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=== कांचीपुरम ===
 
=== कांचीपुरम ===
उत्तर भारत में जो स्थान काशी को प्राप्त हैं. दक्षिण भारत में वही स्थान कांचीवरम् या कांची पुरम् को प्राप्त है। इसे दक्षिण की काशी कहा जाता है। कांची पुरम् तमिलनाडु के चिंगल पेठ जिले में मद्रास से लगभग ४० कि. मी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह पल्लव राजाओं की राजधानी रही है। प्राचीन काल से शैव, वैष्णव, जैन तथा बौद्ध मतावलम्बी लोगों का यह प्रधान तीर्थ क्षेत्र रहा है। इस नगर के शिवकांची व विष्णुकांची नाम के दोभाग हैं। इस नगर में १०८ शिवस्थल माने गये हैं। कामाक्षी, एकाम्बर नाथ, कलासनाथ, राजसिंहेश्वर, वरदराज नामक यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने यहाँ कामकोटि पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य के तत्त्वज्ञान का उद्गम-स्थान कांचीवरम् ही है। बौद्ध विद्वानों- नागार्जुन, बुद्धघोष, दिडनाग आदि का निवास भी कांची में था। ब्रह्मपुराण के अनुसार कांची को भगवान् शिव का नेत्र", माना गया है। कांची 51 शक्ति पीठों में से भी एक है। यहाँ सती का ककाल गिरा था। कामाक्षी मन्दिर को शक्तिपीठ माना गया हैं। यहाँ ब्रह्माजी ने भी तपस्या की थी तथा भगवती लक्ष्मी का साक्षात्कार किया था|  
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उत्तर भारत में जो स्थान काशी को प्राप्त हैं. दक्षिण भारत में वही स्थान कांचीवरम् या कांची पुरम् को प्राप्त है। इसे दक्षिण की काशी कहा जाता है। कांची पुरम् तमिलनाडु के चिंगल पेठ जिले में मद्रास से लगभग ४० कि. मी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह पल्लव राजाओं की राजधानी रही है। प्राचीन काल से शैव, वैष्णव, जैन तथा बौद्ध मतावलम्बी लोगों का यह प्रधान तीर्थ क्षेत्र रहा है। इस नगर के शिवकांची व विष्णुकांची नाम के दोभाग हैं। इस नगर में १०८ शिवस्थल माने गये हैं। कामाक्षी, एकाम्बर नाथ, कलासनाथ, राजसिंहेश्वर, वरदराज नामक यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने यहाँ कामकोटि पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य के तत्त्वज्ञान का उद्गम-स्थान कांचीवरम् ही है। बौद्ध विद्वानों- नागार्जुन, बुद्धघोष, दिडनाग आदि का निवास भी कांची में था। ब्रह्मपुराण के अनुसार कांची को भगवान् शिव का नेत्र", माना गया है। कांची ५१ शक्ति पीठों में से भी एक है। यहाँ सती का ककाल गिरा था। कामाक्षी मन्दिर को शक्तिपीठ माना गया हैं। यहाँ ब्रह्माजी ने भी तपस्या की थी तथा भगवती लक्ष्मी का साक्षात्कार किया था|  
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=== अवन्तिका ===
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क्षिप्रा नदी के दायें तट पर बसा मध्य प्रदेश का यह प्रसिद्ध नगर द्वादश ज्योतिर्लिगों में महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता हैं। वर्तमान समय में इसे उज्जैन या उज्जयिनी कहते हैं। कनकश्रृंग, कुशस्थली, कुमुदवती, विशाला नाम सेभी यह नगरजाना जाता रहा है।भगवती सती का ऊध्र्व ओष्ठ यहाँ पर गिरा था। अत: यहाँ क्षिप्रा नदी के तट पर शक्तिपीठ की स्थापना की गयी । भगवान् शंकर ने त्रिपुरासुर-वध यहीं किया था। आचार्यश्रेष्ठ सांदीपनि का आश्रम उज्जयिनी में ही था जहाँ कृष्ण ने सुदामा के साथ विभिन्न विद्याओं में कुशलता प्राप्त की। प्रति बारहवें वर्ष जब सूर्य मेष राशि में तथा बृहस्पति सिंह राशि में आते हैं तो महान् पर्व कुंभ का आयोजन यहाँ पर किया जाता है।"इस महापर्व पर सम्पूर्ण देश के श्रद्धालुओं का बृहत्समागम होता है। सन्तमण्डली एकत्रित होकर समाज में हो रहे विकास व परिवर्तन का विश्लेषण करती है और जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए मार्गदर्शन करती है। मौर्यकाल में उज्जयिनी मालवा प्रदेश की राजधानीथी। सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्रऔर पुत्री संघमित्रा ने यहीं प्रव्रज्या धारण की। यह कई महाप्रतापी सम्राटों की राजधानी भी रही।भर्तृहरि, विक्रमादित्य, भोज ने इसके वैभव को बढ़ाया। कालिदास, वररूचि,भर्तृहरि, भारविआदिश्रेष्ठ कवि-लेखकों, भाषाशास्त्रियों तथा प्रख्यात ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर का कार्यक्षेत्र अवन्तिका रही है। भगवान् बुद्ध के समय में अवन्तिका राजगृह से पेठाणा जाने वाले व्यापारिक मार्ग की विश्राम-स्थली थी। महाभारत स्कन्दपुराण, शिवपुराण, अग्निपुराण में उज्जयिनी की महिमा का वर्णन किया गया है।" महाकाल यहाँ का सबसे प्रमुख मन्दिर है। हरसिद्धिदेवी, गोपाल मन्दिर, गढ़कालिका, कालमैरव, सिद्धवट, सांदीपनि आश्रम, यन्त्रमहल, भर्तृहरि गुफा यहाँ के महत्वपूर्ण स्थल हैं। 
    
==References==
 
==References==
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