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| === कुरुक्षेत्र === | | === कुरुक्षेत्र === |
− | विश्व के सर्वोत्कृष्ट ज्ञान 'गीता' का उपदेश कुरुक्षेत्र के पवित्र स्थल पर प्रकट हुआ। महाभारत के इस प्राचीन युद्धक्षेत्र का हमारे देश के इतिहास की प्रमुख घटनाओं से घनिष्ठतम सम्बन्ध है। थानेश्वर, पानीपत, तरावड़ी, कंथलआदि इतिहास-प्रसिद्ध युद्धमैदान कुरुक्षेत्र की भूमि में ही स्थित हैं। ३२६ ईसा-पूर्व से लेकर सन् ४८० ई.तक यह क्षेत्र मौर्य शासकों के अधिकार में रहा। कालान्तर में गुप्तवंश के राजाओं के राज्य का प्रमुख क्षेत्र रहा। इस दौरान यहाँ का सर्वतोमुखी विकास हुआ। प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने हर्षचरित' में इस क्षेत्र के ऐश्वर्य का विस्तार से वर्णन किया है। महाभारत, पद्म पुराण, स्कन्दपुराण, शतपथ ब्राह्मण, यजुर्वेद आदि ग्रन्थों में इसका श्रद्धा के साथ वर्णन किया गया है। इस पवित्र क्षेत्र में अनेक यज्ञों का विश्वकल्याण के लिए आयोजन किया गया। यहाँ अनेक वाराहतीर्थ, शुकदेव मन्दिर, गीता मन्दिर,भगवती सती मन्दिर) विराजित हैं | द्वेपायन सरोवर के पास स्थित देवी-मन्दिर प्रधान शक्तिपीठ हैं। कहते हैं यहाँ सती का दक्षिण गुल्फ गिरा था।अन्त:सलिला सरस्वती इसी स्थान के पास से बहती थी। सूर्य-ग्रहण के समय यहाँ विशाल मेला लगता है। इस मेले में भारत के सभी प्रान्तों के नर-नारी एकत्र होते हैं तथा पवित्र सरोवर में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। | + | विश्व के सर्वोत्कृष्ट ज्ञान 'गीता' का उपदेश कुरुक्षेत्र के पवित्र स्थल पर प्रकट हुआ। महाभारत के इस प्राचीन युद्धक्षेत्र का हमारे देश के इतिहास की प्रमुख घटनाओं से घनिष्ठतम सम्बन्ध है। थानेश्वर, पानीपत, तरावड़ी, कंथलआदि इतिहास-प्रसिद्ध युद्धमैदान कुरुक्षेत्र की भूमि में ही स्थित हैं। ३२६ ईसा-पूर्व से लेकर सन् ४८० ई.तक यह क्षेत्र मौर्य शासकों के अधिकार में रहा। कालान्तर में गुप्तवंश के राजाओं के राज्य का प्रमुख क्षेत्र रहा। इस दौरान यहाँ का सर्वतोमुखी विकास हुआ। प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने हर्षचरित' में इस क्षेत्र के ऐश्वर्य का विस्तार से वर्णन किया है। महाभारत, पद्म पुराण, स्कन्दपुराण, शतपथ ब्राह्मण, यजुर्वेद आदि ग्रन्थों में इसका श्रद्धा के साथ वर्णन किया गया है। इस पवित्र क्षेत्र में अनेक यज्ञों का विश्वकल्याण के लिए आयोजन किया गया। यहाँ अनेक वाराहतीर्थ, शुकदेव मन्दिर, गीता मन्दिर,भगवती सती मन्दिर) विराजित हैं । द्वेपायन सरोवर के पास स्थित देवी-मन्दिर प्रधान शक्तिपीठ हैं। कहते हैं यहाँ सती का दक्षिण गुल्फ गिरा था।अन्त:सलिला सरस्वती इसी स्थान के पास से बहती थी। सूर्य-ग्रहण के समय यहाँ विशाल मेला लगता है। इस मेले में भारत के सभी प्रान्तों के नर-नारी एकत्र होते हैं तथा पवित्र सरोवर में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। |
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| === इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली) === | | === इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली) === |
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| === लुम्बिनी === | | === लुम्बिनी === |
− | हिमालय की तलहटी में भगवान् बुद्ध से सम्बन्धित अनेक स्थान महत्वपूर्ण हैं। जिनमें लुम्बिनी, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, कुशीनगर तथा कौशाम्बी प्रमुख हैं। कपिलवस्तु के पास लुम्बनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। यहाँ पर अनेक बौद्ध विहार थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। सम्राट अशोक के एक स्तम्भ से, यहीं पर बुद्ध का जन्म हुआ, यह पता चलता है | स्तम्भ के पास ही एक ही स्तूप भी है जिसमे भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थित है | | + | हिमालय की तलहटी में भगवान् बुद्ध से सम्बन्धित अनेक स्थान महत्वपूर्ण हैं। जिनमें लुम्बिनी, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, कुशीनगर तथा कौशाम्बी प्रमुख हैं। कपिलवस्तु के पास लुम्बनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। यहाँ पर अनेक बौद्ध विहार थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। सम्राट अशोक के एक स्तम्भ से, यहीं पर बुद्ध का जन्म हुआ, यह पता चलता है । स्तम्भ के पास ही एक ही स्तूप भी है जिसमे भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थित है । |
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| === श्रावस्ती === | | === श्रावस्ती === |
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| === सीतामढ़ी === | | === सीतामढ़ी === |
− | जगज्जननी सीता का उद्भव यहीं हुआ था। यह स्थान लखनदेई नामक नदी के तट पर स्थित है। कहते हैं एक बार मिथिला राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ थी। लक्ष्मणपुर या लखनावती इसके प्राचीन नाम है। यह नगर पवित्र किया गया। मिथिला नरेश ने स्वयं हल चलाया तो वहाँ पर एक दिव्य कन्या प्रकटहुई। सीता (हल की खड) से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम सीता पड़ा | यहाँ सीताजी का मन्दिर बना है। जिस स्थान पर सीताजी प्रकट हुई वहाँ यज्ञवेदी बनी हुई है। | + | जगज्जननी सीता का उद्भव यहीं हुआ था। यह स्थान लखनदेई नामक नदी के तट पर स्थित है। कहते हैं एक बार मिथिला राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ थी। लक्ष्मणपुर या लखनावती इसके प्राचीन नाम है। यह नगर पवित्र किया गया। मिथिला नरेश ने स्वयं हल चलाया तो वहाँ पर एक दिव्य कन्या प्रकटहुई। सीता (हल की खड) से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम सीता पड़ा । यहाँ सीताजी का मन्दिर बना है। जिस स्थान पर सीताजी प्रकट हुई वहाँ यज्ञवेदी बनी हुई है। |
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| === जनकपुर (मिथिला) === | | === जनकपुर (मिथिला) === |
− | जनकपुर का प्राचीन नाम मिथिला, तैरमुक्त विदेहनगर रहा। जनकपुर या मिथिला नेपाल राज्य के अन्तर्गत पड़ता है। यह मिथिला राज्य की राजधानी थी। महाराज जनक ने यहीं पर सीता स्वयंवर का आयोजन धनुष-यज्ञ के रूप में किया था। जनकपुर मेंएक प्राचीन दुर्ग के खण्डहर मिलते हैं जिसके चारों ओर शिलानाथ, कपिलेश्वर, क्षीरेश्वर तथा मिथिलेश्वर नामक प्राचीन शिव-मन्दिर हैं। गौतम, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य के आश्रम भी यहाँ पर थे। महाभारत युद्ध के बाद यह क्षेत्र निर्जन हो गया था। एकान्त के कारण कई सिद्ध ऋषियों ने यहाँ तपस्या की औरअक्षयवट के नीचे से राम पंचायतन की मूर्तियाँ निकलवाकर जनकपुर में प्रतिष्ठित करायीं| | + | जनकपुर का प्राचीन नाम मिथिला, तैरमुक्त विदेहनगर रहा। जनकपुर या मिथिला नेपाल राज्य के अन्तर्गत पड़ता है। यह मिथिला राज्य की राजधानी थी। महाराज जनक ने यहीं पर सीता स्वयंवर का आयोजन धनुष-यज्ञ के रूप में किया था। जनकपुर मेंएक प्राचीन दुर्ग के खण्डहर मिलते हैं जिसके चारों ओर शिलानाथ, कपिलेश्वर, क्षीरेश्वर तथा मिथिलेश्वर नामक प्राचीन शिव-मन्दिर हैं। गौतम, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य के आश्रम भी यहाँ पर थे। महाभारत युद्ध के बाद यह क्षेत्र निर्जन हो गया था। एकान्त के कारण कई सिद्ध ऋषियों ने यहाँ तपस्या की औरअक्षयवट के नीचे से राम पंचायतन की मूर्तियाँ निकलवाकर जनकपुर में प्रतिष्ठित करायीं। |
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| === मधुवनी === | | === मधुवनी === |
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| === पावापुरी === | | === पावापुरी === |
− | यह प्रसिद्ध जैन तीर्थ हैं| 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी ने यहाँ दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया। जहाँ महावीर स्वामी का शरीरान्त उसके बीचोंबीच संगमरमर का भव्य मन्दिर बना है। इसे जल मन्दिर कहा जाता है। जलमन्दिरमें महावीर स्वामी, गौतम स्वामी और सुधर्मस्वामी के चरण-चिह्न अंकित हैं। यहाँ पर दिगम्बर व शवेताम्बर दो सम्प्रदायों के मन्दिरऔर धर्मशालाएँ हैं।प्रतिवर्ष दीपावली केअवसर पर सम्पूर्ण देश से जैन मतावलम्बी यहाँ एकत्रित होते हैं।इसका प्राचीन नाम अपापा पुरी है। | + | यह प्रसिद्ध जैन तीर्थ हैं। 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी ने यहाँ दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया। जहाँ महावीर स्वामी का शरीरान्त उसके बीचोंबीच संगमरमर का भव्य मन्दिर बना है। इसे जल मन्दिर कहा जाता है। जलमन्दिरमें महावीर स्वामी, गौतम स्वामी और सुधर्मस्वामी के चरण-चिह्न अंकित हैं। यहाँ पर दिगम्बर व शवेताम्बर दो सम्प्रदायों के मन्दिरऔर धर्मशालाएँ हैं।प्रतिवर्ष दीपावली केअवसर पर सम्पूर्ण देश से जैन मतावलम्बी यहाँ एकत्रित होते हैं।इसका प्राचीन नाम अपापा पुरी है। |
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| === पारसनाथ पहाड़ी ( सम्मेदशिखर ) === | | === पारसनाथ पहाड़ी ( सम्मेदशिखर ) === |
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| === राँची === | | === राँची === |
− | हजारीबाग के पठारी व पर्वतीय प्रदेश में स्थित यह आधुनिकऔद्योगिक हुआ, वहाँ एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। समीप ही एक सरोवर और नगर है। इसे बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी होने का भी श्रेय प्राप्त है। रॉची समुद्रतल से लगभग 700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। रॉची के चारों ओर प्राकृतिक छटा बिखरी पड़ी है। इसके पास में एक पहाड़ी पर स्थित शिव मन्दिर रॉची के सौन्दर्य को भव्यता प्रदान करता हैं। बिहार के सुन्दरतम प्राकृतिक जल-प्रपात रॉची के समीपवर्ती प्रदेश में पड़ते हैं। इनमें सुवर्ण रेखा नदी पर 107 मीटर ऊँचा हुण्डु, प्रपात तथा इसकी सहायक नदी परजोन्हा प्रपात प्रमुख हैं। रॉची बिहार का औद्योगिक नगर है।जहाँ यंत्र-निर्माण तथा खनिजों से सम्बन्धित उद्योगों का विकास हुआ है| झारखण्ड प्रदेश बनाने के उपरान्त अब रॉची उसकी राजधानी है। | + | हजारीबाग के पठारी व पर्वतीय प्रदेश में स्थित यह आधुनिकऔद्योगिक हुआ, वहाँ एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। समीप ही एक सरोवर और नगर है। इसे बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी होने का भी श्रेय प्राप्त है। रॉची समुद्रतल से लगभग 700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। रॉची के चारों ओर प्राकृतिक छटा बिखरी पड़ी है। इसके पास में एक पहाड़ी पर स्थित शिव मन्दिर रॉची के सौन्दर्य को भव्यता प्रदान करता हैं। बिहार के सुन्दरतम प्राकृतिक जल-प्रपात रॉची के समीपवर्ती प्रदेश में पड़ते हैं। इनमें सुवर्ण रेखा नदी पर 107 मीटर ऊँचा हुण्डु, प्रपात तथा इसकी सहायक नदी परजोन्हा प्रपात प्रमुख हैं। रॉची बिहार का औद्योगिक नगर है।जहाँ यंत्र-निर्माण तथा खनिजों से सम्बन्धित उद्योगों का विकास हुआ है। झारखण्ड प्रदेश बनाने के उपरान्त अब रॉची उसकी राजधानी है। |
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| === जमशेदपुर ( टाटा नगर ) === | | === जमशेदपुर ( टाटा नगर ) === |
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| === चित्रकूट === | | === चित्रकूट === |
− | चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान् श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया|" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान् श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण मन्दिर, अनसूया आश्रम, भरतकूप, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, देवगांगा आदि धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान हैं। अत्रि ऋषि इस क्षेत्र के अधिष्ठाता हैं। अत्रि-अनसूया आश्रम में भगवती सीता ने अनसूया से पति-परायण होने के लिए उपदेश प्राप्त किया था। रामघाट के पास स्थित यज्ञवेदी मन्दिर वह स्थान है जहाँ ब्रह्माजी ने सबसे पहले यज्ञ किया था। यहीं परश्रीराम वभरतमिलाप हुआ। चित्रकूट के पास की बस्ती का नाम सीतापुर है। यहाँ पर जानकी नाम का पवित्र सरोवर है। यहाँ शक्तिपीठ भी हैं। | + | चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान् श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया।" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान् श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण मन्दिर, अनसूया आश्रम, भरतकूप, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, देवगांगा आदि धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान हैं। अत्रि ऋषि इस क्षेत्र के अधिष्ठाता हैं। अत्रि-अनसूया आश्रम में भगवती सीता ने अनसूया से पति-परायण होने के लिए उपदेश प्राप्त किया था। रामघाट के पास स्थित यज्ञवेदी मन्दिर वह स्थान है जहाँ ब्रह्माजी ने सबसे पहले यज्ञ किया था। यहीं परश्रीराम वभरतमिलाप हुआ। चित्रकूट के पास की बस्ती का नाम सीतापुर है। यहाँ पर जानकी नाम का पवित्र सरोवर है। यहाँ शक्तिपीठ भी हैं। |
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| === विंध्यवासिनी ( मिर्जापुर ) === | | === विंध्यवासिनी ( मिर्जापुर ) === |
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| === खजुराहो === | | === खजुराहो === |
− | मूर्तिकला की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट मन्दिरों के लिए विख्यात खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के अन्तर्गत पड़ता है। लगभग चार शताब्दियों तक खजुराहो चन्देल नरेशों की राजधानी रहा। उसी दौरान इन कलात्मक मन्दिरों का निर्माण हुआ। वास्तव में खजुराहो एक गाँव है जो काजरों | + | मूर्तिकला की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट मन्दिरों के लिए विख्यात खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के अन्तर्गत पड़ता है। लगभग चार शताब्दियों तक खजुराहो चन्देल नरेशों की राजधानी रहा। उसी दौरान इन कलात्मक मन्दिरों का निर्माण हुआ। वास्तव में खजुराहो एक गाँव है जो काजरों अथवा निनोरा ताल के किनारे बसा है। गाँव के बाहर मन्दिरों का एक समूह है, इनमें शैवशाक्त, वैष्णव,जैन व बौद्धमतावलम्बियों के मन्दिरों की संख्या कई हैं। प्रमुख मन्दिरों में कण्डरिया महादेव, काली मन्दिर, विश्वनाथ,चतुर्भुज मन्दिर, मतंगेश्वर,आदिनाथ व पाश्र्वनाथ मन्दिर हैं। ये मन्दिरभी मुस्लिम आक्रान्ताओं की बर्बरता का शिकारहुए। सन् १८९४-९५ ई. में सिकन्दर लोदी ने इनके कुछ भाग को ध्वस्त कर दिया था। |
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| + | === झाँसी === |
| + | महारानी लक्ष्मीबाई की राजधानी झांसी इतिहास प्रसिद्ध नगर है। यहाँ पर एक पुराना दुर्ग है। इस दुर्ग में ही रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था। झांसी के राजा गांगाधर राव निस्सन्तान स्वर्गवासी हो गये थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उनके दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी और झांसी को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। उधर सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष की रूपरेखा तैयार की जा रही थी। रानीअंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी और युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई। दुर्ग के अतिरिक्त भी कई ऐतिहासिक भवन व प्राचीन मन्दिर झांसी में विद्यमान हैं। |
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| + | === ग्वालियर === |
| + | ग्वालियर मध्यप्रदेश का प्रमुख नगर व तोमरतथा सिन्धिया राजवंशों की राजधानी रहा है। ग्वालियर ने अनेक उत्थान व पतन देखें हैं। ग्वालियर नगर ३ छोटे नगरों का मिला जुला रूप है। यहाँ पहाड़ी पर विशाल दुर्ग है। गुप्त, प्रतिहार, तोमर, मराठा कालीन कई स्थान यहाँ पर हैं। भगवान श्रीविष्णु का चतुर्भुज मन्दिर यहाँ का प्रमुख मन्दिर है। गूजरी महल, जयविलास प्रसाद, सास बहु का मन्दिर, तेलिका मन्दिर,तानसेन का समाधि आदि ग्वालियर के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। |
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| ==References== | | ==References== |