हमारी धार्मिक गणित-शास्त्र की परम्परा अत्यन्त समृद्ध रही है। शास्त्र के रूप में 'गणित' का प्राचीनतम प्रयोग लगध ऋषि द्वारा उक्त 'वेदाङ्ग ज्योतिष' नामक ग्रन्थ में माना जाता है। परन्तु इससे भी पूर्व छान्दोग्य उपनिषद् में सनत्कुमार के पूछने पर नारद ने जो अष्टादश अधीत विद्याओं की सूची प्रस्तुत की है, उसमें ज्योतिष के लिए 'नक्षत्र विद्या' तथा गणित के लिए 'राशि विद्या' नाम प्रदान किया है। वेदों में निर्देशित विभिन्न प्रकारों की यज्ञवेदियों के निर्माण हेतु ’रज्जु’द्वारा निर्मित रेखागणित तथा ’शुल्व सूत्र’ जैसे ग्रन्थों की रचना प्रसिद्ध थी। | हमारी धार्मिक गणित-शास्त्र की परम्परा अत्यन्त समृद्ध रही है। शास्त्र के रूप में 'गणित' का प्राचीनतम प्रयोग लगध ऋषि द्वारा उक्त 'वेदाङ्ग ज्योतिष' नामक ग्रन्थ में माना जाता है। परन्तु इससे भी पूर्व छान्दोग्य उपनिषद् में सनत्कुमार के पूछने पर नारद ने जो अष्टादश अधीत विद्याओं की सूची प्रस्तुत की है, उसमें ज्योतिष के लिए 'नक्षत्र विद्या' तथा गणित के लिए 'राशि विद्या' नाम प्रदान किया है। वेदों में निर्देशित विभिन्न प्रकारों की यज्ञवेदियों के निर्माण हेतु ’रज्जु’द्वारा निर्मित रेखागणित तथा ’शुल्व सूत्र’ जैसे ग्रन्थों की रचना प्रसिद्ध थी। |