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− | बच्चों में संस्कारो का वर्धन ५ वर्ष की आयु से पाठांतर पठन माध्यम से प्रारंभ कर देना चाहिए <ref>पुस्तक -भारत एकात्मता स्तोत्र -सचित्र | + | बच्चों में संस्कारो का वर्धन ५ वर्ष की आयु से पाठांतर पठन माध्यम से प्रारंभ कर देना चाहिए <ref>पुस्तक -भारत एकात्मता स्तोत्र -सचित्र प्रकाशन - सुरुचि प्रकाशन, झंडेवाला, नयी दिल्ली </ref>। बच्चों में अपने धर्म के प्रति,अपने राष्ट्र के प्रति और अपने देशवासियों एवं माता-पिता गुरुजनों का आदर सम्मान करने की शिक्षा सर्वप्रथम देनी चाहिये। अतः हमें सर्वदा यह प्रयास करना चाहिए, कि विद्या का प्रारंभ अपनी प्राचीन भाषा संस्कृत में किया जाये। इसी विषय को अग्रेसर करते हुए सम्पूर्ण भारत का परिचय सभी अभिभावक सरल रूप में और सहजता से प्राप्त कर सके। |
− | प्रकाशन - सुरुचि प्रकाशन | |
− | झंडेवाला, नयी दिल्ली </ref>। बच्चों में अपने धर्म के प्रति ,अपने राष्ट्र के प्रति और अपने देशवासियों एवं माता-पिता गुरुजनों का आदर सम्मान करने की शिक्षा सर्वप्रथम देनी चाहिये। अतः हमें सर्वदा यह प्रयास करना चाहिए, कि विद्या का प्रारंभ अपनी प्राचीन भाषा संस्कृत में किया जाये। इसी विषय को अग्रेसर करते हुए सम्पूर्ण भारत का परिचय सभी अभिभावक सरल रूप में और सहजता से प्राप्त कर सके। | |
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| अतः '''एकात्मता स्तोत्र''' नामक यह पाठांतर आपके लिए प्रस्तुत है। एकात्मता-स्तोत्र के पूर्वरूप, '''भारत-भक्ति-स्तोत्र''' से हम लोग भली भाँति परिचित हैं, जो बोलचाल में '<nowiki/>'''प्रात: स्मरण'''' नाम से जाना जाता है, क्योंकि वह प्रात: स्मरण की हमारी प्राचीन परम्परा से ही प्रेरित था। यह भारत-एकात्मता-स्तोत्र भारत की सनातन और सर्वकष एकात्मता के प्रतीकभूत नामों का श्लोकबद्ध संग्रह है। सम्पूर्ण भारतवर्ष की एकात्मता के संस्कार दृढ़मूल करने के लिए इस नाममाला का ग्रथन किया गया है। राष्ट्र के प्रति अनन्य भक्ति, पूर्वजो के प्रति असीम श्रद्धा तथा सम्पूर्ण देश में निवास करने वालो के प्रति एकात्मता का भाव जागृत करने वाले इस मंत्र का नियमित रूप से पठान करना चाहिए । | | अतः '''एकात्मता स्तोत्र''' नामक यह पाठांतर आपके लिए प्रस्तुत है। एकात्मता-स्तोत्र के पूर्वरूप, '''भारत-भक्ति-स्तोत्र''' से हम लोग भली भाँति परिचित हैं, जो बोलचाल में '<nowiki/>'''प्रात: स्मरण'''' नाम से जाना जाता है, क्योंकि वह प्रात: स्मरण की हमारी प्राचीन परम्परा से ही प्रेरित था। यह भारत-एकात्मता-स्तोत्र भारत की सनातन और सर्वकष एकात्मता के प्रतीकभूत नामों का श्लोकबद्ध संग्रह है। सम्पूर्ण भारतवर्ष की एकात्मता के संस्कार दृढ़मूल करने के लिए इस नाममाला का ग्रथन किया गया है। राष्ट्र के प्रति अनन्य भक्ति, पूर्वजो के प्रति असीम श्रद्धा तथा सम्पूर्ण देश में निवास करने वालो के प्रति एकात्मता का भाव जागृत करने वाले इस मंत्र का नियमित रूप से पठान करना चाहिए । |
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| <blockquote>अरुन्धत्यनसूया च सावित्री जानकी सती।</blockquote><blockquote>द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥</blockquote>'''अरुन्धती, अनुसूया, सावित्री, सीता सती. द्रौपदी, कण्णगी. गार्गी, मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥''' | | <blockquote>अरुन्धत्यनसूया च सावित्री जानकी सती।</blockquote><blockquote>द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥</blockquote>'''अरुन्धती, अनुसूया, सावित्री, सीता सती. द्रौपदी, कण्णगी. गार्गी, मीरा दुर्गावती तथा ॥ १० ॥''' |
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− | <blockquote>लक्ष्मीरहल्या चेन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा ।</blockquote><blockquote>निवेदिता सारदा च प्रणम्या मातृदेवता: ॥ ११ ॥</blockquote>'''लक्ष्मीबाई, अहल्याबाई होलकर, चन्नम्मा आदि पराक्रमी नारियाँ, भगिनी निवेदिता तथा सारदा (स्वामी रामकृष्ण परमहंस''' | + | <blockquote>लक्ष्मीरहल्या चेन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा ।</blockquote><blockquote>निवेदिता सारदा च प्रणम्या मातृदेवता: ॥ ११ ॥</blockquote>'''लक्ष्मीबाई, अहल्याबाई होलकर, चन्नम्मा आदि पराक्रमी नारियाँ, भगिनी निवेदिता तथा सारदा (स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पत्नी) मातृस्वरूपा हैं, वन्दनीय हैं ॥ ११ ॥''' |
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− | '''की पत्नी) मातृस्वरूपा हैं, वन्दनीय हैं ॥ ११ ॥'''
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| <blockquote>श्रीरामो भरतः कृष्णो भीष्मो धर्मस्तथार्जुनः ।</blockquote><blockquote>मार्कण्डेयो हरिशचन्द्रः प्रह्लादो नारदो धुवः ॥ १२ ॥</blockquote>'''भगवान श्रीराम, भरत, कृष्ण, भीष्म, धर्मराज युधिष्ठिर अर्जुन. ऋषि मार्कण्डेय. हरिश्चन्द्र, प्रहलाद, नारद, ध्रुव संत तथा ॥१२ ॥''' | | <blockquote>श्रीरामो भरतः कृष्णो भीष्मो धर्मस्तथार्जुनः ।</blockquote><blockquote>मार्कण्डेयो हरिशचन्द्रः प्रह्लादो नारदो धुवः ॥ १२ ॥</blockquote>'''भगवान श्रीराम, भरत, कृष्ण, भीष्म, धर्मराज युधिष्ठिर अर्जुन. ऋषि मार्कण्डेय. हरिश्चन्द्र, प्रहलाद, नारद, ध्रुव संत तथा ॥१२ ॥''' |
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| ॥ भारतमाता की जय ॥ | | ॥ भारतमाता की जय ॥ |
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| == <big>एकात्मतास्तोत्र-व्याख्या</big> == | | == <big>एकात्मतास्तोत्र-व्याख्या</big> == |
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| ==== <big>स्वर</big> ==== | | ==== <big>स्वर</big> ==== |
− | भारतीय दर्शन के अनुसार आकाश में शब्द गुण है। परन्तु वहाँ शब्द अभिप्राय ध्वनि न होकर 'कम्पन' अर्थात्तरंग- प्रचरण है। शब्द की ध्वनिमयी अभिव्यक्ति स्वर है। स्वर को नादब्रह्म भी कहा गया है। संगीत शास्त्र में ध्वनि की मूल इकाइयों को श्रुति नाम दिया गया है जिनकी संख्या 22 है। एक से अधिक श्रुतियों के नादमय संयुक्त रूप को स्वर कहते हैं। संगीत के एक सप्तक में सात स्वर होते हैं,जिनके नाम है : षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद (सा रे ग म प ध नि) । सात स्वरों का यह क्रम पूरा होने पर फिर से उसी क्रम में पूर्वापेक्षा दुगुनी आवृत्ति (तारत्व) का सप्तक आरम्भ हो जाता है। इस सप्तक का क्रम भी सातवें स्वर तक चलने के पश्चात् उससे दुगुनी आवृत्ति का सप्तक चल पड़ता है। उपर्युक्त शुद्ध स्वरों के अतिरिक्त जिन विक्कृत स्वरों को संगीत में मान्यता दे दी गयी है, वे हैं – कोमल ऋषभ, कोमल गान्धार, तीव्र मध्यम, कोमल धैवत और कोमल निषाद। भारतीय संगीत में प्रयुक्त तीन सप्तकों को क्रमश:मन्द्र,मध्य और तार सप्तक कहा जाता है। | + | भारतीय दर्शन के अनुसार आकाश में शब्द गुण है। परन्तु वहाँ शब्द अभिप्राय ध्वनि न होकर 'कम्पन' अर्थात्तरंग- प्रचरण है। शब्द की ध्वनिमयी अभिव्यक्ति स्वर है। स्वर को नादब्रह्म भी कहा गया है। संगीत शास्त्र में ध्वनि की मूल इकाइयों को श्रुति नाम दिया गया है जिनकी संख्या 22 है। एक से अधिक श्रुतियों के नादमय संयुक्त रूप को स्वर कहते हैं। संगीत के एक सप्तक में सात स्वर होते हैं,जिनके नाम है : षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद (सा रे ग म प ध नि) । सात स्वरों का यह क्रम पूरा होने पर फिर से उसी क्रम में पूर्वापेक्षा दुगुनी आवृत्ति (तारत्व) का सप्तक आरम्भ हो जाता है। इस सप्तक का क्रम भी सातवें स्वर तक चलने के पश्चात् उससे दुगुनी आवृत्ति का सप्तक चल पड़ता है। उपर्युक्त शुद्ध स्वरों के अतिरिक्त जिन विक्कृत स्वरों को संगीत में मान्यता दे दी गयी है, वे हैं – कोमल ऋषभ, कोमल गान्धार, तीव्र मध्यम, कोमल धैवत और कोमल निषाद। भारतीय संगीत में प्रयुक्त तीन सप्तकों को क्रमश:मन्द्र, मध्य और तार सप्तक कहा जाता है। |
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| व्याकरण में, भारतीय भाषाओं की वर्णमाला के अ आ इ ई उ ऊ आदि जिन 14 वर्णाक्षरों ९-९ -९ -९ -९ वणाक्षरों से मिलने पर उनकी ध्वनियों को अभिव्यक्त करने में भी सहायक होती हैं , वे स्वर कहलाते हैं। उच्चारण में नाद के विस्तार की दृष्टि से ये हृस्व, दीर्घ और प्लुत भेद से तीन प्रकार के होतेहैं। उच्चारण की तीव्रता की दृष्टि से भी स्वर उदात्त,अनुदात्त और स्वरित भेद से तीन प्रकार के होते हैं। | | व्याकरण में, भारतीय भाषाओं की वर्णमाला के अ आ इ ई उ ऊ आदि जिन 14 वर्णाक्षरों ९-९ -९ -९ -९ वणाक्षरों से मिलने पर उनकी ध्वनियों को अभिव्यक्त करने में भी सहायक होती हैं , वे स्वर कहलाते हैं। उच्चारण में नाद के विस्तार की दृष्टि से ये हृस्व, दीर्घ और प्लुत भेद से तीन प्रकार के होतेहैं। उच्चारण की तीव्रता की दृष्टि से भी स्वर उदात्त,अनुदात्त और स्वरित भेद से तीन प्रकार के होते हैं। |