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== आयुर्वेद – स्वास्थ्य शास्त्र ==
 
== आयुर्वेद – स्वास्थ्य शास्त्र ==
शास्त्र की व्याख्या हमने पहले जानी है। जब कोई ध्यानावस्था प्राप्त ऋषि ध्यानावस्था में लोकहित के लिए किसी विषय की प्रस्तुति करता है तब वह शास्त्र माना जाता है। [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] केवल प्रकृति के नियमों की जानकारी देता है। शास्त्र, [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] के साथ ही उसके कल्याणकारी उपयोग के लिए भी मार्गदर्शन करता है। स्वास्थ्य [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] यह जानकारी होगा। जैसे शरीर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] याने (एनोटोमी) शरीर की रचना की, शरीर की विभिन्न प्रणालियों की जानकारी देगा। जब की स्वास्थ्य शास्त्र शरीर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] का उपयोग शरीर को स्वस्थ कैसे रखा जाता है इसकी भी जानकारी देगा।     
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शास्त्र की व्याख्या हमने पहले जानी है। जब कोई ध्यानावस्था प्राप्त ऋषि ध्यानावस्था में लोकहित के लिए किसी विषय की प्रस्तुति करता है तब वह शास्त्र माना जाता है। [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] केवल प्रकृति के नियमों की जानकारी देता है। शास्त्र, [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] के साथ ही उसके कल्याणकारी उपयोग के लिए भी मार्गदर्शन करता है। स्वास्थ्य [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] यह जानकारी होगा। जैसे शरीर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] याने (एनोटोमी) शरीर की रचना की, शरीर की विभिन्न प्रणालियों की जानकारी देगा। जब की स्वास्थ्य शास्त्र शरीर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] का उपयोग शरीर को स्वस्थ कैसे रखा जाता है इसकी भी जानकारी देगा।     
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इस दृष्टि से आयुर्वेद स्वास्थ्य शास्त्र है। जो शरीर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान], प्रकृति [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान], मनो[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान], बुद्धि और चित्त के [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]ों की सहायता से मानव के केवल शरीर ही नहीं मानव के पूरे व्यक्तित्व को याने शरीर, मन, बुद्धि और चित्त को स्वस्थ रखने के लिए मार्गदर्शन करता है। श्रीमद्भगवद्गीता में एक शब्द का प्रयोग किया गया है। वह है “योगक्षेम”। योगक्षेम में दो शब्द हैं। एक है योग और दूसरा है क्षेम। योग का अर्थ है जो कमी है उसे पूरा करना। और क्षेम का अर्थ है कमी पूरी करने के बाद जो है उसकी रक्षा करना, उसका क्षरण नहीं होने देना। केवल आयुर्वेद ही नहीं सभी धार्मिक  शास्त्रों में योगक्षेम का ही मार्गदर्शन मिलता है। सामान्यत: हर बालक जन्म से तो स्वस्थ ही होता है। आहार विहार की गलतियों न करे तो वह स्वस्थ ही रहेगा। अतः आयुर्वेद या धार्मिक  स्वास्थ्य शास्त्र केवल रोग चिकित्सा का विषय नहीं है। रोग हो ही नहीं इस बात पर इसमें अधिक बल है। किसी अपरिहार्य परिस्थिति के कारण यदि स्वास्थ्य में कुछ दोष (रोग) निर्माण हो जाए तब ही चिकित्सा की आवश्यकता निर्माण होती है। इस दृष्टि से यह मूलत: धर्म का याने प्राकृतिक जीवन जीकर स्वास्थ्य के रक्षण करने का मार्गदर्शन है। रोग चिकित्सा और रोग निवारण तो इसमें आपद्धर्म के रूप में आते हैं। वर्तमान में “नेचरोपेथी” नाम से जो भी चलता है वह आयुर्वेद के ज्ञान को ही “नेचरोपेथी” के नाम से अपने नाम पर तथाकथित पश्चिमी विद्वानों द्वारा की हुई प्रस्तुति मात्र है।   
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इस दृष्टि से आयुर्वेद स्वास्थ्य शास्त्र है। जो शरीर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]], प्रकृति [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]], मनो[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]], बुद्धि और चित्त के [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]]ों की सहायता से मानव के केवल शरीर ही नहीं मानव के पूरे व्यक्तित्व को याने शरीर, मन, बुद्धि और चित्त को स्वस्थ रखने के लिए मार्गदर्शन करता है। श्रीमद्भगवद्गीता में एक शब्द का प्रयोग किया गया है। वह है “योगक्षेम”। योगक्षेम में दो शब्द हैं। एक है योग और दूसरा है क्षेम। योग का अर्थ है जो कमी है उसे पूरा करना। और क्षेम का अर्थ है कमी पूरी करने के बाद जो है उसकी रक्षा करना, उसका क्षरण नहीं होने देना। केवल आयुर्वेद ही नहीं सभी धार्मिक  शास्त्रों में योगक्षेम का ही मार्गदर्शन मिलता है। सामान्यत: हर बालक जन्म से तो स्वस्थ ही होता है। आहार विहार की गलतियों न करे तो वह स्वस्थ ही रहेगा। अतः आयुर्वेद या धार्मिक  स्वास्थ्य शास्त्र केवल रोग चिकित्सा का विषय नहीं है। रोग हो ही नहीं इस बात पर इसमें अधिक बल है। किसी अपरिहार्य परिस्थिति के कारण यदि स्वास्थ्य में कुछ दोष (रोग) निर्माण हो जाए तब ही चिकित्सा की आवश्यकता निर्माण होती है। इस दृष्टि से यह मूलत: धर्म का याने प्राकृतिक जीवन जीकर स्वास्थ्य के रक्षण करने का मार्गदर्शन है। रोग चिकित्सा और रोग निवारण तो इसमें आपद्धर्म के रूप में आते हैं। वर्तमान में “नेचरोपेथी” नाम से जो भी चलता है वह आयुर्वेद के ज्ञान को ही “नेचरोपेथी” के नाम से अपने नाम पर तथाकथित पश्चिमी विद्वानों द्वारा की हुई प्रस्तुति मात्र है।   
    
वेबस्टर न्यू डिक्शनरी में “हील” के जो अर्थ दिए हैं, उसी में हेल्थ शब्द आता है। क्यों कि हेल्थ मूल शब्द नहीं है। वह हील से बना है। इसी लिए वह अलग नहीं दिया गया। हीलिंग का अर्थ है क्षति की पूर्ति करना। अर्थात् रोग को ठीक करना। कहने का तात्पर्य यह है कि पश्चिम की कल्पना में ही बिना किसी भी दवाई के सेवन के स्वास्थ्य रक्षण की संकल्पना नहीं है। इसीलिये एलोपेथी यह मात्र रोग निवारण का ही विषय है। रोग हो ही नहीं इस विचार से दूर है।   
 
वेबस्टर न्यू डिक्शनरी में “हील” के जो अर्थ दिए हैं, उसी में हेल्थ शब्द आता है। क्यों कि हेल्थ मूल शब्द नहीं है। वह हील से बना है। इसी लिए वह अलग नहीं दिया गया। हीलिंग का अर्थ है क्षति की पूर्ति करना। अर्थात् रोग को ठीक करना। कहने का तात्पर्य यह है कि पश्चिम की कल्पना में ही बिना किसी भी दवाई के सेवन के स्वास्थ्य रक्षण की संकल्पना नहीं है। इसीलिये एलोपेथी यह मात्र रोग निवारण का ही विषय है। रोग हो ही नहीं इस विचार से दूर है।   

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