भौतिक शास्त्र की एक प्रगत शाखा है। पार्टिकल फिजिक्स अर्थात् कण भौतिकी। इस शाखा के अंतर्गत ॠणाणू पर कुछ प्रयोग किये गये हैं। एक है ‘जुडवाँ ॠणाणू’ का और दूसरा है ‘ॠणाणू धारा’ का। इन प्रयोगों के कारण आधुनिक साइंटिस्ट भी ॠणाणू को भी मन और बुध्दि हो सकते हैं ऐसा विचार करने लग गये हैं। धार्मिक (धार्मिक) विचार के अनुसार तो सृष्टि में पूर्णत: चेतना विहीन तो कुछ भी नहीं है। सारा विश्व पंचमहाभूत, मन, बुध्दि और अहंकार इन आठ तत्वों से बनीं अष्टधा प्रकृति का ही बना हुआ है। इसी बात को डॉ जगदीशचंद्र बोस ने धातु और वनस्पति पर प्रयोगों के द्वारा प्रमाणित कर दिखाया था। जड़ तो चेतना के निम्न या अक्रिय स्तर को कहा जाता है। जहाँ अल्पस्तर की चेतना होती है उसे वनस्पति कहते हैं। उससे अधिक चेतना के स्तर को प्राणि कहते हैं। प्राणि आहार, निद्रा, भय और मैथुन इन प्राणिक आवेगों से नियंत्रित हो कर प्राण के स्तर पर जीते हैं। उस से भी अधिक चेतना का स्तर अर्थात् मन का स्तर प्राण या ऊर्जा से अत्यंत सूक्ष्म (व्यापक और बलवान) होता है। उस स्तरपर जीनेवाले को मानव कहते हैं। इस से ऊपर के स्तर पर यानी बुध्दि के स्तर पर जीनेवाला श्रेष्ठ मानव होता है। और उससे भी अधिक सूक्ष्म स्तर जो आत्मिक स्तर है उस स्तर पर जीनेवाले मानव को महामानव कहा जा सकता है। आगे का चेतना का स्तर तो अनंत चैतन्य परमात्मा का ही होता है। | भौतिक शास्त्र की एक प्रगत शाखा है। पार्टिकल फिजिक्स अर्थात् कण भौतिकी। इस शाखा के अंतर्गत ॠणाणू पर कुछ प्रयोग किये गये हैं। एक है ‘जुडवाँ ॠणाणू’ का और दूसरा है ‘ॠणाणू धारा’ का। इन प्रयोगों के कारण आधुनिक साइंटिस्ट भी ॠणाणू को भी मन और बुध्दि हो सकते हैं ऐसा विचार करने लग गये हैं। धार्मिक (धार्मिक) विचार के अनुसार तो सृष्टि में पूर्णत: चेतना विहीन तो कुछ भी नहीं है। सारा विश्व पंचमहाभूत, मन, बुध्दि और अहंकार इन आठ तत्वों से बनीं अष्टधा प्रकृति का ही बना हुआ है। इसी बात को डॉ जगदीशचंद्र बोस ने धातु और वनस्पति पर प्रयोगों के द्वारा प्रमाणित कर दिखाया था। जड़ तो चेतना के निम्न या अक्रिय स्तर को कहा जाता है। जहाँ अल्पस्तर की चेतना होती है उसे वनस्पति कहते हैं। उससे अधिक चेतना के स्तर को प्राणि कहते हैं। प्राणि आहार, निद्रा, भय और मैथुन इन प्राणिक आवेगों से नियंत्रित हो कर प्राण के स्तर पर जीते हैं। उस से भी अधिक चेतना का स्तर अर्थात् मन का स्तर प्राण या ऊर्जा से अत्यंत सूक्ष्म (व्यापक और बलवान) होता है। उस स्तरपर जीनेवाले को मानव कहते हैं। इस से ऊपर के स्तर पर यानी बुध्दि के स्तर पर जीनेवाला श्रेष्ठ मानव होता है। और उससे भी अधिक सूक्ष्म स्तर जो आत्मिक स्तर है उस स्तर पर जीनेवाले मानव को महामानव कहा जा सकता है। आगे का चेतना का स्तर तो अनंत चैतन्य परमात्मा का ही होता है। |