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* लोग जब '''वर्ण''' के अनुसार व्यवहार करते हैं तब समाज '''सुसंस्कृत''' बनता है।  और जब लोग अपनी अपनी '''जाति''' के अनुसार व्यवसाय करते हैं समाज '''समृध्द''' बनता है।   
 
* लोग जब '''वर्ण''' के अनुसार व्यवहार करते हैं तब समाज '''सुसंस्कृत''' बनता है।  और जब लोग अपनी अपनी '''जाति''' के अनुसार व्यवसाय करते हैं समाज '''समृध्द''' बनता है।   
 
* '''रक्षक''' या निवारक व्यवस्थाएं समाज और व्यक्तियों की संस्कृति और समृध्दि की रक्षा के लिये होती हैं।   
 
* '''रक्षक''' या निवारक व्यवस्थाएं समाज और व्यक्तियों की संस्कृति और समृध्दि की रक्षा के लिये होती हैं।   
* वर्ण और आश्रम यह व्यवस्थाएं समाज की रचना की व्यवस्थाएं हैं।   
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* वर्ण और [[Ashram System (आश्रम व्यवस्था)|आश्रम]] यह व्यवस्थाएं समाज की रचना की व्यवस्थाएं हैं।   
 
* परिवार व्यवस्था श्रेष्ठ मानव को जन्म देकर उसे वर्णानुसार संस्कारित करने की व्यवस्था है। यह व्यवस्था पारिवारिक भावना के विकास की भी व्यवस्था है। यह समाज व्यवस्था का लघु-रूप है। सामाजिकता की शिक्षा की नींव डालना परिवार व्यवस्था का काम है। इस कारण इस में पोषक, प्रेरक और रक्षक ऐसी तीनों व्यवस्थाओं का समावेश होता है। इसी प्रकार से जन्म से लेकर मृत्यू पर्यंत तक मनुष्य की बढती और घटती क्षमताओं और योग्यताओं के समायोजन की भी व्यवस्था परिवार में होती है।   
 
* परिवार व्यवस्था श्रेष्ठ मानव को जन्म देकर उसे वर्णानुसार संस्कारित करने की व्यवस्था है। यह व्यवस्था पारिवारिक भावना के विकास की भी व्यवस्था है। यह समाज व्यवस्था का लघु-रूप है। सामाजिकता की शिक्षा की नींव डालना परिवार व्यवस्था का काम है। इस कारण इस में पोषक, प्रेरक और रक्षक ऐसी तीनों व्यवस्थाओं का समावेश होता है। इसी प्रकार से जन्म से लेकर मृत्यू पर्यंत तक मनुष्य की बढती और घटती क्षमताओं और योग्यताओं के समायोजन की भी व्यवस्था परिवार में होती है।   
 
* जाति व्यवस्था, परिवार और ग्रामकुल यह तीनों मिल कर '''अर्थ''' व्यवस्था यानी समाज की विभिन्न भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली व्यवस्था बनती है।   
 
* जाति व्यवस्था, परिवार और ग्रामकुल यह तीनों मिल कर '''अर्थ''' व्यवस्था यानी समाज की विभिन्न भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली व्यवस्था बनती है।   

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