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कई विद्वान ऐसा कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। धर्म के कारण विश्वभर में खून की नदियाँ बहीं हैं। भीषण कत्लेआम हुए हैं।  
 
कई विद्वान ऐसा कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। धर्म के कारण विश्वभर में खून की नदियाँ बहीं हैं। भीषण कत्लेआम हुए हैं।  
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वास्तव में ऐसा जिन विद्वानों ने कहा है उन्हे धर्म का अर्थ ही समझ मे नहीं आया था और नहीं आया है । रिलीजन, मजहब के स्थान पर धर्म शब्द का और धर्म के स्थान पर रिलीजन, मजहब इन शब्दों का प्रयोग अज्ञानवश लोग करते रहते हैं। इसलिये '''धर्म''' और रिलीजन, मजहब और संप्रदाय इन तीनो शब्दों के अर्थ समझना भी आवश्यक है। इस दृष्टि से हमने [[Dharma: Bhartiya Jeevan Drishti (धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि)|"धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि"]], इस लेख में धर्म शब्द के अर्थों को समझा है।  
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वास्तव में ऐसा जिन विद्वानों ने कहा है उन्हे धर्म का अर्थ ही समझ मे नहीं आया था और नहीं आया है । रिलिजन, मजहब के स्थान पर धर्म शब्द का और धर्म के स्थान पर रिलिजन, मजहब इन शब्दों का प्रयोग अज्ञानवश लोग करते रहते हैं। इसलिये '''धर्म''' और रिलिजन, मजहब और संप्रदाय इन तीनो शब्दों के अर्थ समझना भी आवश्यक है। इस दृष्टि से हमने [[Dharma: Bhartiya Jeevan Drishti (धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि)|"धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि"]], इस लेख में धर्म शब्द के अर्थों को समझा है।  
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अब हम धर्म और रिलीजन या मजहब इन शब्दों के वास्तविक अर्थ जानने का प्रयास करेंगे।
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अब हम धर्म और रिलिजन या मजहब इन शब्दों के वास्तविक अर्थ जानने का प्रयास करेंगे।
    
हिन्दुस्तान को किराने की दूकान की उपमा दी जाती है। किराने की दुकान में चीनी, दाल, आटा, तेल, मसाले ऐसे भिन्न भिन्न सैंकड़ों पदार्थ होते हैं लेकिन किराना नाम का कोई पदार्थ नहीं होता है। इसी तरह से हिन्दुस्तान में शैव हैं, बौद्ध हैं, वैष्णव हैं, गाणपत्य हैं, लिंगायत हैं, जैन हैं, सिख हैं, ईसाई हैं, मुस्लिम हैं लेकिन हिन्दू नहीं है। जब संविधान बन रहा था, तब हिन्दू कोड बिल की चर्चा के समय कई पंथों, सम्प्रदायों के लोगों ने माँग की थी कि वे हिन्दू नहीं हैं। उन पर हिन्दू कोड बिल लागू न किया जाए। इसपर काफी बहस हुई थी। अंत में हिन्दू कौन है इसकी स्पष्टता की गयी थी। इस के अनुसार जो पारसी, यहूदी, ईसाई या मुसलमान नहीं है वे सब हिन्दू हैं ऐसा स्पष्ट किया गया था। और सब मान गए थे। इस के लिए हिन्दू में कौन कौन से मत, पंथ या सम्प्रदायों का समावेश होता है इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं समझी गयी थी।  
 
हिन्दुस्तान को किराने की दूकान की उपमा दी जाती है। किराने की दुकान में चीनी, दाल, आटा, तेल, मसाले ऐसे भिन्न भिन्न सैंकड़ों पदार्थ होते हैं लेकिन किराना नाम का कोई पदार्थ नहीं होता है। इसी तरह से हिन्दुस्तान में शैव हैं, बौद्ध हैं, वैष्णव हैं, गाणपत्य हैं, लिंगायत हैं, जैन हैं, सिख हैं, ईसाई हैं, मुस्लिम हैं लेकिन हिन्दू नहीं है। जब संविधान बन रहा था, तब हिन्दू कोड बिल की चर्चा के समय कई पंथों, सम्प्रदायों के लोगों ने माँग की थी कि वे हिन्दू नहीं हैं। उन पर हिन्दू कोड बिल लागू न किया जाए। इसपर काफी बहस हुई थी। अंत में हिन्दू कौन है इसकी स्पष्टता की गयी थी। इस के अनुसार जो पारसी, यहूदी, ईसाई या मुसलमान नहीं है वे सब हिन्दू हैं ऐसा स्पष्ट किया गया था। और सब मान गए थे। इस के लिए हिन्दू में कौन कौन से मत, पंथ या सम्प्रदायों का समावेश होता है इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं समझी गयी थी।  
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== सम्प्रदाय ==
 
== सम्प्रदाय ==
सम्प्रदाय में ‘दा’ का अर्थ है देना। ‘प्र’ का अर्थ है व्यवस्था से देना और ‘सं’ का अर्थ है अच्छी व्यवस्था से देना। किसी विद्वान के मन में श्रेष्ठ जीवन के विषय में कोई श्रेष्ठ विचार आता है, जो सामान्य विचारों से भिन्न होता है। वह उसे किसी को बताता है। विचार अच्छा लगाने से दूसरा मनुष्य उस विचार को ग्रहण करता है। वह भी उस विचार को अन्यों को देता है। इस प्रकार से उस विचार का प्रारम्भ करनेवाले मनुष्य के कई अनुयायी बन जाते हैं। ये सब मिलकर एक संप्रदाय बन जाता है।  
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सम्प्रदाय में ‘दा’ का अर्थ है देना। ‘प्र’ का अर्थ है व्यवस्था से देना और ‘सं’ का अर्थ है अच्छी व्यवस्था से देना। किसी विद्वान के मन में श्रेष्ठ जीवन के विषय में कोई श्रेष्ठ विचार आता है, जो सामान्य विचारों से भिन्न होता है। वह उसे किसी को बताता है। विचार अच्छा लगाने से दूसरा मनुष्य उस विचार को ग्रहण करता है। वह भी उस विचार को अन्यों को देता है। इस प्रकार से उस विचार का प्रारम्भ करनेवाले मनुष्य के कई अनुयायी बन जाते हैं। ये सब मिलकर एक संप्रदाय बन जाता है।
मजहब या रिलीजन
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ये दोनों ही एक ही अर्थ के दो शब्द हैं। दोनों ही अभारतीय हैं। ऊपर बताए सम्प्रदाय के अर्थ के अनुसार ये भी सम्प्रदाय ही की तरह होते हैं। लेकिन ये रिलीजन या मजहब से भिन्न होते हैं। रिलीजन शब्द अंग्रेजी भाषा से याने ईसाईयों से और मजहब शब्द अरबी या फारसी भाषा से याने इस्लाम से जुडा हुआ है। ये दो मजहब आज विश्व में जनसंख्या के मामले में क्रमश: पहले और दूसरे क्रमांकपर हैं। पूरी दुनिया को बहुत प्रभावित करते हैं। ईसाईयत का प्रारम्भ लगभग २००० वर्षपूर्व और इस्लाम का प्रारंभ लगभग १४०० वर्षपूर्व हुआ था। एक और भी नया रिलीजन या मजहब है। वह है कम्यूनिझम। कम्यूनिझम के इस तत्त्व को कि मनुष्य मेहनत करे, संपत्ति निर्माण करे और सम्पत्ती सरकार की या अन्य किसी की हो, कोई स्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए कम्यूनिझम अपने ही आत्मविरोध के कारण नष्ट होने की दिशा में बढ़ रहा है। हाँ ! इसका नया रूप धीरे धीरे फिर पनपने लगा है। नव-सोशलीझम के नाम से यह चल रहा है। इसका उद्देश्य वर्त्तमान में जो भी व्यवस्थाएँ हैं उन्हें तोड़ना है। नया कोई विकल्प निर्माण करने का कोई विचार इसमें नहीं है। वर्त्तमान में जो सबसे प्रभावी ईसाई और इस्लाम हैं उन का विचार हम मुख्यत: करेंगे।  
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== मजहब या रिलिजन ==
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मजहब और रिलिजन ये दोनों ही एक ही अर्थ के दो शब्द हैं। दोनों ही अभारतीय हैं। ऊपर बताए सम्प्रदाय के अर्थ के अनुसार ये भी सम्प्रदाय ही की तरह होते हैं। लेकिन ये रिलिजन या मजहब भिन्न होते हैं। '''रिलिजन''' शब्द अंग्रेजी भाषा से याने ईसाईयों से और '''मजहब''' शब्द अरबी भाषा से याने इस्लाम से जुडा हुआ है। ये दो मजहब आज विश्व में जनसंख्या के मामले में क्रमश: पहले और दूसरे क्रमांक पर हैं। पूरी दुनिया को बहुत प्रभावित करते हैं।  
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== प्रमुख रिलिजन या मजहब ==
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ईसाईयत का प्रारम्भ लगभग २००० वर्ष पूर्व और इस्लाम का प्रारंभ लगभग १४०० वर्ष पूर्व हुआ था। एक और भी नया रिलिजन या मजहब है। वह है कम्युनिज्म। कम्युनिज्म के इस तत्व को कि मनुष्य मेहनत करे, संपत्ति निर्माण करे और सम्पत्ति सरकार की या अन्य किसी की हो, कोई स्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए कम्युनिज्म अपने ही आत्मविरोध के कारण नष्ट होने की दिशा में बढ़ रहा है। हाँ ! इसका नया रूप धीरे धीरे फिर पनपने लगा है। नव-सोशलिज्म के नाम से यह चल रहा है। इसका उद्देश्य वर्तमान में जो भी व्यवस्थाएँ हैं उन्हें तोड़ना है। नया कोई विकल्प निर्माण करने का कोई विचार इसमें नहीं है। वर्तमान में जो सबसे प्रभावी ईसाई और इस्लाम हैं उन का विचार हम मुख्यत: करेंगे।
 
वैसे तो ये दोनों मजहब एक ही माला के मणी हैं। सेमेटिक मजहब माने जाते हैं। सृष्टी निर्माण की सामान कल्पनाएँ लेकर बने हैं। इसलिये इन की जीवन दृष्टि भी लगभग सामान है। फिर भी दोनों ने एक दूसरे को मिटाने के लिए बहुत प्रयास किये हैं। ईसाईयों के ऐसे मजहबी युद्धों को या प्रयासों को क्रुसेड कहा जाता है तो इस्लाम के मजहबी युद्धों को या ऐसे प्रयासों को जिहाद कहा जाता है। ईसाईयत ने अब अधिक बुद्धिमानी से क्रुसेड चलाया है। जब कि इस्लाम ने जिहाद को सामरिक युद्ध के साथ साथ ही आतंकवाद का स्वरूप दे दिया है।  
 
वैसे तो ये दोनों मजहब एक ही माला के मणी हैं। सेमेटिक मजहब माने जाते हैं। सृष्टी निर्माण की सामान कल्पनाएँ लेकर बने हैं। इसलिये इन की जीवन दृष्टि भी लगभग सामान है। फिर भी दोनों ने एक दूसरे को मिटाने के लिए बहुत प्रयास किये हैं। ईसाईयों के ऐसे मजहबी युद्धों को या प्रयासों को क्रुसेड कहा जाता है तो इस्लाम के मजहबी युद्धों को या ऐसे प्रयासों को जिहाद कहा जाता है। ईसाईयत ने अब अधिक बुद्धिमानी से क्रुसेड चलाया है। जब कि इस्लाम ने जिहाद को सामरिक युद्ध के साथ साथ ही आतंकवाद का स्वरूप दे दिया है।  
 
यह इनका स्वभाव है। इन दोनों मजहबों का जन्म जिस अरब भूमि में हुआ है वहाँ की परिस्थिति इन के स्वभाव का कारण है। प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक मुजफ्फर हुसैन कहा करते थे कि अरब भूमि की भौगोलिक स्थिति अभावग्रस्त जीवन की थी। जबतक दूसरों को लूटोगे नहीं तबतक अपना जीवन नहीं चला सकते। ऐसी विकट स्थिति के कारण अन्य कोई जिए नहीं ऐसा इन दोनों मजहबों का प्रयास रहता है। इस्लाम ने तो इसे स्पष्ट रूप से अपना लक्ष्य भी बताया है। इस्लाम ने दुनिया को दो हिस्सों में बाँटा है। दारुल इस्लाम और दारुल हर्ब। दारुल इस्लाम वह भूमि है जहाँ इस्लामी शासन है। और दारुल हर्ब उसे कहते हैं जहाँ इस्लाम से अन्य किसी का शासन है। और जिहाद यह दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम में बदलने का पवित्र साधन है।  
 
यह इनका स्वभाव है। इन दोनों मजहबों का जन्म जिस अरब भूमि में हुआ है वहाँ की परिस्थिति इन के स्वभाव का कारण है। प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक मुजफ्फर हुसैन कहा करते थे कि अरब भूमि की भौगोलिक स्थिति अभावग्रस्त जीवन की थी। जबतक दूसरों को लूटोगे नहीं तबतक अपना जीवन नहीं चला सकते। ऐसी विकट स्थिति के कारण अन्य कोई जिए नहीं ऐसा इन दोनों मजहबों का प्रयास रहता है। इस्लाम ने तो इसे स्पष्ट रूप से अपना लक्ष्य भी बताया है। इस्लाम ने दुनिया को दो हिस्सों में बाँटा है। दारुल इस्लाम और दारुल हर्ब। दारुल इस्लाम वह भूमि है जहाँ इस्लामी शासन है। और दारुल हर्ब उसे कहते हैं जहाँ इस्लाम से अन्य किसी का शासन है। और जिहाद यह दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम में बदलने का पवित्र साधन है।  
ये दोनों ही मजहब सत्ताकांक्षी हैं। अन्य किसी को भी जीने का अधिकार नकारनेवाले हैं। डॉ. राधाकृष्णन अपनी पुस्तक रिलीजन एंड कल्चर में पृष्ठ १७ पर लिखते हैं – प्रारम्भिक ईसाईयत सत्ताकांक्षी (अथोरिटेरियन) नहीं थी। ....  ... लेकिन जैसे ही रोम के राजा ने ईसाईयत को अपनाया वह अधिक सात्ताकांक्षी बन गयी। - इसका अर्थ है कि मूलत: भी ईसाईयत में सत्ताकांक्षा तो थी ही। यही बात इस्लाम के विषय में भी सत्य है। मक्का काल में इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बहुत कम थी। तब उसमें याने उस काल की कुर्रान की आयतों में इस्लाम न मानने वालों के साथ मिलजुलकर रहना, भाईचारा आदि शब्द थे। लेकिन जैसे ही मदीना पहुंचकर इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बढी इस्लाम की भाषा बदल गयी। वह सत्ताकांक्षी हो गयी। इस्लाम न माननेवालों के विषय में असहिष्णु ही नहीं क्रूर हो गया।  
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ये दोनों ही मजहब सत्ताकांक्षी हैं। अन्य किसी को भी जीने का अधिकार नकारनेवाले हैं। डॉ. राधाकृष्णन अपनी पुस्तक रिलिजन एंड कल्चर में पृष्ठ १७ पर लिखते हैं – प्रारम्भिक ईसाईयत सत्ताकांक्षी (अथोरिटेरियन) नहीं थी। ....  ... लेकिन जैसे ही रोम के राजा ने ईसाईयत को अपनाया वह अधिक सात्ताकांक्षी बन गयी। - इसका अर्थ है कि मूलत: भी ईसाईयत में सत्ताकांक्षा तो थी ही। यही बात इस्लाम के विषय में भी सत्य है। मक्का काल में इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बहुत कम थी। तब उसमें याने उस काल की कुर्रान की आयतों में इस्लाम न मानने वालों के साथ मिलजुलकर रहना, भाईचारा आदि शब्द थे। लेकिन जैसे ही मदीना पहुंचकर इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बढी इस्लाम की भाषा बदल गयी। वह सत्ताकांक्षी हो गयी। इस्लाम न माननेवालों के विषय में असहिष्णु ही नहीं क्रूर हो गया।  
 
अब एक एक कर इनके मजहबी श्रद्धाग्रंथों के उद्धरणों के आधारपर इनको जानने का हम प्रयास करेंगे।
 
अब एक एक कर इनके मजहबी श्रद्धाग्रंथों के उद्धरणों के आधारपर इनको जानने का हम प्रयास करेंगे।
 
ईसाईयत को जानें  
 
ईसाईयत को जानें  
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   - परन्तु तुम उन पंख और चार पाँव वाले कीडों को खा सकते हो, जिनके पृथ्वी पर कूदने के पैर होते हैं - लेवी ग्रंथ  11/3, 7, 9, 21  
 
   - परन्तु तुम उन पंख और चार पाँव वाले कीडों को खा सकते हो, जिनके पृथ्वी पर कूदने के पैर होते हैं - लेवी ग्रंथ  11/3, 7, 9, 21  
 
22) और मेरे बैरियों को जो यह नही चाहते थे कि मैं उनपर राज्य करूं, इधर लाकर मेरे सामने मार डालो - सन्त लूकस 19/27
 
22) और मेरे बैरियों को जो यह नही चाहते थे कि मैं उनपर राज्य करूं, इधर लाकर मेरे सामने मार डालो - सन्त लूकस 19/27
23) न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनियाँ कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नामपर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बट्र्रांड रसेल' व्हाय आय एॅम नॉट ए क्रिश्चियन एॅड अदर एसेज ऑन रिलीजन ' पृष्ठ 24, 7वाॅ संस्करण
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23) न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनियाँ कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नामपर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बट्र्रांड रसेल' व्हाय आय एॅम नॉट ए क्रिश्चियन एॅड अदर एसेज ऑन रिलिजन ' पृष्ठ 24, 7वाॅ संस्करण
 
24) बायबल मे वर्णित भिन्न भिन्न पैगंबरों ने भी कत्ल का तूफान मचाया था। जैसे डेव्हिड या दाऊद (सॅम्युएल का दूसरा ग्रंथ 12/31, 18/27 ), येहू (राजाओं का दूसरा ग्रंथ 10/11), मूसा का उत्तराधिकारी योशुआ (योशुआ का ग्रंथ 10/30, 32, 36, 37, 40), एलियाह (राजाओं का पहला ग्रंथ 18/40), सॅम्युएल, मूसा, एलिशा आदी
 
24) बायबल मे वर्णित भिन्न भिन्न पैगंबरों ने भी कत्ल का तूफान मचाया था। जैसे डेव्हिड या दाऊद (सॅम्युएल का दूसरा ग्रंथ 12/31, 18/27 ), येहू (राजाओं का दूसरा ग्रंथ 10/11), मूसा का उत्तराधिकारी योशुआ (योशुआ का ग्रंथ 10/30, 32, 36, 37, 40), एलियाह (राजाओं का पहला ग्रंथ 18/40), सॅम्युएल, मूसा, एलिशा आदी
 
ईसाईयत और स्त्री  
 
ईसाईयत और स्त्री  
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11) जब कोई आदमी अपनी लडकी को दासी के रूप में बेचे, तो वह दासों की तरह नही छोडी जायेगी -  
 
11) जब कोई आदमी अपनी लडकी को दासी के रूप में बेचे, तो वह दासों की तरह नही छोडी जायेगी -  
 
     - यदि वह अपने स्वामी को पसन्द न आये, जिसने उसे खरीदा है, तो वह उसे बेच सकता है। उसे किसी विदेशी व्यक्ति को न बेचा जाये, क्याै कि यह उसके साथ विश्वासघात होगा - निर्गमन ग्रंथ 21/7,8   
 
     - यदि वह अपने स्वामी को पसन्द न आये, जिसने उसे खरीदा है, तो वह उसे बेच सकता है। उसे किसी विदेशी व्यक्ति को न बेचा जाये, क्याै कि यह उसके साथ विश्वासघात होगा - निर्गमन ग्रंथ 21/7,8   
12) न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनियाॅ कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नाम्पर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बट्र्रांड रसेल' व्हाय आय एॅम नॉट ए क्रिश्चियन एॅड अदर एसेज ऑन रिलीजन ' पृष्ठ 24, 7वाॅ संस्करण
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12) न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनियाॅ कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नाम्पर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बट्र्रांड रसेल' व्हाय आय एॅम नॉट ए क्रिश्चियन एॅड अदर एसेज ऑन रिलिजन ' पृष्ठ 24, 7वाॅ संस्करण
 
ईसाईयत और वैज्ञानिक दृष्टि
 
ईसाईयत और वैज्ञानिक दृष्टि
 
1)  ईसा मसीह का जन्म इस प्रकार हुवा । उनकी माता मरियम की मँगनी युसुफ से हुई थी । परन्तु एैसा हुवा कि उनके साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गई - सन्त मत्ती - 1/18
 
1)  ईसा मसीह का जन्म इस प्रकार हुवा । उनकी माता मरियम की मँगनी युसुफ से हुई थी । परन्तु एैसा हुवा कि उनके साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गई - सन्त मत्ती - 1/18
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भारतीय सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में अपने सम्प्रदाय से किसी का सम्प्रदाय भिन्न है इसलिए उन्हें प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।  
 
भारतीय सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में अपने सम्प्रदाय से किसी का सम्प्रदाय भिन्न है इसलिए उन्हें प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।  
 
सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।  
 
सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।  
धर्म, रिलीजन, मजहब तथा संप्रदाय
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धर्म, रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय
धर्म और रिलीजन, मजहब तथा संप्रदाय इन शब्दों के अर्थ समझना आवश्यक है। रिलीजन और मजहब समान अर्थ वाले शब्द हैं। रिलीजन/मजहब और धर्म में मोटा मोटा अंतर नीचे दे रहे हैं।
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धर्म और रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय इन शब्दों के अर्थ समझना आवश्यक है। रिलिजन और मजहब समान अर्थ वाले शब्द हैं। रिलिजन/मजहब और धर्म में मोटा मोटा अंतर नीचे दे रहे हैं।
-  धर्म बुद्धि पर आधारित श्रद्धा है। जब की रिलीजन, मजहब, मत, पंथ या सम्प्रदाय की सभी अनिवार्य बातें बुद्धियुक्त ही हों यह आवश्यक नहीं होता।
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-  धर्म बुद्धि पर आधारित श्रद्धा है। जब की रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या सम्प्रदाय की सभी अनिवार्य बातें बुद्धियुक्त ही हों यह आवश्यक नहीं होता।
-  धर्म यह पूरी मानवता के हित की संकल्पना है। धर्म मानवता व्यापी है। रिलीजन, मजहब, मत, पन्थ या संप्रदाय उस रिलीजन, मजहब, मत, पंथ या संप्रदाय के लोगों को अन्य मानव समाज से अलग करने वाली संकल्पनाएँ हैं।  
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-  धर्म यह पूरी मानवता के हित की संकल्पना है। धर्म मानवता व्यापी है। रिलिजन, मजहब, मत, पन्थ या संप्रदाय उस रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या संप्रदाय के लोगों को अन्य मानव समाज से अलग करने वाली संकल्पनाएँ हैं।  
रिलीजन, मजहब या संप्रदायों का एक प्रेषित होता है। यह प्रेषित भी बुध्दिमान और दूरगामी तथा लोगों की नस जाननेवाला होता है। किन्तु वह भी मनुष्य ही होता है। उस की बुद्धि की सीमाएँ होतीं हैं। धर्म तो विश्व व्यवस्था के नियमों का ही नाम है। धर्म का कोई एक प्रेषित नहीं होता। धर्म यह प्रेषितों जैसे ही, लेकिन जिन्हे आत्मबोध हुवा है ऐसे कई श्रेष्ठ विद्वानों की सामुहिक अनुभव और अनुभूति की उपज होता है।  
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रिलिजन, मजहब या संप्रदायों का एक प्रेषित होता है। यह प्रेषित भी बुध्दिमान और दूरगामी तथा लोगों की नस जाननेवाला होता है। किन्तु वह भी मनुष्य ही होता है। उस की बुद्धि की सीमाएँ होतीं हैं। धर्म तो विश्व व्यवस्था के नियमों का ही नाम है। धर्म का कोई एक प्रेषित नहीं होता। धर्म यह प्रेषितों जैसे ही, लेकिन जिन्हे आत्मबोध हुवा है ऐसे कई श्रेष्ठ विद्वानों की सामुहिक अनुभव और अनुभूति की उपज होता है।  
रिलीजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होते हैं। इन की एक पुस्तक होती है। जैसे पारसियों की झेंद अवेस्ता, यहुदियों की ओल्ड टेस्टामेंट, ईसाईयों की बायबल, मुसलमानों का कुर्रान और कम्यूनिस्टों का जर्मन भाषा में ‘दास कॅपिटल’ (अन्ग्रेजी में द कॅपिटल)आदी । रिलीजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होने के कारण अपरिवर्तनीय होते हैं। इन में लचीलापन नहीं होता। आग्रह से आगे दुराग्रह की सीमातक यह जाते हैं।  
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रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होते हैं। इन की एक पुस्तक होती है। जैसे पारसियों की झेंद अवेस्ता, यहुदियों की ओल्ड टेस्टामेंट, ईसाईयों की बायबल, मुसलमानों का कुर्रान और कम्यूनिस्टों का जर्मन भाषा में ‘दास कॅपिटल’ (अन्ग्रेजी में द कॅपिटल)आदी । रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होने के कारण अपरिवर्तनीय होते हैं। इन में लचीलापन नहीं होता। आग्रह से आगे दुराग्रह की सीमातक यह जाते हैं।  
-  एक और बात भी यहाँ महत्वपूर्ण है। भारत में भी कई मत, पंथ या संप्रदाय हैं। किन्तु सामान्यत: वे असहिष्णू नहीं हैं। इन संप्रदायों ने अपने संप्रदायों के प्रचार प्रसार के लिये सामान्यत: हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया। किन्तु अरबस्तान में जन्मे यहुदी, ईसाई, इस्लाम और रशिया में जन्मा कम्यूनिझम ये चारों ही मजहब असहिष्णू हैं। हिंसा के आधारपर अपने रिलीजन, मजहब के प्रसार में विश्वास रखते हैं। जैसे मुसलमान यही चाहते हैं कि दुनिया के हर मानव को ‘अल्लाह’ प्यारा हो जाए। और जो यह नहीं चाहता उसे ‘अल्लाह का प्यारा’ बनाना चाहिए। दुनियाँभर में जो बेतहाशा कत्ले आम हुवे हैं वे सभी इन असहिष्णु रिलीजन या मजहबों के कारण हुए हैं। भारत में भी बड़ी तादाद में जो मुसलमान हैं या ईसाई हैं वे सामान्यत: बलपूर्वक मुसलमान या ईसाई बनाए गए हैं। ईसाईयत ने तो जब तलवार से काम नहीं चला तब झूठ, फरेब का सहारा लेकर ईसाईयत का विस्तार किया। अब लव्ह जिहाद जैसे तरीकों से इस्लाम भी ऐसे छल कपट से इस्लाम के विस्तार के प्रयास कर रहा है। इस्लाम का स्वीकार नहीं करनेवाले लाखों की संख्या में हिन्दू क़त्ल किये गए हैं। इसलिये यदि अफीम की गोली ही कहना हो तो ये रिलीजन या मजहब ही अफीम की गोली हैं।  
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-  एक और बात भी यहाँ महत्वपूर्ण है। भारत में भी कई मत, पंथ या संप्रदाय हैं। किन्तु सामान्यत: वे असहिष्णू नहीं हैं। इन संप्रदायों ने अपने संप्रदायों के प्रचार प्रसार के लिये सामान्यत: हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया। किन्तु अरबस्तान में जन्मे यहुदी, ईसाई, इस्लाम और रशिया में जन्मा कम्युनिज्म ये चारों ही मजहब असहिष्णू हैं। हिंसा के आधारपर अपने रिलिजन, मजहब के प्रसार में विश्वास रखते हैं। जैसे मुसलमान यही चाहते हैं कि दुनिया के हर मानव को ‘अल्लाह’ प्यारा हो जाए। और जो यह नहीं चाहता उसे ‘अल्लाह का प्यारा’ बनाना चाहिए। दुनियाँभर में जो बेतहाशा कत्ले आम हुवे हैं वे सभी इन असहिष्णु रिलिजन या मजहबों के कारण हुए हैं। भारत में भी बड़ी तादाद में जो मुसलमान हैं या ईसाई हैं वे सामान्यत: बलपूर्वक मुसलमान या ईसाई बनाए गए हैं। ईसाईयत ने तो जब तलवार से काम नहीं चला तब झूठ, फरेब का सहारा लेकर ईसाईयत का विस्तार किया। अब लव्ह जिहाद जैसे तरीकों से इस्लाम भी ऐसे छल कपट से इस्लाम के विस्तार के प्रयास कर रहा है। इस्लाम का स्वीकार नहीं करनेवाले लाखों की संख्या में हिन्दू क़त्ल किये गए हैं। इसलिये यदि अफीम की गोली ही कहना हो तो ये रिलिजन या मजहब ही अफीम की गोली हैं।  
-  एक और बात भी यहाँ विचारणीय है। मजहबों या रिलीजन जैसा सम्प्रदायों का राजनीतिक लक्ष्य नहीं होता। समुचे विश्व को चल, बल, कपट जिस भी तरीके से हो अपने मजह का बनाना यह उनका लक्ष्य होता है।  
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-  एक और बात भी यहाँ विचारणीय है। मजहबों या रिलिजन जैसा सम्प्रदायों का राजनीतिक लक्ष्य नहीं होता। समुचे विश्व को चल, बल, कपट जिस भी तरीके से हो अपने मजह का बनाना यह उनका लक्ष्य होता है।  
 
मजहबी विस्तार और कृण्वन्तो विश्वमार्यम्
 
मजहबी विस्तार और कृण्वन्तो विश्वमार्यम्
मजहबों का विस्तार प्रारम्भ में जब उन मजहबों को माननेवालों की संख्या कम थी, ताकत कम थी तबतक ‘बातों’ से हुआ। लेकिन संख्याबल और ताकत बढ़ जानेपर ईसाई और मुसलमान इन दोनों मजहबों ने ‘लातों या हाथों(शस्त्रों)’ का याने बल का मुख्यत: सहारा लिया। वर्त्तमान में ही अन्य समाज कुछ मात्रा में जाग्रत हुए हैं इसलिए छल और कपट का भी उपयोग किया जा रहा है।  
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मजहबों का विस्तार प्रारम्भ में जब उन मजहबों को माननेवालों की संख्या कम थी, ताकत कम थी तबतक ‘बातों’ से हुआ। लेकिन संख्याबल और ताकत बढ़ जानेपर ईसाई और मुसलमान इन दोनों मजहबों ने ‘लातों या हाथों(शस्त्रों)’ का याने बल का मुख्यत: सहारा लिया। वर्तमान में ही अन्य समाज कुछ मात्रा में जाग्रत हुए हैं इसलिए छल और कपट का भी उपयोग किया जा रहा है।  
 
इसके विपरीत धर्म के नामपर हिन्दू समाज ने कभी भी छल, बल, कपट का उपयोग हिंदुओं की संख्या बढाने के लिए नहीं किया है। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ याने पूरे विश्व को आर्य बनाने की अभिलाषा तो हिन्दुओं की भी है। आर्य का सरल अर्थ है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ (चराचर - सब सुखी हों) में विश्वास रखनेवाला और वैसा व्यवहार करनेवाला। लेकिन इस के तरीके के रूप में हिन्दुओं का विश्वास छल, बल, कपट पर नहीं है। वह है ‘स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन्’ पर। स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन् का अर्थ है अपने श्रेष्ठ व्यवहार से लोगों को इतना प्रभावित करना कि उन्हें लगने लगे कि हिन्दू बनाना गौरव की बात है। ऐसा लगने से वह आर्य बने। हिन्दू बने।  
 
इसके विपरीत धर्म के नामपर हिन्दू समाज ने कभी भी छल, बल, कपट का उपयोग हिंदुओं की संख्या बढाने के लिए नहीं किया है। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ याने पूरे विश्व को आर्य बनाने की अभिलाषा तो हिन्दुओं की भी है। आर्य का सरल अर्थ है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ (चराचर - सब सुखी हों) में विश्वास रखनेवाला और वैसा व्यवहार करनेवाला। लेकिन इस के तरीके के रूप में हिन्दुओं का विश्वास छल, बल, कपट पर नहीं है। वह है ‘स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन्’ पर। स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन् का अर्थ है अपने श्रेष्ठ व्यवहार से लोगों को इतना प्रभावित करना कि उन्हें लगने लगे कि हिन्दू बनाना गौरव की बात है। ऐसा लगने से वह आर्य बने। हिन्दू बने।  
 
हिन्दुओं की समूचे विश्व को आर्य बनाने की आकांक्षा बुद्धियुक्त भी है। यदि केवल हम ही सर्वे भवन्तु सुखिन: में विश्वास रखेंगे और विश्व के अन्य समाज बर्बर और आक्रामक बने रहेंगे तो वे हमें भी सुख से जीने नहीं देंगे। इतिहास बताता है कि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की आकांक्षा हिन्दू समाज में जब तक रही, उस दृष्टि से आर्यत्व के विस्तार के प्रयास होते रहे तब तक भारतभूमिपर कोई आक्रमण नहीं हुए। लेकिन यह आकांक्षा जैसे ही कम हुई या नष्ट हुई भारतभूमि पर बर्बर समाजों ने आक्रमण शुरू कर दिए।
 
हिन्दुओं की समूचे विश्व को आर्य बनाने की आकांक्षा बुद्धियुक्त भी है। यदि केवल हम ही सर्वे भवन्तु सुखिन: में विश्वास रखेंगे और विश्व के अन्य समाज बर्बर और आक्रामक बने रहेंगे तो वे हमें भी सुख से जीने नहीं देंगे। इतिहास बताता है कि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की आकांक्षा हिन्दू समाज में जब तक रही, उस दृष्टि से आर्यत्व के विस्तार के प्रयास होते रहे तब तक भारतभूमिपर कोई आक्रमण नहीं हुए। लेकिन यह आकांक्षा जैसे ही कम हुई या नष्ट हुई भारतभूमि पर बर्बर समाजों ने आक्रमण शुरू कर दिए।
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