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| == सात्विकप्रकृतिपुरुषस्य लक्षणानि॥ Sattvika prakrti signs == | | == सात्विकप्रकृतिपुरुषस्य लक्षणानि॥ Sattvika prakrti signs == |
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− | तामस प्रकृतिभेदाः॥ Sub-types of Tamas dominant psychic constitution
| + | [[Prakrti in Ayurveda (प्रकृतिः)|Prakrti]] refers to the specific body type/ nature/ constitution of the individual. Guna prakrti is the type of Prakrti which is related to one's psychological status, emotions and instincts. It can be called as mind-type of an individual. On the basis of dominance of Sattva, rajas or tamas in manas of purusha, the person's Guna prakrti is considered as either Sattvik, rajas or tamas. When the Sattva overpowers rajas and/or tamas in manas of an individual right from birth that person's mind-type is called as Satvika prakrti. Acharya Sushruta has described the characteristics of such individual as below. |
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− | तामस मद लक्षणानि॥ Signs when the person with Tamas dominance is intoxicated
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− | <blockquote>सात्त्विके शौचदाक्षिण्यहर्षमण्डनलालसः | गीताध्ययनसौभाग्यसुरतोत्साहकृन्मदः ॥ (Sush Samh 45.207)<ref name=":0">Sushruta Samhita (Sharirsthanam Adhyayam 45 Sutram 207)</ref> </blockquote><blockquote>sāttvike śaucadākṣiṇyaharṣamaṇḍanalālasaḥ | gītādhyayanasaubhāgyasuratotsāhakr̥nmadaḥ ॥ (Sush Samh 45.207)<ref name=":0" /> </blockquote>Meaning:
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− | तमोबहुल्यजनिताः विकाराः ॥ Diseases originating from Tamas dominance
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− | ==मोक्ष-तमसयोः संबंधः ॥ Role of Tamas in Moksha==
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− | [[Moksha (मोक्षः)|Moksha]] is considered to be liberation of soul from mortal body and its union with the supreme consciousness. It is believed that purusha or soul is trapped in the mortal body and suffers from karmas. This bond of atma and shareera is because of trigunas as per Bhagvad Gita.<blockquote>सत्त्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृतिसम्भवा: | निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥ (Bhagvad Gita 14.5)</blockquote><blockquote>sattvaṁ rajastama iti guṇā: prakr̥tisambhavā: | nibadhnanti mahābāho dehe dehinamavyayam ॥ (Bhagvad Gita 14.5)</blockquote>Thus, when Ayurveda discusses about Atma, Karma and Moksha; acharyas have described the process of Moksha at the level of mind and soul. It is stated that Moksha is achieved only after annihilation of effects of potent past actions/deeds and when there is absence of rajas and tamas in the mind. At this stage there is detachment of [[Sharira (शरीरम्)|sharira]], [[Manas (मनः)|manas]], [[Indriyas (इन्द्रियाणि)|indriyas]] and [[Atman (आत्मन्)|atma]].<blockquote>मोक्षो रजस्तमोऽभावात् बलवत्कर्मसङ्क्षयात् | वियोगः सर्वसंयोगैरपुनर्भव उच्यते ॥ (Char. Samh. 1.142)<ref>Charaka Samhita ([http://niimh.nic.in/ebooks/ecaraka/?mod=read Sharirsthanam Adhyaya 1 Sutram 142])</ref></blockquote><blockquote>mokṣo rajastamo'bhāvāt balavatkarmasaṅkṣayāt | viyogaḥ sarvasaṁyogairapunarbhava ucyate ॥ (Char. Samh. 1.142)</blockquote>This is a state after which there is no more physical or mental contacts. Further there is no process of rebirth. Thus presence or absence of Tamas plays important role in the process of Moksha.
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− | रजस्तमोभ्यां युक्तस्य संयोगोऽयमनन्तवान्|
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− | ताभ्यां निराकृताभ्यां तु सत्त्ववृद्ध्या <sup>[१]</sup> निवर्तते||३६|| Cha sha 1/36
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− | == Sattvik prakruti signs ==
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| सात्त्विकास्तु- आनृशंस्यं संविभागरुचिता तितिक्षा सत्यं धर्म आस्तिक्यं ज्ञानं बुद्धिर्मेधा स्मृतिर्धृतिरनभिषङ्गश्च Su sha 1/18 | | सात्त्विकास्तु- आनृशंस्यं संविभागरुचिता तितिक्षा सत्यं धर्म आस्तिक्यं ज्ञानं बुद्धिर्मेधा स्मृतिर्धृतिरनभिषङ्गश्च Su sha 1/18 |
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− | == Sattvika kaya == | + | === सात्विक प्रकृतिभेदाः॥ Sub-types of Sattva dominant psychic constitution === |
− | शौचमास्तिक्यमभ्यासो वेदेषु गुरुपूजनम् |
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− | प्रियातिथित्वमिज्या च ब्रह्मकायस्य लक्षणम् ||८१||
| + | === ब्राह्म काय ॥ Brahma type of mind-faculty === |
− | | + | शुचिं सत्याभिसन्धं जितात्मानं संविभागिनं ज्ञानविज्ञानवचनप्रतिवचनसम्पन्नं स्मृतिमन्तं कामक्रोधलोभमानमोहेर्ष्याहर्षामर्षापेतं समं सर्वभूतेषु ब्राह्मं विद्यात् (१)| |
− | माहात्म्यं शौर्यमाज्ञा च सततं शास्त्रबुद्धिता |
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− | भृत्यानां भरणं चापि माहेन्द्रं कायलक्षणम् ||८२||
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− | शीतसेवा सहिष्णुत्वं पैङ्गल्यं हरिकेशता |
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− | प्रियवादित्वमित्येतद्वारुणं <sup>[१]</sup> कायलक्षणम् ||८३||
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− | मध्यस्थता सहिष्णुत्वमर्थस्यागमसञ्चयौ |
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− | महाप्रसवशक्तित्वं कौबेरं कायलक्षणम् ||८४||
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− | गन्धमाल्यप्रियत्वं च नृत्यवादित्रकामिता |
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− | विहारशीलता चैव गान्धर्वं कायलक्षणम् ||८५||
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− | प्राप्तकारी दृढोत्थानो निर्भयः <sup>[२]</sup> स्मृतिमाञ्छुचिः |
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− | रागमोहमदद्वेषैर्वर्जितो याम्यसत्त्ववान् <sup>[३]</sup> ||८६||
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− | जपव्रतब्रह्मचर्यहोमाध्ययनसेविनम् |
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− | ज्ञानविज्ञानसम्पन्नमृषिसत्त्वं नरं विदुः ||८७||
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− | सप्तैते सात्त्विकाः काया... |८८| Su sha 4
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− | शुचिं सत्याभिसन्धं जितात्मानं संविभागिनं ज्ञानविज्ञानवचनप्रतिवचनसम्पन्नं स्मृतिमन्तं कामक्रोधलोभमानमोहेर्ष्याहर्षामर्षापेतं समं सर्वभूतेषु ब्राह्मं विद्यात् (१)|
| + | इत्येवं शुद्धस्य सत्त्वस्य सप्तविधं भेदांशं विद्यात् कल्याणांशत्वात्; तत्संयोगात्तु ब्राह्ममत्यन्तशुद्धं व्यवस्येत्||३७|| (Char Samh 4.37) |
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| + | === आर्ष काय ॥ Rshi type of mind faculty === |
| इज्याध्ययनव्रतहोमब्रह्मचर्यपरमतिथिव्रतमुपशान्तमदमानरागद्वेषमोहलोभरोषं प्रतिभावचनविज्ञानोपधारणशक्तिसम्पन्नमार्षं विद्यात् (२)| | | इज्याध्ययनव्रतहोमब्रह्मचर्यपरमतिथिव्रतमुपशान्तमदमानरागद्वेषमोहलोभरोषं प्रतिभावचनविज्ञानोपधारणशक्तिसम्पन्नमार्षं विद्यात् (२)| |
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| + | === ऐन्द्र काय ॥ Indra type of mind faculty === |
| ऐश्वर्यवन्तमादेयवाक्यं यज्वानं शूरमोजस्विनं तेजसोपेतमक्लिष्टकर्माणं दीर्घदर्शिनं धर्मार्थकामाभिरतमैन्द्रं विद्यात् (३)| | | ऐश्वर्यवन्तमादेयवाक्यं यज्वानं शूरमोजस्विनं तेजसोपेतमक्लिष्टकर्माणं दीर्घदर्शिनं धर्मार्थकामाभिरतमैन्द्रं विद्यात् (३)| |
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| + | === याम्य काय ॥ Yama type of mind faculty === |
| लेखास्थवृत्तं प्राप्तकारिणमसम्प्रहार्यमुत्थानवन्तं स्मृतिमन्तमैश्वर्यलम्भिनं <sup>[१]</sup> व्यपगतरागेर्ष्याद्वेषमोहं याम्यं विद्यात् (४)| | | लेखास्थवृत्तं प्राप्तकारिणमसम्प्रहार्यमुत्थानवन्तं स्मृतिमन्तमैश्वर्यलम्भिनं <sup>[१]</sup> व्यपगतरागेर्ष्याद्वेषमोहं याम्यं विद्यात् (४)| |
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| + | === वारुण काय ॥ Varuna type of mind faculty === |
| शूरं धीरं शुचिमशुचिद्वेषिणं यज्वानमम्भोविहाररतिमक्लिष्टकर्माणं स्थानकोपप्रसादं वारुणं विद्यात् (५)| | | शूरं धीरं शुचिमशुचिद्वेषिणं यज्वानमम्भोविहाररतिमक्लिष्टकर्माणं स्थानकोपप्रसादं वारुणं विद्यात् (५)| |
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| + | === कौबेर काय ॥ Kubera type of mind faculty === |
| स्थानमानोपभोगपरिवारसम्पन्नं धर्मार्थकामनित्यं शुचिं सुखविहारं व्यक्तकोपप्रसादं कौबेरं विद्यात् (६)| | | स्थानमानोपभोगपरिवारसम्पन्नं धर्मार्थकामनित्यं शुचिं सुखविहारं व्यक्तकोपप्रसादं कौबेरं विद्यात् (६)| |
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| + | === गान्धर्व काय ॥ Gandharva type of mind faculty === |
| प्रियनृत्यगीतवादित्रोल्लापकश्लोकाख्यायिकेतिहासपुराणेषु कुशलं गन्धमाल्यानुलेपनवसनस्त्रीविहारकामनित्यमनसूयकं गान्धर्वं विद्यात् (७)| | | प्रियनृत्यगीतवादित्रोल्लापकश्लोकाख्यायिकेतिहासपुराणेषु कुशलं गन्धमाल्यानुलेपनवसनस्त्रीविहारकामनित्यमनसूयकं गान्धर्वं विद्यात् (७)| |
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− | इत्येवं शुद्धस्य सत्त्वस्य सप्तविधं भेदांशं विद्यात् कल्याणांशत्वात्; तत्संयोगात्तु ब्राह्ममत्यन्तशुद्धं व्यवस्येत्||३७|| Cha sha 4
| + | == सात्विक मद लक्षणानि॥ Signs when the person with Sattva dominance is intoxicated == |
| + | <blockquote>सात्त्विके शौचदाक्षिण्यहर्षमण्डनलालसः | गीताध्ययनसौभाग्यसुरतोत्साहकृन्मदः ॥ (Sush Samh 45.207)<ref name=":0">Sushruta Samhita (Sharirsthanam Adhyayam 45 Sutram 207)</ref> </blockquote><blockquote>sāttvike śaucadākṣiṇyaharṣamaṇḍanalālasaḥ | gītādhyayanasaubhāgyasuratotsāhakr̥nmadaḥ ॥ (Sush Samh 45.207)<ref name=":0" /> </blockquote>Meaning: |
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| + | ==मोक्ष-सत्वगुणयोः संबंधः ॥ Role of Tamas in Moksha== |
| + | [[Moksha (मोक्षः)|Moksha]] is considered to be liberation of soul from mortal body and its union with the supreme consciousness. It is believed that purusha or soul is trapped in the mortal body and suffers from karmas. This bond of atma and shareera is because of trigunas as per Bhagvad Gita.<blockquote>सत्त्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृतिसम्भवा: | निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥ (Bhagvad Gita 14.5)</blockquote><blockquote>sattvaṁ rajastama iti guṇā: prakr̥tisambhavā: | nibadhnanti mahābāho dehe dehinamavyayam ॥ (Bhagvad Gita 14.5)</blockquote>Thus, when Ayurveda discusses about Atma, Karma and Moksha; acharyas have described the process of Moksha at the level of mind and soul. It is stated that Moksha is achieved only after annihilation of effects of potent past actions/deeds and when there is absence of rajas and tamas in the mind. At this stage there is detachment of [[Sharira (शरीरम्)|sharira]], [[Manas (मनः)|manas]], [[Indriyas (इन्द्रियाणि)|indriyas]] and [[Atman (आत्मन्)|atma]].<blockquote>मोक्षो रजस्तमोऽभावात् बलवत्कर्मसङ्क्षयात् | वियोगः सर्वसंयोगैरपुनर्भव उच्यते ॥ (Char. Samh. 1.142)<ref>Charaka Samhita ([http://niimh.nic.in/ebooks/ecaraka/?mod=read Sharirsthanam Adhyaya 1 Sutram 142])</ref></blockquote><blockquote>mokṣo rajastamo'bhāvāt balavatkarmasaṅkṣayāt | viyogaḥ sarvasaṁyogairapunarbhava ucyate ॥ (Char. Samh. 1.142)</blockquote>This is a state after which there is no more physical or mental contacts. Further there is no process of rebirth. Thus presence or absence of Tamas plays important role in the process of Moksha. |
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| + | रजस्तमोभ्यां युक्तस्य संयोगोऽयमनन्तवान्| |
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| + | ताभ्यां निराकृताभ्यां तु सत्त्ववृद्ध्या <sup>[१]</sup> निवर्तते||३६|| Cha sha 1/36 |
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| == Role of Sattva guna in Moksha == | | == Role of Sattva guna in Moksha == |
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