Line 3: |
Line 3: |
| समाज का व्यवहार नित्य गतिमान प्रवाह की तरह होता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। वह अनेक बातों से प्रभावित होता है। परिणामस्वरूप उसमें परिवर्तन भी होता रहता है। यह परिवर्तन सही दिशा में हो या गलत दिशा में यह उसे प्रभावित करने वाले तत्त्वों पर निर्भर करता है क्योंकि सर्वसामान्य लोग “महाजनो येन गतः सः पन्थाः॥<ref>महाभारत, वन पर्व 3.13.315, यक्ष प्रश्न</ref>" स्वभाव वाले होते हैं । कब कौन महाजन हो जायेगा इसकी निश्चिति कुछ कम ही होती है । | | समाज का व्यवहार नित्य गतिमान प्रवाह की तरह होता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। वह अनेक बातों से प्रभावित होता है। परिणामस्वरूप उसमें परिवर्तन भी होता रहता है। यह परिवर्तन सही दिशा में हो या गलत दिशा में यह उसे प्रभावित करने वाले तत्त्वों पर निर्भर करता है क्योंकि सर्वसामान्य लोग “महाजनो येन गतः सः पन्थाः॥<ref>महाभारत, वन पर्व 3.13.315, यक्ष प्रश्न</ref>" स्वभाव वाले होते हैं । कब कौन महाजन हो जायेगा इसकी निश्चिति कुछ कम ही होती है । |
| | | |
− | ''वैसे भी मन का स्वभाव पानी जैसा होता है । पानी . परन्तु उसकी गति बहुत धीमी रहती''
| + | वैसे भी मन का स्वभाव पानी जैसा होता है। पानी के समान वह नीचे की ओर अधिक सरलता से बहता है, ऊपर की ओर ले जाने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा लगानी होती है । हम वर्तमान स्थिति को ही लें । प्रसार माध्यम आज बहुत प्रभावी बन गये हैं। इन्हें प्रचार माध्यम कहना भी अनुपयुक्त नहीं होगा | इन प्रचार माध्यमों में जो विज्ञापन आते हैं वे लोकमानस को बहुत प्रभावित करते हैं। लोगों का अर्थव्यवहार उनके ही हाथों में चला गया है। तात्पर्य यह है कि लोक को प्रभावित करने का कार्य बुद्धि से अधिक मन के स्तर पर चलता है। इस दृष्टि से लोकशिक्षा के माध्यम क्या रहे हैं और क्या हो सकते हैं इसका विचार करें । |
| | | |
− | ''के समान वह नीचे की ओर अधिक सरलता से बहता है, है ।''
| + | == अखबार, टीवी तथा संचार माध्यम == |
| + | विज्ञापन का उल्लेख ऊपर आया ही है। साथ ही अखबार में छपने वाले, भावनाओं को आन्दोलित करने वाले लेख, टीवी की विभिन्न चैनलों पर प्रदर्शित होने वाले धारावाहिक और फिल्में विभिन्न प्रकार के फैशन शो, आज का बहुत प्रचलित सोशल मिडिया, इण्टरनेट ये जनमानस को जकड लेने वाले माध्यम हैं। ये हैं तो बहुत प्रभावी परन्तु ये विचार प्रेरक नहीं हैं, विचार को स्थगित कर देने वाले हैं | इनका प्रभाव भारी होने पर भी तत्काल होता है । बाढ़ की तरह वह आता है और जाता है, स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ता | परन्तु वह निरन्तर चलता रहने के कारण मानस को क्षुब्ध ही बनाये रखता है। इस स्थिति में अच्छी या बुरी कोई शिक्षा इससे नहीं हो सकती, परन्तु नुकसान यह है कि क्षुब्धता की स्थिति निरन्तर बनी रहती है। इन माध्यमों का प्रभाव लगता तो बहुत अधिक है। इसलिये चारों ओर इण्टरनेट, सी.डी., वॉट्सएप, सन्देश आदि की भरमार चलती है परन्तु लोकप्रबोधन करने में इनका प्रभाव जितना माना जाता है उससे बहुत कम है । अखबारों और पत्रपत्रिकाओं में जो लेख छपते हैं उनके माध्यम से कुछ मात्रा में विचारपरिवर्तन होता है। निरन्तर व्यक्त किये जाने वाले विचारों से परिवर्तन होता है परन्तु उसकी गति बहुत धीमी रहती है। |
| | | |
− | ''ऊपर की ओर ले जाने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा लगानी''
| + | == सभा, सम्मेलन, रैली == |
| + | रैलियों में मानस का प्रदर्शन होता है जिससे शेष समाज तक भावना और विचार पहुँचाये जाते हैं । रैलियों में प्रदर्शित विचारों और भावनाओं के प्रति सहानुभूति, समर्थन अथवा आशंका और विरोध भी जाग्रत होता है। समाजमन कुछ मात्रा में उद्देलित होता है । सम्मेलनों में अधिकतर भावनाओं को आवाहन किया जाता है जबकि सभाये विचारप्रधान होती हैं। विचार के क्षेत्र में गोष्ठियाँ, परिचर्चायें, शोधपत्र आदि के माध्यम से समाजमन को दिशा देने का प्रयास होता है। प्रभावी वक्तृत्व, आकर्षक व्यक्तित्व और शुद्ध चरित्र इसके माध्यम होते हैं। त्वरित प्रभाव प्रथम दो का होता है, दीर्घकालीन चरित्र का होता है। विगत सौ वर्षों में सभाओं के भाषणों से ही श्री अरविन्द, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी आदि ने लोकमानस को आन्दोलित किया था । जिसमें इन तीनों आयामों का योगदान था । |
| | | |
− | ''होती है । २. सभा, सम्मेलन, रेली''
| + | == कथा, प्रवचन, सत्संग == |
− | | + | यह बहुत व्यापक, निरन्तर चलनेवाला और प्रभावी माध्यम है | लोक में रामायण और भागवत की कथा बहुत प्रसिद्ध है। देश में ऐसा एक भी स्थान नहीं होगा जहाँ अपनी अपनी प्रादेशिक भाषा में भी ये कथायें न होती हों । *रामादिवत् वर्तितव्यं न रावणादिवत्' अर्थात् राम के समान व्यवहार करना चाहिये, रावण के समान नहीं यह सर्व कथाओं का सार है | जनसामान्य के चरित्र को गढने वाली और उसकी रक्षा करने वाली ये कथायें वास्तव में लोकशिक्षा का श्रेष्ठ माध्यम सिद्ध हुई हैं। उसी प्रकार से उपनिषद कथा और महाभारत कथा भी कहीं कहीं होती हैं । हमारे तत्त्वदर्शन के जो प्रमुख ग्रन्थ हैं उनमें अनन्य है श्रीमद भगवद्गीता । इसका अध्ययन विद्यालयीन शिक्षा की मुख्य धारा में तो नहीं होता परन्तु धार्मिक सांस्कृतिक संगठन, अध्यात्मप्रवण संस्थायें और अनेक स्थानों पर व्यक्तिगत रूप में भी इसकी कक्षायें चलती हैं और अध्ययन अध्यापन का कार्य होता है । अनेक स्थानों पर विशाल सत्संगों का आयोजन होता है । भजन, कीर्तन और कथा इनके मुख्य अंग हैं । सामूहिक जप, नामस्मरण और अखण्ड पाठ का भी बहुत प्रचलन है । लोग अपने अपने घरों में बैठकर भी सामूहिक जपसाधना में सहभागी बनते हैं । इन सबका व्यक्तियों के अन्तःकरणों पर तो प्रभाव होता ही है, साथ ही इनकी तरंगें वातावरण को भी प्रभावित करती हैं जिस का प्रभाव शेष समाज पर भी होता है । |
− | ''हम वर्तमान स्थिति को ही लें । प्रसार माध्यम आज रेलियों में मानस का प्रदर्शन होता है जिससे शेष''
| |
− | | |
− | ''बहुत प्रभावी बन गये हैं । इन्हें प्रचार माध्यम कहना भी... समाज तक भावना और विचार पहुँचाये जाते हैं । रैलियों में''
| |
− | | |
− | ''अनुपयुक्त नहीं होगा । इन प्रचार माध्यमों में जो विज्ञापन... प्रदर्शित विचारों और भावनाओं के प्रति सहानुभूति, समर्थन''
| |
− | | |
− | ''आते हैं वे लोकमानस को बहुत प्रभावित करते हैं । लोगों. अथवा आशंका और विरोध भी जाग्रत होता है । समाजमन''
| |
− | | |
− | ''का अर्थव्यवहार उनके ही हाथों में चला गया है । तात्पर्य... कुछ मात्रा में उद्देलित होता है ।''
| |
− | | |
− | ''यह है कि लोक को प्रभावित करने का कार्य बुद्धि से सम्मेलनों में अधिकतर भावनाओं को आवाहन किया''
| |
− | | |
− | ''अधिक मन के स्तर पर चलता है । इस दृष्टि से लोकशिक्षा ... जाता है जबकि सभायें विचारप्रधान होती हैं । विचार के''
| |
− | | |
− | ''के माध्यम क्या रहे हैं और क्या हो सकते हैं इसका विचार. क्षेत्र में गोष्ठियाँ, परिचर्चायें, शोधपत्र आदि के माध्यम से''
| |
− | | |
− | ''करें । समाजमन को दिशा देने का प्रयास होता है । प्रभावी''
| |
− | | |
− | ''<nowiki>;</nowiki> वक्तृत्व, आकर्षक व्यक्तित्व और शुद्ध चरित्र इसके माध्यम''
| |
− | | |
− | ''१. अखबार, टीवी तथा संचार माध्यम होते हैं । त्वरित प्रभाव प्रथम दो का होता है, दीर्घकालीन''
| |
− | | |
− | ''विज्ञापन का उल्लेख ऊपर आया ही है। साथ ही... चरित्र का होता है । विगत सौ वर्षों में सभाओं के भाषणों''
| |
− | | |
− | ''अखबार में छपने वाले, भावनाओं को आन्दोलित करने... से ही श्री अरविन्द, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी आदि''
| |
− | | |
− | ''वाले लेख, टीवी की विभिन्न चैनलों पर प्रदर्शित होने वाले... ने लोकमानस को आन्दोलित किया था । जिसमें इन तीनों''
| |
− | | |
− | ''धारावाहिक और फिल्में विभिन्न प्रकार के फैशन शो, आज... आयामों का योगदान था ।''
| |
− | | |
− | ''का बहुत प्रचलित सोशल मिडिया, इण्टरनेट ये जनमानस .''
| |
− | | |
− | ''को जकड लेने वाले माध्यम FL AS at aga yet FPA AA, AT''
| |
− | | |
− | ''परन्तु ये विचार प्रेरक नहीं हैं, विचार को स्थगित कर देने यह बहुत व्यापक, निरन्तर चलनेवाला और प्रभावी''
| |
− | | |
− | ''वाले हैं । इनका प्रभाव भारी होने पर भी तत्काल होता है।.... माध्यम है । लोक में रामायण और भागवत की कथा बहुत''
| |
− | | |
− | ''बाढ़ की तरह वह आता है और जाता है, स्थायी प्रभाव... प्रसिद्ध है। देश में ऐसा एक भी स्थान नहीं होगा जहाँ''
| |
− | | |
− | ''नहीं Sled | परन्तु वह निरन्तर चलता रहने के कारण... अपनी अपनी प्रादेशिक भाषा में भी ये कथायें न होती हों ।''
| |
− | | |
− | ''मानस को क्षुब्ध ही बनाये रखता है । इस स्थिति में अच्छी... “रामादिवत् वर्तितव्यं न रावणादिवत्' अर्थात् 'राम के समान''
| |
− | | |
− | ''या बुरी कोई शिक्षा इससे नहीं हो सकती, परन्तु नुकसान... व्यवहार करना चाहिये, रावण के समान नहीं" यह सर्व''
| |
− | | |
− | ''यह है कि क्षुब्धता की स्थिति निरन्तर बनी रहती है । इन... कथाओं का सार है । जनसामान्य के चरित्र को गढने वाली''
| |
− | | |
− | ''माध्यमों का प्रभाव लगता तो बहुत अधिक है । इसलिये... और उसकी रक्षा करने वाली ये कथायें वास्तव में''
| |
− | | |
− | ''चारों ओर इण्टरनेट, सी.डी., वॉट्सएप, सन्देश आदि की... लोकशिक्षा का श्रेष्ठ माध्यम सिद्ध हुई हैं । उसी प्रकार से''
| |
− | | |
− | ''भरमार चलती है परन्तु लोकप्रबोधन करने में इनका प्रभाव... उपनिषद् कथा और महाभारत कथा भी कहीं कहीं होती हैं ।''
| |
− | | |
− | ''जितना माना जाता है उससे बहुत कम है । हमारे तत्त्वदर्शन के जो प्रमुख ग्रन्थ हैं उनमें अनन्य है''
| |
− | | |
− | ''अखबारों और पत्रपत्रिकाओं में जो लेख छपते हैं श्रीमदूभगवदूगीता । इसका अध्ययन विद्यालयीन शिक्षा की''
| |
− | | |
− | ''उनके माध्यम से कुछ मात्रा में विचारपरिवर्तन होता है। मुख्य धारा में तो नहीं होता परन्तु धार्मिक सांस्कृतिक''
| |
− | | |
− | ''निरन्तर व्यक्त किये जाने वाले विचारों से परिवर्तन होता है... संगठन, अध्यात्मप्रवण संस्थायें और अनेक स्थानों पर''
| |
− | | |
− | 233
| |
− | | |
− | ............. page-250 .............
| |
− | | |
− | व्यक्तिगत रूप में भी इसकी कक्षायें चलती हैं और अध्ययन अध्यापन का कार्य होता है । अनेक स्थानों पर विशाल सत्संगों का आयोजन होता है । भजन, कीर्तन और कथा इनके मुख्य अंग हैं । सामूहिक जप, नामस्मरण और अखण्ड पाठ का भी बहुत प्रचलन है । लोग अपने अपने घरों में बैठकर भी सामूहिक जपसाधना में सहभागी बनते हैं । इन सबका व्यक्तियों के अन्तःकरणों पर तो प्रभाव होता ही है, साथ ही इनकी तरंगें वातावरण को भी प्रभावित करती हैं जिस का प्रभाव शेष समाज पर भी होता है । | |
| | | |
| == उत्सव, मेले और यात्रायें == | | == उत्सव, मेले और यात्रायें == |