Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "बच्चो" to "बच्चों"
Line 83: Line 83:  
बगैर किसी भेदभाव के हर बच्चे को उस के स्वभाव, गुण, लक्षणों के अनुसार वर्ण की प्राप्ति होती थी। इसलिये एक वर्ण के मानव का दूसरे वर्ण के मानव के साथ कोई द्वेषभाव नहीं रहता था। अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करने की दृष्टि से शिक्षण और प्रशिक्षण प्राप्त होने से बच्चा अपने स्वाभाविक कर्मों में और व्यवसाय में भी कुशल बन जाता था। अपनी व्यावसायिक कुशलता का अभिमान संजोता था। अपने व्यवसाय को उसे बोझ नहीं होता था। व्यवसाय के काम में आनंद लेता था और लोगोंं को भी आनंद ही बाँटता था। बालक के जन्म से वर्ण जानने के और उसे और सुनिश्चित करने के कई उपाय हुआ करते थे। इन में से कुछ तो हर माता पिता को पता होते थे। ऐसे कुछ उपायों का विवरण हम आगे देखेंगे।
 
बगैर किसी भेदभाव के हर बच्चे को उस के स्वभाव, गुण, लक्षणों के अनुसार वर्ण की प्राप्ति होती थी। इसलिये एक वर्ण के मानव का दूसरे वर्ण के मानव के साथ कोई द्वेषभाव नहीं रहता था। अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करने की दृष्टि से शिक्षण और प्रशिक्षण प्राप्त होने से बच्चा अपने स्वाभाविक कर्मों में और व्यवसाय में भी कुशल बन जाता था। अपनी व्यावसायिक कुशलता का अभिमान संजोता था। अपने व्यवसाय को उसे बोझ नहीं होता था। व्यवसाय के काम में आनंद लेता था और लोगोंं को भी आनंद ही बाँटता था। बालक के जन्म से वर्ण जानने के और उसे और सुनिश्चित करने के कई उपाय हुआ करते थे। इन में से कुछ तो हर माता पिता को पता होते थे। ऐसे कुछ उपायों का विवरण हम आगे देखेंगे।
   −
आगे गुरूकुलों में केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय की ही शिक्षा होने लगी। वैश्य बच्चों की व्यावसायिक कुशलता की शिक्षा परिवार में और धर्म की शिक्षा लोक-शिक्षा के माध्यम से होने लगी। काल के प्रवाह में आवश्यकता के अनुसार ऐसे परिवर्तन तो हुए होंगे।
+
आगे गुरूकुलों में केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय की ही शिक्षा होने लगी। वैश्य बच्चोंं की व्यावसायिक कुशलता की शिक्षा परिवार में और धर्म की शिक्षा लोक-शिक्षा के माध्यम से होने लगी। काल के प्रवाह में आवश्यकता के अनुसार ऐसे परिवर्तन तो हुए होंगे।
    
=== बालक के जन्म से या विविध आयु की अवस्थाओं में वर्ण जानने के उपाय ===
 
=== बालक के जन्म से या विविध आयु की अवस्थाओं में वर्ण जानने के उपाय ===
Line 93: Line 93:  
# बालक जब खेलने लगता है तो कैसे खेल उसे पसंद आते है, खेलों में उस की भूमिका कैसी रहती है, उस का व्यवहार कैसा रहता है इस से भी बालक के वर्ण की पुष्टि हो सकती है। ऐसा कहते है कि चाणक्य ने चंद्रगुप्त का चयन, चंद्रगुप्त के खेल और उस खेल में चंद्रगुप्त की भूमिका और व्यवहार देखकर किया था।  
 
# बालक जब खेलने लगता है तो कैसे खेल उसे पसंद आते है, खेलों में उस की भूमिका कैसी रहती है, उस का व्यवहार कैसा रहता है इस से भी बालक के वर्ण की पुष्टि हो सकती है। ऐसा कहते है कि चाणक्य ने चंद्रगुप्त का चयन, चंद्रगुप्त के खेल और उस खेल में चंद्रगुप्त की भूमिका और व्यवहार देखकर किया था।  
 
# चाणक्य का सूत्र कहता है - लालयेत पंचवर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् । इस का अर्थ है कि पाँच वर्ष तक बालक को लाड प्यार ही देना चाहिये। कोई बात उस के मन के विपरीत नहीं करनीं चाहिये। इस का यह अर्थ नहीं है कि बच्चे को आग में भी हाथ डालने देना चाहिये। इस से उस बच्चे का जो स्वभाव है वैसा ही व्यवहार बच्चा करता है। भयमुक्त और दबावमुक्त ऐसे वातावरण में बच्चा उसके स्वभाव के अनुरूप ही सहजता से व्यवहार करता है। बच्चे के इस सहज व्यवहार से भी वर्ण की पुष्टि हो सकती है। शुध्द सात्विक स्वभाव ब्राह्मण वर्ण का, सात्विक और राजसी का मेल क्षत्रिय वर्ण का, राजसी और तामसी का मेल वैश्य वर्ण का और तामसी स्वभाव शूद्र वर्ण का परिचायक होता है।
 
# चाणक्य का सूत्र कहता है - लालयेत पंचवर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् । इस का अर्थ है कि पाँच वर्ष तक बालक को लाड प्यार ही देना चाहिये। कोई बात उस के मन के विपरीत नहीं करनीं चाहिये। इस का यह अर्थ नहीं है कि बच्चे को आग में भी हाथ डालने देना चाहिये। इस से उस बच्चे का जो स्वभाव है वैसा ही व्यवहार बच्चा करता है। भयमुक्त और दबावमुक्त ऐसे वातावरण में बच्चा उसके स्वभाव के अनुरूप ही सहजता से व्यवहार करता है। बच्चे के इस सहज व्यवहार से भी वर्ण की पुष्टि हो सकती है। शुध्द सात्विक स्वभाव ब्राह्मण वर्ण का, सात्विक और राजसी का मेल क्षत्रिय वर्ण का, राजसी और तामसी का मेल वैश्य वर्ण का और तामसी स्वभाव शूद्र वर्ण का परिचायक होता है।
# जिन बच्चों की जन्मपत्रिकाएं या तो बनीं नहीं है या जिनकी जन्मतिथि और समय ठीक से ज्ञात नहीं है ऐसे बच्चों के लिये १५ वर्ष के बाद जब हस्त-रेखाएं कुछ पक्की होने लगती है हस्त-सामुद्रिक या हस्त-रेखा देखकर भी बच्चे या मनुष्य के वर्ण का अनुमान लगाया जा सकता है।  
+
# जिन बच्चोंं की जन्मपत्रिकाएं या तो बनीं नहीं है या जिनकी जन्मतिथि और समय ठीक से ज्ञात नहीं है ऐसे बच्चोंं के लिये १५ वर्ष के बाद जब हस्त-रेखाएं कुछ पक्की होने लगती है हस्त-सामुद्रिक या हस्त-रेखा देखकर भी बच्चे या मनुष्य के वर्ण का अनुमान लगाया जा सकता है।  
 
# जब किसी को व्यवसाय या नित्यकर्म बोझ लगता है, सहजता से सफलता नहीं मिलती तब यह स्पष्ट है कि उस का वर्तमान व्यवसाय और काम का स्वरुप उस के वर्ण से मेल नहीं खाता । उसी तरह जब किसी को व्यवसाय या नित्यकर्म बोझ नहीं लगता है, सहजता से सफलता मिलती है तब यह स्पष्ट है कि उस का वर्तमान व्यवसाय और काम का स्वरुप उस की जाति और उस के वर्ण से मेल खाता है । इस कसौटी का उपयोग जिन का वर्तमान व्यवसाय और काम का स्वरुप उन की जाति और उन के वर्ण से मेल खाता है ऐसे लोगोंं का समाज में प्रतिशत जानने तक ही सीमित है । उतने प्रतिशत लोगोंं को वर्ण और जाति यह व्यवस्थाएं शास्त्रसंमत ही है, और जाने अनजाने में तथा पूर्व पुण्य के कारण, वर्ण और जाति व्यवस्था के तत्वों का पालन होनेसे वे सुखी है, यह ठीक से समझाना होगा । आगे भी इन लाभों को बनाए रखने के लिये उन्हे प्रेरित करना होगा। उन का अनुसरण करने के लिये औरों को भी प्रेरित करना होगा।
 
# जब किसी को व्यवसाय या नित्यकर्म बोझ लगता है, सहजता से सफलता नहीं मिलती तब यह स्पष्ट है कि उस का वर्तमान व्यवसाय और काम का स्वरुप उस के वर्ण से मेल नहीं खाता । उसी तरह जब किसी को व्यवसाय या नित्यकर्म बोझ नहीं लगता है, सहजता से सफलता मिलती है तब यह स्पष्ट है कि उस का वर्तमान व्यवसाय और काम का स्वरुप उस की जाति और उस के वर्ण से मेल खाता है । इस कसौटी का उपयोग जिन का वर्तमान व्यवसाय और काम का स्वरुप उन की जाति और उन के वर्ण से मेल खाता है ऐसे लोगोंं का समाज में प्रतिशत जानने तक ही सीमित है । उतने प्रतिशत लोगोंं को वर्ण और जाति यह व्यवस्थाएं शास्त्रसंमत ही है, और जाने अनजाने में तथा पूर्व पुण्य के कारण, वर्ण और जाति व्यवस्था के तत्वों का पालन होनेसे वे सुखी है, यह ठीक से समझाना होगा । आगे भी इन लाभों को बनाए रखने के लिये उन्हे प्रेरित करना होगा। उन का अनुसरण करने के लिये औरों को भी प्रेरित करना होगा।
   Line 141: Line 141:  
श्रीमद्भागवत में भी ऐसे कई उदाहरण दिये गये है।
 
श्रीमद्भागवत में भी ऐसे कई उदाहरण दिये गये है।
   −
वर्तमान में भी जो शूद्र माने जाते है, उनके बच्चों की जन्मपत्रियों को देखें तो दिखाई देगा कि चारों वर्णों के बच्चे उन में है। और जो ब्राह्मण माने जाते है, ऐसे कई ब्राह्मणों के बच्चों की जन्मपत्रियों के अनुसार उन में ब्राह्मण वर्ण का कोई भी बच्चा नहीं है। तात्पर्य यह है कि पूरा परिवार एक वर्ण का ही हो यह आवश्यक नहीं है। एक ही परिवार में भिन्न वर्ण के लोगोंं का होना स्वाभाविक है। लेकिन माता पिता से, आनुवांशिकता से आये पूर्वजों के अन्वयागत संस्कार या व्यावसायिक कुशलताओं के संस्कार आनुवांशिक होने से पूरा परिवार होगा उसी जाति का जो उन के पुरखों की थी।
+
वर्तमान में भी जो शूद्र माने जाते है, उनके बच्चोंं की जन्मपत्रियों को देखें तो दिखाई देगा कि चारों वर्णों के बच्चे उन में है। और जो ब्राह्मण माने जाते है, ऐसे कई ब्राह्मणों के बच्चोंं की जन्मपत्रियों के अनुसार उन में ब्राह्मण वर्ण का कोई भी बच्चा नहीं है। तात्पर्य यह है कि पूरा परिवार एक वर्ण का ही हो यह आवश्यक नहीं है। एक ही परिवार में भिन्न वर्ण के लोगोंं का होना स्वाभाविक है। लेकिन माता पिता से, आनुवांशिकता से आये पूर्वजों के अन्वयागत संस्कार या व्यावसायिक कुशलताओं के संस्कार आनुवांशिक होने से पूरा परिवार होगा उसी जाति का जो उन के पुरखों की थी।
    
== यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे ==
 
== यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे ==

Navigation menu