− | चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया। महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण, भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया था। कृष्ण ने पापी कंस का वध मथुरा में किया था । उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकर मथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँ उन्होंने सुदृढ़दुर्ग का निर्माण किया और द्वारिका की स्थापना की। कृष्ण के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी। आज द्वारिका एक छोटा नगर अवश्य है, परन्तु अपने अन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिर में स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुई थी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिर है। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर) पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन 1236-40 के मध्य यहाँ आये। | + | चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया। [[Mahabharata (महाभारतम्)|महाभारत]], हरिवंश पुराण, वायुपुराण, भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया था। कृष्ण ने पापी कंस का वध मथुरा में किया था । उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकर मथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँ उन्होंने सुदृढ़दुर्ग का निर्माण किया और द्वारिका की स्थापना की। कृष्ण के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी। आज द्वारिका एक छोटा नगर अवश्य है, परन्तु अपने अन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिर में स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुई थी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिर है। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर) पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन १२३६-४० के मध्य यहाँ आये। |