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=== भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं की संवाहक ===
 
=== भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं की संवाहक ===
भाषा का विकास एक समाज अपनी मान्यताओं, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति के आधार पर ही करता है। उस समाज की भाषा, उस समाज की सोच का प्रतिबिंब होती है। इसीलिये सभी समाजशास्त्रज्ञ, शिक्षाशास्त्रज्ञ और भाषाशास्त्रज्ञ शिक्षा के माध्यम के विषय में एकमत हैं। सभी का सुविचारित कहना है की हर बच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिये। अपनी मातृभाषा या देशी भाषाएं शिक्षा का माध्यम रहने से बच्चा अपनी संस्कृति के साथ जुडा रहता है। जैसे बच्चे की अपनी माँ का दूध ही बच्चे का सबसे बेहतर पोषण कर सकता है। उसी प्रकार से मातृभाषा मे शिक्षा पाने से बच्चे का विकास अन्य किसी भी भाषा को शिक्षा के माध्यम के तौरपर स्वीकार करने से बेहतर होता है। मातृभाषा के स्थानपर बच्चों की शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी या अन्य किसी विदेशी भाषा को बनाने से बच्चे का सांस्कृतिक दृष्टि से गणना से परे नुकसान होता है।   
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भाषा का विकास एक समाज अपनी मान्यताओं, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति के आधार पर ही करता है। उस समाज की भाषा, उस समाज की सोच का प्रतिबिंब होती है। इसीलिये सभी समाजशास्त्रज्ञ, शिक्षाशास्त्रज्ञ और भाषाशास्त्रज्ञ शिक्षा के माध्यम के विषय में एकमत हैं। सभी का सुविचारित कहना है की हर बच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिये। अपनी मातृभाषा या देशी भाषाएं शिक्षा का माध्यम रहने से बच्चा अपनी संस्कृति के साथ जुडा रहता है। जैसे बच्चे की अपनी माँ का दूध ही बच्चे का सबसे बेहतर पोषण कर सकता है। उसी प्रकार से मातृभाषा मे शिक्षा पाने से बच्चे का विकास अन्य किसी भी भाषा को शिक्षा के माध्यम के तौरपर स्वीकार करने से बेहतर होता है। मातृभाषा के स्थानपर बच्चोंं की शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी या अन्य किसी विदेशी भाषा को बनाने से बच्चे का सांस्कृतिक दृष्टि से गणना से परे नुकसान होता है।   
    
धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, संस्कार, परमात्मा, मोक्ष, एकात्मता जैसी संकल्पनाएं अन्य समाजों की भाषाओं में नहीं है । ना ही इन संकल्पनाओं की अभिव्यक्ति के लिये उचित शब्द। अन्य भाषाओ के माध्यम से पढने से हमारे बच्चे इन मूलभूत धार्मिक (भारतीय) संकल्पनाओं से अर्थात् मूल धार्मिक (भारतीय) तत्व से अपरिचित रह जाते है।  
 
धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, संस्कार, परमात्मा, मोक्ष, एकात्मता जैसी संकल्पनाएं अन्य समाजों की भाषाओं में नहीं है । ना ही इन संकल्पनाओं की अभिव्यक्ति के लिये उचित शब्द। अन्य भाषाओ के माध्यम से पढने से हमारे बच्चे इन मूलभूत धार्मिक (भारतीय) संकल्पनाओं से अर्थात् मूल धार्मिक (भारतीय) तत्व से अपरिचित रह जाते है।  
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विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देना एक सामाजिक अपराध है । यह विषय सामान्य लोगोंं द्वारा निर्णय करने का नहीं है। ऐसे मामलों में लोकतंत्रात्मक पद्दति अपनाने से जनता का अपरिमित नुकसान होता है। समाज एक कुटुम्ब जैसा ही होता है । इस में कुछ बडे (समझदार, ज्ञानी) लोग होते हैं। लेकिन बडी संख्या अज्ञानियों की होती है । घर में जैसे जो सज्ञान (केवल आयु से नहीं तो ज्ञान, अनुभव आदि से सज्ञान) होते है, वही सब के हित को ध्यान मे रखकर निर्णय लेते है। घर के सब लोग उस निर्णय के अनुसार व्यवहार करते है। भोजन में, खाने के लिये क्या हो इस बात का निर्णय नासमझ बच्चों के मत (लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुसार मतदान) के अनुसार तय नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार शिक्षा का माध्यम कौन सी भाषा हो इसका निर्णय लोकतांत्रिक ढंग से नहीं लिया जा सकता । यह निर्णय करना, वोट बैंक की राजनीति करनेवाले राजनीतिक दलों का या सरकार का काम नहीं है । यह निर्भय, नि:स्वार्थ और विद्वान शिक्षाविदों का काम है ।  
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विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देना एक सामाजिक अपराध है । यह विषय सामान्य लोगोंं द्वारा निर्णय करने का नहीं है। ऐसे मामलों में लोकतंत्रात्मक पद्दति अपनाने से जनता का अपरिमित नुकसान होता है। समाज एक कुटुम्ब जैसा ही होता है । इस में कुछ बडे (समझदार, ज्ञानी) लोग होते हैं। लेकिन बडी संख्या अज्ञानियों की होती है । घर में जैसे जो सज्ञान (केवल आयु से नहीं तो ज्ञान, अनुभव आदि से सज्ञान) होते है, वही सब के हित को ध्यान मे रखकर निर्णय लेते है। घर के सब लोग उस निर्णय के अनुसार व्यवहार करते है। भोजन में, खाने के लिये क्या हो इस बात का निर्णय नासमझ बच्चोंं के मत (लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुसार मतदान) के अनुसार तय नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार शिक्षा का माध्यम कौन सी भाषा हो इसका निर्णय लोकतांत्रिक ढंग से नहीं लिया जा सकता । यह निर्णय करना, वोट बैंक की राजनीति करनेवाले राजनीतिक दलों का या सरकार का काम नहीं है । यह निर्भय, नि:स्वार्थ और विद्वान शिक्षाविदों का काम है ।  
    
=== अंग्रेजी या योरप की अन्य भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने के सांस्कृतिक दुष्परिणाम ===
 
=== अंग्रेजी या योरप की अन्य भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने के सांस्कृतिक दुष्परिणाम ===
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आगे मेकॉले कहता है - और ऐसा करने से जो लोग भारत के मूल निवासियों को ईसाई बनाने में जुटे हुए है उन्हें हम कोई सहायता नहीं करेंगे। इससे मेकॉले का यह अभिप्राय है की अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा देने से भारतीयों के ईसाईकरण में सहायता होती है । अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पाने वाले भारतीयों की जीवनदृष्टि बदलकर अंग्रेजियत की याने व्यक्तिवादी, इहवादी और जड़़वादी हो जाती है।  
 
आगे मेकॉले कहता है - और ऐसा करने से जो लोग भारत के मूल निवासियों को ईसाई बनाने में जुटे हुए है उन्हें हम कोई सहायता नहीं करेंगे। इससे मेकॉले का यह अभिप्राय है की अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा देने से भारतीयों के ईसाईकरण में सहायता होती है । अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पाने वाले भारतीयों की जीवनदृष्टि बदलकर अंग्रेजियत की याने व्यक्तिवादी, इहवादी और जड़़वादी हो जाती है।  
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व्यवहार में भी हम यही अनुभव करते है। अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा पानेवाले बच्चों का सर्वप्रथम वाचनविश्व बदल जाता है । वह केवल अंग्रेजी साहित्य पढने की क्षमता और रुचि रखता है । जैसा साहित्य बच्चा पढता है वैसे ही उस के विचार बन जाते है । जैसे उस के विचार होते हैं वैसी उस की मानसिकता बन जाती है और जैसी मानसिकता होगी वैसा ही उस का व्यवहार हो जाता है । कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करेंगे:  
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व्यवहार में भी हम यही अनुभव करते है। अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा पानेवाले बच्चोंं का सर्वप्रथम वाचनविश्व बदल जाता है । वह केवल अंग्रेजी साहित्य पढने की क्षमता और रुचि रखता है । जैसा साहित्य बच्चा पढता है वैसे ही उस के विचार बन जाते है । जैसे उस के विचार होते हैं वैसी उस की मानसिकता बन जाती है और जैसी मानसिकता होगी वैसा ही उस का व्यवहार हो जाता है । कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करेंगे:  
 
* ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी - (प्रामाणिकता यह सर्वश्रेष्ठ रणनीति है) - इस अर्थ की कहावत किसी भी धार्मिक (भारतीय) भाषा में नहीं है । हमारी मान्यता तो है कि  प्रामाणिकता तो हमारे खून में होनी चाहिये । प्रामाणिकता हमारा धर्म है। ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी कहनेवाला प्रामाणिकता का रणनीति के तौर पर उपयोग करता है।  
 
* ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी - (प्रामाणिकता यह सर्वश्रेष्ठ रणनीति है) - इस अर्थ की कहावत किसी भी धार्मिक (भारतीय) भाषा में नहीं है । हमारी मान्यता तो है कि  प्रामाणिकता तो हमारे खून में होनी चाहिये । प्रामाणिकता हमारा धर्म है। ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी कहनेवाला प्रामाणिकता का रणनीति के तौर पर उपयोग करता है।  
 
* किंग कॅन डू नो राँग - (राजा कभी भी गलती नहीं कर सकता) किसी भी धार्मिक (भारतीय) भाषा में इस अर्थ की कहावत नहीं है। धार्मिक (भारतीय) मान्यता तो यह है कि राजा भी गलती कर सकता है । और उसकी गलती का दण्ड उसे मिलना चाहिये।  
 
* किंग कॅन डू नो राँग - (राजा कभी भी गलती नहीं कर सकता) किसी भी धार्मिक (भारतीय) भाषा में इस अर्थ की कहावत नहीं है। धार्मिक (भारतीय) मान्यता तो यह है कि राजा भी गलती कर सकता है । और उसकी गलती का दण्ड उसे मिलना चाहिये।  
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=== अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम न बनाकर धार्मिक (भारतीय) भाषाओं को माध्यम बनाने  की आवश्यकता ===
 
=== अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम न बनाकर धार्मिक (भारतीय) भाषाओं को माध्यम बनाने  की आवश्यकता ===
 
# अपनी भाषा का प्रयोग सामान्य व्यवहार के लिये करना यह हर समाज के लिये स्वत्व और स्वाभिमान की बात होती है। पराभूत और परावलंबी मानसिकता रखनेवाले समाज ही विदेशी समाजों की भाषा अपनाते हैं। जर्मनी में जर्मन, जापान में जापानी, पुर्तगाल में पुर्तगाली, फ्रांस में फ्रेंच भाषाओं का ही ये देश सामान्य व्यवहार के लिये उपयोग करते हैं।  
 
# अपनी भाषा का प्रयोग सामान्य व्यवहार के लिये करना यह हर समाज के लिये स्वत्व और स्वाभिमान की बात होती है। पराभूत और परावलंबी मानसिकता रखनेवाले समाज ही विदेशी समाजों की भाषा अपनाते हैं। जर्मनी में जर्मन, जापान में जापानी, पुर्तगाल में पुर्तगाली, फ्रांस में फ्रेंच भाषाओं का ही ये देश सामान्य व्यवहार के लिये उपयोग करते हैं।  
# अधार्मिक भाषाएं उन समाजों की मान्यताओं, सोच को अभिव्यक्त करती है।और अधार्मिक (अधार्मिक) समाजों में एकात्मता का विचार नहीं है। इसलिये इन भाषाओं में अध्ययन कर बच्चे हीन संस्कृति अपनाते जाते है। बच्चों को हीन संस्कृति से बचाकर 'एकात्मता' पर आधारित श्रेष्ठ संस्कृति मे संस्कारित करना धार्मिक (भारतीय) भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने से ही संभव होता है।  
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# अधार्मिक भाषाएं उन समाजों की मान्यताओं, सोच को अभिव्यक्त करती है।और अधार्मिक (अधार्मिक) समाजों में एकात्मता का विचार नहीं है। इसलिये इन भाषाओं में अध्ययन कर बच्चे हीन संस्कृति अपनाते जाते है। बच्चोंं को हीन संस्कृति से बचाकर 'एकात्मता' पर आधारित श्रेष्ठ संस्कृति मे संस्कारित करना धार्मिक (भारतीय) भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने से ही संभव होता है।  
# बच्चों की प्रतिभा का पूरा उपयोग अध्ययन के लिये होता है। धार्मिक (भारतीय) भाषाएं सीखने के लिये सरल, व्याकरणशुद्ध और तर्कशुद्ध होने के कारण भाषा सीखने में प्रतिभा का न्यूनतम और बहुत छोटा हिस्सा ही व्यय होता है। बचा हुआ पूरा हिस्सा नये विषयों के अध्ययन के लिये उपयोग में लाया जा सकता है ।  
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# बच्चोंं की प्रतिभा का पूरा उपयोग अध्ययन के लिये होता है। धार्मिक (भारतीय) भाषाएं सीखने के लिये सरल, व्याकरणशुद्ध और तर्कशुद्ध होने के कारण भाषा सीखने में प्रतिभा का न्यूनतम और बहुत छोटा हिस्सा ही व्यय होता है। बचा हुआ पूरा हिस्सा नये विषयों के अध्ययन के लिये उपयोग में लाया जा सकता है ।  
 
# संस्कृत भाषा जिसे आती है, उसे विश्व की अन्य कोई भी भाषा सीखना बहुत सरल होता है। अन्य धार्मिक (भारतीय) भाषाओं के लिये भी यह कम-अधिक मात्रा में लागू होता है।  
 
# संस्कृत भाषा जिसे आती है, उसे विश्व की अन्य कोई भी भाषा सीखना बहुत सरल होता है। अन्य धार्मिक (भारतीय) भाषाओं के लिये भी यह कम-अधिक मात्रा में लागू होता है।  
 
# ग्रीक और लॅटिन यह संस्कृत के बाद दूसरे क्रमांक की प्राचीन भाषाएं हैं। किंतु संस्कृत में आज भी उपलब्ध विविध विषयों पर लिखे ग्रंथों की पांडुलिपियाँ ग्रीक और लॅटिन दोनों भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है। वर्तमान शिक्षा के कारण इन पांडुलिपियों से प्राप्त होनेवाला ज्ञान असंगत  होता जा रहा है। धार्मिक (भारतीय) और विशेषत: संस्कृत सीखने से इन ग्रंथों में सुरक्षित और छुपा ज्ञान मानवमात्र को उपलब्ध हो सकेगा।  
 
# ग्रीक और लॅटिन यह संस्कृत के बाद दूसरे क्रमांक की प्राचीन भाषाएं हैं। किंतु संस्कृत में आज भी उपलब्ध विविध विषयों पर लिखे ग्रंथों की पांडुलिपियाँ ग्रीक और लॅटिन दोनों भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है। वर्तमान शिक्षा के कारण इन पांडुलिपियों से प्राप्त होनेवाला ज्ञान असंगत  होता जा रहा है। धार्मिक (भारतीय) और विशेषत: संस्कृत सीखने से इन ग्रंथों में सुरक्षित और छुपा ज्ञान मानवमात्र को उपलब्ध हो सकेगा।  
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अंग्रेजी भाषा का एक प्रबल बलस्थान निम्न है। विश्व के बहुत बडे हिस्से में, दर्जनों देशों में अंग्रेजों के उपनिवेश रहे हैं। हर उपनिवेश में अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को स्थानिक समाज पर थोपने के सफल प्रयास किये। इसी का परिणाम है कि कई देशों ने जैसे अमरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की संस्कृति और सामान्य व्यवहार की भाषा अंग्रेजी बन गई। धार्मिक (भारतीय) संस्कृति मे उपनिवेषवाद को कोई स्थान नहीं है । इसलिये यह अंग्रेजी का ऐसा बलस्थान है जिसे हम उसी ढंग से उत्तर नहीं दे सकते। अर्थात् इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बनाकर नहीं दे सकते। इस बल स्थान को हमें धार्मिक (भारतीय) भाषाओं के अन्य बल स्थानों के बल पर ही परास्त करना होगा ।  
 
अंग्रेजी भाषा का एक प्रबल बलस्थान निम्न है। विश्व के बहुत बडे हिस्से में, दर्जनों देशों में अंग्रेजों के उपनिवेश रहे हैं। हर उपनिवेश में अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को स्थानिक समाज पर थोपने के सफल प्रयास किये। इसी का परिणाम है कि कई देशों ने जैसे अमरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की संस्कृति और सामान्य व्यवहार की भाषा अंग्रेजी बन गई। धार्मिक (भारतीय) संस्कृति मे उपनिवेषवाद को कोई स्थान नहीं है । इसलिये यह अंग्रेजी का ऐसा बलस्थान है जिसे हम उसी ढंग से उत्तर नहीं दे सकते। अर्थात् इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बनाकर नहीं दे सकते। इस बल स्थान को हमें धार्मिक (भारतीय) भाषाओं के अन्य बल स्थानों के बल पर ही परास्त करना होगा ।  
 
# अंग्रेजी भाषा के और अपनी भाषा के बलस्थानों और दुर्बल स्थानों को समझना और अंग्रेजी के दुर्बल स्थानों का और अपनी भाषाओं के बलस्थानों का लाभ लेकर अंग्रेजी माध्यम को शिक्षा के माध्यम के रूप मे निर्बल करना।  
 
# अंग्रेजी भाषा के और अपनी भाषा के बलस्थानों और दुर्बल स्थानों को समझना और अंग्रेजी के दुर्बल स्थानों का और अपनी भाषाओं के बलस्थानों का लाभ लेकर अंग्रेजी माध्यम को शिक्षा के माध्यम के रूप मे निर्बल करना।  
# भारतीय समाज में स्वत्व और स्वाभिमान की भावना जगाना। इस हेतु से विद्यालय पहल करें। अपने स्वाभिमान और स्वभाषा के विषय में अपनेपन का भाव जगाएं । अभिभावकों को अपने बच्चों को धार्मिक (भारतीय) (स्थानिक) भाषा के माध्यम वाले विद्यालय में ही डालने का महत्व बताकर आग्रह करें। हर विद्यालय अपनी बस्ती में इस विषय का आंदोलन / अभियान चलाए।  
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# भारतीय समाज में स्वत्व और स्वाभिमान की भावना जगाना। इस हेतु से विद्यालय पहल करें। अपने स्वाभिमान और स्वभाषा के विषय में अपनेपन का भाव जगाएं । अभिभावकों को अपने बच्चोंं को धार्मिक (भारतीय) (स्थानिक) भाषा के माध्यम वाले विद्यालय में ही डालने का महत्व बताकर आग्रह करें। हर विद्यालय अपनी बस्ती में इस विषय का आंदोलन / अभियान चलाए।  
 
# भारतीय / प्रांतीय भाषाओं को सरकारी व्यवहार की और न्यायालयों की भाषा बनाना । इस हेतु सभी राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना होगा। दो भिन्नभाषी प्रांतों का परस्पर व्यवहार भी अंग्रेजी की जगह हिंदी में चलाना होगा। हमारे देश की सभी भाषाएं 'राष्ट्रभाषाएं' है। अन्य देश छोटे होने से, छोटे देशों की 'राष्ट्रभाषा' एक होना स्वाभाविक है। हमारा देश बडा है। इसलिये हमारी १८ राष्ट्रभाषाएं है। हिंदी और तमिल या तेलुगु या मराठी या पंजाबी सभी भाषाएं समान है । सर्वसहमती से किसी भी एक राष्ट्रीय भाषा को राष्ट्र की सम्पर्क भाषा बनाने के प्रयास करने चाहिये। प्राचीन काल में संस्कृत संपर्क भाषा थी। हम निश्चय करें तो वर्तमान में भी संस्कृत में संपर्क भाषा बनने की सामर्थ्य है।  
 
# भारतीय / प्रांतीय भाषाओं को सरकारी व्यवहार की और न्यायालयों की भाषा बनाना । इस हेतु सभी राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना होगा। दो भिन्नभाषी प्रांतों का परस्पर व्यवहार भी अंग्रेजी की जगह हिंदी में चलाना होगा। हमारे देश की सभी भाषाएं 'राष्ट्रभाषाएं' है। अन्य देश छोटे होने से, छोटे देशों की 'राष्ट्रभाषा' एक होना स्वाभाविक है। हमारा देश बडा है। इसलिये हमारी १८ राष्ट्रभाषाएं है। हिंदी और तमिल या तेलुगु या मराठी या पंजाबी सभी भाषाएं समान है । सर्वसहमती से किसी भी एक राष्ट्रीय भाषा को राष्ट्र की सम्पर्क भाषा बनाने के प्रयास करने चाहिये। प्राचीन काल में संस्कृत संपर्क भाषा थी। हम निश्चय करें तो वर्तमान में भी संस्कृत में संपर्क भाषा बनने की सामर्थ्य है।  
 
# विश्वभर की सभी भाषाओं में उपलब्ध भद्र ज्ञान के ग्रंथों का धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में अनुवाद करने हेतु राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक एक विभाग का निर्माण जिसका उद्देश्य ही ‘भारतीय भाषाओं को वैविध्य की दृष्टिसे भी समृद्ध बनाना’ होगा। इस विभाग का काम युद्धस्तर पर चलाना होगा। विश्व का लिखित अलिखित भद्र ज्ञान धार्मिक (भारतीय) भाषाओं मे उपलब्ध कराना होगा।  
 
# विश्वभर की सभी भाषाओं में उपलब्ध भद्र ज्ञान के ग्रंथों का धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में अनुवाद करने हेतु राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक एक विभाग का निर्माण जिसका उद्देश्य ही ‘भारतीय भाषाओं को वैविध्य की दृष्टिसे भी समृद्ध बनाना’ होगा। इस विभाग का काम युद्धस्तर पर चलाना होगा। विश्व का लिखित अलिखित भद्र ज्ञान धार्मिक (भारतीय) भाषाओं मे उपलब्ध कराना होगा।  
# प्रगत पाठयक्रमों का अध्ययन-अध्यापन धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में, विशेषत: आरम्भ में हिंदी में और फिर अन्य भाषाओं में प्रारंभ करना होगा। इस हेतु प्रगत पाठयक्रमों के लिये उपयुक्त तकनीकी शब्द निर्माण का काम हमारी राजभाषा प्रसार समिती कर रही थी। उसे फिर गति और शक्ति देनी होगी। अंग्रेजी मे सिखाया जानेवाला ५ वर्ष का अभियांत्रिकी का पाठयक्रम अपनी भाषा में सीखने के लिये बच्चों को २/२.५ वर्ष पर्याप्त होते है। अपनी भाषा में प्रगत पाठयक्रम लाने से बच्चों के यौवन के २/२.५ वर्ष वर्ष व्यर्थ जाने से बच जाएंगे। देश के स्तर पर हमारे करोडों युवक वर्षों का आज होनेवाला अपव्यय हम टाल सकेंगे। इस हेतु प्रगत पाठयक्रम अपनी भाषा मे लाने का काम अविलम्ब करना होगा।  
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# प्रगत पाठयक्रमों का अध्ययन-अध्यापन धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में, विशेषत: आरम्भ में हिंदी में और फिर अन्य भाषाओं में प्रारंभ करना होगा। इस हेतु प्रगत पाठयक्रमों के लिये उपयुक्त तकनीकी शब्द निर्माण का काम हमारी राजभाषा प्रसार समिती कर रही थी। उसे फिर गति और शक्ति देनी होगी। अंग्रेजी मे सिखाया जानेवाला ५ वर्ष का अभियांत्रिकी का पाठयक्रम अपनी भाषा में सीखने के लिये बच्चोंं को २/२.५ वर्ष पर्याप्त होते है। अपनी भाषा में प्रगत पाठयक्रम लाने से बच्चोंं के यौवन के २/२.५ वर्ष वर्ष व्यर्थ जाने से बच जाएंगे। देश के स्तर पर हमारे करोडों युवक वर्षों का आज होनेवाला अपव्यय हम टाल सकेंगे। इस हेतु प्रगत पाठयक्रम अपनी भाषा मे लाने का काम अविलम्ब करना होगा।  
 
# तत्वज्ञान, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, राज्यशास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, गृहनिर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, जल-प्रबंधन शास्त्र, कण-भौतिकी, रसायन, अणू-विज्ञान आदि भिन्न भिन्न विषयों के संबंध में धार्मिक (भारतीय) दृष्टिकोणपर आधारित साहित्य धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में विश्व के सम्मुख शक्ति, व्याप्ति और गति के साथ प्रस्तुत करना।  
 
# तत्वज्ञान, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, राज्यशास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, गृहनिर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, जल-प्रबंधन शास्त्र, कण-भौतिकी, रसायन, अणू-विज्ञान आदि भिन्न भिन्न विषयों के संबंध में धार्मिक (भारतीय) दृष्टिकोणपर आधारित साहित्य धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में विश्व के सम्मुख शक्ति, व्याप्ति और गति के साथ प्रस्तुत करना।  
 
# संस्कृत मे उपलब्ध ग्रंथों में प्रतिपादित विषयों की वर्तमान काल के सापेक्ष पुनर्प्रस्तुति करना। इससे विश्वकल्याण की दृष्टि हमें प्राप्त होगी। चराचर के साथ एकात्मता की भावना के आधारपर विकसित भिन्न भिन्न विषयों के ज्ञान का अगाध सागर हम विश्व के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे।  
 
# संस्कृत मे उपलब्ध ग्रंथों में प्रतिपादित विषयों की वर्तमान काल के सापेक्ष पुनर्प्रस्तुति करना। इससे विश्वकल्याण की दृष्टि हमें प्राप्त होगी। चराचर के साथ एकात्मता की भावना के आधारपर विकसित भिन्न भिन्न विषयों के ज्ञान का अगाध सागर हम विश्व के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे।  
 
# मातृभाषा (राज्य की) ही शिक्षा का माध्यम बने इस हेतु आंदोलन चलाना/जनजागरण करना।  
 
# मातृभाषा (राज्य की) ही शिक्षा का माध्यम बने इस हेतु आंदोलन चलाना/जनजागरण करना।  
 
# आंतराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में औपचारिक स्तर पर अपनी भाषाओं का ही उपयोग करते रहना। भिन्न भिन्न देशों में 'संस्कृत/हिंदी विश्व संम्मेलन' का आयोजन कर, धार्मिक (भारतीय) भाषाओं की महत्ता विश्वविख्यात करना।  
 
# आंतराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में औपचारिक स्तर पर अपनी भाषाओं का ही उपयोग करते रहना। भिन्न भिन्न देशों में 'संस्कृत/हिंदी विश्व संम्मेलन' का आयोजन कर, धार्मिक (भारतीय) भाषाओं की महत्ता विश्वविख्यात करना।  
# अंग्रेजी का वर्तमान में उपजीविका पाने के लिये महत्व समझकर 'अंग्रेजी भाषा' अध्यापन के लिये श्रेष्ठ पद्दति का उपयोग करना। सुनना, बोलना, पढ़ना और अंत में लिखना यह किसी भी भाषा को सीखने के स्वाभाविक चरण होते है । बच्चा इसी क्रम से अपनी भाषा सीखता है । संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत संभाषण के लिये विकसित 'संस्कृत संभाषण वर्ग' की पद्दति से विद्यालय यदि अंग्रेजी पढाएंगे तो बच्चे अच्छी तरह अंग्रेजी बोल सकेंगे । इस से अभिभावकों को अंग्रेजी माध्यम में बच्चों को पढाने का मोह नहीं होगा।  
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# अंग्रेजी का वर्तमान में उपजीविका पाने के लिये महत्व समझकर 'अंग्रेजी भाषा' अध्यापन के लिये श्रेष्ठ पद्दति का उपयोग करना। सुनना, बोलना, पढ़ना और अंत में लिखना यह किसी भी भाषा को सीखने के स्वाभाविक चरण होते है । बच्चा इसी क्रम से अपनी भाषा सीखता है । संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत संभाषण के लिये विकसित 'संस्कृत संभाषण वर्ग' की पद्दति से विद्यालय यदि अंग्रेजी पढाएंगे तो बच्चे अच्छी तरह अंग्रेजी बोल सकेंगे । इस से अभिभावकों को अंग्रेजी माध्यम में बच्चोंं को पढाने का मोह नहीं होगा।  
 
# एक तात्कालिक उपाय के रूप में, जब तक अंग्रेजी चलेगी तब तक रोमन लिपि के स्थानपर देवनागरी लिपि के उपयोग से अंग्रेजी भाषा के उच्चारण और लेखन की आधी समस्या हल हो सकेगी।  
 
# एक तात्कालिक उपाय के रूप में, जब तक अंग्रेजी चलेगी तब तक रोमन लिपि के स्थानपर देवनागरी लिपि के उपयोग से अंग्रेजी भाषा के उच्चारण और लेखन की आधी समस्या हल हो सकेगी।  
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=== पहली कक्षा से अंग्रेजी सीखने का आग्रह और बलप्रयोग सामाजिक अपराध है ===
 
=== पहली कक्षा से अंग्रेजी सीखने का आग्रह और बलप्रयोग सामाजिक अपराध है ===
# अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चों की संख्या लक्षणीय है। इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है।
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# अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चोंं की संख्या लक्षणीय है। इन बच्चोंं को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है।
 
# अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यता वाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगोंं का ही शायद इन अंग्रेजी भाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगोंं को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है।
 
# अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यता वाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगोंं का ही शायद इन अंग्रेजी भाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगोंं को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है।
  

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