एकदूसरे को समझने की और समन्वय की होगी । इसका परिणाम होगा “वादे वादे जायते तत्त्वबोधः' । परन्तु दूसरा विमर्श होगा भिन्न जीवनदृष्टि रखने वालों के साथ । इसमें अपना मत समझाना, उनके मत का वैश्विक दृष्टि से मूल्यांकन करना. और दोनों पक्षों में सामंजस्य (adjustment) बिठाना महत्वपूर्ण होगा । इस दॄष्टि से हमारे चर्चासत्रों, परिसंवादों , विद्रत्सभाओं, गोष्टियों आदि के स्वरूप और पद्धति के विषय में भी बहुत विचार करने की और परिवर्तन करने की आवश्यकता रहेगी । | एकदूसरे को समझने की और समन्वय की होगी । इसका परिणाम होगा “वादे वादे जायते तत्त्वबोधः' । परन्तु दूसरा विमर्श होगा भिन्न जीवनदृष्टि रखने वालों के साथ । इसमें अपना मत समझाना, उनके मत का वैश्विक दृष्टि से मूल्यांकन करना. और दोनों पक्षों में सामंजस्य (adjustment) बिठाना महत्वपूर्ण होगा । इस दॄष्टि से हमारे चर्चासत्रों, परिसंवादों , विद्रत्सभाओं, गोष्टियों आदि के स्वरूप और पद्धति के विषय में भी बहुत विचार करने की और परिवर्तन करने की आवश्यकता रहेगी । |