राष्ट्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐसे नीति और रणनीति के महत्वपूर्ण मुद्दों पर हर २० वर्ष के बाद गहराई से संसद मे चर्चा करने की ब्रिटेन में पद्दति थी। इसे चार्टर्ड डिबेट कहा जाता था। १७९२ से पूर्व भारत में अध्ययन के लिये आये, प्रसिध्द अंग्रेजी इतिहासकार विलियम रोबर्टसन द्वारा लिखे और १७९२ में प्रकाशित 'हिस्टॉरिकल डिस्क्विझिशन्स् ऑन ईंडिया' पुस्तक में दी गयी जानकारी के आधार पर भारत में पादरी भेजने का प्रस्ताव ठुकरा दिया गया। विलियम रॉबर्टसन की यह पुस्तक उस के ही जैसे भारत अध्ययन करने आये कुछ इतिहास संशोधकों द्वारा प्रस्तुत शोध प्रबंधोंपर आधारित थी। भारत का गव्हर्नर जनरल वॉरेन हेस्टींग्ज ( १७७२-१७८५) भी धार्मिक सस्कृति, संस्कृत भाषा आदि का प्रशंसक था। उस ने इन के प्रचार और प्रसार के लिये भारत में एशियाटिक सोसायटी की स्थापना भी की थी। धार्मिक साहित्य का अध्ययन पाश्चात्य राष्ट्रों के लिये हितकारी होगा ऐसा लॉर्ड मिन्टो (१८०६-१८१३) भी मानता था<ref>ए स्टुडंण्ट्स् हिस्टरी ऑफ ईंडिया - लेखक सय्यद नुरूला और जे. पी नायक, पृष्ठ ३</ref>। १७९२ में प्रस्ताव के ठुकराए जाने के बाद भी चार्ल्स् ग्रँट निराश नहीं हुआ। वह १७९३ में कुछ पादरियों को अवैध रूप से भारत भेजने में सफल हो गया। इन पादरियों द्वारा भेजी विकृत और अतिरंजित जानकारी के आधार पर जेम्स् स्टुअर्ट मिल ने हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इण्डिया ग्रंथ दो खण्डों में प्रकाशित किया। जेम्स् स्टुअर्ट मिल भारत में कभी नहीं आया था। इसी इतिहास के आधार पर जेम्स् स्टुअर्ट मिल ब्रिटिश सरकार का भारत से संबंधित सभी मामलों में सलाहकार बन गया। | राष्ट्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐसे नीति और रणनीति के महत्वपूर्ण मुद्दों पर हर २० वर्ष के बाद गहराई से संसद मे चर्चा करने की ब्रिटेन में पद्दति थी। इसे चार्टर्ड डिबेट कहा जाता था। १७९२ से पूर्व भारत में अध्ययन के लिये आये, प्रसिध्द अंग्रेजी इतिहासकार विलियम रोबर्टसन द्वारा लिखे और १७९२ में प्रकाशित 'हिस्टॉरिकल डिस्क्विझिशन्स् ऑन ईंडिया' पुस्तक में दी गयी जानकारी के आधार पर भारत में पादरी भेजने का प्रस्ताव ठुकरा दिया गया। विलियम रॉबर्टसन की यह पुस्तक उस के ही जैसे भारत अध्ययन करने आये कुछ इतिहास संशोधकों द्वारा प्रस्तुत शोध प्रबंधोंपर आधारित थी। भारत का गव्हर्नर जनरल वॉरेन हेस्टींग्ज ( १७७२-१७८५) भी धार्मिक सस्कृति, संस्कृत भाषा आदि का प्रशंसक था। उस ने इन के प्रचार और प्रसार के लिये भारत में एशियाटिक सोसायटी की स्थापना भी की थी। धार्मिक साहित्य का अध्ययन पाश्चात्य राष्ट्रों के लिये हितकारी होगा ऐसा लॉर्ड मिन्टो (१८०६-१८१३) भी मानता था<ref>ए स्टुडंण्ट्स् हिस्टरी ऑफ ईंडिया - लेखक सय्यद नुरूला और जे. पी नायक, पृष्ठ ३</ref>। १७९२ में प्रस्ताव के ठुकराए जाने के बाद भी चार्ल्स् ग्रँट निराश नहीं हुआ। वह १७९३ में कुछ पादरियों को अवैध रूप से भारत भेजने में सफल हो गया। इन पादरियों द्वारा भेजी विकृत और अतिरंजित जानकारी के आधार पर जेम्स् स्टुअर्ट मिल ने हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इण्डिया ग्रंथ दो खण्डों में प्रकाशित किया। जेम्स् स्टुअर्ट मिल भारत में कभी नहीं आया था। इसी इतिहास के आधार पर जेम्स् स्टुअर्ट मिल ब्रिटिश सरकार का भारत से संबंधित सभी मामलों में सलाहकार बन गया। |