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परमात्मा जब सृष्टि के रूप में व्यक्त होता है तब विविध रूप धारण करता है। उसी प्रकार ज्ञान भी विभिन्न स्तरों पर विभिन्न रूप धारण करता है। कर्मन्द्रियों से जो ज्ञान होता है वह कुशलता है। अतः ज्ञान का एक स्वरूप कुशलता है। ज्ञानेन्द्रियों से जो ज्ञान होता है वह संवेदन है। अतः ज्ञान का एक स्वरूप संवेदन है। संवेदन को अनुभव भी कहते हैं। मन विचार करता है। चिंतन, मनन, कल्पना, विचार का क्षेत्र है। अतः मन के स्तर पर ज्ञान विचार है। बुद्धि विवेक करती है। विवेक का अर्थ है यथार्थज्ञान। यथार्थज्ञान का अर्थ है जो जैसा है उसी स्वरूप का ज्ञान। व्यवहार के क्षेत्र में सही गलत या उचित अनुचित का ज्ञान, विवेक कहलाता है। पदार्थ के क्षेत्र में उनके गुणधर्म का ज्ञान विवेक कहलाता है। इसे विज्ञान भी कहते हैं। यह पदार्थ विज्ञान है अथवा भौतिक विज्ञान है। विज्ञान का यह क्षेत्र बहुत बड़ा है।
परमात्मा जब सृष्टि के रूप में व्यक्त होता है तब विविध रूप धारण करता है। उसी प्रकार ज्ञान भी विभिन्न स्तरों पर विभिन्न रूप धारण करता है। कर्मन्द्रियों से जो ज्ञान होता है वह कुशलता है। अतः ज्ञान का एक स्वरूप कुशलता है। ज्ञानेन्द्रियों से जो ज्ञान होता है वह संवेदन है। अतः ज्ञान का एक स्वरूप संवेदन है। संवेदन को अनुभव भी कहते हैं। मन विचार करता है। चिंतन, मनन, कल्पना, विचार का क्षेत्र है। अतः मन के स्तर पर ज्ञान विचार है। बुद्धि विवेक करती है। विवेक का अर्थ है यथार्थज्ञान। यथार्थज्ञान का अर्थ है जो जैसा है उसी स्वरूप का ज्ञान। व्यवहार के क्षेत्र में सही गलत या उचित अनुचित का ज्ञान, विवेक कहलाता है। पदार्थ के क्षेत्र में उनके गुणधर्म का ज्ञान विवेक कहलाता है। इसे विज्ञान भी कहते हैं। यह पदार्थ विज्ञान है अथवा भौतिक विज्ञान है। विज्ञान का यह क्षेत्र बहुत बड़ा है।
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विज्ञान प्रमुख रूप से विश्व के सारे पदार्थों की प्रक्रियाओं का ज्ञान है। नमक पानी में घुलता है परन्तु रेत नहीं घुलती, इस घुलने न घुलने की प्रक्रिया का ज्ञान विज्ञान है। पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है इस गुणधर्म का ज्ञान विज्ञान है। पंचमहाभूतात्मक पदार्थों के व्यवहार करने की प्रक्रियाओं का ज्ञान भौतिक विज्ञान है। उसी प्रकार मन के व्यवहार के बारे में जानना मनोविज्ञान है। आत्मा के व्यवहार को जानना आत्मविज्ञान है।
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[[Dharmik Science and Technology (धार्मिक विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान दृष्टि)|विज्ञान]] प्रमुख रूप से विश्व के सारे पदार्थों की प्रक्रियाओं का ज्ञान है। नमक पानी में घुलता है परन्तु रेत नहीं घुलती, इस घुलने न घुलने की प्रक्रिया का ज्ञान विज्ञान है। पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है इस गुणधर्म का ज्ञान विज्ञान है। पंचमहाभूतात्मक पदार्थों के व्यवहार करने की प्रक्रियाओं का ज्ञान भौतिक विज्ञान है। उसी प्रकार मन के व्यवहार के बारे में जानना मनोविज्ञान है। आत्मा के व्यवहार को जानना आत्मविज्ञान है।
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विज्ञान बुद्धि का क्षेत्र है। अहंकार के स्तर पर ज्ञान का स्वरूप कर्ताभाव है। अत: अहंभाव भी ज्ञान का ही स्वरूप है।
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[[Dharmik Science and Technology (धार्मिक विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान दृष्टि)|विज्ञान]] बुद्धि का क्षेत्र है। अहंकार के स्तर पर ज्ञान का स्वरूप कर्ताभाव है। अत: अहंभाव भी ज्ञान का ही स्वरूप है।
चित्त पर होने वाले संस्कार भी ज्ञान का एक स्वरूप है। ये सारे ज्ञान के विभिन्न लौकिक स्वरूप होने पर भी ज्ञान मूलरूप से ब्रह्मज्ञान है। वह इंद्रिय, मन, बुद्धि आदि से होने वाले ज्ञान से परे है। वह अनुभूति का क्षेत्र है। अनुभूति के स्तर पर ज्ञान शुद्ध ज्ञान है। शेष सारे ज्ञान के विभिन्न भौतिक स्वरूप है। भौतिक जगत में बुद्धि के स्तर पर होने वाला ज्ञान श्रेष्ठ स्वरूप का ज्ञान है। विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उन करणों का अभ्यास करना होता है और अभ्यास से अपने आपको सक्षम बनाना होता है। ज्ञान का सही स्वरूप जानने के बाद ज्ञानार्जन कैसे होता है, इसका पता चलता है।
चित्त पर होने वाले संस्कार भी ज्ञान का एक स्वरूप है। ये सारे ज्ञान के विभिन्न लौकिक स्वरूप होने पर भी ज्ञान मूलरूप से ब्रह्मज्ञान है। वह इंद्रिय, मन, बुद्धि आदि से होने वाले ज्ञान से परे है। वह अनुभूति का क्षेत्र है। अनुभूति के स्तर पर ज्ञान शुद्ध ज्ञान है। शेष सारे ज्ञान के विभिन्न भौतिक स्वरूप है। भौतिक जगत में बुद्धि के स्तर पर होने वाला ज्ञान श्रेष्ठ स्वरूप का ज्ञान है। विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उन करणों का अभ्यास करना होता है और अभ्यास से अपने आपको सक्षम बनाना होता है। ज्ञान का सही स्वरूप जानने के बाद ज्ञानार्जन कैसे होता है, इसका पता चलता है।