− | उत्तरप्रदेश में गांगा-यमुना के संगम पर स्थित प्रयाग प्रसिद्धतीर्थ है। अपने असाधारण महात्म्य के कारण इसे त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। प्रयाग में प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ, प्रति छठे वर्षअर्द्ध कुम्भ और प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है।इन मेलों में करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत पर्व स्नान करने आते हैं। प्रयाग क्षेत्र में प्रजापति ने यज्ञ किया था जिससे इसे प्रयाग नाम प्राप्त हुआ। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध गुरुकुल प्रयाग में ही था। वन जाते हुए श्रीराम, सीता और लक्ष्मण उसआश्रम में ठहरेथे। तुलसीकृत रामचरित-मानस के अनुसार वहीं परमुनि याज्ञवल्क्य नेभारद्वाज मुनि को रामकथा सुनायी | + | उत्तरप्रदेश में गांगा-यमुना के संगम पर स्थित प्रयाग प्रसिद्धतीर्थ है। अपने असाधारण महात्म्य के कारण इसे त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। प्रयाग में प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ, प्रति छठे वर्षअर्द्ध कुम्भ और प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है।इन मेलों में करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत पर्व स्नान करने आते हैं। प्रयाग क्षेत्र में प्रजापति ने यज्ञ किया था जिससे इसे प्रयाग नाम प्राप्त हुआ। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध गुरुकुल प्रयाग में ही था। वन जाते हुए श्रीराम, सीता और लक्ष्मण उसआश्रम में ठहरेथे। तुलसीकृत रामचरित-मानस के अनुसार वहीं परमुनि याज्ञवल्क्य नेभारद्वाज मुनि को रामकथा सुनायी थी। समुद्रगुप्त के शासन के वर्णन का एक उत्कृष्ट शिलास्तम्भ प्रयाग में पाया गया है। यहीं वह वटवृक्ष (अक्षयवट) है जिसके बारे में मान्यता है कि वह प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता।" इसी विश्वास और श्रद्धा को तोड़ने के लिए आक्रांता मुसलमानों- विशेषत: जहांगीर- ने उसे नष्ट करने के बहुत प्रयत्न किये, किन्तु वह वटवृक्ष आज भी वहाँ खड़ा है। प्रयाग में माघ मास में स्नान का विशेष महात्म्य हैं।" प्रयाग के गांगापार का भाग प्रतिष्ठानपुर (यूसी) कहलाता है। |
| + | चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान् श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया|" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान् श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण |