पाँच वर्ष (सन्तानों का) लालन चलना चाहिये, दस वर्ष ताडन करना चाहिये और सोलह वर्ष को प्राप्त होने पर पुत्र के साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिये । यह कथन आचार्य चाणक्य का है। मनुष्य के मनोव्यापार कैसे होते हैं, उनसे प्रेरित हो कर वह कैसा व्यवहार करता है, उन्हें कैसे जाना पहचाना जाता है और उसके आधार पर उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। इस बात में आचार्य चाणक्य तज्ञ हैं । उपरोक्त कथन भी इसका निदर्शक है । | पाँच वर्ष (सन्तानों का) लालन चलना चाहिये, दस वर्ष ताडन करना चाहिये और सोलह वर्ष को प्राप्त होने पर पुत्र के साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिये । यह कथन आचार्य चाणक्य का है। मनुष्य के मनोव्यापार कैसे होते हैं, उनसे प्रेरित हो कर वह कैसा व्यवहार करता है, उन्हें कैसे जाना पहचाना जाता है और उसके आधार पर उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। इस बात में आचार्य चाणक्य तज्ञ हैं । उपरोक्त कथन भी इसका निदर्शक है । |