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− | हम जानते है शिक्षा आजीवन चलती है । वृद्धावस्था जीवन की सबसे दीर्घ एवं परिपक्व अवस्था है । अतः वृद्धावस्था | + | हम जानते है शिक्षा आजीवन चलती है <ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। वृद्धावस्था जीवन की सबसे दीर्घ एवं परिपक्व अवस्था है । अतः वृद्धावस्था की शिक्षा का स्वरूप कैसा हो यह विचारणीय प्रश्न है । यहा कुछ अनुभव संपन्न वृद्धों के विचारों का संकलन प्रस्तुत है । |
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− | की शिक्षा का स्वरूप कैसा हो यह विचारणीय प्रश्न है । यहा कुछ अनुभव संपन्न वृद्धों के विचारों का संकलन प्रस्तुत है । | + | == अधिकार नही कर्तव्य निभाना == |
| + | मनुष्य जीवन की अन्य अवस्थाओं की तुलना में वृद्धावस्था सबसे अंतिम एवं दीर्घ अवस्था है<ref>सच्चिदानन्द फडके, ७५ वर्ष, नासिक, सामाजिक कार्यकर्ता</ref>। "आजीवन शिक्षा" - यह भारतीय शिक्षा का सूत्र सामने रखते हुए वृद्धावस्था का इस दृष्टि से विचार करना चाहिए । वृद्धावस्था परिपक्वअवस्था है फिर भी यहाँ बहुत सी बाते सीखने का अवसर प्राप्त होता है। जीवन में मानअपमान, हारजीत, हर्षशोक, मानसम्मान आदि द्वंद्वों का तथा मोह, मद, क्रोध, आसक्ति जैसे दुर्गुणों का सामना होता रहता है। इसके परे जाने की सीख इस अवस्था में प्राप्त होती है तो अच्छा है। अब जीवन में प्राप्त सुखों से समाधानी, तृप्त होना और उनसे भी निवृत्त होना सीखना चाहिये | जीवन के अंतिम क्षण तक अपने नियत कर्म में व्यस्त रह सके इसलिये स्वास्थ्य सम्हालना चाहिये । नित्य ध्यान, प्राणायाम, योगाभ्यास करते रहना उसका उपाय है। |
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− | १. अधिकार नही कर्तव्य निभाना
| + | यही सीख हमारे निर्दोष पोतेपोतियों के सहवास से, अड़ोसपड़ोस के श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के उदाहरण से, जीवन मे कितनी कठिनाइयाँ आयी परंतु ईश्वर ने हमें उन्हे पार करने में किस रूप में कृपा की थी इस के चिंतन से, सद्ग्रथों के पठन से तथा भावपूर्ण संगीत के श्रवण से प्राप्त होती है । हम अपने जीवन के अनुभव के आधार पर अपने परिवारजन को बहुत सारी बातें वृद्धावस्था में सिखा सकते हैं। परंतु यह शिक्षा अब मौन रूप में होगी। सबके साथ हमारा प्रेमपूर्ण व्यवहार, सहयोग, कर्तव्यपरायणता, निःस्वार्थता, प्रसन्नता को देखते हुए अब हमारा मौन अध्यापन प्रभावी होगा। अगर कोई सलाह विमर्श की हमसे अपेक्षा करते हैं तो देने का सामर्थ्य हमारे में जरूर होना चाहिये। समाज की युवापीढ़ी और बालकों को प्रेमपूर्ण भाव से अनेक बातें सिखा सकते हैं। यह हमारे मातृत्व पितृत्व का दायरा बढ़ाने का प्रयत्न होगा । वृद्धावस्था में सीखने सिखाने में कुछ अवरोध भी आते हैं। पहला अवरोध हमारे शारीरिक स्वास्थ्य का । हमें अब यह दुनिया छोडने से पूर्व हमारा अनुभव सबको बटोरने की जल्दी होती है जब की युवापीढ़ी अपने सामर्थ्य के कारण उपदेश ग्रहण से विमुख रहती है यह दूसरा अवरोध है। अतः समचित्त रहने का अभ्यास हमें करना होता है । वृद्धावस्था की उचित मानसिकता हमें प्रौढावस्था से ही तैयार करनी चाहिये। खानपान, वित्ताधिकार, किसी |
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− | मनुष्य जीवन की अन्य अवस्थाओं की तुलना में
| + | ''व्यक्तिविशेष में आसक्ति कम करने का संयमी, शान्त आनंदी, प्रसन्न, अनासक्त होना सबके'' |
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− | वृद्धावस्था सबसे अंतिम एवं दीर्घ अवस्था है। आजीवन | + | ''प्रयास करना चाहिये । “अधिकार नहीं परंतु कर्तव्य पूर्ण... साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार उत्तम वृद्धावस्था के लक्षण हैं ।'' |
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− | शिक्षा. यह भारतीय शिक्षा का सूत्र सामने रखते हुए
| + | ''निभाना ऐसी कसरत करने का प्रयास प्रौढ़ावस्था में ही सच्चिदानन्द फडके, ७५ वर्ष, नासिक,'' |
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− | वृद्धावस्था का इस दृष्टि से विचार करना ऐसा विद्यापीठ का
| + | ''करना चाहिये । सामाजिक कार्यकर्ता'' |
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− | विचार मुझे सराहनीय लगा। मैं मेरे अनुभव अपनी
| + | ''२. कम खाना गम खाना'' |
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− | मतिनुसार यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूँ ।
| + | ''इस अवस्था में परिवार में बिना अपेक्षा के बलात्.. कहानी से जीवन तत्त्व उडेल सकते हैं ।'' |
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− | वृद्धावस्था परिपक्रअवस्था है फिर भी यहाँ बहुत सी
| + | ''अपनी इच्छा न बताना व थोपना उचित रहता है । उम्र का अन्तर अन्य लोगों से (उम्र में छोटों से)'' |
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− | बाते सीखने का अवसर प्राप्त होता है। जीवन में
| + | ''१, परिवार के साथ सामंजस्य बैठाना । सबकी इच्छा... घुलने मिलने में अवरोधक बन जाता है ।'' |
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− | मानअपमान, हारजीत, हर्षशोक, मानसम्मान आदि द्वुंद्रो का
| + | ''में अपनी इच्छा समाहित करना चाहिए । १. इस उम्र में अधिक बोलने व बात बात में उपदेश'' |
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− | तथा मोह, मद, क्रोध, आसक्ति जैसे दुर्गुणों का | + | ''२. पुत्र को काम का जिम्मेदार बनाना तथा अपना... देने की वृत्ति लोगों से दूर ले जाती है ।'' |
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− | सामना होता रहता है। इसके परे जाने की सीख इस
| + | ''अधिकार छोड़ना चाहिए । २. जिस उम्र में हम जिसे आधार बनाकर आगे बढ़े'' |
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− | अवस्था में प्राप्त होती है तो अच्छा है। अब जीवन में
| + | ''३. घर के कार्य में अपने को जोड़ना ताकि हमारी. हैं उसी पर अड़े रहते है । जबकि नयी पीढ़ी में सभी प्रकार'' |
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− | प्राप्त सुखों से समाधानी, तृप्त होना और उनसे भी निवृत्त
| + | ''आवश्यकता दिखती रहे अपने से बड़ों से तथा जिनका... से बहुत परिवर्तन आ चुके हैं हम उस के अनुरूप अपने को'' |
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− | होना सीखना चाहिये | जीवन के अंतिम क्षण तक अपने
| + | ''गाहस्थ्य जीवन श्रेष्ठ रहा है उन लोगो से सीखना । इस हेतु ढाल नहीं पाते हैं ।'' |
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− | नियत कर्म में व्यस्त रह सके इसलिये स्वास्थ्य सम्हालना
| + | ''सीखने के लिये अपने को छोड़कर जानने का भाव रखना । स्वस्थ रहे इसलिये योग व्यायाम भी करें ।'' |
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− | चाहिये । नित्य ध्यान, प्राणायाम, योगाभ्यास करते रहना
| + | ''अब तक के अनुभव के आधार पर जो परिवार में उपयोगी स्वभाविक रूप से परिवार के सब लोग स्नेह व'' |
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− | उसका उपाय है।
| + | ''हैं उसे स्वीकार करते हुए चलना । सम्मान देते है ।'' |
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− | यही सीख हमारे निर्दोष पोतेपोतियों के सहवास से,
| + | ''आने वाली पीढ़ी को अपने अनुभव से जीवनपयोगी. १. स्वास्थ्य ठीक है तो अपना कार्य स्वयं कर लेते हैं ।'' |
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− | अड़ोसपड़ोस के श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के
| + | ''राह दिखा सकते है । २... परिवार में उपयोगी बने रहना ।'' |
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− | उदाहरण से, जीवन मे कितनी कठिनाइयाँ आयी परंतु ईश्वरने
| + | ''१. विशेषकर पौत्र पौत्री को क्योंकि इस उम्र में वे... ३... ऐसा व्यवहार कीजिए की हमारी इच्छा परिवार में'' |
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− | हमें उन्हे पार करने में किस रूप में कृपा की थी इस के
| + | ''ज्यादा नजदीक रहते हैं । आज्ञा रूप में स्वीकार हो ।'' |
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− | चिंतन से, सद्ग्रथों के पठन से तथा भावपूर्ण संगीत के
| + | ''२. समाज के लोगों में अपना अनुभव व ज्ञान बाँटना.... ४... परिवार के सभी लोग हमसे मिलकर सुख प्राप्त करें ।'' |
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− | श्रवण से प्राप्त होती है ।
| + | ''है जो हमारी जीवन की oa 4 का आधार है । नर राधेश्याम शर्मा, सेवा निवृत्त, शिक्षक, कोटा'' |
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− | हम अपने जीवन के अनुभव के आधार पर अपने
| + | ''३. पडौंस के बालकों में भी खेल खेल में, कथा'' |
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− | परिवारजन को बहुत सारी बातें वृद्धावस्था में सिखा सकते
| + | ''३. समायोजन अधिकतम संघर्ष'' |
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− | हैं। परंतु यह शिक्षा अब मौन रूप में होगी। सबके साथ
| + | ''१, युवा या वृद्धावस्था मन पर निर्भर है । परंतु आप. सहनशीलता, समायोजन की आदत - स्वभाव में'' |
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− | हमारा प्रेमपूर्ण व्यवहार, सहयोग, कर्तव्यपरायणता,
| + | ''शारीरिक वृद्धावस्था के संदर्भ में जानना चाहते हैं इसलिए... प्रयत्नपूर्वक परिवर्तन लाना है - स्वयं ही स्वयं का'' |
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− | निःस्वार्थता, प्रसन्नता को देखते हुए अब हमारा मौन
| + | ''वैसा ही उत्तर - हम सब कभी तो वृद्ध बनने वाले है ऐसी... मार्गदर्शक बनना चाहिये । समवयस्कों के साथ खुली'' |
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− | अध्यापन प्रभावी होगा। अगर कोई सलाह विमर्श की
| + | ''मन की तैयारी होगी तो वृद्धावस्था भी सुखकर हो सकती... बातचीत होने से मन हलका होगा इसलिए ऐसे स्वाभाविक'' |
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− | हमसे अपेक्षा करते हैं तो देने का सामर्थ्य हमारे में जरूर
| + | ''है। मिलन केंद्र निर्माण करना है । औपचारिक सलाह केंद्रों से'' |
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− | होना चाहिये। समाज की युवापीढ़ी और बालकों को
| + | ''वृद्धावस्था में शरीर की कार्यशक्ति स्वाभाविक रूप से... भी वह अधिक परिणामकारक होगा ।'' |
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− | प्रेमपूर्ण भाव से अनेक बातें सिखा सकते हैं। यह हमारे
| + | ''कम होती है । दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है अतः संयम, २. वृद्धावस्था में अपना जीवन अनुभव समृद्ध होता'' |
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− | मातृत्व पितृत्व का दायरा बढ़ाने का प्रयत्न होगा ।
| + | ''रस'' |
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− | वृद्धावस्था में सीखने सिखाने में कुछ अवरोध भी
| + | ''............. page-261 .............'' |
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− | आते हैं । पहला अवरोध हमारे शारीरिक स्वास्थ्य का । हमें
| + | ''पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा'' |
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− | अब यह दुनिया छोडने से पूर्व हमारा अनुभव सबको
| + | ''है । उसका लाभ युवा पीढ़ी को दे सकते हैं । सहज रूप से... होने चाहिये । परंतु हम वृद्ध होनेवाले'' |
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− | बटोरने की जल्दी होती है जब की युवापीढ़ी अपने सामर्थ्य
| + | ''- ना की मार्गदर्शक की भूमिका से । कहाँ से दरार हो. हैं, हो गये हैं यह स्वीकार करने की अपने ही मन की'' |
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− | के कारण उपदेश ग्रहण से विमुख रहती है यह दूसरा
| + | ''सकती है यह मालूम होने हेतु आपसी संवाद - सहसंवेदना.... तैयारी नहीं होती है । समायोजन में गड़बड़ हो जाती है ।'' |
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− | अवरोध है। अतः समचित्त रहने का अभ्यास हमें करना
| + | ''निर्माण करना आवश्यक है। आदेशकर्ता की भूमिका ५. प्रारंभ से ही लिखना, पढ़ना और आधुनिक'' |
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− | होता है ।
| + | ''स्वीकार्य नहीं होगी । तंत्रज्ञान के सहारे अपना समय नियोजन करने से अपने'' |
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− | वृद्धावस्था की उचित मानसिकता हमें प्रौढावस्था से | + | ''३. वृद्धावस्था में जीवन विषयक धारणाएँ पक्की होती. अनुभवों को बाँटने की या स्वीकारने की मानसिकता बन'' |
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− | ही तैयार करनी चाहिये। खानपान, वित्ताधिकार, किसी
| + | ''हैं - वे बदलने की मन की भी तैयारी नहीं होती है । बदल. सकती है । और “जो देगा उसका भला, नहीं देगा उसका'' |
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− | व्यक्तिविशेष में आसक्ति कम करने का संयमी, शान्त आनंदी, प्रसन्न, अनासक्त होना सबके
| + | ''स्वीकारना भी कठिन हो जाता है कारण वह स्थायी भाव... भी भला' यह धारणा बनती है तो भी उपयुक्त होगी ।'' |
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− | प्रयास करना चाहिये । “अधिकार नहीं परंतु कर्तव्य पूर्ण... साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार उत्तम वृद्धावस्था के लक्षण हैं ।
| + | ''बनता है । आजकल कई संस्थाओं में सहायता की आवश्यकता'' |
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− | निभाना ऐसी कसरत करने का प्रयास प्रौढ़ावस्था में ही सच्चिदानन्द फडके, ७५ वर्ष, नासिक,
| + | ''४. वृद्धावस्था में क्या क्या समस्याएँ निर्माण हो... होती है। अपने अनुभवों का लाभ परिवार के साथ ऐसी'' |
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− | करना चाहिये । सामाजिक कार्यकर्ता
| + | ''सकती है यह तो अभी तक के जीवन में किये हुए निरीक्षण... संस्थाओं को भी मिल सकता है । “समायोजन अधिकतम,'' |
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− | २. कम खाना गम खाना
| + | ''से पता चलता है। अन्य वृद्धों का सुखी-दुःखी जीवन... संघर्ष न्यूनतम' यह स्वीकार कर वृद्धावस्था अपने स्वयं के'' |
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− | इस अवस्था में परिवार में बिना अपेक्षा के बलात्.. कहानी से जीवन तत्त्व उडेल सकते हैं ।
| + | ''देखकर उससे हमने मन की तैयारी करना चाहिये । नैसर्गिक लिए और दूसरों को भी सुसह्य बना सकते हैं ।'' |
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− | अपनी इच्छा न बताना व थोपना उचित रहता है । उम्र का अन्तर अन्य लोगों से (उम्र में छोटों से)
| + | ''रूप से होनेवाला शरीरक्षरण तो हम रोक नहीं सकते अतः प्रेमिलताई , पूर्व प्रमुख संचालिका'' |
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− | १, परिवार के साथ सामंजस्य बैठाना । सबकी इच्छा... घुलने मिलने में अवरोधक बन जाता है ।
| + | ''प्रारंभ से ही स्नेह, सहयोग, संवाद के संस्कार प्रयत्नपूर्वक राष्ट्र सेविका समिति, नागपुर'' |
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− | में अपनी इच्छा समाहित करना चाहिए । १. इस उम्र में अधिक बोलने व बात बात में उपदेश
| + | ''४. आनंदी चिन्तामुक्त वृद्धावस्था'' |
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− | २. पुत्र को काम का जिम्मेदार बनाना तथा अपना... देने की वृत्ति लोगों से दूर ले जाती है ।
| + | ''१, वूद्धावस्था में सर्व प्रथम तो सवस्थ्य बनाये रखना... बनाये रखें, उन्हें सामाजिकता तथा राष्ट्रीयता की भावना'' |
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− | अधिकार छोड़ना चाहिए । २. जिस उम्र में हम जिसे आधार बनाकर आगे बढ़े
| + | ''और दुनियादारी से मुक्त कैसे रहना यह सीखना होता है ।. समझा सकते हैं । ये सब बातें घर में बहू बेटियों को या'' |
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− | ३. घर के कार्य में अपने को जोड़ना ताकि हमारी. हैं उसी पर अड़े रहते है । जबकि नयी पीढ़ी में सभी प्रकार
| + | ''जो बातें अपने बस में नहीं हैं उनके लिये चिंता नहीं करना, ... पास पड़ौस में, उनके पूछने पर अथवा उनका भला चाहते'' |
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− | आवश्यकता दिखती रहे अपने से बड़ों से तथा जिनका... से बहुत परिवर्तन आ चुके हैं हम उस के अनुरूप अपने को
| + | ''स्वादसंयम रखना, जो बीत गया है उसके बारे में नहीं. हुए कोई अपनी बात मानेगा इसकी अपेक्षा न रखते हुए,'' |
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− | गाहस्थ्य जीवन श्रेष्ठ रहा है उन लोगो से सीखना । इस हेतु ढाल नहीं पाते हैं ।
| + | ''सोचना, हमेशां खुश रहना और बिन मांगे सलाह न देना... सिखा सकते हैं । इसमें कई बातें अपने व्यवहार से तथा'' |
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− | सीखने के लिये अपने को छोड़कर जानने का भाव रखना । स्वस्थ रहे इसलिये योग व्यायाम भी करें ।
| + | ''इत्यादि बातें सीखनी होती हैं । यह शिक्षा अपने और अन्यों HS td वार्तालाप के माध्यम से सिखा सकते हैं ।'' |
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− | अब तक के अनुभव के आधार पर जो परिवार में उपयोगी स्वभाविक रूप से परिवार के सब लोग स्नेह व
| + | ''के अनुभव से, कुछ कथायें पढने से, श्रवणभक्ति करने से ३. सिखने सिखाने में मुख्य अवरोध अपने स्वयं के'' |
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− | हैं उसे स्वीकार करते हुए चलना । सम्मान देते है । | + | ''सीखी जाती हैं । मन का ही होता है । बुद्धि तो बराबर आदेश देती है पर'' |
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− | आने वाली पीढ़ी को अपने अनुभव से जीवनपयोगी. १. स्वास्थ्य ठीक है तो अपना कार्य स्वयं कर लेते हैं ।
| + | ''२. बहुत सी बातें सिखा सकते हैं जैसे कि घर में. मन मानता नहीं हैं । अन्यों को सिखाने में कई बार सामने'' |
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− | राह दिखा सकते है । २... परिवार में उपयोगी बने रहना ।
| + | ''कोई नया पदार्थ बनाना हो तो सिखा सकते हैं, किसी की. वाले की अनिच्छा होती है । उन्हें हमारी बातों पर कभी'' |
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− | १. विशेषकर पौत्र पौत्री को क्योंकि इस उम्र में वे... ३... ऐसा व्यवहार कीजिए की हमारी इच्छा परिवार में
| + | ''बीमारी में क्या करना चाहिये यह सिखा सकते हैं, घर में .. कभी विश्वास नहीं होता ऐसा भी हो सकता है । वृद्धावस्था'' |
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− | ज्यादा नजदीक रहते हैं । आज्ञा रूप में स्वीकार हो ।
| + | ''यदि छोटे बच्चें हैं तो उनका संगोपन कैसे करना, उनमें .. के कारण कई बातें हम तत्काल स्वयं के आचरण या'' |
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− | २. समाज के लोगों में अपना अनुभव व ज्ञान बाँटना.... ४... परिवार के सभी लोग हमसे मिलकर सुख प्राप्त करें ।
| + | ''अच्छी आदतें कैसे डालना, इसके अतिरिक्त उन्हें श्लोक, व्यवहार से नहीं सिखा सकते हैं ।'' |
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− | है जो हमारी जीवन की oa 4 का आधार है । नर राधेश्याम शर्मा, सेवा निवृत्त, शिक्षक, कोटा
| + | ''सुभाषित, प्रातःस्मरण, बालगीत आदि सब भी सीखा सकते ४. वृद्धावस्था के लिये प्रौढावस्था के प्रारंभ से ही'' |
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− | ३. पडौंस के बालकों में भी खेल खेल में, कथा
| + | ''हैं, घर के कुलाचार, ब्रतों और उत्सवों को कैसे और क्यों... स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिये । मनःसंयम और'' |
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− | ३. समायोजन अधिकतम संघर्ष
| + | ''मनाना चाहिये यह सीखा सकते हैं । सब से महत्त्वपूर्ण सीख. स्वाद संयम के साथ साथ अलिप्त होने का अभ्यास करते'' |
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− | १, युवा या वृद्धावस्था मन पर निर्भर है । परंतु आप. सहनशीलता, समायोजन की आदत - स्वभाव में
| + | ''तो यह दे सकते हैं कि किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य. रहना चाहिये । घर गृहस्थी से निवृत्त हो कर अपनी रुचि'' |
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− | शारीरिक वृद्धावस्था के संदर्भ में जानना चाहते हैं इसलिए... प्रयत्नपूर्वक परिवर्तन लाना है - स्वयं ही स्वयं का
| + | ''Bsa'' |
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− | वैसा ही उत्तर - हम सब कभी तो वृद्ध बनने वाले है ऐसी... मार्गदर्शक बनना चाहिये । समवयस्कों के साथ खुली
| + | ''............. page-262 .............'' |
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− | मन की तैयारी होगी तो वृद्धावस्था भी सुखकर हो सकती... बातचीत होने से मन हलका होगा इसलिए ऐसे स्वाभाविक
| + | ''भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप'' |
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− | है। मिलन केंद्र निर्माण करना है । औपचारिक सलाह केंद्रों से
| + | ''एवं क्षमता के अनुसार कोई कार्य करते... वृद्धावस्थामें भी हताश अथवा निराश नहीं होना ये उत्तम'' |
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− | वृद्धावस्था में शरीर की कार्यशक्ति स्वाभाविक रूप से... भी वह अधिक परिणामकारक होगा ।
| + | ''रहना चाहिये । सामाजिक कार्य में सहभागी हो कर अपने... वृद्धावस्था के लक्षण हैं ।'' |
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− | कम होती है । दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है अतः संयम, २. वृद्धावस्था में अपना जीवन अनुभव समृद्ध होता
| + | ''परिचितों का दायरा बढ़ाना चाहिये । दमयंती सहस्रभोजनी, ८५ वर्ष, सेवानिवृत्त शिक्षिका,'' |
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− | रस
| + | ''५. ad, चिंतामुक्त और अलिप्त मन तथा अहमदाबाद'' |
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− | ............. page-261 ............. | + | ''५. वृद्धावस्था : आत्मचेतना पाथेय'' |
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− | पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा
| + | ''gent जीवन की परिपक्क अवस्था है । तन वृद्ध हो... कहीं भी बोझ नहीं बनेंगे । वरनू सबका बोझ हलका करने में'' |
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− | है । उसका लाभ युवा पीढ़ी को दे सकते हैं । सहज रूप से... होने चाहिये । परंतु हम वृद्ध होनेवाले
| + | ''जाता है। मन, बुद्धि, हृदय, चित्त और अन्तःकरण में... अपना यथाशक्ति योगदान देते रहेंगे । “आवत ही हरसे नहीं,'' |
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− | - ना की मार्गदर्शक की भूमिका से । कहाँ से दरार हो. हैं, हो गये हैं यह स्वीकार करने की अपने ही मन की
| + | ''परिपक्कता के कारण पारदर्शिता बढ़ती जाती है । अतः... नैनन नहीं सनेह' अर्थात् प्रसन्नतापूर्ण एवं स्नेहपूर्ण आचरण'' |
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− | सकती है यह मालूम होने हेतु आपसी संवाद - सहसंवेदना.... तैयारी नहीं होती है । समायोजन में गड़बड़ हो जाती है ।
| + | ''वृद्धावस्था पारदर्शिता सम्पादनार्थ वरदान है । करेंगे तो वृद्धावस्था आनंदपूर्ण रहेगी । कटुता मन-कर्म-'' |
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− | निर्माण करना आवश्यक है। आदेशकर्ता की भूमिका ५. प्रारंभ से ही लिखना, पढ़ना और आधुनिक
| + | ''जीवन में सहजरूप से जिस कार्यक्रम में गहन अनुभव. वचन से रचनात्मक रूप धारण कर लेगी ।'' |
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− | स्वीकार्य नहीं होगी । तंत्रज्ञान के सहारे अपना समय नियोजन करने से अपने
| + | ''प्राप्त किये हैं वे ही “शिक्षाप्राप्ति' के सर्वश्रेष्ठ साधन हैं । ज्ञान वृद्धावस्था सर्वाधिक लोकोपयोगी हो सकती है।'' |
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− | ३. वृद्धावस्था में जीवन विषयक धारणाएँ पक्की होती. अनुभवों को बाँटने की या स्वीकारने की मानसिकता बन
| + | ''और बोध की प्रक्रिया एक साथ चलती रहती है । नित्य के... रचनात्मकता के संस्कारों से संस्कारित वृद्धावस्था “संस्कृति''' |
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− | हैं - वे बदलने की मन की भी तैयारी नहीं होती है । बदल. सकती है । और “जो देगा उसका भला, नहीं देगा उसका
| + | ''आचरण से हमें बोध और ज्ञान की अनुभूति सहज रूप से... का रूप धारण कर लेती है। 'सुमति कुमति सबके उर'' |
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− | स्वीकारना भी कठिन हो जाता है कारण वह स्थायी भाव... भी भला' यह धारणा बनती है तो भी उपयुक्त होगी ।
| + | ''होती रहती है । धर्म निर्दिष्ट शुद्ध अन्न सेवन से प्राणचेतना... बसहीं' - वृद्धावस्था आत्मसात कर चुकी होती है । अतः'' |
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− | बनता है । आजकल कई संस्थाओं में सहायता की आवश्यकता
| + | ''प्राणवान रहती है जिससे इन्ट्रियबोध यथार्थपरक रहता है ।.. सदा सुमति एवं परहित सेवी धर्म का निर्वाह - हमारा कर्तव्य'' |
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− | ४. वृद्धावस्था में क्या क्या समस्याएँ निर्माण हो... होती है। अपने अनुभवों का लाभ परिवार के साथ ऐसी
| + | ''शब्द, स्पर्श, रूप, गंध एवं रस - इन्द्रिबबोध के तथ्यमूलक है । ऐसी वृद्धावस्था लोकमानस में, सदा श्रद्धापात्र रही है ।'' |
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− | सकती है यह तो अभी तक के जीवन में किये हुए निरीक्षण... संस्थाओं को भी मिल सकता है । “समायोजन अधिकतम,
| + | ''यथार्थपरक भावस्रोत हैं । वृद्धावस्था में कर्मन्ट्रियों की सीमाएं .. आज भी मांगलिक अवसरों पर वृद्धों का आशीर्वाद प्राप्त'' |
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− | से पता चलता है। अन्य वृद्धों का सुखी-दुःखी जीवन... संघर्ष न्यूनतम' यह स्वीकार कर वृद्धावस्था अपने स्वयं के
| + | ''सीमित होती जाती हैं । प्राणतत्त्व, जीव (चेतना) तत्त्व तथा... करने की परंपरा समाज में विद्यमान है । इस सन्दर्भ में'' |
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− | देखकर उससे हमने मन की तैयारी करना चाहिये । नैसर्गिक लिए और दूसरों को भी सुसह्य बना सकते हैं ।
| + | ''आत्मतत्त्व विशेष मुखर होते जाते हैं । चित्त में शिवभाव.... वृद्धावस्था समाज की धरोहर है । सुभाषित सप्तशती की'' |
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− | रूप से होनेवाला शरीरक्षरण तो हम रोक नहीं सकते अतः प्रेमिलताई , पूर्व प्रमुख संचालिका
| + | ''और ज्ञानेन्द्रियों में शक्तिभाव चेतना “मम जीव इह स्थित: भूमिका में उसके संपादक श्री मंगलदेव शास्त्री के सम्बन्ध में'' |
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− | प्रारंभ से ही स्नेह, सहयोग, संवाद के संस्कार प्रयत्नपूर्वक राष्ट्र सेविका समिति, नागपुर
| + | ''तथा “मम सर्वेन्ट्रियाणि वाइमनु चक्षुः श्रोत्र जिह्ना, प्राण... काका कालेलकर लिखते हैं, "उम्र में वृद्ध होते हुए भी शरीर'' |
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− | ४. आनंदी चिन्तामुक्त वृद्धावस्था
| + | ''पाणादि पायपस्थानि' - सुप्रतिष्ठित एवं सुवरदानमय रहें ! - ... से आपादमस्तक तरुण दीख पड़ते हैं । वेदों का गहन'' |
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− | १, वूद्धावस्था में सर्व प्रथम तो सवस्थ्य बनाये रखना... बनाये रखें, उन्हें सामाजिकता तथा राष्ट्रीयता की भावना
| + | ''नित्य संकल्प करने से “अमोघ शक्ति' प्राप्त होती है । इसी से... अध्ययन करते हुए भी उनमें जड़ता नहीं आई हैं ।'' |
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− | और दुनियादारी से मुक्त कैसे रहना यह सीखना होता है ।. समझा सकते हैं । ये सब बातें घर में बहू बेटियों को या | + | ''मन उन्मेषक, परिष्कृत और यथार्थ उन्मुख होता है और वृद्धावस्था को सुवासमय रखने हेतु सांस्कृतिक,'' |
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− | जो बातें अपने बस में नहीं हैं उनके लिये चिंता नहीं करना, ... पास पड़ौस में, उनके पूछने पर अथवा उनका भला चाहते
| + | ''उसकी निश्चयात्मकता स्वतः दूढ होती जाती है । सामाजिक, शैक्षिक, सेवाकीय, साहित्यिक, चिन्तनपरक...'' |
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− | स्वादसंयम रखना, जो बीत गया है उसके बारे में नहीं. हुए कोई अपनी बात मानेगा इसकी अपेक्षा न रखते हुए,
| + | ''वृद्धावस्था में अन्तिम सांस तक स्वाश्रयीजीवन और संस्थाओं की गतिविधियों में अपनी तन-मन-धन की'' |
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− | सोचना, हमेशां खुश रहना और बिन मांगे सलाह न देना... सिखा सकते हैं । इसमें कई बातें अपने व्यवहार से तथा
| + | ''दायित्वबोध चेतना आवश्यक है । गंगा की तरह नित्य. शक्तियों का विनियोग दायित्वबोध के साथ करना श्रेष्ठ धर्म'' |
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− | इत्यादि बातें सीखनी होती हैं । यह शिक्षा अपने और अन्यों HS td वार्तालाप के माध्यम से सिखा सकते हैं ।
| + | ''प्रवहमान और बदलते युग परिवेश में अपनी पहचान. है । अधर्म, अन्याय, अनीति एवं मानवताविरोधी प्रवृत्तियों'' |
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− | के अनुभव से, कुछ कथायें पढने से, श्रवणभक्ति करने से ३. सिखने सिखाने में मुख्य अवरोध अपने स्वयं के | + | ''संस्कृतिमूलकता के साथ बनी रहे यह आवश्यक है । किसी... के विरुद्ध आवाज उठाना और रचनात्मक भूमिका का निर्वाह'' |
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− | सीखी जाती हैं । मन का ही होता है । बुद्धि तो बराबर आदेश देती है पर
| + | ''पर भी हम उपदेश का बोझ न लादें । मात्र विशुद्ध आचरण. करना वृूद्धावस्था का इष्टध्येय बना रहना चाहिये । वृद्धावस्था'' |
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− | २. बहुत सी बातें सिखा सकते हैं जैसे कि घर में. मन मानता नहीं हैं । अन्यों को सिखाने में कई बार सामने
| + | ''की सुवास पुष्प की तरह बिखेरते रहें । सार्वजनिक जीवन में... को सम्माननीय स्थान देने हेतु जीवन में सतत अध्ययन,'' |
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− | कोई नया पदार्थ बनाना हो तो सिखा सकते हैं, किसी की. वाले की अनिच्छा होती है । उन्हें हमारी बातों पर कभी
| + | ''कार्यरत रहने से आचरण के साबुन से युग का मैल स्वतः. चिन्तन, मनन करते हुए स्व-क्षमतानुसार सार्वजनिक सेवा'' |
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− | बीमारी में क्या करना चाहिये यह सिखा सकते हैं, घर में .. कभी विश्वास नहीं होता ऐसा भी हो सकता है । वृद्धावस्था
| + | ''धुलता जाएगा । हाँ, भौतिकता की अपेक्षा आन्तरिक समृद्धि... कार्यों में यथाशक्ति योगदान देते हुए जीवनमूल्यों के संवर्धन'' |
| | | |
− | यदि छोटे बच्चें हैं तो उनका संगोपन कैसे करना, उनमें .. के कारण कई बातें हम तत्काल स्वयं के आचरण या
| + | ''के जीवनदीप का टिमटिमाता रहना अपेक्षित है । फलतः हम... में समर्पित रहें ।'' |
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− | अच्छी आदतें कैसे डालना, इसके अतिरिक्त उन्हें श्लोक, व्यवहार से नहीं सिखा सकते हैं ।
| + | ''२४६'' |
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− | सुभाषित, प्रातःस्मरण, बालगीत आदि सब भी सीखा सकते ४. वृद्धावस्था के लिये प्रौढावस्था के प्रारंभ से ही
| + | ''............. page-263 .............'' |
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− | हैं, घर के कुलाचार, ब्रतों और उत्सवों को कैसे और क्यों... स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिये । मनःसंयम और
| + | ''पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा'' |
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− | मनाना चाहिये यह सीखा सकते हैं । सब से महत्त्वपूर्ण सीख. स्वाद संयम के साथ साथ अलिप्त होने का अभ्यास करते
| + | ''कायरता, स्वार्थपरता, दैववादिता, मृत्यु भीरूता.. समाज को सुधारना होगा ।' परमहंसजी'' |
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− | तो यह दे सकते हैं कि किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य. रहना चाहिये । घर गृहस्थी से निवृत्त हो कर अपनी रुचि
| + | ''मिथ्या वैराग्य आदि ख््रैणता में ढकेलते हैं । पुरुषार्थ को क्षीण ने तुरन्त कहा, सुधारना हमारा काम नहीं । हमारा धर्म है -'' |
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− | Bsa
| + | ''करते हैं । सदा आत्मविश्वास, स्वावलम्बन, चरित्रउत्कर्ष, ... सेवा करना । सेवा धर्मपालन से हृदय पावन, आत्मा'' |
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− | ............. page-262 ............. | + | ''मानवता का सम्मान, श्रद्धाभाव, कर्तव्यपरायणता, श्रम और... प्रफुछ्लित और मन निष्कलुष होने से परमात्मा की निकटता'' |
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| + | ''तपस्या द्वारा उत्कर्ष उन्मुख रहने से उदात्तभाव स्वतः आते... बढ़ती है । आचरणमूलक सेवाधर्म प्रेरक होता है । श्री'' |
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− | एवं क्षमता के अनुसार कोई कार्य करते... वृद्धावस्थामें भी हताश अथवा निराश नहीं होना ये उत्तम
| + | ''जाते हैं । ये भारतीय संस्कृति के ये बीजतत्त्व हैं । इन्हीं के. परमहंसजी का एक दूसरा प्रसंग अनुकरणीय है । एक व्यक्ति'' |
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− | रहना चाहिये । सामाजिक कार्य में सहभागी हो कर अपने... वृद्धावस्था के लक्षण हैं ।
| + | ''ट्वारा उत्कर्ष और कल्याण का विस्तार होता है । ने परमहंसजी को पूछा, “साधुपुरुष के लक्षण क्या हैं ?''' |
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− | परिचितों का दायरा बढ़ाना चाहिये । दमयंती सहस्रभोजनी, ८५ वर्ष, सेवानिवृत्त शिक्षिका,
| + | ''वृद्धावस्था का गन्तव्य है : वसुधैव कुट्म्बकम् । जहाँ... परमहंसजीने कहा, “Teel sar दो ।' उसने कहा, “जो मिला'' |
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− | ५. ad, चिंतामुक्त और अलिप्त मन तथा अहमदाबाद
| + | ''प्रकृति भिन्नता, परिवेश-भिन्नता, अवस्था-भिन्नता, जाति, 9 खा लिया, न मिला तो सह लिया ।' श्रीरामकृष्ण परमहंस ने'' |
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− | ५. वृद्धावस्था : आत्मचेतना पाथेय
| + | ''धर्म, वर्ण, प्रदेश, भाषा आदि की भिन्नताएँ मानवता के. कहा, ये लक्षण तो कुत्ते के हैं । साधुपुरुष का लक्षण है'' |
| | | |
− | gent जीवन की परिपक्क अवस्था है । तन वृद्ध हो... कहीं भी बोझ नहीं बनेंगे । वरनू सबका बोझ हलका करने में
| + | ''समुद्र में संस्कृति की गंगा में समा जाती है । फलतः कुंठित = बाँटकर खाना, न बचे तो सन्तोष मानना ।'. यही'' |
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− | जाता है। मन, बुद्धि, हृदय, चित्त और अन्तःकरण में... अपना यथाशक्ति योगदान देते रहेंगे । “आवत ही हरसे नहीं,
| + | ''मानसिकता के satel से ऊपर उठने का राजमार्ग है... आत्मचेतना जीवन का पाथेय है ।'' |
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− | परिपक्कता के कारण पारदर्शिता बढ़ती जाती है । अतः... नैनन नहीं सनेह' अर्थात् प्रसन्नतापूर्ण एवं स्नेहपूर्ण आचरण
| + | ''<nowiki>*</nowiki>सेवाधर्म' को आत्मसात करना । इस सन्दर्भ में श्री रामकृष्ण डॉ. घनानन्द शर्मा 'जदली', ८१ वर्ष,'' |
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− | वृद्धावस्था पारदर्शिता सम्पादनार्थ वरदान है । करेंगे तो वृद्धावस्था आनंदपूर्ण रहेगी । कटुता मन-कर्म-
| + | ''परमहंस को एक व्यक्ति ने अपना अभिप्राय दिया, 'हमें सेवानिवृत्त प्राध्यापक, ज्योतिषाचार्य, अहमदाबाद'' |
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− | जीवन में सहजरूप से जिस कार्यक्रम में गहन अनुभव. वचन से रचनात्मक रूप धारण कर लेगी ।
| + | ''६. वृद्धावस्था सम्बन्धी विचार'' |
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− | प्राप्त किये हैं वे ही “शिक्षाप्राप्ति' के सर्वश्रेष्ठ साधन हैं । ज्ञान वृद्धावस्था सर्वाधिक लोकोपयोगी हो सकती है।
| + | ''१. वृद्धावस्था में स्वस्थ, व्यस्त और मस्त रहना... का सफल अभ्यास करना चाहिए, सुखदू वृद्धावस्था के'' |
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− | और बोध की प्रक्रिया एक साथ चलती रहती है । नित्य के... रचनात्मकता के संस्कारों से संस्कारित वृद्धावस्था “संस्कृति'
| + | ''सीखना चाहिए । यह शिक्षा वृद्धों को समाज के श्रेष्ठजनों के. लिए ।'' |
| | | |
− | आचरण से हमें बोध और ज्ञान की अनुभूति सहज रूप से... का रूप धारण कर लेती है। 'सुमति कुमति सबके उर
| + | ''अनुसरण और श्रीमटदू भगवदूगीता “योगदर्शन' जैसे ५. उत्तम वृद्धावस्था के लक्षण'' |
| | | |
− | होती रहती है । धर्म निर्दिष्ट शुद्ध अन्न सेवन से प्राणचेतना... बसहीं' - वृद्धावस्था आत्मसात कर चुकी होती है । अतः | + | ''आध्यात्मिक ग्रंथों के गहन अनुशीलन से प्राप्त होती हैं । 2. सदा दिवाली संत की बारहमास बसन्त ।'' |
| | | |
− | प्राणवान रहती है जिससे इन्ट्रियबोध यथार्थपरक रहता है ।.. सदा सुमति एवं परहित सेवी धर्म का निर्वाह - हमारा कर्तव्य
| + | ''२. वृद्धावस्था में ज्ञान-विज्ञान, अव्यभिचारिणी बुद्धि, २... रामझरोखा बैठकर, सबका मुजरा ले ।'' |
| | | |
− | शब्द, स्पर्श, रूप, गंध एवं रस - इन्द्रिबबोध के तथ्यमूलक है । ऐसी वृद्धावस्था लोकमानस में, सदा श्रद्धापात्र रही है ।
| + | ''भक्ति भावना और स्वधर्म का पालन करना, अपने al prea दोस्ती, ना काहसे बैर ॥।'' |
| | | |
− | यथार्थपरक भावस्रोत हैं । वृद्धावस्था में कर्मन्ट्रियों की सीमाएं .. आज भी मांगलिक अवसरों पर वृद्धों का आशीर्वाद प्राप्त
| + | ''आत्मजनों को अभ्यास और वैराग्य द्वारा सिखा सकते हैं । ३... सुखी व्यक्ति से मैत्री रखना, दुःखी के प्रति'' |
| | | |
− | सीमित होती जाती हैं । प्राणतत्त्व, जीव (चेतना) तत्त्व तथा... करने की परंपरा समाज में विद्यमान है । इस सन्दर्भ में
| + | ''३. वृद्धावस्था को सीखने और सिखाने में मुख्य करुणा, पुण्यात्मा के प्रति प्रसन्नता और पापी'' |
| | | |
− | आत्मतत्त्व विशेष मुखर होते जाते हैं । चित्त में शिवभाव.... वृद्धावस्था समाज की धरोहर है । सुभाषित सप्तशती की
| + | ''अवरोध आते हैं, राजसी और तामसी वृत्ति । के प्रति उपेक्षा भाव रखना ।'' |
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− | और ज्ञानेन्द्रियों में शक्तिभाव चेतना “मम जीव इह स्थित: भूमिका में उसके संपादक श्री मंगलदेव शास्त्री के सम्बन्ध में
| + | ''४. प्रौढ़ावस्था में हमें वानप्रस्थ धर्म का दूढतापूर्वक'' |
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− | तथा “मम सर्वेन्ट्रियाणि वाइमनु चक्षुः श्रोत्र जिह्ना, प्राण... काका कालेलकर लिखते हैं, "उम्र में वृद्ध होते हुए भी शरीर
| + | ''ट पौराणिक, ८३ वर्ष, सेवानिवृत्त , उज्जैन'' |
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− | पाणादि पायपस्थानि' - सुप्रतिष्ठित एवं सुवरदानमय रहें ! - ... से आपादमस्तक तरुण दीख पड़ते हैं । वेदों का गहन
| + | ''पालन करना, चित्तवृत्ति निरोध की दक्षता और स्वधर्मपालन रामकृष्ण पौराणिक, ८३ वर्ष, सेवानिवृत्त शिक्षक, उजैन'' |
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− | नित्य संकल्प करने से “अमोघ शक्ति' प्राप्त होती है । इसी से... अध्ययन करते हुए भी उनमें जड़ता नहीं आई हैं ।
| + | ''७. मुमुक्षु-वद्धावस्था'' |
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− | मन उन्मेषक, परिष्कृत और यथार्थ उन्मुख होता है और वृद्धावस्था को सुवासमय रखने हेतु सांस्कृतिक,
| + | भारतीय संस्कृति में ऊमर में छोटे लोग अपने से बड़ों को प्रणाम करते हैं, उस समय बड़े लोग उनको आशीर्वाद देते हैं<ref>काका जोशी, ८० वर्ष, सेवा निवृत्त शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, अकोला</ref>। |
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− | उसकी निश्चयात्मकता स्वतः दूढ होती जाती है । सामाजिक, शैक्षिक, सेवाकीय, साहित्यिक, चिन्तनपरक...
| + | ''... की आवश्यकता होती है । इसलिये आयुष्यमान भव इस'' |
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− | वृद्धावस्था में अन्तिम सांस तक स्वाश्रयीजीवन और संस्थाओं की गतिविधियों में अपनी तन-मन-धन की
| + | ''.. आशीर्वाद का सबसे अधिक महत्त्व है। संस्कृति'' |
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− | दायित्वबोध चेतना आवश्यक है । गंगा की तरह नित्य. शक्तियों का विनियोग दायित्वबोध के साथ करना श्रेष्ठ धर्म
| + | ''उसमें सर्वप्रथम “आयुष्यमान भव' यह आशीर्वाद... धारणेनुसार “आयुर्भवति पुरुष:' ऐसा कहा गया है । जीवन'' |
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− | प्रवहमान और बदलते युग परिवेश में अपनी पहचान. है । अधर्म, अन्याय, अनीति एवं मानवताविरोधी प्रवृत्तियों
| + | ''देकर बादमें गुणवान भव, धनवान भव, कीर्तिवान भव ऐसे... सौ साल का मानकर पच्चीस साल का एक, ऐसे चार'' |
| | | |
− | संस्कृतिमूलकता के साथ बनी रहे यह आवश्यक है । किसी... के विरुद्ध आवाज उठाना और रचनात्मक भूमिका का निर्वाह
| + | ''आशीर्वाद देते हैं । व्यक्ति को पुरुषार्थ करने के लिये जीवन... आश्रम माने गये हैं । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यस्त ।'' |
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− | पर भी हम उपदेश का बोझ न लादें । मात्र विशुद्ध आचरण. करना वृूद्धावस्था का इष्टध्येय बना रहना चाहिये । वृद्धावस्था
| + | ''२४७'' |
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− | की सुवास पुष्प की तरह बिखेरते रहें । सार्वजनिक जीवन में... को सम्माननीय स्थान देने हेतु जीवन में सतत अध्ययन,
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− | कार्यरत रहने से आचरण के साबुन से युग का मैल स्वतः. चिन्तन, मनन करते हुए स्व-क्षमतानुसार सार्वजनिक सेवा
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− | धुलता जाएगा । हाँ, भौतिकता की अपेक्षा आन्तरिक समृद्धि... कार्यों में यथाशक्ति योगदान देते हुए जीवनमूल्यों के संवर्धन
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− | के जीवनदीप का टिमटिमाता रहना अपेक्षित है । फलतः हम... में समर्पित रहें ।
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− | पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा
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− | कायरता, स्वार्थपरता, दैववादिता, मृत्यु भीरूता.. समाज को सुधारना होगा ।' परमहंसजी
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− | मिथ्या वैराग्य आदि ख््रैणता में ढकेलते हैं । पुरुषार्थ को क्षीण ने तुरन्त कहा, सुधारना हमारा काम नहीं । हमारा धर्म है -
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− | करते हैं । सदा आत्मविश्वास, स्वावलम्बन, चरित्रउत्कर्ष, ... सेवा करना । सेवा धर्मपालन से हृदय पावन, आत्मा
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− | मानवता का सम्मान, श्रद्धाभाव, कर्तव्यपरायणता, श्रम और... प्रफुछ्लित और मन निष्कलुष होने से परमात्मा की निकटता
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− | तपस्या द्वारा उत्कर्ष उन्मुख रहने से उदात्तभाव स्वतः आते... बढ़ती है । आचरणमूलक सेवाधर्म प्रेरक होता है । श्री
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− | जाते हैं । ये भारतीय संस्कृति के ये बीजतत्त्व हैं । इन्हीं के. परमहंसजी का एक दूसरा प्रसंग अनुकरणीय है । एक व्यक्ति
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− | ट्वारा उत्कर्ष और कल्याण का विस्तार होता है । ने परमहंसजी को पूछा, “साधुपुरुष के लक्षण क्या हैं ?'
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− | वृद्धावस्था का गन्तव्य है : वसुधैव कुट्म्बकम् । जहाँ... परमहंसजीने कहा, “Teel sar दो ।' उसने कहा, “जो मिला
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− | प्रकृति भिन्नता, परिवेश-भिन्नता, अवस्था-भिन्नता, जाति, 9 खा लिया, न मिला तो सह लिया ।' श्रीरामकृष्ण परमहंस ने
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− | धर्म, वर्ण, प्रदेश, भाषा आदि की भिन्नताएँ मानवता के. कहा, ये लक्षण तो कुत्ते के हैं । साधुपुरुष का लक्षण है
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− | समुद्र में संस्कृति की गंगा में समा जाती है । फलतः कुंठित = बाँटकर खाना, न बचे तो सन्तोष मानना ।'. यही
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− | मानसिकता के satel से ऊपर उठने का राजमार्ग है... आत्मचेतना जीवन का पाथेय है ।
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− | <nowiki>*</nowiki>सेवाधर्म' को आत्मसात करना । इस सन्दर्भ में श्री रामकृष्ण डॉ. घनानन्द शर्मा 'जदली', ८१ वर्ष,
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− | परमहंस को एक व्यक्ति ने अपना अभिप्राय दिया, 'हमें सेवानिवृत्त प्राध्यापक, ज्योतिषाचार्य, अहमदाबाद
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− | ६. वृद्धावस्था सम्बन्धी विचार
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− | १. वृद्धावस्था में स्वस्थ, व्यस्त और मस्त रहना... का सफल अभ्यास करना चाहिए, सुखदू वृद्धावस्था के
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− | सीखना चाहिए । यह शिक्षा वृद्धों को समाज के श्रेष्ठजनों के. लिए ।
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− | अनुसरण और श्रीमटदू भगवदूगीता “योगदर्शन' जैसे ५. उत्तम वृद्धावस्था के लक्षण
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− | आध्यात्मिक ग्रंथों के गहन अनुशीलन से प्राप्त होती हैं । 2. सदा दिवाली संत की बारहमास बसन्त ।
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− | २. वृद्धावस्था में ज्ञान-विज्ञान, अव्यभिचारिणी बुद्धि, २... रामझरोखा बैठकर, सबका मुजरा ले ।
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− | भक्ति भावना और स्वधर्म का पालन करना, अपने al prea दोस्ती, ना काहसे बैर ॥।
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− | आत्मजनों को अभ्यास और वैराग्य द्वारा सिखा सकते हैं । ३... सुखी व्यक्ति से मैत्री रखना, दुःखी के प्रति
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− | ३. वृद्धावस्था को सीखने और सिखाने में मुख्य करुणा, पुण्यात्मा के प्रति प्रसन्नता और पापी
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− | अवरोध आते हैं, राजसी और तामसी वृत्ति । के प्रति उपेक्षा भाव रखना ।
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− | ४. प्रौढ़ावस्था में हमें वानप्रस्थ धर्म का दूढतापूर्वक
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− | ट पौराणिक, ८३ वर्ष, सेवानिवृत्त , उज्जैन
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− | पालन करना, चित्तवृत्ति निरोध की दक्षता और स्वधर्मपालन रामकृष्ण पौराणिक, ८३ वर्ष, सेवानिवृत्त शिक्षक, उजैन
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− | ७. मुमुक्षु-वद्धावस्था
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− | भारतीय संस्कृति में ऊमर में छोटे लोग अपने से बड़ों... की आवश्यकता होती है । इसलिये आयुष्यमान भव इस
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− | को प्रणाम करते हैं, उस समय बड़े लोग उनको आशीर्वाद... आशीर्वाद का सबसे अधिक महत्त्व है। संस्कृति
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− | देते हैं । उसमें सर्वप्रथम “आयुष्यमान भव' यह आशीर्वाद... धारणेनुसार “आयुर्भवति पुरुष:' ऐसा कहा गया है । जीवन
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− | देकर बादमें गुणवान भव, धनवान भव, कीर्तिवान भव ऐसे... सौ साल का मानकर पच्चीस साल का एक, ऐसे चार
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− | आशीर्वाद देते हैं । व्यक्ति को पुरुषार्थ करने के लिये जीवन... आश्रम माने गये हैं । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यस्त ।
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− | इन आश्रम मे प्रथम ब्रह्मचर्याश्रम मे
| + | वानप्रस्थ आश्रम के आखिरी दस साल और संन्यासाश्रम के पच्चीस साल को अनेक चिंतकों के मतानुसार वृद्धावस्था की संज्ञा दी गई है । सभी अवस्थाओं में यह आखिरी अवस्था जीवन का सबसे बड़ा कालखण्ड है। वृद्धावस्था के बिना बाकी सभी अवस्थाओं का अन्त है। सिर्फ वृद्धावस्था में जीवन ही समाप्त होता है । इसलिये वृद्धावस्था जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवस्था है । इस अवस्था के पूर्व व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थों को यशस्वी पद्धती से पूर्ण करता है । हमारी संस्कति के अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्षप्राप्ति है । इस अवस्था में मोक्ष प्राप्त करना अपेक्षित है । जगदूगुरु शंकराचार्य कहते हैं “ज्ञानविहिना सर्वमतेन । मुक्ति्नभवति जन्मशतेन' अर्थात् मोक्षप्राप्त के लिये ज्ञान की आवश्यकता है । ज्ञान के लिये शिक्षा आवश्यक है । |
− | | + | # वृद्धावस्था में व्यक्ति को क्या सीखना है, इसकी शिक्षा मिलना आवश्यक है । मोक्ष याने जीवन समाप्ति के बाद की अवस्था नहीं है, अपितु जीवन में ही यह अवस्था प्राप्त करना आवश्यक है । इस अवस्था में क्रियाशील नहीं, केवल कर्तव्यशील होना आवश्यक है। कुटुम्ब तथा समाज में पूरा जीवन बिताते समय जो ज्ञान और अनुभव मिलता है उसका लाभ बाकी सारे लोगों को कैसे हो सकता है यह मानसिकता आवश्यक होती है । कुटुम्ब और समाज में कमलदल समान जीवन बिताना आना चाहिये । यही बात सीखनी चाहिये । अपने पास जो ज्ञान है वह स्वेच्छा से लोगों को देना, वह भी अलिप्त होकर ऐसा व्यवहार आवश्यक है । प्राचीन काल में वानप्रस्थ में सभी लोग वन मे जाकर रहते थे । संन्यासाश्रममें प्रवास करते हुए समाज को अपने अनुभव तथा ज्ञानभण्डार का फायदा कैसे होगा इस का विचार करते थे । आज यह बात नहीं हो सकती फिर भी तत्वतः समाज में रहकर संन्यस्त वृत्ति धारण करना और दूसरों के लिये जीवन जीना, उसके लिये आवश्यक शिक्षा लेना जरुरी है । |
− | शिशु, बाल, किशोर, तरुण में गृहस्थाश्रम वानप्रस्थ में
| + | # वृद्धावस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपने संपर्क में आये सभी व्यक्तियों को अपने पास जो ज्ञान है वह उन्हें देने का प्रयत्न करे । अनुभव संपन्नता और ज्ञान संपन्नता का समाज के लिये उपयोग हो ऐसा अपना व्यवहार एवं आचरण रखे । सभी लोग इस आचरण, अवलोकन कर के स्वयं सीखेंगे । संपर्क के व्यक्तियों को बोलकर सिखाने की आवश्यकता नहीं । |
− | | + | # वृद्धावस्था में शरीर की ज्ञानेन्द्रियाँ एवं कर्मेंद्रियां क्षीण होती हैं । परन्तु बुद्धि तथा आत्मा का बल बना रहता है । इसलिये वृद्ध एवं उनके संपर्क में आनेवालों के बीच “स्व' की बाधा हो सकती है । दोनों के अहम् का टकराव हो सकता है । इस टकराव से वृद्धों को बचना चाहिये । |
− | प्रौदअवस्था होती है । इस आश्रम के आखरी दस साल
| + | # गृहस्थाश्रम में जीवन व्यतीत करने के लिये शरीर, मन, बुद्धि का विकास करके सुचारुरूप से गृहस्थाश्रमी का जीवन व्यतीत होता है । उसी तरह जीवन व्यतीत करने के लिये वृद्धावस्था में उससे भी अधिक ज्ञानप्राप्त करना आवश्यक है । इस अंतिम अवस्था में व्यक्तिगत जीवन समाप्त होता है, और कुटंब और समाज में रहते समय मनमें अलिप्तता की भावना होना आवश्यक है । मृत्यु अटल सत्य है, मृत्यु तिथि किसी को ज्ञात नहीं होती इसलिये इस अवस्था में धर्माचरण करके वृक्ष का पका फल जैसे वृक्ष को छोड़ता वैसे ही जीवन समाप्त हो, इस प्रकार का जीवन व्यतीत करना आवश्यक है । |
− | | + | # वृद्धावस्था में अपना व्यवहार किसी को कष्टदायक न हो एवं स्वयं को समाधान मिले ऐसा हो । मृत्यु को किसी भी समय आनंद से स्वीकार ने की अवस्था बने यह इष्ट है । अङ्गम् गलितम् पलितम् मुण्डम् दशन-विहीनम् जातम् तुण्डम् वृद्ध: याति गृहीत्वा दण्डम् तत्अपि न मुञ्चति आशा-पिण्डम्<ref>आदिशंकराचार्य द्वारा विरचित “चर्पटपञ्जरिकास्तोत्रम्, छंद ६</ref>। ऐसी अवस्था न होना यह उत्तम वृद्धावस्था के लक्षण है । |
− | और संन्यासाश्रम के पच्चीस साल को अनेक चिंतकों के | |
− | | |
− | मतानुसार वृद्धावस्था की संज्ञा दी गई है । सभी अवस्थाओं | |
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− | में यह आखरी अवस्था जीवन का सबसे बड़ा कालखण्ड | |
− | | |
− | है । वृद्धावस्था के बिना बाकी सभी अवस्थाओं का अन्त
| |
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− | है । सिर्फ वृद्धावस्था में जीवन ही समाप्त होता है । इसलिये
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− | | |
− | वृद्धावस्था जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवस्था है । | |
− | | |
− | इस अवस्था के पूर्व व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम ये | |
− | | |
− | पुरुषार्थों को यशस्वी पद्धती से पूर्ण करता है । हमारी | |
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− | संस्कति के अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्षप्राप्ति है । | |
− | | |
− | इस अवस्था में मोक्ष प्राप्त करना अपेक्षित है । जगदूगुरु | |
− | | |
− | शंकराचार्य कहते हैं | |
− | | |
− | “ज्ञानविहिना सर्वमतेन । मुक्ति्नभवति जन्मशतेन' | |
− | | |
− | अर्थात् मोक्षप्राप्त के लिये ज्ञान की आवश्यकता है । | |
− | | |
− | ज्ञान के लिये शिक्षा आवश्यक है । | |
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− | १, चृद्धावस्था में व्यक्ति ने क्या सिखना इसकी शिक्षा
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− | | |
− | मिलना इस अवस्था में आवश्यक है । मोक्ष याने | |
− | | |
− | जीवन समाप्ति के बाद की अवस्था नहीं है तो जीवन | |
− | | |
− | में ही यह अवस्था प्राप्त करना आवश्यक है । इस | |
− | | |
− | अवस्था में क्रियाशील नहीं तो केवल कर्तव्यशील | |
− | | |
− | होना आवश्यक है। कुट्म्ब तथा समाज में पूरा | |
− | | |
− | जीवन बिताते समय जो ज्ञान और अनुभव मिलता है | |
− | | |
− | उसका लाभ बाकी सारे लोगों को कैसे हो सकता है | |
− | | |
− | यह मानसिकता आवश्यक होती है । कुटुंब और | |
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− | समाज में कमलदलसमान जीवन बिताना आना | |
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− | चाहिये । यही बात सीखनी चाहिये । अपने पास जो | |
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− | ज्ञान है वह स्वेच्छा से लोगों को देना, वह भी | |
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− | अलिप्त होकर ऐसा व्यवहार आवश्यक है । प्राचीन | |
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− | काल में वानप्रस्थ में सभी लोग वन मे जाकर रहते | |
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− | थे । संन्यासाश्रममें प्रवास करते हुए समाज को अपने | |
− | | |
− | अनुभव तथा ज्ञानभण्डार का फायदा कैसे होगा इस | |
− | | |
− | का विचार करते थे । आज यह बात नहीं हो सकती | |
− | | |
− | फिर भी तत्वतः समाज में रहकर संन्यस्त वृत्ति धारण | |
− | | |
− | रढ४८
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− | | |
− | करना और दूसरों के लिये जीवन जीना, उसके लिये | |
− | | |
− | आवश्यक शिक्षा लेना जरुरी है । | |
− | | |
− | वृद्धावस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपने संपर्क में आये सभी | |
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− | व्यक्तियों को अपने पास जो ज्ञान है वह उन्हें देने का | |
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− | प्रयत्न करे । अनुभव संपन्नता और ज्ञान संपन्नता का | |
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− | समाज के लिये उपयोग हो ऐसा अपना व्यवहार एवं | |
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− | आचरण रखे । सभी लोग इस आचरण, अवलोकन | |
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− | कर के स्वयं सीखेंगे । संपर्क के व्यक्तियों को बोलकर | |
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− | सिखाने की आवश्यकता नहीं । | |
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− | वृद्धावस्था में शरीर की ज्ञानेन्ट्रियाँ एवं कर्मन्ट्रियाँ | |
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− | क्षीण होती हैं । परन्तु बुद्धि तथा आत्मा का बल बना | |
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− | रहता है । इसलिये वृद्ध एवं उनके संपर्क में आनेवालों | |
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− | के बीच “स्व' की बाधा हो सकती है । दोनों के आह | |
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− | का टकराव हो सकता है । इस टकराव से वृद्धों को | |
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− | बचना चाहिये । | |
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− | गृहस्थाश्रम में जीवन व्यतीत करने के लिये शरीर, | |
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− | मन, बुद्धि का विकास करके सुचारुरूप से गृहस्थाश्रमी | |
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− | का जीवन व्यतीत होता है । उसी तरह जीवन व्यतीत | |
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− | करने के लिये वृद्धावस्था में उससे भी अधिक | |
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− | ज्ञानप्राप्त करना आवश्यक है इस अंतिम अवस्था में | |
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− | व्यक्तिगत जीवन समाप्त होता है, और कुटंब और | |
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− | समाज में रहते समय मनमें अलिप्तता की भावना होना | |
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− | आवश्यक है । मृत्यु अटल सत्य है, मृत्यु तिथि किसी | |
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− | को ज्ञात नहीं होती इसलिये इस अवस्था में धर्माचरण | |
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− | करके वृक्ष का पका फल जैसे वृक्ष को छोड़ता वैसे ही | |
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− | जीवन समाप्त हो, इस प्रकार का जीवन व्यतीत करना | |
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− | आवश्यक है । | |
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− | वृद्धावस्था में अपना व्यवहार किसी को कशष्टदायक न | |
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− | हो एवं स्वयं को समाधान मिले ऐसा हो । मृत्यु को | |
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− | किसी भी समय आनंद से स्वीकार ने की अवस्था बने | |
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− | यह इष्ट है । अंगमू गलितम् । पलित॑ मुण्डम्ू । दशन | |
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− | विहिन॑ जात॑ तुण्डमू । वृद्धोयाति गृहित्वा दण्डम् ।
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− | तदपि न मुंच्यति आशा पिण्डमू । ऐसी अवस्था न
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− | होना यह उत्तम वृद्धावस्था के लक्षण है । | |
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− | काका जोशी, ८० वर्ष, सेवा निवृत्त शिक्षक,
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− | सामाजिक कार्यकर्ता, अकोला
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| ==References== | | ==References== |