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शासनकर्ताओं को केन्द्र में रखकर बीते हुए समय का वर्णन करना हमारे लिये इतिहास है । भारतीय ज्ञानपरंपरा में महाभारत को और पुराणों को इतिहास कहा गया है । आज इनके सामने बड़ी आपत्ति उठाई जा रही है। इन्हें काल्पनिक कहा जा रहा है। भारतीय विद्वान इन्हें इतिहास के नाते प्रस्थापित कर ही नहीं पा रहे हैं क्योंकि इतिहास की पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषा को स्वीकार कर अपने ग्रन्थों को लागू करने से वे इतिहास ग्रंथ सिद्ध नहीं होते हैं । एक बहुत ही छोटा तबका इन्हें इतिहास मान रहा है परन्तु विद्वतक्षेत्र के मुख्य प्रवाह में अभी भी ये धर्मग्रंथ हैं, इतिहास नहीं ।
 
शासनकर्ताओं को केन्द्र में रखकर बीते हुए समय का वर्णन करना हमारे लिये इतिहास है । भारतीय ज्ञानपरंपरा में महाभारत को और पुराणों को इतिहास कहा गया है । आज इनके सामने बड़ी आपत्ति उठाई जा रही है। इन्हें काल्पनिक कहा जा रहा है। भारतीय विद्वान इन्हें इतिहास के नाते प्रस्थापित कर ही नहीं पा रहे हैं क्योंकि इतिहास की पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषा को स्वीकार कर अपने ग्रन्थों को लागू करने से वे इतिहास ग्रंथ सिद्ध नहीं होते हैं । एक बहुत ही छोटा तबका इन्हें इतिहास मान रहा है परन्तु विद्वतक्षेत्र के मुख्य प्रवाह में अभी भी ये धर्मग्रंथ हैं, इतिहास नहीं ।
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इतिहास की भारतीय परिभाषा है<blockquote>धर्मार्थिकाममो क्षाणाम्‌ उपदेशसमन्वितम्‌ ।</blockquote><blockquote>पुरावृत्तं कथारूप॑ इतिहासं प्रचक्षते ।।</blockquote>अर्थात्‌ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों
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इतिहास की भारतीय परिभाषा है{{Citation needed}} <blockquote>धर्मार्थिकाममो क्षाणाम्‌ उपदेशसमन्वितम्‌ ।</blockquote><blockquote>पुरावृत्तं कथारूप॑ इतिहासं प्रचक्षते ।।</blockquote>अर्थात्‌ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों
    
का उपदेश जिसमें मिलता है, जो पूर्व में हो गया है, जो
 
का उपदेश जिसमें मिलता है, जो पूर्व में हो गया है, जो

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