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| === अयोध्या === | | === अयोध्या === |
− | भगवान् श्री राम का जन्म-स्थानअयोध्या सरयू के तटपर स्थित अति प्राचीन नगर है। स्वयं मनु ने इस नगर को स्थापित किया।" स्कन्दपुराण के अनुसार यह सुदर्शन पर बसी है। अयोध्या शब्द की व्युत्पत्ति को समझाते हुए स्कन्द पुराण कहता है कि अयोध्या शत्रुद्वारा अविजित है। अत: अयोध्या ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का समन्वित रूप है।" सूष्टिकर्ता ब्रह्मा ने स्वयं यहाँ की यात्रा की और ब्रह्मकुण्ड की स्थापना की। इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
| + | भगवान श्रीराम का जन्म-स्थानअयोध्या सरयू के तटपर स्थित अति प्राचीन नगर है। स्वयं मनु ने इस नगर को स्थापित किया।" स्कन्दपुराण के अनुसार यह सुदर्शन पर बसी है। अयोध्या शब्द की व्युत्पत्ति को समझाते हुए स्कन्द पुराण कहता है कि अयोध्या शत्रुद्वारा अविजित है। अत: अयोध्या ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का समन्वित रूप है।" सूष्टिकर्ता ब्रह्मा ने स्वयं यहाँ की यात्रा की और ब्रह्मकुण्ड की स्थापना की। इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया। |
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| " श्री राम-जन्मभूमि होने का श्रेय पाने के कारण अयोध्या साकेत हो गयी। मर्यादापुरुषोत्तम के साथ अयोध्या के समस्त प्राणी उनके दिव्य धाम को चले गये, तब श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे पुन: बसाया।अयोध्या के इतिहास से पता चलता है कि वर्तमान अयोध्या सम्राट विक्रमादित्य की बसायी हुई है। | | " श्री राम-जन्मभूमि होने का श्रेय पाने के कारण अयोध्या साकेत हो गयी। मर्यादापुरुषोत्तम के साथ अयोध्या के समस्त प्राणी उनके दिव्य धाम को चले गये, तब श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे पुन: बसाया।अयोध्या के इतिहास से पता चलता है कि वर्तमान अयोध्या सम्राट विक्रमादित्य की बसायी हुई है। |
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− | उन्होंने अयोध्या में सरोवर, देवालय आदि बनवाये | सिद्ध सन्तों की कृपा से राम-जन्मस्थल पर दिव्य मन्दिर का निर्माण कराया। यह कोटि-कोटि हिन्दुओं का श्रद्धा-केन्द्र रहा है। यह कसौटी के ८४ स्तम्भों के ऊपर आधारित था। मुस्लिम आक्रान्ता बाबर ने सन १५२८ ई. में इस भव्य मन्दिर का विध्वंस कर दिया औरइसके अवशेषों से अधूरी मस्जिद (बिना मीनार के तीन गुम्बद)बनवा दी। रामभक्तों ने जन्म-स्थान परपूजा का अधिकार कभी नहीं छोड़ा और न ही उस पर विधर्मियों के अधिकार को स्वीकार किया। अत: सतत संघर्ष करते रहे।इस संघर्ष में 7 युद्धों में तीन लाख से अधिक रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी। | + | उन्होंने अयोध्या में सरोवर, देवालय आदि बनवाये | सिद्ध सन्तों की कृपा से राम-जन्मस्थल पर दिव्य मन्दिर का निर्माण कराया। यह कोटि-कोटि हिन्दुओं का श्रद्धा-केन्द्र रहा है। यह कसौटी के ८४ स्तम्भों के ऊपर आधारित था। मुस्लिम आक्रान्ता बाबर ने सन १५२८ ई. में इस भव्य मन्दिर का विध्वंस कर दिया और इसके अवशेषों से अधूरी मस्जिद (बिना मीनार के तीन गुम्बद)बनवा दी। रामभक्तों ने जन्म-स्थान परपूजा का अधिकार कभी नहीं छोड़ा और न ही उस पर विधर्मियों के अधिकार को स्वीकार किया। अत: सतत संघर्ष करते रहे।इस संघर्ष में 7 युद्धों में तीन लाख से अधिक रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी। |
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| इसी संघर्ष की कड़ी में संवत २०४६ वि. में देवोत्थान एकादशी को नये मन्दिर के निर्माण के लिए शिलान्यास का कार्य सम्पन्न हुआ। सन २०४७ को देवोत्थान एकादशी को मन्दिर-निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतीक रूप में कार्य सेवा का श्रीगणेश हुआ। तत्कालीन मुस्लिमपरस्त सरकार ने लाख रुकावटें खड़ीं की परन्तु रामभक्तों के ज्वार को न रोक सकी। सरकार ने खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे वाली उक्ति को चरितार्थ कर निहत्थे रामभक्तों पर गोली बरसायी जिससेअनेक बलिदान हुए और सैकड़ों घायल होकर राम-मन्दिर निर्माण के लिए होने वाली कार सेवा' में भाग लेने को उत्सुक हैं। अयोध्या न केवल वैष्णव सम्प्रदाय वरन् शैव,शाक्त, बौद्ध, जैन सभी मतमतान्तरों का पवित्र स्थानहै। दशम गुरु श्री गोविन्दसिंह ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का प्रयास किया था। | | इसी संघर्ष की कड़ी में संवत २०४६ वि. में देवोत्थान एकादशी को नये मन्दिर के निर्माण के लिए शिलान्यास का कार्य सम्पन्न हुआ। सन २०४७ को देवोत्थान एकादशी को मन्दिर-निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतीक रूप में कार्य सेवा का श्रीगणेश हुआ। तत्कालीन मुस्लिमपरस्त सरकार ने लाख रुकावटें खड़ीं की परन्तु रामभक्तों के ज्वार को न रोक सकी। सरकार ने खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे वाली उक्ति को चरितार्थ कर निहत्थे रामभक्तों पर गोली बरसायी जिससेअनेक बलिदान हुए और सैकड़ों घायल होकर राम-मन्दिर निर्माण के लिए होने वाली कार सेवा' में भाग लेने को उत्सुक हैं। अयोध्या न केवल वैष्णव सम्प्रदाय वरन् शैव,शाक्त, बौद्ध, जैन सभी मतमतान्तरों का पवित्र स्थानहै। दशम गुरु श्री गोविन्दसिंह ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का प्रयास किया था। |
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| यद्यपि मथुरा में अनेक मन्दिर और तीर्थस्थल हैं परन्तु कसकिला (जन्मस्थान) पर बनी मस्जिद आज भी हिन्दू स्वाभिमान को चुनौती तथा परतंत्रता की कालिमायुक्त यादगार है। अत: जन्मस्थान को मुक्त कराने के प्रयासों में तीव्रता आ गयी हैं। मथुरा में अनेकघाट तथा प्राचीन मन्दिरहैं।द्वारिकाधीश जी का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है। मथुरा के चार कोनों पर चार शिवमन्दिर-भूतेश्वर, रंगेश्वर, पिपलेश्वर तथा गोकणोश्वर विराजमान हैं। वाराह मन्दिर, श्रीराधाविहारी मन्दिर, चामुण्डा मन्दिर (शक्तिपीठ) श्रीराम मन्दिर अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। मथुरा के पास ही वृंदावन का पावन क्षेत्र हैं जहाँ अनेक मन्दिर तथा श्रीकृष्ण व राधा से सम्बन्धित स्थल हैं। वराहपुराण', भागवत, महाभारत, बौद्धग्रन्थों में मथुरा का वर्णन आया है। यह मोक्षदायिनीपुरी हैतथा सब प्रकार के पापों का शमन करनेवाली नगरी हैं। | | यद्यपि मथुरा में अनेक मन्दिर और तीर्थस्थल हैं परन्तु कसकिला (जन्मस्थान) पर बनी मस्जिद आज भी हिन्दू स्वाभिमान को चुनौती तथा परतंत्रता की कालिमायुक्त यादगार है। अत: जन्मस्थान को मुक्त कराने के प्रयासों में तीव्रता आ गयी हैं। मथुरा में अनेकघाट तथा प्राचीन मन्दिरहैं।द्वारिकाधीश जी का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है। मथुरा के चार कोनों पर चार शिवमन्दिर-भूतेश्वर, रंगेश्वर, पिपलेश्वर तथा गोकणोश्वर विराजमान हैं। वाराह मन्दिर, श्रीराधाविहारी मन्दिर, चामुण्डा मन्दिर (शक्तिपीठ) श्रीराम मन्दिर अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। मथुरा के पास ही वृंदावन का पावन क्षेत्र हैं जहाँ अनेक मन्दिर तथा श्रीकृष्ण व राधा से सम्बन्धित स्थल हैं। वराहपुराण', भागवत, महाभारत, बौद्धग्रन्थों में मथुरा का वर्णन आया है। यह मोक्षदायिनीपुरी हैतथा सब प्रकार के पापों का शमन करनेवाली नगरी हैं। |
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| + | === हरिद्वार(माया) === |
| + | पावन क्षेत्र हरिद्वार को मायुपरी या गंगाद्वार नाम से भी जाना जाता है। मुसलमान इतिहासकार इस तीर्थ को गांगद्वार,वैष्णव हरिद्वार तथा शैव हरिद्वार के नाम से पुकारते हैं। टीम कोयराट ने, जिसने जहांगीर के शासनकाल में यहां की यात्रा की, इसे "शिव की राजधानी' बताया। चीनी यात्री हवेनसांग ने भीअपने यात्रा-वृत्तांत में हरिद्वार का वर्णन किया है। पवित्र गांग ३२० कि.मी. की पर्वत-क्षेत्र की यात्रा करने के बाद यहीं पर मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं। यहाँ अनेक नवीन-प्राचीन आश्रम, मन्दिर तथा तीर्थक्षेत्र हैं।विल्वकेश्वर, नीलकण्ठ, गांगद्वार, कनखल तथा कुशावर्त प्रमुख तीर्थक्षेत्र हैं। दक्ष प्रजापति ने कनखल में ही वह इतिहास-प्रसिद्ध यज्ञ किया था जिसका सती के यज्ञागिन में जल जाने पर शिवगणों ने विध्वंस कर दिया था। हरिद्वार में कुंभ का मेला प्रति 12 वें वर्ष लगता है। हरिद्वार में भारत में विकसित सभी पंथ-सम्प्रदायों के पवित्र स्थान विराजमान हैं। यहाँ के हरि की पौड़ी तथा अन्य घाटोंपर गांगास्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है।' हरिद्वार के आसपास के क्षेत्र में सप्तसरोवर, मनसादेवी, भीमगोड़ा, ऋषिकेश आदि तीर्थ स्थापित हैं। भारत की सांस्कृतिक व धार्मिक सम्पदा का दिग्दर्शन कराने वाला सात मंजिला 'भारत माता मन्दिर’ निवर्तमान जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानन्दजी के अथक प्रयासों से बन चुका है। तार्किक व वैज्ञानिक स्तर पर धार्मिक मूल्यों के संरक्षण में रत शान्तिकुंज’ और ‘ब्रह्मवर्चस' हरिद्वार में ही हैं। |
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| ==References== | | ==References== |