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− | कुट्म्ब शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । कुट्म्ब में
| + | कुटुम्ब शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । कुटुम्ब में जो शिक्षा प्राप्त होती है उसका अन्यत्र कहीं कोई विकल्प नहीं है। कुटुम्ब की शिक्षा के बिना विद्यालय में या अन्यत्र मिलने वाली शिक्षा की कोई सार्थकता नहीं है । ये तीनों बातें सत्य होने पर भी आज कुटुम्ब में शिक्षा की व्यवस्था होना बहुत कठिन हो गया है, इसमें बड़े बड़े अवरोध निर्माण हो गये हैं । इन अवरोधों का स्वरूप कैसा है, उसके परिणाम क्या होते हैं और इन अवरोधों को दूर करने के क्या उपाय हो सकते हैं इसका अब विचार करेंगे । |
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− | जो शिक्षा प्राप्त हैती है उसका अन्यत्र कहीं कोई विकल्प
| + | == अज्ञान == |
| + | कुटुम्ब में नयी पीढ़ी की शिक्षा का दायित्व मातापिता का है इस बात का ही विस्मरण हुआ है। घर भी एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है इस बात का अज्ञान है । शताब्दियों से गृहजीवन निर्बाध रूप से चलता रहा, इसके परिणाम स्वरूप घर को सबने गृहीत मान लिया। घर को घर के रूप में सुरक्षित रखने के लिये घर के लोगों को प्रयास करने होते हैं इस बात का विस्मरण हुआ। उसमें फिर विगत सौ वर्षों से विद्यालयों और महाविद्यालयों की शिक्षा का स्वरूप विपरीत हो गया । यही विपरीत शिक्षा स्त्रियों को भी मिलनी चाहिये ऐसा आग्रह शुरू हुआ। पढ़ी लिखी स्त्रियों ने घर में बन्द नहीं रहना चाहिये, केवल चौका चूल्हा नहीं करना चाहिये, ऐसा आग्रह शुरू हुआ । स्त्री बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं है कहकर स्त्री मुक्ति का झण्डा फहराया गया। |
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− | नहीं @ | Here की शिक्षा के बिना विद्यालय में या अन्यत्र | + | घर इस शिकंजे में फँस गया। “शिक्षितों' को देखकर “अशिक्षितों' की भी यही चाह बनने लगी । अब घर ही हेय हो गया तो घर में शिक्षा मिलती है यह बात ही नहीं रही। अब दो पीढ़ियों से ऐसे मातापिता बन रहे हैं जिन्हें मातापिता बनने की शिक्षा कहीं मिली नहीं है न उन्हें पता है कि स्त्री और पुरुष से पति और पत्नी बनने में और पति-पत्नी से माता-पिता बनने में कोई अन्तर होता है। वे अपनी सन्तानों के लिये जैविक और आर्थिक मातापिता होते हैं । बच्चों की सर्व प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था घर से बाहर ही होना उन्हें स्वाभाविक लगता है। उन्हें केवल इतना ही पता होता है कि इसके लिये पैसा खर्च करना होता है जिसका प्रबन्ध उन्हें करना है। यही उनकी मातापिता के नाम पर जिम्मेदारी होती है। इस कारण से बच्चों को कहानी बताना, लोरी गाना आदि से लेकर उन्हें जीवन की दिशा देने तक की छोटी बड़ी कोई भी बात उन्हें आती नहीं है। वे हमेशा पैसा देकर अपना छुटकारा कर लेते हैं। इस स्थिति में कुटुम्ब में शिक्षा होना आज असम्भव हो जाता है। |
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− | मिलने वाली शिक्षा की कोई सार्थकता नहीं है । ये तीनों
| + | == समय का अभाव == |
| + | अर्थाजन जीवन चलाने के लिये अनिवार्य है। आज भारत की जीवनव्यवस्था में इतना भारी परिवर्तन हो गया है कि सामान्य मनुष्य को जीवननिर्वाह हेतु अर्थाजन करने के लिये दिन का अधिकतम समय खर्च करना पड़ता है। महानगरों में व्यवसाय का स्थान घर से दूर होता है । ट्रैफिक जाम की समस्या होती है । कम समय काम करके जो पैसा मिलता है वह पर्याप्त नहीं होता। मनुष्य की इच्छायें बढ़ गई हैं और वे पूर्ण करनी ही चाहिये ऐसी धारणा बन गई है । उसके लिये अधिकाधिक अधथर्जिन करना चाहिये ऐसा मानस है। सेवानिवृत्त लोग निवृत्ति के बाद भी अर्थाजन करते हैं, दुकान चलाने वाले रात्रि में देर तक दुकान चलाते हैं, रात्रि में भी अर्थाजन चलता है । उन्हें घर के लिये समय ही नहीं है । विद्यार्थियों को भी विद्यालय, ट्यूशन, विभिन्न गतिविधियों के चलते घर में रहने का समय नहीं है । घर के लोग घर में यदि साथ ही नहीं रहते तो घर में शिक्षा कैसे होगी? |
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− | बातें सत्य होने पर भी आज कुट्म्ब में शिक्षा की व्यवस्था
| + | ''............. page-244 .............'' |
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− | होना बहुत कठिन हो गया है, इसमें बड़े बड़े अवरोध
| + | ''भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप'' |
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− | निर्माण हो गये हैं । इन अवरोधों का स्वरूप कैसा है, उसके
| + | ''इतना कम है तो अब घर में की छाया पड़ गई है इसलिये घर घर नहीं रहा, घर का'' |
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− | परिणाम क्या होते हैं और इन अवरोधों को दूर करने के
| + | ''टीवी है और सबके पास मोबाइल और इण्टरनेट है । सब आभास रहा है ।'' |
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− | क्या उपाय हो सकते हैं इसका अब विचार करेंगे ।
| + | ''इस दुनिया में ऐसे डूबे हुए हैं कि घर विस्मृत हो गया है । स्थिति को बदले बिना घर में शिक्षा होना यदि'' |
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− | १, अज्ञान
| + | ''इस स्थिति में घर में शिक्षा की सम्भावनायें बनती नहीं है । सम्भव नहीं है तो स्थिति में परिवर्तन करने का ही प्रयास'' |
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− | aera Hag पीढ़ी की शिक्षा का दायित्व मातापिता
| + | ''करना चाहिये । इस दृष्टि से कौन सी बातें करणीय हैं इसका'' |
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− | का है इस बात का ही विस्मरण हुआ है । घर भी एक
| + | == घर में सदस्यों की संख्या कम होना == |
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− | महत्त्वपूर्ण केन्द्र है इस बात का अज्ञान है । शताब्दियों से
| + | ''विचार करें ।'' |
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− | गृहजीवन निर्बाध रूप से चलता रहा इसके परिणाम स्वरूप
| + | ''शिक्षा नौकरी, व्यवसाय आदि करणों से दो पीढ़ियों .. १, साधु, सन्तों, संन्यासियों, सामाजिक और सांस्कृतिक'' |
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− | घर को सबने गृहीत मान लिया । घर को घर के रूप में
| + | ''का साथ साथ रहना कठिन हो गया है। लोग इसे संगठनों और GEMS Hl Bers प्रबोधन का कार्य'' |
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− | सुरक्षित रखने के लिये घर के लोगों को प्रयास करने होते हैं
| + | ''स्वाभाविक मानने लगे हैं । अच्छा करिअर बनाना है तो प्रास्भ करना चाहिये । अच्छा मनुष्य अच्छे घर में'' |
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− | इस बात का विस्मरण हुआ । उसमें फिर विगत Se सौ
| + | ''पढ़ने के लिये दूर जाना ही होगा । अच्छी नौकरी के लिये ही बनता है । संस्कृति की रक्षा घर में ही होती है,'' |
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− | वर्षों से विद्यालयों और महाविद्यालयों की शिक्षा का स्वरूप
| + | ''दूर जाना ही होगा, अच्छा पैसा कमाने के लिये विदेश ऐसे घर की रक्षा करना घर के सभी सदस्यों का'' |
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− | विपरीत हो गया । यही विपरीत शिक्षा खियों को भी मिलनी
| + | ''जाना ही होगा । बच्चों को छोटी आयु से ही छात्रावास में कर्तव्य है इस विषय में समाज का प्रबोधन करना'' |
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− | चाहिये ऐसा आग्रह शुरू हुआ । पढ़ी लिखी ख़ियों ने घर में | + | ''भेजना अस्वाभाविक नहीं लगता । कहीं कहीं तो करिअर चाहिये । आज भी भारतीय समाज में साधु gait Ft'' |
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− | बन्द नहीं रहना चाहिये, केवल चौका चूल्हा नहीं करना
| + | ''और अआधथर्जिन के निमित्त से पतिपत्नी भी साथ नहीं रहते । बात मानने वाला बड़ा वर्ग है । उस वर्ग को घर के'' |
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− | चाहिये ऐसा आग्रह शुरू हुआ | स्त्री बच्चे पैदा करने की
| + | ''aera ot fear नहीं है तो कुटम्ब में शिक्षा कैसे होगी ? सम्बन्ध में बताया जा सकता है ।'' |
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− | मशीन नहीं है कहकर ख्त्रीमुक्ति का झण्डा फहराया गया ।
| + | ''घर में दो पीढ़ी साथ नहीं रहना और एक ही सन्तान २... विद्यालयों और महाविद्यालयों में yea'' |
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− | घर इस शिकंजे में फँस गया । “शिक्षितों' को देखकर
| + | ''होना कठिनाई को और बढ़ाता है। एक ही सन्तान को कक्षानुसार पाठ्यक्रम चलाये जाने चाहिये । इन'' |
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− | “अशिक्षितों' की भी यही चाह बनने लगी । अब घर ही
| + | ''किसी को भी सहभागिता का अनुभव ही नहीं होता । पाठ्यक्रमों को अनिवार्य बनाना चाहिये ।'' |
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− | हेय हो गया तो घर में शिक्षा मिलती है यह बात ही नहीं
| + | ''वस्तुओं और अनुभवों को बाँटना नहीं आता । साथ जीना... ३... भारतीय कुट्म्बव्यवस्था की कल्पना के अनुसार'' |
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− | रही । अब दो पीढ़ियों से ऐसे मातापिता बन रहे हैं जिन्हें
| + | ''क्या होता है यह नहीं समझता । यह इकलौती सन्तान पति बालक शिक्षा और बालिका शिक्षा का स्वरूप'' |
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− | मातापिता बनने की शिक्षा कहीं मिली नहीं है न उन्हें पता
| + | ''या पत्नी नहीं बनती, वह करिअर पर्सन ही बनती है । निश्चित करना चाहिये और उसकी शिक्षा का प्रबन्ध'' |
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− | है कि ख्री और पुरुष से पति और पत्नी बनने में और पति- | + | ''कुटुम्ब में होनेबाली शिक्षा न उसे मिलती है न वह किसी करना चाहिये ।'' |
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− | २२७
| + | ''को दे सकती है । ¥. बहुत बड़ी आवश्यकता तो यह है कि लोगों को'' |
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− | पत्नी से माता-पिता बनने में कोई अन्तर होता है । वे
| + | ''स्थिति सुधार हेतु करणीय कार्य'' |
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− | अपनी सन्तानों के लिये जैविक और आर्थिक मातापिता
| + | ''अर्थाजन और विद्यार्थियों को विद्यार्जन का समय कम'' |
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− | होते हैं । बच्चों की सर्व प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था घर
| + | ''<nowiki>*</nowiki> GAT ed HOUT aI करके अधिक समय घर में साथ रहने का आग्रह'' |
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− | से बाहर ही होना उन्हें स्वाभाविक लगता है । उन्हें केवल
| + | ''जिस भी काम का पैसा नहीं मिलता वह काम करने किया जाय । दो, तीन या चार पीढ़ियाँ साथ रहना'' |
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− | इतना ही पता होता है कि इसके लिये पैसा खर्च करना
| + | ''लायक नहीं होता यही धारणा बन गई है । या तो पैसा सम्भव बनाने का आग्रह किया जाय । साथ रहेंगे तो'' |
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− | होता है जिसका प्रबन्ध उन्हें करना है। यही उनकी
| + | ''लेकर काम करना है या पैसा देकर काम करवाना है । जिस साथ जीयेंगे, साथ जीयेंगे तो एकदूसरे से सीखेंगे ।'' |
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− | मातापिता के नाम पर जिम्मेदारी होती है । इस कारण से
| + | ''काम के पैसे नहीं मिलते वह काम भी करना होता है ऐसा... ५... कुट्म्बशिक्षा के अनेक विषय ऐसे हैं जिनका शास्त्रीय'' |
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− | बच्चों को कहानी बताना, लोरी गाना आदि से लेकर उन्हें | + | ''विचार ही नहीं आता । अतः बच्चों को संस्कार देना है तो दृष्टि से ऊहापोह होकर नये से पाठ्यक्रम तैयार किये'' |
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− | जीवन की दिशा देने तक की छोटी बड़ी कोई भी बात उन्हें
| + | ''संस्कारवर्ग में भेजना, अच्छा वर या वधू बनना है तो जाय, उन्हें चलाने हेतु सामग्री तैयार की जाय और'' |
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− | आती नहीं है । वे हमेशा पैसा देकर अपना छुटकारा कर
| + | ''उसके लिये चलने वाले वर्ग में भेजो, वर या वधू का चयन ऐसे पाठ्यक्रम चलाने की व्यवस्था की जाय । कुछ'' |
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− | लेते हैं। इस स्थिति में कुट्म्ब में शिक्षा होना आज
| + | ''इण्टरनेट से करो, व्रत या उत्सव का इवेण्ट बना दो, विवाह पाठ्यक्रम इस प्रकार हो सकते हैं ।'' |
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− | असम्भव हो जाता है ।
| + | ''समारोह भी इवेण्ट की तरह आयोजित करो । ऐसी स्थिति'' |
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− | २. समय का अभाव
| + | कुछ पाठ्यक्रम इस प्रकार हो सकते हैं: |
− | | + | # वरवधू चयन |
− | अथर्जिन जीवन चलाने के लिये अनिवार्य है । आज
| + | # विवाह संस्कार |
− | | + | # अच्छा वर और अच्छी वधू बनने के उपाय |
− | भारत की जीवनव्यवस्था में इतना भारी परिवर्तन हो गया है
| + | # अच्छे बालक के अच्छे मातापिता |
− | | + | # पतिपत्नी और गृहस्थाश्रम |
− | कि सामान्य मनुष्य को जीवननिर्वाह हेतु अथर्जिन करने के
| + | # मातापिता बनने की तैयारी |
− | | + | # शिशुसंगोपन |
− | लिये दिन का अधिकतम समय खर्च करना पड़ता है।
| + | # आश्रमचतुश्य और गृहस्थाश्रम |
− | | + | # आयु की विभिन्न अवस्थायें, उनके लक्षण, स्वभाव, क्षमतायें और आवश्यकतायें |
− | महानगरों में व्यवसाय का स्थान घर से दूर होता है । ट्रैफिक
| + | # पुत्र-पुरुष-पति-गृहस्थ-पिता-दादा । पुत्री-स्त्री-पत्नी-गृहिणी-माता-दादी |
− | | + | # कौटुम्बिक सम्बन्ध और उनकी भूमिका |
− | जाम की समस्या होती है । कम समय काम करके जो पैसा
| + | # आहारशास्त्र - भोजन का विज्ञान, पाककला, परोसने की कला और भोजन करने की कला |
− | | + | # कुटुम्ब का व्यवसाय और अर्थशास्त्र |
− | मिलता है वह पर्याप्त नहीं होता । मनुष्य की इच्छायें बढ़
| + | # एकात्म कुटुम्ब |
− | | + | # गृहसंचालन और गृहिणी गृहमुच्यते |
− | गई हैं और वे पूर्ण करनी ही चाहिये ऐसी धारणा बन गई
| + | # रुग्ण और वृद्धपरिचर्या |
− | | + | # घर के लिये उपयोगी विविध कामों का शास्त्र |
− | है । उसके लिये अधिकाधिक अधथर्जिन करना चाहिये ऐसा
| + | # कुटुम्ब का सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व |
− | | + | # भारत की चिरंजीविता का रहस्य : कुटुम्ब व्यवस्था |
− | मानस है । सेवानिवृत्त लोग निवृत्ति के बाद भी अथर्जिन
| + | इन पाठ्यक्रमों को चलाने हेतु वास्तव में स्थान स्थान पर गृहविद्यालय और गृहविद्यापीठ चलाये जाने चाहिये । परन्तु उन्हें वर्तमान शिक्षाव्यवस्था के अन्तर्गत या उसके समान नहीं चलाना चाहिये । ये पाठ्यक्रम यदि परीक्षा और प्रमाणपत्र के जाल में फँस गये तो यान्त्रि और अनर्थक बन जायेंगे । उनका भी एक व्यवसाय बन जायेगा । वे शुद्ध सांस्कृतिकरूप में चलने चाहिये । समाज सेवी संस्थाओं द्वारा ये चलने चाहिये । इस प्रकार कुटुम्ब व्यवस्था और उसमें चलने वाली शिक्षा का महत्त्व दर्शाने का यहाँ प्रयास हुआ है। इस विषय का महत्त्व सर्वकालीन है। सर्वकालीन महत्त्व समझकर वर्तमान सन्दर्भ के अनुसार उसका स्वरूप निर्धारित कर कुटुम्ब संस्था और कुटुम्ब शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता है । |
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− | करते हैं, दुकान चलाने वाले रात्रि में देर तक दुकान चलाते
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− | हैं, रात्रि में भी अथर्जिन चलता है । उन्हें घर के लिये समय
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− | ही नहीं है । विद्यार्थियों को भी विद्यालय, स्यूशन, विभिन्न
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− | गतिविधियों के चलते घर में रहने का समय नहीं है । घर के
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− | लोग घर में यदि साथ ही नहीं रहते तो घर में शिक्षा कैसे
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− | होगी ?
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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− | इतना कम है तो अब घर में की छाया पड़ गई है इसलिये घर घर नहीं रहा, घर का
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− | टीवी है और सबके पास मोबाइल और इण्टरनेट है । सब आभास रहा है ।
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− | इस दुनिया में ऐसे डूबे हुए हैं कि घर विस्मृत हो गया है । स्थिति को बदले बिना घर में शिक्षा होना यदि
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− | इस स्थिति में घर में शिक्षा की सम्भावनायें बनती नहीं है । सम्भव नहीं है तो स्थिति में परिवर्तन करने का ही प्रयास
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− | करना चाहिये । इस दृष्टि से कौन सी बातें करणीय हैं इसका
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− | ३. घर में सदस्यों की संख्या कम होना विचार करें ।
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− | शिक्षा नौकरी, व्यवसाय आदि करणों से दो पीढ़ियों .. १, साधु, सन्तों, संन्यासियों, सामाजिक और सांस्कृतिक
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− | का साथ साथ रहना कठिन हो गया है। लोग इसे संगठनों और GEMS Hl Bers प्रबोधन का कार्य
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− | स्वाभाविक मानने लगे हैं । अच्छा करिअर बनाना है तो प्रास्भ करना चाहिये । अच्छा मनुष्य अच्छे घर में
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− | पढ़ने के लिये दूर जाना ही होगा । अच्छी नौकरी के लिये ही बनता है । संस्कृति की रक्षा घर में ही होती है,
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− | दूर जाना ही होगा, अच्छा पैसा कमाने के लिये विदेश ऐसे घर की रक्षा करना घर के सभी सदस्यों का
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− | जाना ही होगा । बच्चों को छोटी आयु से ही छात्रावास में कर्तव्य है इस विषय में समाज का प्रबोधन करना
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− | भेजना अस्वाभाविक नहीं लगता । कहीं कहीं तो करिअर चाहिये । आज भी भारतीय समाज में साधु gait Ft
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− | और अआधथर्जिन के निमित्त से पतिपत्नी भी साथ नहीं रहते । बात मानने वाला बड़ा वर्ग है । उस वर्ग को घर के
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− | aera ot fear नहीं है तो कुटम्ब में शिक्षा कैसे होगी ? सम्बन्ध में बताया जा सकता है ।
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− | घर में दो पीढ़ी साथ नहीं रहना और एक ही सन्तान २... विद्यालयों और महाविद्यालयों में yea
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− | होना कठिनाई को और बढ़ाता है। एक ही सन्तान को कक्षानुसार पाठ्यक्रम चलाये जाने चाहिये । इन
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− | किसी को भी सहभागिता का अनुभव ही नहीं होता । पाठ्यक्रमों को अनिवार्य बनाना चाहिये ।
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− | वस्तुओं और अनुभवों को बाँटना नहीं आता । साथ जीना... ३... भारतीय कुट्म्बव्यवस्था की कल्पना के अनुसार
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− | क्या होता है यह नहीं समझता । यह इकलौती सन्तान पति बालक शिक्षा और बालिका शिक्षा का स्वरूप
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− | या पत्नी नहीं बनती, वह करिअर पर्सन ही बनती है । निश्चित करना चाहिये और उसकी शिक्षा का प्रबन्ध
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− | कुट्म्ब में होनेबाली शिक्षा न उसे मिलती है न वह किसी करना चाहिये ।
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− | को दे सकती है । ¥. बहुत बड़ी आवश्यकता तो यह है कि लोगों को
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− | ४. स्थिति सुधार हेतु करणीय कार्य अथर्जिन और विद्यार्थियों को विद्यार्जन का समय कम
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− | <nowiki>*</nowiki> GAT ed HOUT aI करके अधिक समय घर में साथ रहने का आग्रह
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− | जिस भी काम का पैसा नहीं मिलता वह काम करने किया जाय । दो, तीन या चार पीढ़ियाँ साथ रहना
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− | लायक नहीं होता यही धारणा बन गई है । या तो पैसा सम्भव बनाने का आग्रह किया जाय । साथ रहेंगे तो
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− | लेकर काम करना है या पैसा देकर काम करवाना है । जिस साथ जीयेंगे, साथ जीयेंगे तो एकदूसरे से सीखेंगे ।
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− | काम के पैसे नहीं मिलते वह काम भी करना होता है ऐसा... ५... कुट्म्बशिक्षा के अनेक विषय ऐसे हैं जिनका शास्त्रीय
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− | विचार ही नहीं आता । अतः बच्चों को संस्कार देना है तो दृष्टि से ऊहापोह होकर नये से पाठ्यक्रम तैयार किये
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− | संस्कारवर्ग में भेजना, अच्छा वर या वधू बनना है तो जाय, उन्हें चलाने हेतु सामग्री तैयार की जाय और
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− | उसके लिये चलने वाले वर्ग में भेजो, वर या वधू का चयन ऐसे पाठ्यक्रम चलाने की व्यवस्था की जाय । कुछ
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− | इण्टरनेट से करो, व्रत या उत्सव का इवेण्ट बना दो, विवाह पाठ्यक्रम इस प्रकार हो सकते हैं ।
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− | समारोह भी इवेण्ट की तरह आयोजित करो । ऐसी स्थिति १. वरवधू चयन
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− | में घर में शिक्षा होना असम्भव बन गया है । घर पर पश्चिम २. विवाह संस्कार
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− | पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा
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− | ३. अच्छा वर और अच्छी वधू बनने के उपाय
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− | ४. अच्छे बालक के अच्छे मातापिता
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− | . पतिपत्नी और गृहस्थाश्रम
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− | . मातापिता बनने की तैयारी
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− | . शिशुसंगोपन
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− | . आश्रमचतुश्य और गृहस्थाश्रम
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− | ९, आयु की विभिन्न अवस्थायें, उनके लक्षण,
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− | स्वभाव, क्षमतायें और आवश्यकतायें | |
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− | १०... पुत्र-पुरुष-पति-गृहस्थ-पिता-दादा । पुत्री-
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− | स्त्री-पत्नी-गृहिणी-माता-दादी | |
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− | ११, कौट्म्बिक सम्बन्ध और उनकी भूमिका
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− | १२. आहारशास्त्र - भोजन का विज्ञान, पाककला,
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− | परोसने की कला और भोजन करने की कला | |
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− | १३, कुट्म्ब का व्यवसाय और अर्थशास्त्र
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− | १४, एकात्म Hers
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− | १५, गृहसंचालन और गृहिणी गृहमुच्यते
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− | १६. क्रग्ण और वृद्धपरिचर्या
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− | १७, घर के लिये उपयोगी विविध कामों का शास्त्र
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− | १८, कुट्म्ब का सामाजिक और
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− | राष्ट्रीय दायित्व | |
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− | १९, भारत की चिरंजीविता का रहस्य : कुटुम्ब
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− | व्यवस्था | |
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− | इन पाठ्यक्रमों को चलाने हेतु वास्तव में स्थान स्थान | |
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− | पर गृहविद्यालय और गृहविद्यापीठ चलाये जाने | |
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− | चाहिये । परन्तु उन्हें वर्तमान शिक्षाव्यवस्था के | |
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− | अन्तर्गत या उसके समान नहीं चलाना चाहिये । ये | |
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− | पाठ्यक्रम यदि परीक्षा और प्रमाणपत्र के जाल में | |
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− | फँस गये तो यान्त्रि और अनर्थक बन जायेंगे । | |
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− | उनका भी एक व्यवसाय बन जायेगा । वे शुद्ध | |
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− | सांस्कृतिकरूप में चलने चाहिये । समाज सेवी | |
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− | संस्थाओं द्वारा ये चलने चाहिये । | |
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− | इस प्रकार कुट्म्ब व्यवस्था और उसमें चलने वाली | |
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− | शिक्षा का महत्त्व दशनि का यहाँ प्रयास हुआ है। इस | |
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− | विषय का महत्त्व सर्वकालीन है। सर्वकालीन महत्त्व | |
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− | समझकर वर्तमान सन्दर्भ के अनुसार उसका स्वरूप निर्धारित | |
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− | ot era FET sk Hers frat At Gasifier करने
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− | की आवश्यकता है । | |