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| वर्तमान की आओ जाओ घर तुम्हारा है जैसी यानी धर्मशाला जैसी मुक्त या दुष्टों के हाथों में भी संहारक तन्त्रज्ञान जाने से न रोकने वाली विकृत तन्त्रज्ञान नीति से सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये उपयुक्त तन्त्रज्ञान नीति तक समाज को ले जाना अत्यंत कठिन बात है। लेकिन करणीय तो यही है। इसलिये हर प्रकार के प्रयत्नों से करना तो ऐसा ही होगा। कई प्रकार के बिंदू इसमें ध्यान में लेने की आवश्यकता है। इस दृष्टि से कुछ बिन्दू नीचे दे रहे हैं। अपनी मति और अनुभवों के आधारपर स्थल, काल और परिस्थिति का ध्यान रखकर इस परिवर्तन की प्रक्रिया को सुदृढ और तेज किया जा सकता है। | | वर्तमान की आओ जाओ घर तुम्हारा है जैसी यानी धर्मशाला जैसी मुक्त या दुष्टों के हाथों में भी संहारक तन्त्रज्ञान जाने से न रोकने वाली विकृत तन्त्रज्ञान नीति से सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये उपयुक्त तन्त्रज्ञान नीति तक समाज को ले जाना अत्यंत कठिन बात है। लेकिन करणीय तो यही है। इसलिये हर प्रकार के प्रयत्नों से करना तो ऐसा ही होगा। कई प्रकार के बिंदू इसमें ध्यान में लेने की आवश्यकता है। इस दृष्टि से कुछ बिन्दू नीचे दे रहे हैं। अपनी मति और अनुभवों के आधारपर स्थल, काल और परिस्थिति का ध्यान रखकर इस परिवर्तन की प्रक्रिया को सुदृढ और तेज किया जा सकता है। |
| # ‘कुटुम्ब और कौटुम्बिक उद्योग’ यह विषय शिक्षा के हर स्तरपर शक्ति के साथ समाविष्ट करना। | | # ‘कुटुम्ब और कौटुम्बिक उद्योग’ यह विषय शिक्षा के हर स्तरपर शक्ति के साथ समाविष्ट करना। |
− | # कौटुम्बिक उद्योगों की महत्ता, असुर वृत्ति के लोगोंं को कैसे पहचानना, असुर प्रवृत्तियों के हाथों में घातक तन्त्रज्ञान जाने से होनेवाले सामाजिक दुष्परिणामों के विषय में, सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये तंत्रज्ञानों के व्यावहारिक उपयोजन आदि के बारे में शिक्षा के माध्यम से बच्चों के मन को आकार देना। असुरों के हाथ में ऐसा कोई भी घातक तन्त्रज्ञान नहीं जाने देंगे इस बिंदूपर उन्हें संकल्पबध्द करना। | + | # कौटुम्बिक उद्योगों की महत्ता, असुर वृत्ति के लोगोंं को कैसे पहचानना, असुर प्रवृत्तियों के हाथों में घातक तन्त्रज्ञान जाने से होनेवाले सामाजिक दुष्परिणामों के विषय में, सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये तंत्रज्ञानों के व्यावहारिक उपयोजन आदि के बारे में शिक्षा के माध्यम से बच्चोंं के मन को आकार देना। असुरों के हाथ में ऐसा कोई भी घातक तन्त्रज्ञान नहीं जाने देंगे इस बिंदूपर उन्हें संकल्पबध्द करना। |
| # पहल करना, प्रोत्साहन देना, प्रायोजित करना ऐसे भिन्न भिन्न मार्गों से ‘संयुक्त कुटुम्बों का सुसंस्कृत, समृध्द और शक्तिशाली समाज बनाने में योगदान’ के ऊपर शोध कार्य करवाना। ऐसा सभी ज्ञान, शिक्षा में और समाज में लाना। | | # पहल करना, प्रोत्साहन देना, प्रायोजित करना ऐसे भिन्न भिन्न मार्गों से ‘संयुक्त कुटुम्बों का सुसंस्कृत, समृध्द और शक्तिशाली समाज बनाने में योगदान’ के ऊपर शोध कार्य करवाना। ऐसा सभी ज्ञान, शिक्षा में और समाज में लाना। |
| # वर्तमान में जो कौटुम्बिक उद्योग चल रहे हैं उन्हें हर तरह से बढावा देना। | | # वर्तमान में जो कौटुम्बिक उद्योग चल रहे हैं उन्हें हर तरह से बढावा देना। |
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| # तन्त्रज्ञान महाविद्यालयों में कौटुम्बिक उद्योगों के लिये तन्त्रज्ञान विषय उसकी भिन्न भिन्न विधाओं के साथ आरम्भ करना। जैसे जैसे कौटुम्बिक उद्योग बढते जाएँगे बाजारू तन्त्रज्ञान विद्यालय/महाविद्यालय, उनकी आवश्यकताही नहीं होने से अपने आप बंद हो जाएँगे। | | # तन्त्रज्ञान महाविद्यालयों में कौटुम्बिक उद्योगों के लिये तन्त्रज्ञान विषय उसकी भिन्न भिन्न विधाओं के साथ आरम्भ करना। जैसे जैसे कौटुम्बिक उद्योग बढते जाएँगे बाजारू तन्त्रज्ञान विद्यालय/महाविद्यालय, उनकी आवश्यकताही नहीं होने से अपने आप बंद हो जाएँगे। |
| # इस दृष्टि से उद्योग मंत्रालय में ‘कौटुम्बिक उद्योग प्रोत्साहन विभाग’ आरम्भ करना। इस विभाग को हर प्रकार की प्राथमिकता देना। | | # इस दृष्टि से उद्योग मंत्रालय में ‘कौटुम्बिक उद्योग प्रोत्साहन विभाग’ आरम्भ करना। इस विभाग को हर प्रकार की प्राथमिकता देना। |
− | # कौटुम्बिक उद्योगों में काम करनेवाले छोटे बच्चों को बाल मजदूरी के कानून से छुटकारा देना। | + | # कौटुम्बिक उद्योगों में काम करनेवाले छोटे बच्चोंं को बाल मजदूरी के कानून से छुटकारा देना। |
− | # माध्यमिक स्तरपर सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये तन्त्रज्ञान के निर्माणकी संकल्पना को बच्चों के मनों में स्थापित करना। | + | # माध्यमिक स्तरपर सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये तन्त्रज्ञान के निर्माणकी संकल्पना को बच्चोंं के मनों में स्थापित करना। |
| # तन्त्रज्ञान विषय के वर्तमान प्राध्यापकों को कौटुम्बिक उद्योगों के लिये तन्त्रज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान में लगाना। न्यूनतम एक नये कौटुम्बिक तन्त्रज्ञान के विकास की शर्त पदोन्नति की अनिवार्य शर्त बनाना। इसके अभाव में वेतन में वृद्धि रोकने जैसे उपायों का भी उचित ढँग से उपयोग करना। | | # तन्त्रज्ञान विषय के वर्तमान प्राध्यापकों को कौटुम्बिक उद्योगों के लिये तन्त्रज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान में लगाना। न्यूनतम एक नये कौटुम्बिक तन्त्रज्ञान के विकास की शर्त पदोन्नति की अनिवार्य शर्त बनाना। इसके अभाव में वेतन में वृद्धि रोकने जैसे उपायों का भी उचित ढँग से उपयोग करना। |
| # जिनकी कौटुम्बिक उद्योगों में निष्ठा नहीं है उन्हें शासकीय तन्त्रज्ञान विद्यालयों में नौकरी नहीं देना। वर्तमान नौकरों को हतोत्साहित करना। | | # जिनकी कौटुम्बिक उद्योगों में निष्ठा नहीं है उन्हें शासकीय तन्त्रज्ञान विद्यालयों में नौकरी नहीं देना। वर्तमान नौकरों को हतोत्साहित करना। |