इस दृष्टि से देखें तो शिक्षा विद्यालय में तो बहुत ही कम होती है। शिक्षा की शुरुआत घर में होती है, जन्म के भी पूर्व से होती है और विद्यालयीन शिक्षा समाप्त हो जाने के बाद भी चलती है । हम यह भी कह सकते हैं कि प्राचीन समय में, अथवा तो यह कहें कि भारत में गुरुकुल में जाकर शास्त्रों के अध्ययन को ही शिक्षा कहा जाता था, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, व्यापार आदि सीखने को शिक्षा नहीं कहा जाता था । यह सब सीखने के लिए गुरुकुल में जाने की आवश्यकता नहीं थी । वह घर में और घर के आसपास मिलने वाले मार्गदर्शन से ही मिल जाती थी । उसके लिए न तो कोई तंत्र आवश्यक था न पैसा । अर्थार्जन अथवा अन्य भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति तो घर में और आसपास से ही हो जाती थी । | इस दृष्टि से देखें तो शिक्षा विद्यालय में तो बहुत ही कम होती है। शिक्षा की शुरुआत घर में होती है, जन्म के भी पूर्व से होती है और विद्यालयीन शिक्षा समाप्त हो जाने के बाद भी चलती है । हम यह भी कह सकते हैं कि प्राचीन समय में, अथवा तो यह कहें कि भारत में गुरुकुल में जाकर शास्त्रों के अध्ययन को ही शिक्षा कहा जाता था, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, व्यापार आदि सीखने को शिक्षा नहीं कहा जाता था । यह सब सीखने के लिए गुरुकुल में जाने की आवश्यकता नहीं थी । वह घर में और घर के आसपास मिलने वाले मार्गदर्शन से ही मिल जाती थी । उसके लिए न तो कोई तंत्र आवश्यक था न पैसा । अर्थार्जन अथवा अन्य भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति तो घर में और आसपास से ही हो जाती थी । |