे पंचवटी में निवास किया था। समर्थ रामदास स्वामी ने इसी स्थान पर 13 वर्ष तक घोर तपस्या की थी। गोदावरी के किनारे नान्देड़ क्षेत्र में श्री गुरु गोविन्द सिंह की समाधि विद्यमान है। गोदावरी के तट पर नासिक, पैठण, कोटिपल्ली, राजमहेन्द्री, भ्रदाचलम् इत्यादि अनेक पावन क्षेत्र विद्यमान हैं। ब्रह्मपुराण में गोदावरी-तट के लगभग एक सौ तीर्थों का वर्णन है। मुस्लिम आक्रामकों ने इनमें प्राचीन मन्दिरों का बहुत विध्वंस किया। मराठा उत्थान के पश्चात्पुन: अनेक मंदिर बने। पंचवटी का कालाराम मंदिर दक्षिण-पश्चिम भारत के सर्वोतम मन्दिरों में गिना जाता है।
| |
− |
| |
− | ==== <big>महानदी</big> ====
| |
− | महानदी मध्य प्रदेश तथा उत्कल प्रदेश की सबसे बड़ी नदी है, जो मध्य प्रदेश के रायपुर जिले के दक्षिण-पूर्व में स्थित सिंहवा पर्वत-श्रृंखला से निकलती है। कटक के पास अनेक धाराओं में बहती हुई यह पूर्व में गंगासागर में विलीन होती है। उत्कल प्रदेश का बहुत बड़ा क्षेत्र इसके जल से सिंचित होता है। उत्कल प्रदेश का बहुत बड़ा क्षेत्र इसके जल से सिंचित होता है।
| |
| | | |
| === मुख्य नगर === | | === मुख्य नगर === |