Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "धार्मिक (धार्मिक)" to "धार्मिक "
Line 4: Line 4:  
परिवर्तन की योजना को समझने के लिए हमें पहले निम्न बातें फिर से स्मरण करनी होंगी ।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४२, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
 
परिवर्तन की योजना को समझने के लिए हमें पहले निम्न बातें फिर से स्मरण करनी होंगी ।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४२, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
   −
जीवन के धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान की जानकारी के लिए -  
+
जीवन के धार्मिक प्रतिमान की जानकारी के लिए -  
# जीवनदृष्टि/व्यवहार : धार्मिक (धार्मिक) जीवनदृष्टि और जीवनशैली के विषय में जानकारी के लिये कृपया [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (धार्मिक/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|यह]] लेख देखें।
+
# जीवनदृष्टि/व्यवहार : धार्मिक जीवनदृष्टि और जीवनशैली के विषय में जानकारी के लिये कृपया [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (धार्मिक/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|यह]] लेख देखें।
 
# व्यवस्था समूह का ढाँचा जीवनदृष्टि से सुसंगत होना चाहिए। कृपया व्यवस्था समूह के ढाँचे के लिये [[Jeevan Ka Pratiman (जीवन का प्रतिमान)|यह]] लेख और जानकारी के लिए [[Interrelationship in Srishti (सृष्टि में परस्पर सम्बद्धता)|यह]] लेख देखें।
 
# व्यवस्था समूह का ढाँचा जीवनदृष्टि से सुसंगत होना चाहिए। कृपया व्यवस्था समूह के ढाँचे के लिये [[Jeevan Ka Pratiman (जीवन का प्रतिमान)|यह]] लेख और जानकारी के लिए [[Interrelationship in Srishti (सृष्टि में परस्पर सम्बद्धता)|यह]] लेख देखें।
   Line 18: Line 18:     
इस के लिये नीति के तौर पर हमारा व्यवहार निम्न प्रकार का होना चाहिए:
 
इस के लिये नीति के तौर पर हमारा व्यवहार निम्न प्रकार का होना चाहिए:
* सबसे पहले तो यह सदा ध्यान में रखना कि यह पूरे समाज जीवन के प्रतिमान के परिवर्तन का विषय है। इसे परिवर्तन के लिये कई पीढियों का समय लग सकता है। भारत वर्ष के दीर्घ इतिहास में समाज ने कई बार उत्थान और पतन के दौर अनुभव किये हैं। बार बार धार्मिक (धार्मिक) समाज ने उत्थान किया है।
+
* सबसे पहले तो यह सदा ध्यान में रखना कि यह पूरे समाज जीवन के प्रतिमान के परिवर्तन का विषय है। इसे परिवर्तन के लिये कई पीढियों का समय लग सकता है। भारत वर्ष के दीर्घ इतिहास में समाज ने कई बार उत्थान और पतन के दौर अनुभव किये हैं। बार बार धार्मिक समाज ने उत्थान किया है।
 
* परिवर्तन की प्रक्रिया को संभाव्य चरणों में बाँटना।
 
* परिवर्तन की प्रक्रिया को संभाव्य चरणों में बाँटना।
 
* उसमें आज जो हो सकता है उसे कर डालना।
 
* उसमें आज जो हो सकता है उसे कर डालना।
Line 224: Line 224:  
=== अंतर्देशीय ===
 
=== अंतर्देशीय ===
 
# मानवीय जड़़ता : परिवर्तन का आनंद से स्वागत करनेवाले लोग समाज में अल्पसंख्य ही होते हैं। सामान्यत: युवा वर्ग ही परिवर्तन के लिए तैयार होता है। अतः युवा वर्ग को इस परिवर्तन की प्रक्रिया में सहभागी बनाना होगा। परिवर्तन की प्रक्रिया में युवाओं को सम्मिलित करते जाने से दो तीन पीढ़ियों में परिवर्तन का चक्र गतिमान हो जाएगा।
 
# मानवीय जड़़ता : परिवर्तन का आनंद से स्वागत करनेवाले लोग समाज में अल्पसंख्य ही होते हैं। सामान्यत: युवा वर्ग ही परिवर्तन के लिए तैयार होता है। अतः युवा वर्ग को इस परिवर्तन की प्रक्रिया में सहभागी बनाना होगा। परिवर्तन की प्रक्रिया में युवाओं को सम्मिलित करते जाने से दो तीन पीढ़ियों में परिवर्तन का चक्र गतिमान हो जाएगा।
# विपरीत शिक्षा : जैसे जैसे धार्मिक (धार्मिक) शिक्षा का विस्तार समाज में होगा वर्तमान की विपरीत शिक्षा का अपने आप ही क्रमश: लोप होगा।
+
# विपरीत शिक्षा : जैसे जैसे धार्मिक शिक्षा का विस्तार समाज में होगा वर्तमान की विपरीत शिक्षा का अपने आप ही क्रमश: लोप होगा।
# मजहबी मानसिकता : धार्मिक (धार्मिक) याने धर्म की शिक्षा के उदय और विस्तार के साथ ही मजहबी शिक्षा और उसका प्रभाव भी शनै: शनै: घटता जाएगा। मजहबों की वास्तविकता को भी उजागर करना आवश्यक है।
+
# मजहबी मानसिकता : धार्मिक याने धर्म की शिक्षा के उदय और विस्तार के साथ ही मजहबी शिक्षा और उसका प्रभाव भी शनै: शनै: घटता जाएगा। मजहबों की वास्तविकता को भी उजागर करना आवश्यक है।
 
# धर्म के ठेकेदार : जैसे जैसे धर्म के जानकार और धर्म के अनुसार आचरण करनेवाले लोग समाज में दिखने लगेंगे, धर्म के तथाकथित ठेकेदारों का प्रभाव कम होता जाएगा।
 
# धर्म के ठेकेदार : जैसे जैसे धर्म के जानकार और धर्म के अनुसार आचरण करनेवाले लोग समाज में दिखने लगेंगे, धर्म के तथाकथित ठेकेदारों का प्रभाव कम होता जाएगा।
 
# शासन तंत्र : इस परिवर्तन की प्रक्रिया में धर्म के जानकारों के बाद शासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। धर्माचरणी लोगोंं को समर्थन, सहायता और संरक्षण देने का काम शासन को करना होगा। इस के लिए शासक भी धर्म का जानकार और धर्मनिष्ठ हो, यह भी आवश्यक है। धर्म के जानकारों को यह सुनिश्चित करना होगा की शासक धर्माचरण करनेवाले और धर्म के जानकर हों।
 
# शासन तंत्र : इस परिवर्तन की प्रक्रिया में धर्म के जानकारों के बाद शासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। धर्माचरणी लोगोंं को समर्थन, सहायता और संरक्षण देने का काम शासन को करना होगा। इस के लिए शासक भी धर्म का जानकार और धर्मनिष्ठ हो, यह भी आवश्यक है। धर्म के जानकारों को यह सुनिश्चित करना होगा की शासक धर्माचरण करनेवाले और धर्म के जानकर हों।
# जीवन का अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान : जीवन के सभी क्षेत्रों में एकसाथ जीवन के प्रतिमान के परिवर्तन की प्रक्रिया को चलाना यह धर्म के जानकारों की जिम्मेदारी होगी। शिक्षा की भूमिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण होगी। शिक्षा के माध्यम से समूचे जीवन के धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान की रुपरेखा और प्रक्रिया को समाजव्यापी बनाना होगा। धर्म-शरण शासन इसमें सहायता करेगा।
+
# जीवन का अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान : जीवन के सभी क्षेत्रों में एकसाथ जीवन के प्रतिमान के परिवर्तन की प्रक्रिया को चलाना यह धर्म के जानकारों की जिम्मेदारी होगी। शिक्षा की भूमिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण होगी। शिक्षा के माध्यम से समूचे जीवन के धार्मिक प्रतिमान की रुपरेखा और प्रक्रिया को समाजव्यापी बनाना होगा। धर्म-शरण शासन इसमें सहायता करेगा।
 
# तन्त्रज्ञान  समायोजन : तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में भारत के सामने दोहरी चुनौती होगी। एक ओर तो विश्व में जो तन्त्रज्ञान के विकास की होड़ लगी है उसमें अपनी विशेषताओं के साथ अग्रणी रहना। इस दृष्टि से विकास हेतु कुछ तन्त्रज्ञान निम्न हो सकते हैं:
 
# तन्त्रज्ञान  समायोजन : तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में भारत के सामने दोहरी चुनौती होगी। एक ओर तो विश्व में जो तन्त्रज्ञान के विकास की होड़ लगी है उसमें अपनी विशेषताओं के साथ अग्रणी रहना। इस दृष्टि से विकास हेतु कुछ तन्त्रज्ञान निम्न हो सकते हैं:
 
## शून्य प्रदुषण रासायनिक उद्योग।
 
## शून्य प्रदुषण रासायनिक उद्योग।
Line 245: Line 245:     
== परिवर्तन के लिये समयबद्ध करणीय कार्य ==
 
== परिवर्तन के लिये समयबद्ध करणीय कार्य ==
समूचे जीवन के प्रतिमान का परिवर्तन यह एक बहुत बृहद् और जटिल कार्य है। इस के लिये इसे सामाजिक अभियान का रूप देना होगा। समविचारी लोगोंं को संगठित होकर सहमति से और चरणबद्ध पद्दति से प्रक्रिया को आगे बढाना होगा। बड़े पैमाने पर जीवन के हर क्षेत्र में जीवन के धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान की समझ रखने वाले और कृतिशील लोग याने आचार्य निर्माण करने होंगे। परिवर्तन के चरण एक के बाद एक और एक के साथ सभी इस पद्दति से चलेंगे। जैसे दूसरे चरण के काल में ५० प्रतिशत शक्ति और संसाधन दूसरे चरण के निर्धारित विषय पर लगेंगे। और १२.५-१२.५ प्रतिशत शक्ति और संसाधन चरण १, ३, ४ और ५ में प्रत्येकपर लगेंगे।  
+
समूचे जीवन के प्रतिमान का परिवर्तन यह एक बहुत बृहद् और जटिल कार्य है। इस के लिये इसे सामाजिक अभियान का रूप देना होगा। समविचारी लोगोंं को संगठित होकर सहमति से और चरणबद्ध पद्दति से प्रक्रिया को आगे बढाना होगा। बड़े पैमाने पर जीवन के हर क्षेत्र में जीवन के धार्मिक प्रतिमान की समझ रखने वाले और कृतिशील लोग याने आचार्य निर्माण करने होंगे। परिवर्तन के चरण एक के बाद एक और एक के साथ सभी इस पद्दति से चलेंगे। जैसे दूसरे चरण के काल में ५० प्रतिशत शक्ति और संसाधन दूसरे चरण के निर्धारित विषय पर लगेंगे। और १२.५-१२.५ प्रतिशत शक्ति और संसाधन चरण १, ३, ४ और ५ में प्रत्येकपर लगेंगे।  
 
# समविचारी लोगोंं का ध्रुवीकरण : जिन्हें प्रतिमान के परिवर्तन की आस है और समझ भी है ऐसे समविचारी, सहचित्त लोगोंं का ध्रुवीकरण करना होगा। उनमें एक व्यापक सहमति निर्माण करनी होगी। अपने अपने कार्यक्षेत्र में क्या करना है इसका स्पष्टीकरण करना होगा।
 
# समविचारी लोगोंं का ध्रुवीकरण : जिन्हें प्रतिमान के परिवर्तन की आस है और समझ भी है ऐसे समविचारी, सहचित्त लोगोंं का ध्रुवीकरण करना होगा। उनमें एक व्यापक सहमति निर्माण करनी होगी। अपने अपने कार्यक्षेत्र में क्या करना है इसका स्पष्टीकरण करना होगा।
 
# अभियान के चरण : अभियान को चरणबद्ध पद्दति से चलाना होगा। १२ वर्षों के ये पाँच चरण होंगे। ऐसी यह ६० वर्ष की योजना होगी। यह प्रक्रिया तीन पीढी तक चलेगी। तीसरी पीढी में परिवर्तन के फल देखने को मिलेंगे। लेकिन तब तक निष्ठा से और धैर्य से अभियान को चलाना होगा। निरंतर मूल्यांकन करना होगा। राह भटक नहीं जाए इसके लिये चौकन्ना रहना होगा।
 
# अभियान के चरण : अभियान को चरणबद्ध पद्दति से चलाना होगा। १२ वर्षों के ये पाँच चरण होंगे। ऐसी यह ६० वर्ष की योजना होगी। यह प्रक्रिया तीन पीढी तक चलेगी। तीसरी पीढी में परिवर्तन के फल देखने को मिलेंगे। लेकिन तब तक निष्ठा से और धैर्य से अभियान को चलाना होगा। निरंतर मूल्यांकन करना होगा। राह भटक नहीं जाए इसके लिये चौकन्ना रहना होगा।
## अध्ययन और अनुसंधान : जीवन का दायरा बहुत व्यापक होता है। अनगिनत विषय इसमें आते हैं। इसलिये प्रतिमान के बदलाव से पहले हमें दोनों प्रतिमानों के विषय में और विशेषत: जीवन के धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान के विषय में बहुत गहराई से अध्ययन करना होगा। मनुष्य की इच्छाओं का दायरा, उनकी पूर्ति के लिये वह क्या क्या कर सकता है आदि का दायरा अति विशाल है। इन दोनों को धर्म के नियंत्रण में ऐसे रखा जाता है इसका भी अध्ययन अनिवार्य है। मनुष्य के व्यक्तित्व को ठीक से समझना, उसके शरीर, मन, बुध्दि, चित्त, अहंकार आदि बातों को समझना, कर्मसिध्दांत को समझना, जन्म जन्मांतर चलने वाली शिक्षा की प्रक्रिया को समझना विविध विषयों के अंगांगी संबंधों को समझना, प्रकृति के रहस्यों को समझना आदि अनेकों ऐसी बातें हैं जिनका अध्ययन हमें करना होगा। इनमें से कई विषयों के संबंध में हमारे पूर्वजों ने विपुल साहित्य निर्माण किया था। उसमें से कितने ही साहित्य को जाने अंजाने में प्रक्षेपित किया गया है। इस प्रक्षिप्त हिस्से को समझ कर अलग निकालना होगा। शुद्ध धार्मिक (धार्मिक) तत्वों पर आधारित ज्ञान को प्राप्त करना होगा। अंग्रेजों ने धार्मिक (धार्मिक) साहित्य, इतिहास के साथ किये खिलवाड, धार्मिक (धार्मिक) समाज में झगडे पैदा करने के लिये निर्मित साहित्य को अलग हटाकर शुद्ध धार्मिक (धार्मिक) याने एकात्म भाव की या कौटुम्बिक भाव की जितनी भी प्रस्तुतियाँ हैं उनका अध्ययन करना होगा। मान्यताओं, व्यवहार सूत्रों, संगठन निर्माण और व्यवस्था निर्माण की प्रक्रिया को समझना होगा।
+
## अध्ययन और अनुसंधान : जीवन का दायरा बहुत व्यापक होता है। अनगिनत विषय इसमें आते हैं। इसलिये प्रतिमान के बदलाव से पहले हमें दोनों प्रतिमानों के विषय में और विशेषत: जीवन के धार्मिक प्रतिमान के विषय में बहुत गहराई से अध्ययन करना होगा। मनुष्य की इच्छाओं का दायरा, उनकी पूर्ति के लिये वह क्या क्या कर सकता है आदि का दायरा अति विशाल है। इन दोनों को धर्म के नियंत्रण में ऐसे रखा जाता है इसका भी अध्ययन अनिवार्य है। मनुष्य के व्यक्तित्व को ठीक से समझना, उसके शरीर, मन, बुध्दि, चित्त, अहंकार आदि बातों को समझना, कर्मसिध्दांत को समझना, जन्म जन्मांतर चलने वाली शिक्षा की प्रक्रिया को समझना विविध विषयों के अंगांगी संबंधों को समझना, प्रकृति के रहस्यों को समझना आदि अनेकों ऐसी बातें हैं जिनका अध्ययन हमें करना होगा। इनमें से कई विषयों के संबंध में हमारे पूर्वजों ने विपुल साहित्य निर्माण किया था। उसमें से कितने ही साहित्य को जाने अंजाने में प्रक्षेपित किया गया है। इस प्रक्षिप्त हिस्से को समझ कर अलग निकालना होगा। शुद्ध धार्मिक तत्वों पर आधारित ज्ञान को प्राप्त करना होगा। अंग्रेजों ने धार्मिक साहित्य, इतिहास के साथ किये खिलवाड, धार्मिक समाज में झगडे पैदा करने के लिये निर्मित साहित्य को अलग हटाकर शुद्ध धार्मिक याने एकात्म भाव की या कौटुम्बिक भाव की जितनी भी प्रस्तुतियाँ हैं उनका अध्ययन करना होगा। मान्यताओं, व्यवहार सूत्रों, संगठन निर्माण और व्यवस्था निर्माण की प्रक्रिया को समझना होगा।
## लोकमत परिष्कार : अध्ययन से जो ज्ञान उभरकर सामने आएगा उसे लोगोंं तक ले जाना होगा। लोगोंं का प्रबोधन करना होगा। उन्हें फिर से समग्रता से और एकात्मता से सोचने और व्यवहार करने का तरीका बताना होगा। उन्हें उनकी सामाजिक जिम्मेदारी का समाजधर्म का अहसास करवाना होगा। वर्तमान की परिस्थितियों से सामान्यत: कोई भी खुश नहीं है। लेकिन जीवन का धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान ही  उनकी कल्पना के अच्छे दिनों का वास्तव है यह सब के मन में स्थापित करना होगा।
+
## लोकमत परिष्कार : अध्ययन से जो ज्ञान उभरकर सामने आएगा उसे लोगोंं तक ले जाना होगा। लोगोंं का प्रबोधन करना होगा। उन्हें फिर से समग्रता से और एकात्मता से सोचने और व्यवहार करने का तरीका बताना होगा। उन्हें उनकी सामाजिक जिम्मेदारी का समाजधर्म का अहसास करवाना होगा। वर्तमान की परिस्थितियों से सामान्यत: कोई भी खुश नहीं है। लेकिन जीवन का धार्मिक प्रतिमान ही  उनकी कल्पना के अच्छे दिनों का वास्तव है यह सब के मन में स्थापित करना होगा।
## संयुक्त कुटुम्ब : कुटुम्ब ही समाजधर्म सीखने की पाठशाला होता है। संयुक्त कुटुम्ब तो वास्तव में समाज का लघुरूप ही होता है। सामाजिक समस्याओं में से लगभग ७० प्रतिशत समस्याओं को तो केवल अच्छा संयुक्त कुटुम्ब ही निर्मूल कर देता है। समाज जीवन के लिये श्रेष्ठ लोगोंं को जन्म देने का काम, श्रेष्ठ संस्कार देने का काम, अच्छी आदतें डालने काम आजकल की फॅमिली पद्दति नहीं कर सकती। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जो तेजस्वी नेतृत्व का अभाव निर्माण हो गया है उसे दूर करना यह धार्मिक (धार्मिक) मान्यताओं के अनुसार चलाए जाने वाले संयुक्त परिवारों में ही हो सकता है। इसलिये समाज का नेतृत्व करने वाले श्रेष्ठ बालकों को जन्म देने के प्रयास तीसरे चरण में होंगे।
+
## संयुक्त कुटुम्ब : कुटुम्ब ही समाजधर्म सीखने की पाठशाला होता है। संयुक्त कुटुम्ब तो वास्तव में समाज का लघुरूप ही होता है। सामाजिक समस्याओं में से लगभग ७० प्रतिशत समस्याओं को तो केवल अच्छा संयुक्त कुटुम्ब ही निर्मूल कर देता है। समाज जीवन के लिये श्रेष्ठ लोगोंं को जन्म देने का काम, श्रेष्ठ संस्कार देने का काम, अच्छी आदतें डालने काम आजकल की फॅमिली पद्दति नहीं कर सकती। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जो तेजस्वी नेतृत्व का अभाव निर्माण हो गया है उसे दूर करना यह धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चलाए जाने वाले संयुक्त परिवारों में ही हो सकता है। इसलिये समाज का नेतृत्व करने वाले श्रेष्ठ बालकों को जन्म देने के प्रयास तीसरे चरण में होंगे।
 
## शिक्षक / धर्मज्ञ और शासक निर्माण : समाज परिवर्तन में शिक्षक की और शासक की ऐसे दोनों की भुमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। संयुक्त परिवारों में जन्म लिये बच्चोंं में से अब श्रेष्ठ धर्म के मार्गदर्शक, शिक्षक और शासक निर्माण करने की स्थिति होगी। ऐसे लोगोंं को समर्थन और सहायता देनेवाले कुटुम्ब और दूसरे चरण में निर्माण किये समाज के परिष्कृत विचारोंवाले सदस्य अब कुछ मात्रा में उपलब्ध होंगे।
 
## शिक्षक / धर्मज्ञ और शासक निर्माण : समाज परिवर्तन में शिक्षक की और शासक की ऐसे दोनों की भुमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। संयुक्त परिवारों में जन्म लिये बच्चोंं में से अब श्रेष्ठ धर्म के मार्गदर्शक, शिक्षक और शासक निर्माण करने की स्थिति होगी। ऐसे लोगोंं को समर्थन और सहायता देनेवाले कुटुम्ब और दूसरे चरण में निर्माण किये समाज के परिष्कृत विचारोंवाले सदस्य अब कुछ मात्रा में उपलब्ध होंगे।
 
## संगठन और व्यवस्थाओं की प्रतिष्ठापना : श्रेष्ठ धर्म के अधिष्ठाता / मार्गदर्शक, सामर्थ्यवान शिक्षक और कुशल शासक अब प्रत्यक्ष संगठन का सशक्तिकरण और व्यवस्थाओं का निर्माण करेंगे।
 
## संगठन और व्यवस्थाओं की प्रतिष्ठापना : श्रेष्ठ धर्म के अधिष्ठाता / मार्गदर्शक, सामर्थ्यवान शिक्षक और कुशल शासक अब प्रत्यक्ष संगठन का सशक्तिकरण और व्यवस्थाओं का निर्माण करेंगे।

Navigation menu