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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
हमने [[Jeevan Ka Pratiman (जीवन का प्रतिमान)|'जीवन का प्रतिमान’]] अध्याय में देखा है कि वर्तमान में हम एक अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान में जी रहे हैं। इसी को हम वैश्विक समझ रहे हैं। इस भ्रम का एक कारण यह भी है कि वास्तव में भी दुनिया के अधिकतम देशों ने इस प्रतिमान का स्वीकार किया है। दुनिया के अन्य देशों के लिए तो यह भौतिक प्रगति की दृष्टि से अनुकरणीय होना स्वाभाविक है। क्यों कि इससे अच्छा विकल्प उनके पास न था और न है। हमारी स्थिति ऐसी नहीं है। हमारे पास इस प्रतिमान से भी बहुत श्रेष्ठ विकल्प था। धार्मिक जीवन के प्रतिमान में केवल हम ही जीते थे ऐसा नहीं तो दुनिया हमारा स्वेच्छा से अनुसरण करती थी। समूचे विश्व के लोग धार्मिक प्रतिमान की श्रेष्ठता जानकर ही यह अनुसरण करते थे।
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हमने [[Jeevan Ka Pratiman (जीवन का प्रतिमान)|'जीवन का प्रतिमान’]] अध्याय में देखा है कि वर्तमान में हम एक अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान में जी रहे हैं। इसी को हम वैश्विक समझ रहे हैं। इस भ्रम का एक कारण यह भी है कि वास्तव में भी दुनिया के अधिकतम देशों ने इस प्रतिमान का स्वीकार किया है। दुनिया के अन्य देशों के लिए तो यह भौतिक प्रगति की दृष्टि से अनुकरणीय होना स्वाभाविक है। क्यों कि इससे अच्छा विकल्प उनके पास न था और न है। हमारी स्थिति ऐसी नहीं है। हमारे पास इस प्रतिमान से भी बहुत श्रेष्ठ विकल्प था। धार्मिक जीवन के प्रतिमान में केवल हम ही जीते थे ऐसा नहीं तो दुनिया हमारा स्वेच्छा से अनुसरण करती थी। समूचे विश्व के लोग धार्मिक प्रतिमान की श्रेष्ठता जानकर ही यह अनुसरण करते थे।
    
लेकिन वर्तमान में हम धार्मिक  भी इस प्रतिमान के जीवन में इतने रंग गए हैं कि यही प्रतिमान हमें अपना लगने लग गया है। इसके बहुत लाभ हैं अतः नहीं। गत १०-११ पीढ़ियों से जिस शिक्षा का हमारे समाज में चलन रहा है उस के प्रभाव के कारण हम अन्य कोई विकल्प था या हो सकता है, इसको स्वीकार करने को तैयार ही नहीं होते। हमारी जीवनदृष्टि श्रेष्ठ थी यह माननेवाले लोग भी उस जीवन दृष्टि को व्यवहार में लाना असंभव है ऐसा ही मानते हैं। सामरिक दृष्टि से जो बलवान देश हैं वह भी ‘व्हाईट मैन्स बर्डन’ की मानसिकता के कारण अपने जैसा जीने के लिए अन्य देशों पर बल प्रयोग करते रहते हैं। जैसे यूरोपीय ढंग का लोकतंत्र उनकी दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था हो सकती है। क्यों कि इससे अधिक अच्छी शासन व्यवस्था यूरोप के इतिहास में कभी रही नहीं। लेकिन फिर भी भारत जैसे  देशपर भी जिसने इससे भी अत्यंत श्रेष्ठ ऐसी शासन व्यवस्थाएँ देखी हैं, चलाई हैं, विकसित की हैं, उस पर भी उन के जैसा लोकतंत्र स्थापित करने के लिए बल प्रयोग वे करते हैं।
 
लेकिन वर्तमान में हम धार्मिक  भी इस प्रतिमान के जीवन में इतने रंग गए हैं कि यही प्रतिमान हमें अपना लगने लग गया है। इसके बहुत लाभ हैं अतः नहीं। गत १०-११ पीढ़ियों से जिस शिक्षा का हमारे समाज में चलन रहा है उस के प्रभाव के कारण हम अन्य कोई विकल्प था या हो सकता है, इसको स्वीकार करने को तैयार ही नहीं होते। हमारी जीवनदृष्टि श्रेष्ठ थी यह माननेवाले लोग भी उस जीवन दृष्टि को व्यवहार में लाना असंभव है ऐसा ही मानते हैं। सामरिक दृष्टि से जो बलवान देश हैं वह भी ‘व्हाईट मैन्स बर्डन’ की मानसिकता के कारण अपने जैसा जीने के लिए अन्य देशों पर बल प्रयोग करते रहते हैं। जैसे यूरोपीय ढंग का लोकतंत्र उनकी दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था हो सकती है। क्यों कि इससे अधिक अच्छी शासन व्यवस्था यूरोप के इतिहास में कभी रही नहीं। लेकिन फिर भी भारत जैसे  देशपर भी जिसने इससे भी अत्यंत श्रेष्ठ ऐसी शासन व्यवस्थाएँ देखी हैं, चलाई हैं, विकसित की हैं, उस पर भी उन के जैसा लोकतंत्र स्थापित करने के लिए बल प्रयोग वे करते हैं।
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परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है। और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है। इसी अर्थ से श्रीमद्भगवद्गीता एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इस में ब्रह्मा की जानकारी और उसकी प्राप्ति ऐसा दोनों के बारे में बताया गया है। शास्त्र में सैद्धांतिक और व्यावहारिक ऐसे दोनों पक्षों का मार्गदर्शन होता है।  
 
परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है। और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है। इसी अर्थ से श्रीमद्भगवद्गीता एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इस में ब्रह्मा की जानकारी और उसकी प्राप्ति ऐसा दोनों के बारे में बताया गया है। शास्त्र में सैद्धांतिक और व्यावहारिक ऐसे दोनों पक्षों का मार्गदर्शन होता है।  
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तन्त्रज्ञान यह शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्यों कि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान  है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसने करना चाहिये, किसने नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किस के लिए नहीं करना चाहिए इन सब बातों को जानना शास्त्र है।  
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तन्त्रज्ञान यह शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्यों कि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान  है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसने करना चाहिये, किसने नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किस के लिए नहीं करना चाहिए इन सब बातों को जानना शास्त्र है। [[Dharmik Science and Technology (धार्मिक विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान दृष्टि)|यह लेख]] भी देखें । 
    
== आध्यात्म शास्त्र सब शास्त्रों का अंगी ==
 
== आध्यात्म शास्त्र सब शास्त्रों का अंगी ==

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