# व्यक्तिवादिता या स्वार्थवादिता : जब व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्त्व होता है तो वहां दुर्बल के स्वार्थ को कोई नहीं पूछता। अतः बलवानों के स्वार्थ के लिए समाज में व्यवस्थाएं बनतीं हैं। फिर “सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट” याने जो बलवान होगा वही जियेगा। जो दुर्बल होगा वह बलवान के लिए और बलवान की इच्छा के अनुसार जियेगा। इसी का अर्थ है “एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक” याने बलवान को दुर्बल का शोषण करने की छूट है। इस मान्यता के कारण मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट हो जाती है। हर परिस्थिति में वह केवल अपने हित का ही विचार करता है। | # व्यक्तिवादिता या स्वार्थवादिता : जब व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्त्व होता है तो वहां दुर्बल के स्वार्थ को कोई नहीं पूछता। अतः बलवानों के स्वार्थ के लिए समाज में व्यवस्थाएं बनतीं हैं। फिर “सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट” याने जो बलवान होगा वही जियेगा। जो दुर्बल होगा वह बलवान के लिए और बलवान की इच्छा के अनुसार जियेगा। इसी का अर्थ है “एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक” याने बलवान को दुर्बल का शोषण करने की छूट है। इस मान्यता के कारण मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट हो जाती है। हर परिस्थिति में वह केवल अपने हित का ही विचार करता है। |